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सुशील मोदी को बिहार से निकाल कर देश के वित्त मंत्री का जिम्मेदारी देना चाहिए

सभी कयासों के बाद आखिरकार वही हुआ जो होना था। नीतीश कुमार का मुख्यमंत्री तो बनना तय था, अब उपमुख्यमंत्री पद पर सुशील मोदी के नाम पर भी मुहर लग गई है। नीतीश कुमार सरकार बनाने के लिए दावा भी कर चुके हैं और खबर आ रही है कि कल शाम 4:30 में शपथ ग्रहण समारोह भी होगा|

हर बार भाजपा का एक गुट सुशील मोदी को दरकिनार करने की कोशिश करती है मगर हर बार सुशील मोदी सब पर भारी पड़ते हैं। सुशील मोदी ने अपना पूरा राजनीतिक जीवन बिहार में भाजपा को खड़ा करने में लगाया है। उनके विरोधी को समझना चाहिए कि सुशील मोदी के प्रभाव को बिहार बीजेपी में कम नहीं किया जा सकता है मगर सुशील मोदी से समझौता जरूर किया जा सकता है। उनको बड़ा जिम्मेदारी देकर बिहार भाजपा में नये नेतृत्व के लिए जगह जरूर बनाई ज सकती है।

डबल इंजन सरकार का सही मायने में फायदा तभी होगा जब केंद्रीय वित्त मंत्रालय किसी बिहारी के हाथ में होगा। बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व को देश के वित्त मंत्री का कार्यभार सुशील मोदी को देना चाहिए। उनके पास एक राज्य का वित्त मंत्री होने का लंबा अनुभव भी है और निर्मला सीतारमण से बेहतर काम करने की क्षमता भी। अभी जीएसटी कंपनसेशन को लेकर चल रहे केंद्र और राज्य सरकारों के विवाद को लेकर भी सुशील मोदी कारगर साबित हो सकते हैं। कुल मिलाकर सुशील मोदी के वित्त मंत्री बनने से बिहार, देश के साथ बीजेपी को भी फायदा होगा।

बाकी नीतीश कुमार को बिहार का मुख्यमंत्री और सुशील मोदी को उपमुख्यमंत्री चुने जाने की बधाई!

अविनाश कुमार (संपादक, अपना बिहार)

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कोरोना वायरस ने बिहार के नीतीश-मोदी सरकार के 15 साल के विकास वाले गुबारे को फोड़ दिया

कोरोना वायरस ने बिहार के नीतीश सरकार के 15 साल के विकास वाले गुबारे को फोड़ दिया है| बेरोजगारी, पलायन, गरीबी, बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था से लेकर संसथानों की कमी तक की समस्या, जिसे नीतीश कुमार बड़े चालाकी से शराबबंदी, दहेजबंदी, मानव श्रृंखला, विषेश राज्य का दर्जा, चारा घोटाला, आदि जैसे मुद्दों की चादर से ढक के रखे हुए थे, वो चुनाव से पहले अचानक जीन के तरह सबके सामने आ गया है|

कोरोना वायरस के कारण जारी लॉकडाउन में लाखों लोग दुसरे राज्य में फसे हैं| सबसे ज्यादा तकलीफों का सामना मजदूरों और छात्रों को उठाना पड़ रहा है| कोचिंग हब के रूप में विकसित राजस्थान के कोटा शहर में बिहार के हजारों छात्र फसे हैं जो अपने घर वापस आने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं| देश भर में फसे मजदूर भी लगातार अपने राज्य वापस जाने के लिए हंगामा कर रहे हैं| स्थिति यह है कि लोग पैदल और साइकिल से ही हजारों किलोमीटर का सफ़र तय कर घर आने को मजबूर है|

ज्ञात हो कि देश में मजदूरी करने के लिए सबसे ज्यादा पलायन बिहार और यूपी राज्य से ही होती है| एनडीटीवी में छपे एक आकड़े के अनुसार देश में 1.2 करोड़ प्रवासी मजदूर सिर्फ बिहार और यूपी के हैं|

