लॉकडाउन के दौर के मध्य में बढ़ती शैक्षिक डिजिटल असमानता, एक नजर बिहार की ओर

वंचित और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग,अभी भी इन्टरनेट की दुनिया से काफ़ी दूर है

आज पूरा विश्व कोविड -19 जैसी गम्भीर महामारी से जूझ रहा है, जहाँ विश्व के कई देशों में सम्पूर्ण लॉकडाउन कि स्थिति है, जिसमें भारत भी शुमार है, जाहिर सी बात है कि सारे स्कूल और कॉलेज बन्द है,  ऐसे मे एक गम्भीर समस्या उत्पन्न होती है कि इस आपदा के दौर में  बच्चों कि पढाई बाधित ना होने से कैसे रोका जाए? इसके लिए भारत समेत विश्व के कई देश ऑन लाइन  शिक्षा के विचार को लेकर आगे आए और लगभग सभी जगह ऑनलाइन पढ़ाई को शुरू किया गया.  इस संकट की स्थिति मे शिक्षण कार्यों  में रुकावट उत्पन्न ना होने हेतु शिक्षा का डिजीटाईजेशन बहुत ही उत्तम विचार है जहाँ इंटरनेट के जरिये छात्र व शिक्षक एक दूसरे से जुड़कर पढ़ाई जारी रख सकते हैं.

लेकिन क्या डिजीटल शिक्षा का लाभ सभी छात्र-छात्राएं समान रूप से उठा सकते हैं?

यदि हम भारत के संदर्भ में देखे तो गुगल इन्डिया के सर्वेक्षण के अनुसार केवल 34% भारतीयों के पास ही इन्टरनेट कि सुविधा है,  जिनमें  से 70% पुरुष और केवल 30% महिलाएं  हैं  ।  गुगल इन्डिया का सर्वेक्षण यह भी बताता है कि देश के 45% अभिभावक ये मानते हैं कि उनके बच्चे इन्टरनेट पर मौजूद गलत चीज़ो (गलत समाचार व पार्न) इत्यादि का शिकार हो जाएंगे,  मौजूदा आंकड़े को देखकर यह पता लगाना बहुत ही सरल है कि देश मे सभी के पास इन्टरनेट नहीं है और जिन छात्रों के पास है भी तो उनके अभिभावकों  को  अपने बच्चों को इतने मोबाइल पर समय देना पसंद नही है ।

डिजीटल शिक्षा के आने से हमारे देश की  कई अन्य समस्याएं उजागर होती है, जिनमें से पहला कि देश मे आर्थिक असमानता के कारण मोबाइल और इंटरनेट की सुविधा सभी छात्र-छात्राओं के बीच में नहीं है,  दूसरा देश के अभिभावक इन्टरनेट और मोबाइल के इस्तेमाल को लेकर विभिन्न प्रकार के धारणाओं  के शिकार हैं और तीसरा कि देश मे डिजीटल साक्षारकता का अभाव है, अर्थात इन्टरनेट को पुरी सुरक्षा के साथ उपयोग करने की जानकारी का अभाव ।

बिहार: डिजिटल शिक्षा से कोसों दूर

यदि हम देश के बिहार राज्य कि बात करे तो इस प्रदेश का नाम अभी भी पिछड़े राज्यों के बीच में आता है, जहाँ राज्य के आबादी में सामाजिक पिछड़ेपन से लेकर आर्थिक और शैक्षणिक पिछडापन आज भी उपस्थित है,  ऐसे मे सभी को समान शिक्षा देना  सरकार और शिक्षकों  के बीच बहुत बड़ी चुनौती है.  बिहार राज्य में 6-14 वर्ग के आयु के ज्यादातर छात्र सरकारी शिक्षा पर ही निर्भर हैं,  सरकारी विद्यालयो मे अधिकतर छात्र समाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रुप से पिछड़े वर्ग से आते हैं, ये विद्यार्थी शैक्षिक मूलभूत जरूरतों मसलन पोशाक, शिक्षक-छात्र अनुपात, उचित खान-पान इत्यादि जैसे अनेक संकटों का सामना करते हुए पढ़ाई करते हैं ऐसी परिस्थिति में इन जैसे अनेक सामाजिक रूप से कमजोर छात्र-छात्राओं के लिए इंटरनेट पर शिक्षा लेना अत्यन्त मुश्किल है ।

