10 करोड़ के बड़ी आबादी वाले बिहार में अस्पतालों का पुख्ता ईलाज जरूरी

 

वर्तमान विकासशील समाज के कुशल निर्माण में अस्पतालों का सुदृढ़ होना अतिआवश्यक है। बिहार में आज के आधुनिकीकरण के दौर में भी सरकारी अस्पतालों की हालत सुधरी नही है। सरकारी अस्पतालों की चिकित्सा व्यवस्था संतोषजनक नहीं मानी जा सकती। इसे पटरी पर लाने के लिए प्राथमिकता के आधार पर प्रयास किया जाना चाहिए।

 

सबसे अहम बात यह है कि आभाव का रोना छोड़कर जो संसाधन उपलब्ध है, उनका अधिकतम एवं श्रेष्ठतम इस्तेमाल किया जाना चाहिए। कस्बों और ग्रामीण क्षेत्रों में स्तिथ अस्पतालों की दशा बेहद चिंताजनक है। स्वस्थ भारत के निर्माण को धता बताते हुए डॉक्टर और पैरामेडिकल कर्मचारी ज्यादातर गायब ही रहते हैं। स्वच्छ भारत के निर्माण में सफाई का कोई पुरसाहाल नहीं।

 

दवाएं तो खैर रहती ही नहीं है। रहती भी है तो जला दी जाती है, जमीन खोद कर नष्ट कर दी जाती है या नहीं तो बेच दी जाती है। इसका साक्ष्य प्रमाण भी है। इन अस्पताल व्यवस्था के बदहाली का लाभ उठाकर झोलाछाप डॉक्टरों की चांदी है।

 

सरकारी हॉस्पिटल के मशीने हमेशा खराब ही रहते हैं। यह सब खेल अस्पताल प्रशासन और बाहरी निजी धंधे करने वाले के हाथ से हाथ मिलाने से होता आ रहा है। यह भी एक यक्षप्रश्न है कि सरकारी अस्पतालों के ठीक बाहर दवा और जाँच की दुकानें क्यूँ स्थापित होती है? कोई है जो बोलेगा?

 

सबको पता है कि अस्पताल में उपलब्ध सुविधाओं को नजरअंदाज करके कैसे डॉक्टर अपनी स्लिप पर बाकायदा मेडिकल शॉप और पैथालॉजी का नाम तक लिख देते हैं।

‘सब चलता है’ के तर्ज पर दशकों से यह सब चलता आ रहा है। अब यहाँ आवाज बुलंद करना ही होगा क्योंकि आज के युग मे चिकित्सा एक महंगा क्षेत्र हो गया है। आम आदमी प्रतिष्ठित निजी हॉस्पिटल में इलाज कराने की कल्पना भी नही कर सकता। इन सभी अपेक्षाओं को ध्यान में रखते हुए सबको एक स्वर में जिम्मेदार होना होगा जिससे सरकार को सरकारी चिकित्सा पद्धति सही समय पर कारगर बनाने के लिए कार्ययोजना का प्रारूप तैयार करना होगा।

 

सरकारी अस्पताल दलालों और कमीशनखोरों के अड्डे बन गए हैं। यहां आने वाले मरीज निजी क्लिनिक में पहुँचा दिए जाते है या इलाज के अभाव में स्वर्गलोक में और यहाँ की दवाइयों को अस्पताल के बाहर मेडिकल स्टोर में।

ऐसे में सरकारी अस्पतालों की इलाज की पुख्ता व्यवस्था होनी चाहिए।

 

जब तक उच्चकोटि और मानक अनुरूप इलाज मुहैया नहीं होता तब तक लोक हितकारी शासन की मंशा झूठी और अधूरी ही मानी जायेगी।।

 

पैदा होने के लिए अस्पताल और जिंदगी का मजा लेते रहने के लिए भी अस्पताल। मजा में रहना है अस्पतालों का इज्जत बचाना है।

आपमें जब तक जान है तब तक हिम्मत है। बांकी आप जिंदा रहेंगे तभीये ना हिम्मत से बोलेंगे। जिंदा रहने के लिए तेरी कसम एक अस्पताल जरूरी है सनम।।

 

लेखक ~ प्रत्युष

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