आज है सतुआइन: उठा के शहर के मोमो, पिज्जा आ बर्गर को पटक देबे वाला बिहारी सतुआ के दिन

सतुआ हमारे लिए खाली नाश्ता आ पेट भरे का चीज नहीं है, कोनो दादी आ कोनो माई का विश्वास है, भरोसा है

दूसरा-तीसरा में पढ़ते होंगे. ठीक से यादो नहीं है. गर्मी के दिन में इस्कूल मॉर्निंग हो जाता था. मॉर्निंग स्कूल मतलब भोर 6 बजे से 11 बजे तक पढ़ाई आ उसके बाद भर दिन गाछी में टिकोला के रखवाली.. भोरका इस्कूल जाना बड़ा झंझटिया काम लगता था. मन मारकर बिछौना छोड़ना पड़ता. मतलब रात भर आपको मच्छर खखोर दिया हो, भोर में 4 बजे हल्का-हल्का हवा में नींदे पड़े हों कि दादी कुण्डी खटखटा देती थीं. अरे अभिए ता नींद पड़ा था. हम बिछौना पर पड़ले-पड़ल अपना आखिरी ब्रह्मास्त्र छोड़ते “दादी, पेट दर्द..” पर दादी कहाँ मानने वाली थीं. “चुपचाप उठ रे कुम्भकरण, तुम्हारा डेली का ईहे नखरा रहता है..

हम नींद में उठते.. नींदे में मैदान हो लेते. नींदे में ब्रश-दतमन भी कर लेते.. आ नींदे में जइसे ही भनसाघर (रसोई) में घुसते, पानी रखा पितरिया लोटा पैर से लगकर ढनमाना जाता. फिर दादी डांट के कहतीं “जा रे सत्यानाशी, अभी पानी पिबो नहीं किए थे.. पूरा उझल दिए.” अब हमारा नींद फुर्र. हम फिर दांव खेलते “खाना कुच्छो नहीं है, हम भूखे नहीं जाएंगे इस्कूल.” हालांकि तब तक दू ठो बसिया रोटी में चीनी लपेट कर ठूंस दिए रहते.

“तुमको तो हम इस्कूल भेजिए के रहेंगे.. चाहे भूक्खेे जाओ, चाहे दुक्खे.”
दादी अपने से डिबिया लेश के भनसाघर में आतीं आ सतुआ का पैकेट निकालतीं. पहलवान जी इ के ईहाँ से आया शुद्ध चना का सतुआ. अपना हाथ से पीसल. बाटी में सत्तू उझल के, एक मुट्ठी चीनी डालके सतुआ का गोला तईयार हो जाता. इहे गोला बम भोला 5 घंटा इस्कूल में जान बचाएंगे. हम बस्ता टांगते आ सतुआ भकोसते चल देते इस्कूल. सतुआ से पहीला इंट्रोडक्शन हमारा अईसे ही हुआ था. चीनी मिलाएल गोला वाला सतुआ. लिट्टी-चोखा, नीम्बू-प्याज वाला सतुआ, काला नमक वाला सत्तू सब तो बाद में देखे. कभी-कभी ता इस्कूल से सीधा गाछी भाग जाते, दादी सबको कहते खोजतीं ” अमना को देखे हैं, देखिए तो भोर से खाली सतुआ खाया हुआ है.. आज मिल जाए पहले फेर बताते हैं इसको..”
आज सतुआइन है. फेसबुक से पता चला. एक बार फेर गाँव याद आ गया. टिकोला, सतुआ का गोला आ दादी.
होली का छुट्टी मनाकर जे बिहार से शहर लौटता है ना. चाहे आईआईटी में पढ़े वाला हो चाहे फैक्टरी में कमाए वाला.. ओकरा बैग के, झोेरा के कोनो कोना में करियक्का पोलिथिन में बान्हल सतुआ जरूर मिल जाएगा. सतुआ हमारे लिए खाली नाश्ता आ पेट भरे का चीज नहीं है, कोनो दादी आ कोनो माई का विश्वास है, भरोसा है.  उठा के शहर के मोमो, पिज्जा आ बर्गर कोपटक देबे वाला सतुआ. पोलोथिन में सतुआ बान्हते समय शायद दादी आ मम्मी ईहे असीरबाद देती होंगी “मिरचाई नियन हरियाएल रहेगा, हमार बचवा जुड़ाइल रहेगा..!”

– अमन आकाश

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