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार लॉकडाउन के दौरान ही अपने छात्रों को कोटा बसें भेजकर अपने बच्चों को वापस लेकर आ गयी| उसके बाद दर्जनों राज्यों ने अपने छात्रों को वापस बुला लिया| बिहार सरकार पर भी दवाब बढ़ा तो वो लॉकडाउन के नियम का हवाला देकर बच्चों को वापस लाने से साफ़ मना करती रही| नीतीश कुमार ने तो प्रधानमंत्री को भी लॉकडाउन के  नियम पढ़कर सुना दिया और उनसे आग्रह किया कि लॉकडाउन के नियम सबके लिए सामान होने चाहिए| केंद्र सरकार लॉकडाउन के नियम में बदलाव करेगी, तभी हम अपने लोगों को वापस ला सकते हैं|

राज्यों के मांग को सुनते हुए केंद्र सरकार ने लॉकडाउन के नियम में ढील दे दी| गृह मंत्रालय ने कुछ शर्तों के साथ, फंसे हुए लोगों के लिए नई गाइडलाइन जारी कर दी| नई गाइडलाइन के तहत फंसे हुए लोग अपने राज्य वापस लाये जा सकते हैं|

इस फैसले के बाद बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी उत्साहित होते हुए इसका क्रेडिट लेने के लिए कूद पड़े| उन्होंने कहा कि बिहार के मांग पर ही केंद्र सरकार ने यह फैसला दिया है| बिहार के लोग खुश हैं कि अब वे वापस आ पायेंगें|

मगर कुछ ही समय बाद सुशील मोदी प्रेस कांफ्रेंस कर पलटी मार गयें| उन्होंने कहा कि अन्य राज्यों में फसे लोगों को वापस बिहार लाना असंभव है क्योकिं राज्य सरकार के पास बसें नहीं है| मगर सवाल है कि अन्य राज्यों के पास बसें हैं तो बिहार के पास क्यों नहीं? 15 साल के शासन में नीतीश सरकार प्रयाप्त बसें भी नहीं खरीद सकी? अगर सरकारी बसें प्रयाप्त संख्या में नहीं है तो क्या सरकार निजी बसों की सेवा नहीं ले सकते?

फिर सुशील मोदी ने ट्वीट करते हुए केंद्र सरकार से बिहार के मजदूरों को बिहार वापस लाने के लिए स्पेशल ट्रेन चलाने की मांग की है| मतलब बिहार सरकार ने फिर गेंद केंद्र सरकार के पला में फेक कर, खुद को जिम्मेदारियों से बचा रही है|

वैसे यह सचाई है कि बिहार सरकार का बहाने उनकी मज़बूरी है| 15 साल में न सरकार राज्य के लिए इतना संसाधन विकसित कर पायी कि सभी प्रवासियों को वापस ला सके, उनकी स्क्रीनिंग करके उनको क्वारनटीन कर सकें और उनका इलाज करा सके|

बिहार के स्वास्थ्य व्यवस्था की बदहाली कई मौके पर उजागर हो ही चुकी है| 12 करोड़ आवादी वाले बिहार में मात्र 3 कोरोना हॉस्पिटल हैं और उसमे मात्र 50 वेंटीलेटर की सुविधा उपलब्ध है| सरकार अगर लोगों को राज्य में वापस लाती भी है, तब भी उनकी किरकिरी होना तय है|

दुसरे राज्यों द्वारा लगातार अपने नागरिकों को वापस लाने, बिहारी मजदूरों और छात्रों के लगातार प्रदर्शन और विपक्ष के आक्रामक विरोध के बाद सरकार पर जबरदस्त दवाब है| इसी साल बिहार में विधानसभा चुनाव है, लोगों का गुस्सा चुनाव परिणाम पर भी पड़ रहा है|

यही कारण है कि नीतीश कुमार की सहयोगी पार्टी बीजेपी के नेता बेचैन हो गये हैं| वे भी अब सरकार से लोगों को वापस लाने की मांग कर रहे हैं|

अब बिहार सरकार लोगों को वापस लाने के रास्ते निकलने के लिए 19 नोडल अधिकारियों की नियुक्ति की है| सरकार कह रही है कि ये सभी अधिकारी अपने संबंधित राज्यों में जाकर वहां के अधिकारी के संपर्क से फंसे बिहार के लोगों की जानकारी लेंगे। पूरी सूचना वह आपदा प्रबंधन को देंगे और विभाग उनके लाने की व्यवस्था करेगा।

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Bihar Budget 2020: नीतीश सरकार ने पेश किया देश का पहला ग्रीन बजट, जानिए क्या है खास?

