नहीं रहें महादलित टोले मे नशामुक्ति का अभियान चलाने वाले सुभाष

पुर्णियां: बेलौरी के महादलित बस्ती मे 20 साल पहले जन्म लेने वाले सूभाष ऋषि ने सोमवार को जीवन की शुरुआत में ही दुनिया को अलविदा कह दिया।
सुभाष की पहचान महादलित टोले मे नशाबंदी अभियान के प्रबल समर्थक और झंडाबरदार के रूप में थे, उन्होंने महादलित के बीच शाम की पाठशाला के माध्यम से शिक्षा का दीप जलाया था मगर दुर्भाग्यवश पैसे की तंगी के कारण उनकी मौत भी हो गयी। शादी और श्राद्ध जैसे निजी समारोह मे लाखों और करोड़ों रूपये लुटाने वाले समाज के धनवान वर्गों को भी सुभाष की लंबी बीमारी और आथिक मजबूरी प्रभावित नहीं कर सकी, न ही खुद को सामाजिक कार्यों के लिये समर्पित होने का दावा करने वाले जनप्रतिनिधियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को सुभाष की याद आयी। जब तक कुछ लोगों के हाथ आगे बढ़ते , तबतक काफी देर हो चुका था और सुभाष इस दुनिया को छोड़कर जा चुका था ।

सुभाष

सुभाष बीते छह माह से बीमार थे। आरंभिक दौर मे सदर अस्पताल मे उसका इलाज हुआ, लेकिन बाद मे उसे हायर सेंटर रेफर कर दिया गया। सुभाष की माली हालत ऐसी नही थी कि वह प्राइवेट अस्पताल में अपना इलाज करा सके। लिहाजा वह अपने घर पर रहकर मौत का इंतजार करता रहा.
दरअसल सुभाष जिस समाज मे पैदा हुए थे, वहाँ गरीबी और शिक्षा की वजह से कई तरह की गलत मान्यताएं अस्तित्व मे थी और पूरा समाज नशापान की गिरफ्त में था। बेरोजगारो की फौज खरी थी, जो दिन रात नशे मे डूबा रहता था, ऐसे में जब राज्य सरकार द्वारा पूर्ण शराबबंदी की घोषणा की गयी तो उसने आगे बढ कर महादलित टोले मे नशा के खिलाफ सशक्त अभियान चलाया। आरंभिक दौर मे सुभाष को कई परेशानियां झेलनी पड़ी मगर अंततः वह अपने मकसद मे कामयाब रहें ।

सुभाष ने निरक्षरता से उपजे दंश को खुद झेला था। लिहाजा जब शाम की पाठशाला आरंभ हुई तो न केवल वह खुद की पाठशाला का छात्र बना बल्कि वह निरक्षरों के बीच ब्रांड एंबेसडर बनकर निरक्षर महिलाओं और पुरूषों को शाम की पाठशाला से जोड़ा।   आज जब इलाज के अभाव में सुभाष दम तोड़ चुका है तो समाज उसके याद में डूबा है ।

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