बिहार राज्य आर्थिक सर्वेक्षण (2019) के रिपोर्ट के  अनुसार राज्य कि 33% आबादी आज भी गरीबी रेखा के निचे है, और देश के कुल बी. पी. एल. (below poverty line)  जनसंख्या में  से 55.7% आबादी ग्रामीण ईलाकों  में रहती है जिनमे से अधिकान्श बच्चे या तो स्कूल नहीं जाते या तो सरकारी शिक्षा पर निर्भर हैं,  इन बच्चो का प्रतिदिन स्कूल आना ही चुनौती है,  इनकी सारी शिक्षा सामग्री सरकार द्वारा ही मुहैया करायी जाती है, इनके माता-पिता मजदूर वर्ग या छोटे-मोटे रोजगार से जुड़े हुए हैं,  इस विपत्ती कि स्थिति में  इनके परिवार के सामने दो वक़्त का भोजन इकट्ठा करना ही सबसे बड़ी समस्या है ।  इन बच्चो के माता पिता के पास स्मार्टफ़ोन नहीं है और भुख और गरीबी से लाचार ये बच्चे अपने माता-पिता के साथ भोजन को जुटाने मे लगे हुए हैं और अन्य बच्चो की तरह यह डिजीटल शिक्षा से कोसो दूर है ।

बिहार के बक्सर जिला मे स्थित निशान्त मध्य विद्यालय चौकिया का छात्र है,  जिसके पिता एक छोटे से किसान हैं  इन दिनों निशान्त अपने पिता कि खेत मे हाथ बँटा  रहा है  ताकि इस मन्दी मे उसके और उसके परिवार का पेट भर सके,  उसके घर मे कोई स्मार्टफ़ोन नहीं है।  उसी विद्यालय का छात्र सर्वेश जिसके माता-पिता दोनो ही दिहाड़ी मजदूर है,  कोविड-19 के कारण हुए अप्रत्याशित देशव्यापी लॉकडाउन के कारण इनका काम  बन्द है, इन्हे अपने गुज़ारे मे काफ़ी दिक्कतें  आ रही हैं ।

वहीं कक्षा आठवीं  की छात्रा पूजा के माता-पिता दोनों इन दिनों खेत में फ़सलो की कटाई कर रहे हैं और पूजा अपने छोटे भाई-बहनो का घर में ख्याल रख रही है, इन जैसे बच्चे इन्टरनेट की दुनिया को नहीं जानते हैं , इनकी पढाई पुरी तरह रुक चुकी है । डिजिटल माध्यम की पहुँच इन जैसे बच्चों से कोसों दूर है ।

ऐसे कई छात्र-छात्राऐं  है जिनके पिता प्रवासी मजदूर हैं और इन दिनों  देश के अन्य हिस्सों में फँसें है ऐसी स्थिति मे परिवार का पूरा ध्यान पिता पर लगा हुआ है कि किसी भी प्रकार वो घर आ जाए ।  अनेक ऐसे भी  छात्र-छात्राऐं  है जिनके पास मोबाइल तो है लेकिन उन्हे ये नहीं  पता कि ज़ूम ऐप व गुगल मीट जैसे ऐप का उपयोग कैसें करें, न केवल बच्चें बल्कि इस समस्या से कई शिक्षक भी जुझ रहे हैं जिनमें  डिजीटल साक्षरता का अभाव है, अतः इस प्रकार के  मौजुदा हालात मे सबको सामान शिक्षा प्रदान करवाना अत्यन्त कठिन है ।

निष्कर्ष

देश मे ऐसे अनेक सर्वेश, पूजा और निशान्त हैं, जिनके समक्ष इस आपदा काल में  भूख मिटाना प्रथम प्राथमिकता है,  कई छात्रों के पास स्मार्टफ़ोन नही है,  कई को उपयोग करने की जानकारी नहीं है,  कई के अभिभावक इन्टरनेट उपयोग करने की इज़ाज़त नही देते, इन्हीं  कारणों  से ये बच्चे डिजीटल इन्डिया के दौर मे भी डिजीटली निरक्षर हैं, डिजीटल इन्डिया,  राष्ट्रीय डिजीटल मिशन जैसे योजनाएँ  भी देश के सामाजिक-आर्थिक पिछडे वर्ग तक नही पहुच पायी हैं और इससे सबसे ज्यादा वंचित आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग, निम्न जातियाँ और आदिवासी समुदाय हो रही हैं जो इन्टरनेट की दुनिया से काफ़ी दूर है यहाँ आर्थिक व सामाजिक विषमता उन्हें  आज भी समान अधिकार नहीं लेने देती ।

– सुरेन्द्र प्रसाद (लेखक मध्य विद्यालय चौकिया, बक्सर में प्राध्यापक के तौर पर कार्यत हैं)

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