बिहार के उपमुख्यमंत्री तथा वित्त मंत्री सुशील कुमार मोदी (Sushil Kumar Modi) ने मंगलवार को विधानसभा में 2020-21 के लिए 19,172 करोड़ रुपये राजस्व अधिशेष (Revenue Surplus) का बजट पेश किया| बिहार सरकार ने इस बजट को ग्रीन बजट (Green Budget) बताया है साथ ही ये भी कहा गया है कि ये देश का पहला ग्रीन बजट है| वित्त मंत्री सुशील मोदी 13वीं बार बजट पेश किया है|

सुशील मोदी ने सदन में कहा कि केंद्रीय करों में राज्य की हिस्सेदारी बढी है साथ ही आर्थिक मंदी के बावजूद भी बिहार ने 15 फीसदी की दर से विकास किया है|

मोदी ने सदन में 2.11 लाख करोड़ रुपए का बजट पेश करते हुए कहा कि वर्ष 2005-06 में राज्य का बजट मात्र 22 हजार 568 करोड़ का था लेकिन धीरे-धीरे बेहतर हुए वित्तीय प्रबंधन और सुधार के उपायों के चलते बजट की राशि साल दर साल बढ़ती गई. वित्तीय वर्ष 2019-20 में बजट का आकार दो लाख 501 करोड़ तक पहुंच गया जाहिर है, पिछले 14 सालों में इसमें लगभग दस गुना वृद्धि हुई है|

उन्होंने बताया कि वित्त वर्ष 2020-21 का बजट (Bihar Budget 2020) अनुमान 2 लाख 11 हजार 761 करोड़ है| बजट में शिक्षा के लिए सबसे अधिक करीब 36 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है| इसके साथ ही जल जीवन हरियाली पर भी सरकार ने ध्यान दिया है|

जानिए बिहार के बजट में क्या है खास

–  2 लाख 11 हज़ार 761 करोड़ बजट का आकार
– 31 मार्च तक हर घर नल जल योजना पूरी होगी
– 1 लाख 36 हजार किसानों को सस्ती बिजली
– 8074 चेक डैम बनाए जाएंगे
– स्वास्थ्य पर 1937 करोड़ रुपये होंगे खर्च
– 2020-21 में शिक्षा पर 35 हजार करोड़ खर्च
– ये देश का पहला ग्रीन बजट है
– स्वास्थ्य पर 1937 करोड़ रुपये होंगे खर्च
– 12 जिलों में जैविक खेती की योजना।

ऊर्जा विभाग

वर्ष 2021-22 तक ग्रिड सब-स्टेशनों की कुल संख्या बढ़कर 169 तथा
संचरण लाइन की कुल लम्बाई 20,324 सर्किट किलोमीटर हो जायेंगे।

शिक्षा विभाग

· 20 करोड़ रुपये के व्यय से ‘‘तालिम नौ बालगान’’ की शुरूआत की जायेगी।

विज्ञान एवं प्रावधिकी विभाग

· 10 अभियंत्रण महाविद्यालयों के परिसर में 336.00 करोड़ की लागत से 12 ब्यॉज एवं 9 गर्ल्स छात्रावासों तथा 12 राजकीय पॉलिटेक्निक संस्थानों के परिसर में 520.14 करोड़ की लागत से
18 ब्यॉज व 16 गर्ल्स छात्रावासों का निर्माण कराया जायेगा।

