भागलपुर के युवाओं के लिए ‘सक्सेस गुरु’ के रूप में दिखे डीआईजी विकास वैभव

भागलपुर रेंज के DIG विकास वैभव कानून को लागू कराने में जितने सख्त हैं, उतने ही पब्लिक फ्रेंडली भी हैं।विकास वैभव जब से भागलपुर के डीआईजी बने हैं तब से गलत करने वाले थर-थर कांप रहे हैं। वही दूसरी ओर भागलपुर शहर का आम आदमी विकास वैभव का दूसरा रूप भी देख रहा है। पुलिस ‘लोक संवाद’ का आयोजन कर रही है, जहां स्वयं भी विकास वैभव उपस्थित होकर उनकी सुन रहे हैं, जिनकी कोई नहीं सुनता था। ऑन स्पॉट एक्शन लेने के निर्देश दिए जा रहे हैं। यह तो बात पुलिसिंग की है।

इसके इतर डीआईजी विकास वैभव कैरियर को संवारने की दिशा में आगे बढ़ते भागलपुर के युवाओं के लिए ‘मेंटर’ और गाइड भी बनते दिख रहे हैं। 2 जुलाई को भागलपुर के युवाओं ने फिर से विकास वैभव से ‘सक्सेस टिप्स’ जाना। आयोजन संस्था ‘आरंभ’ की ओर से किया गया था। बड़ी संख्या में छात्र-छात्रा सुनने को आये हुए थे। जबतक विकास वैभव बोलते रहे, हॉल में पिन ड्राप साइलेंस रहा। सबों ने अपने भीतर नई उर्जा महसूस की साथ में सेल्फी सेशन चला। युवाओं में विकास वैभव के साथ सेल्फी के लिए होड़ मची रही।

 

विकास वैभव ने ‘लक्ष्य प्राप्ति के सिद्धांत’ विषय पर अपने व्याख्यान की शुरुआत इन चार पंक्तियों से की:-
“काम शुरू करते नहीं भय से नीचे लोग,
मध्यम त्यजते बीच में देख विषम संयोग।
पर उत्तम वे लोग जो हर दुर्गम पथ झेल,
ढृढता से बढ़ते सतत बाधाओं को ठेल।”
(विकास वैभव के इन चार पंक्तियों का आशय यह है कि छोटे लोग भय के कारण कोई काम शुरू करते ही नहीं हैं. फिर मध्यम लोग वैसे होते हैं जो परिस्थितियों के विषम होने पर काम को बीच में ही त्याग देते हैं। पर उत्तम वे लोग होते हैं जो हर कठिनाई को झेलते हैं और दृढ़ता से आगे बढ़ते हुए सभी बाधाओं को ठेल देते हैं।)
विकास वैभव ने अपनी बातें रखते हुए व्यक्तिगत अनुभवों पर विस्तार से चर्चा की। ऊपर की पंक्तियों के बारे में उन्होंने कहा कि विद्यालय के प्रातः कालीन सभा में हम सभी इसे रोज गाते थे और इसने छात्र जीवन में मुझे सदैव संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया। यह अत्यंत दुष्कर पलों में भी मुझमें आत्मविश्वास भर देती थीं। इन पंक्तियों का श्रोत उपनिषद् का एक श्लोक है जिसमे ब्रह्म के वास्तविक साक्षात्कार के संद्धर्भ में प्रयासरत तीन प्रकार के साधकों का वर्णन किया गया है। उन्होंने कहा कि अपने छोटे से जीवन में मैंने भी यह देखा तथा अनुभव किया कि वास्तव में लगभग सभी प्रकार के कार्यों का मूल इन पंक्तियों में समाहित है जिसका अनुकरण करने पर साधक को सफलता अवश्य मिलेगी। लक्ष्य जो भी हो उसकी प्राप्ति के लिए आवश्यकता है केवल ऐसे दृढ निश्चय की, जो कभी विचलित नहीं हो। कठिन परिश्रम करने पर यदि निश्चय अटूट हो तो अन्य मार्ग अपने आप स्पष्ट हो जाते हैं और लक्ष्य की ओर अग्रसर करते हैं। सफलता के लिए नीति और दर्शन की आवश्यकता पर बल देते हुए विकास वैभव ने अपने अनुभवों के साथ महाभारत के शांति पर्व में वर्णित 3 मछलियों की कथा भी साझा की। तीन मित्र मछलियां जिनके नाम दीर्घसूत्री, प्रत्युत्पन्नमति और दूरदर्शी थे, वे कभी एक ही तालाब में साथ निवास करते थे। एक दिन मछुआरों को आते देख सभी मित्र मछलियों में व्याकुलता का भाव जागृत हुआ और प्राण रक्षा के तरीकों पर विचार होने लगा। उन्होंने बताया कि दीर्घसूत्री जलाशय के जल को देखकर निश्चिंत बना रहा चूंकि उसे लगता था कि जब मछुआरे आएंगे तब वह नीचे जाकर प्राण बचा लेगा और इसीलिए अभी चिंता का विषय नहीं था। दूरदर्शी अन्यत्र जाने के उपायों पर चिंतन करने लगा और प्रत्युत्पन्नमति विपत्ति की तैयारी करने लगा। जब मछुआरे आए तब वे जल कम करने हेतु क्यारियां खोदने लगे, जिनको देखकर दूरदर्शी खतरों पर विचार करते हुए भी भविष्य को ध्यान में रखकर आगे तैरकर निकलने लगा और धीरे-धीरे एक दूसरे जलाशय में पहुंच गया। पानी कम होने पर जब मछुआरों ने जाल डाला तब प्रत्युत्पन्नमति ने जाल को दांतों से पकड़ लिया और जब मछुआरे जाल बाहर निकाले तब मृतप्राय सा बना रहा। मछुआरे जाल निकाल कर जब उसे धोने के लिए बगल के जलाशय में ले गए तब उसने दांतों से जाल को छोड़ दिया और सुरक्षित बच पाया. परंतु चिंताओं से इतर दीर्घसूत्री वहीँ बना रहा और अंततः पकड़ा गया। अतः नीतियां किस प्रकार भविष्य तय कर सकती हैं यह सभी समझ सकते हैं।

उन्होंने कहा कि हमें युवाओं के बीच अनुभव बांटने में अत्यंत आनंद की अनुभूति होती है तथा आचार्य ऋण के प्रति योगदान होता है। सभी युवाओं को लक्ष्य में सफल होने की हार्दिक शुभकामनाएँ भी उन्होंने दी।

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