स्वास्थ्य विभाग

· इन्दिरा गाँधी आयुर्वि ज्ञान संस्थान, शेखपुरा, पटना को सुपर स्पेशिलिटी अस्पताल के रूप में विकसित करने के लिण् कुल शैय्याओं की वर्तमान संख्या 1,032 से बढ़ाकर 2,732 की जायेगी।
500 शैय्या के निर्माणाधीन अस्पताल के अतिरिक्त 513.21 करोड़ रू॰ की लागत से 1,200 बेड के नये अस्पताल भवन का निर्माण किया जायेगा।
· लगभग 172.95 करोड़ रुपये की लागत से 9 जिला अस्पतालों यथा-आरा, अररिया, वैशाली, औरंगाबाद, बांका, पूर्वी चम्पारण, सीतामढ़ी, मधुबनी एवं सहरसा का मॉडल अस्पताल के रूप में उन्नयन किया जायेगा।
वर्ष 2020-21 में 12 जिला अस्पतालों -बेगूसराय, भागलपुर, गया, गोपालगंज, मधेपुरा, मुजफ्फरपुर, मुंगेर, नालन्दा, पटना, रोहतास, समस्तीपुर एवं सिवान का भी उन्नयन किया जाएगा।

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रविश कुमार: बिहार के नौजवानों के सत्यानाश का सर्टिफिकेट देखिए

यह बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी का ट्विट है. जे एन यू को लेकर किए गए ट्वीट की यह भाषा बताती है कि युवाओं को भोथरा करने का प्रोजेक्ट पूरा हो चुका है. जिस बिहार की सारी यूनिवर्सिटी कूड़े के ढेर में बदल चुकी है वहां के उप मुख्यमंत्री का एक यूनिवर्सिटी को लेकर ऐसी भाषा में ट्विट आया है. क़ायदे से वो बता सकते थे कि बिहार में उन्होंने कौन सी ऐसी यूनिवर्सिटी बनाई है जो जे एन यू से बेहतर है.

बिहार में कई यूनिवर्सिटी में आज भी तीन साल का ही बीए पांच साल में हो रहा है. समय पर रिज़ल्ट नहीं आता. सुशील मोदी को पता है कि धर्म और झूठ की अफ़ीम से अब बिहार के नौजवानों की चेतना ख़त्म की जा चुकी है. वहां के युवा अपने मां-बाप के सपनों के लाश भर हैं. वर्ना आज बिहार के चप्पे-चप्पे में अच्छी यूनिवर्सिटी को लेकर जे एन यू से बड़ा आंदोलन हो रहा होता. तभी सुशील मोदी उन्हें जे एन यू के बारे में नफ़रत बांट रहे हैं. उन्हें पता है लाश में बदल चुके बिहार के युवाओं को सिर्फ़ नफ़रत चाहिए.

गोदी मीडिया और व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी ने बिहार की यूनिवर्सिटी को मोर्चुरी में बदल दिया है. वरना सुशील मोदी इस भाषा में ट्वीट नहीं करते. वे बिहार के ज्ञानदेव आहूजा हैं. जिन्होंने जे एन यू में कॉन्डम फेंके होने का बयान दिया था. हिन्दी प्रदेश एक अभिशप्त प्रदेश है. वहां के युवाओं की राजनीतिक चेतना के थर्ड क्लास होने का प्रमाण है सुशील मोदी का यह शानदार ट्विट.

– रविश कुमार, भारतीय पत्रकार 

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राजकोषीय अनुशासन के मामले में बिहार देश का सबसे अव्वल राज्य

देश के प्रमुख उद्योग संगठन सीआईआई ने माना है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में राजकोषीय प्रदर्शन सूचकांक के मामले में बिहार पूरे देश में अव्वल स्थान पर है| बिहार ने इस मामले में गुजरात, महाराष्ट्र और हरियाणा जैसे संपन्न राज्यों को भी पीछे छोड़ दिया है। वहीं राजकोषीय अनुशासन के मामले में सबसे खराब प्रदर्शन पश्चिम बंगाल, पंजाब और केरल का रहा है। यह जानकारी उद्योग संगठन सीआइआइ ने एक रिपोर्ट के माध्यम से दी है।

इसपर बिहार के उपमुख्यमंत्री और वित्तमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा कि यह सूचकांक चार मानकों- राजस्व व पूंजी व्यय सूचकांक ( Revenue And Capital Expenditure Index ), राज्य के अपने टैक्स की प्राप्तियों का सूचकांक ( Own Tax Reciepts Index ), राजकोषीय व राजस्व घाटे को दर्शाने वाले डेफिसिट प्रूडेंस इंडेक्स ( Deficit Prudence Index ) और कर्ज सूचकांक (Debt Index ) के आधार पर तैयार किया गया है| इसमें मध्य प्रदेश दूसरे और छत्तीसगढ़ तीसरे स्थान पर है| 100 अंकों वाले इस सूचकांक में बिहार का स्कोर सर्वाधिक 66.5 है, जबकि पश्चिम बंगाल का सबसे कम 23.3 है|

खास बात यह है कि 2004-05 से 2013-14 तक आंध्र प्रदेश का प्रदर्शन इस सूचकांक पर शानदार था लेकिन 2014 में राज्य के विभाजन के बाद वित्तीय संकट के चलते उसका प्रदर्शन खराब हो गया। जिस राज्य का स्कोर 100 अंकों वाले इस सूचकांक पर जितना ज्यादा होता है, उसका प्रदर्शन उतना ही बेहतर माना जाता है। इस सूचकांक पर बिहार का स्कोर 66.5 है जबकि पश्चिम बंगाल का सबसे कम 23.3 है।

सीआइआइ के मुताबिक ‘राजकोषीय प्रदर्शन सूचकांक’ पर मध्य प्रदेश दूसरे और छत्तीसगढ़ तीसरे स्थान पर है। दूसरी ओर महाराष्ट्र, गुजरात और हरियाणा जैसे उच्च आमदनी वाले राज्य लगातार इस सूचकांक पर पिछड़ रहे हैं। व्यय की गुणवत्ता के मामले में आर्थिक रूप से समृद्ध राज्यों का प्रदर्शन बेहद खराब रहा है। सीआइआइ का कहना है कि कम आय वाले राज्यों में बिहार, छत्तीसगढ़ और ओडिशा ने व्यय में गुणवत्ता बरतते हुए हाल के वर्षो में लगातार राजकोषीय प्रदर्शन सूचकांक पर शानदार प्रदर्शन किया है।

भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआइआइ) ने केंद्र और राज्यों के राजकोषीय प्रदर्शन का आकलन करने के लिए यह सूचकांक तैयार किया है। सीआइआइ का कहना है कि समग्र राजकोषीय प्रदर्शन सूचकांक केंद्र और राज्यों के स्तर पर बजट की गुणवत्ता को परखने का तरीका है।

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बिहार के उपमुख्यमंत्री इन 50 चुनिंदा बच्चों को अपने आधिकारिक आवास पर करेंगे स्वागत

बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी  इस वर्ष के डेक्सटेरिटी स्कूल ऑफ़ लीडरशिप एंड एंट्रेप्रेन्योरशिप (डेक्सस्कूल) के ग्रेजुएशन स्पीकर होंगे। वें डेक्सटेरिटी स्कूल में इससे पहले आये पद्मश्री विजेताओं, फोर्बेस में सूचित उद्यमी, नासा के साइंटिस्ट्स की लीग को आगे बढ़ाएंगे।

ज्ञात हो कि विश्व स्तरीय लीडरशिप एवं एंट्रेप्रेन्योरशिप के प्रोग्राम के लिए देशभर से 50 बच्चे चुनकर डेक्सस्कूल आते हैं| 2013 में स्थापित डेक्सस्कूल अपने छठे साल में देश भर के 40 शहरों एवं 16 राज्यों से बच्चों को साथ लाएगी और 6 जून से 12 जून के बीच इन्हें एक विश्वस्तरीय पाठ्यक्रम के माध्यम से नेतृत्व एवं उद्यमिता में प्रशिक्षण देगी। 

उपमुख्यमंत्री अपने आवास पर बच्चों का करेंगे स्वागत

उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी न सिर्फ इन 50 प्रतिभावान बच्चों को संबोधित करेंगे बल्कि अपने आधिकारिक आवास पर इनका स्वागत भी करेंगे|

12 जून को संध्या 6 बजे से 1 पोलो रोड स्थित आधिकारिक उपमुख्यमंत्री आवास पर डेक्सस्कूल के दीक्षांत समारोह का आयोजन होगा जहाँ उपमुख्यमंत्री ग्रेजुएशन स्पीकर होंगे एवं बच्चों से मुलाकात करेंगे और नेतृत्व एवं नीतियों से जुड़े उनके अनेक सवालों का भी जवाब देंगे।

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सुशील मोदी और शरद सागर

क्या है डेक्सस्कूल?

डेक्सटेरिटी स्कूल ऑफ़ लीडरशिप एंड एंट्रेप्रेन्योरशिप (डेक्सस्कूल) डेक्सटेरिटी ग्लोबल द्वारा संचालित, एक विश्व स्तरीय लीडरशिप एवं एंट्रेप्रेन्योरशिप का प्रोग्राम है जो युवा स्टूडेंट्स को लीडर्स के रूप में तैयार करता है। 2013 में स्थापित डेक्सस्कूल से अभी तक सैकरों यंग लीडर ग्रेजुएट्स कर चुकें हैं| वें अभी दुनिया भर के सबसे युवा लोगों में से हैं जो हार्वर्ड लॉ स्कूल के मामलों का अध्ययन करते हैं एवं राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर नीतियों को गढ़ने की भूमिका निभाते हैं। डेक्सस्कूल के आधिकारिक वेबसाइट पर दिए आंकड़े के अनुसार, डेक्सस्कूल से निकले बच्चें अभी दुनिया भर के सर्वश्रेष्ठ संस्थाओं में करोड़ों के छात्रवृति पाकर पढ़ रहें हैं, 50 से ज्यादा संस्थाओं के स्थापना कर चुकें हैं साथ ही 1100 से अधिक लोगों को रोजगार भी उपलब्ध करवा रहें हैं|

डेक्सस्कूल के संस्थापक शरद सागर का बयान

डेक्सस्कूल की स्थापना भारत के युवा आइकॉन एवं सामाजिक उद्यमी शरद सागर ने की। शरद, जो एकमात्र भारतीय थे जिन्हें अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने  वाइट हाउस बुलाया और जो की बिहार से एकमात्र उद्यमी हैं जिनको अमेरिकी पत्रिका फोर्बेस की 30 अंडर 30 सूची में शामिल किया गया, ने कहा कि –

“डेक्सटेरिटी स्कूल भारत के सबसे ग्रामीण छेत्रों से लेकर महानगरों से बच्चों को चुनकर लाती है। यह बच्चे अपनी शिक्षा, कार्य-कौशल एवं नेतृत्व के माध्यम से देशसेवा करने का सपना देखते हैं।

अपने सार्वजनिक जीवन के चार दशक में उपमुख्यमंत्री जी ने अनेकाएक लोगों को एक अच्छे नेतृत्व एवं कुशल नीति से प्रेरित किया है। मुझे पूरा भरोसा है कि यह बच्चे इनके अनुभवों से प्रेरणा लेंगे और हम सब सपनो का भारत के निर्माण में लग जाएंगे।”

‘ द ग्रेट ट्विटर वार ‘ आपस में भीड़ गये शॉटगन व सुमो

​राष्ट्रीय जनता दल अध्यक्ष लालू प्रसाद परिवार के कथित बेनामी संपत्ति के खुलासे के बाद उनके बचाव में आए शत्रुघ्न सिन्हा और सुशील मोदी के बीच ट्विटर वार से बिहार बीजेपी के अंदरखाने बवाल मचा हुआ है. लगातार ट्वीटर पर भाजपा के दो दिग्गज नेता एक दूसरे पर इशारों-इशारों में हमला कर रहे हैं. एक दिन पहले 22 मई को भाजपा सांसद और सिने अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा ने ट्विट कर सुशील कुमार मोदी पर निशाना साधा. शत्रुघ्न सिन्हा ने अपने ट्वीट में लालू प्रसाद पर लगाये जा रहे आरोपों और नकारात्मक राजनीति को लेकर नेताओं से अपील करते हुए लिखा की अब बस भी कीजिए. उसके तुरंत बाद सुशील कुमार मोदी ने ट्वीट करते हुए इशारों में ही बिहारी बाबू पर हमला बोला और बिना नाम लेते हुए कहा कि ऐसे लोग गद्दार हैं. बुधवार को शत्रुघ्न सिन्हा ने सुशील मोदी पर हमला बोलते हुए दोबारा ट्वीट किया और पूछा कि किस हैसियत से बीजेपी के सहयोगी और वरिष्ठ साथी मेरे निष्कासन की बात कर रहे हैं.

शत्रुघ्न सिन्हा के ट्वीट के बाद सुशील कुमार मोदी ने जवाब में ट्वीट किया है और कहा है कि उन्होंने बिना नाम लिये ही ट्वीट किया था. सुशील मोदी ने लिखा है कि मैंने किसी नेता का नाम नहीं लिया, फिर क्यों तिलमिला गये ? चोर की दाढ़ी में तिनका ? तय करें भाजपा के दोस्त हैं या शत्रु. सुशील मोदी के इस ट्वीट के बाद अब बिहार बीजेपी में घमसान मचना तय माना जा रहा है. शत्रुघ्न सिन्हा के सुशील मोदी पर हमलावर होने पर सुशील मोदी गुट जहां खुश है, वहीं दूसरी ओर लालू समर्थक भी मजे ले लेकर ट्वीट का आनंद ले रहे हैं.

 बीजेपी की जीत पर बिहार में छिड़ा ‘ट्वीटर वार’

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा को पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ है। भाजपा  किसी अन्य पार्टी के मदद के बगैर सरकार बना रही हैै। लेकिन युपी चुनाव के परिणाम आते ही बिहार की राजनीति में भूचाल आता नजर आ रहा है। यूपी में भाजपा की जीत पर ट्वीटर वॉर छिड़ गया है। वह भी राजद सुप्रीमो लालू यादव और भाजपा नेता सुशील मोदी के बीच। उत्तर प्रदेश में भाजपा के रिकार्ड जीत से खुश बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने जब चुटकी लेते हुए  ट्वीटर पर लालू यादव से उनका हाल पुछा तब राजद सुप्रीमों लालू यादव ने अपने ही अंदाज में जवाब दे दिया।
सुशील मोदी ने ट्वीट कर लालू को टैग करते हुए पूछ लिया कि ‘का हाल बा ?’. इस पर तिलमिलाए हुए लालू ने अपने ही अंदाज में जवाब भी दे दिया। लालू यादव ने ट्वीट का रिप्लाई करते हुए चुटकी ली और कहा कि ‘ठीक बा। देखा ना, बीजेपी ने तुम्हें यूपी में नहीं घुसने दिया तो फायदा हुआ। 
यूपी में लालू यादव ने सपा-कांग्रेस गठबंधन के लिए प्रचार किया था। इस दौरान कई सभाओं में लालू ने अखिलेश के लिए वोट मांगा थे। यही नहीं लालू ने गठबंधन की जीत का दावा किया था।

बिहार भाजपा का हो रहा है अबतक का सबसे बड़ा रूपान्तरण

बिहार में करारी हार के बाद भाजपा बिहार में अब नये रूप में अपने को पेश करने में लगी है । प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का प्रकाश पर्व के अवसर पर कोई तीन घंटे का पटना-प्रवास बहुआयामी राजनीतिक संदेश देकर चला गया. इसने सूबे के सत्तारूढ़ महागठबंधन की आंतरिक राजनीति में तो हलचल मचा ही दी, भारतीय जनता पार्टी के भावी नेतृत्व और राजनीति को लेकर भी कई संकेत दिए.

 

हालांकि प्रांतीय भाजपा के संदर्भ में केंद्रीय नेताओं की चिंता या रणनीति के संकेत गत एक साल में कई अवसरों पर मिलते रहे हैं, लेकिन नरेन्द्र मोदी की इस यात्रा के साथ पार्टी की आंतरिक राजनीति में उन संकेतों को बिहार ने जमीन पर उतरते देखा-प्रधानमंत्री के आगमन से लेकर उनकी विदाई तक.

बिहार की गैर भाजपाई राजनीति में सेंधमारी की मोदी की रणनीति की झलक तो इस यात्रा के हफ्ते भर के भीतर दिखी. जनता दल (यू) ने सूबे में पूर्ण शराबबंदी को लेकर जनजागरण अभियान के तहत 21 जनवरी को दो करोड़ लोगों की मानव-श्रृंखला बनाने का निर्णय लिया है. भाजपा ने इस कार्यक्रम के समर्थन की ही नहीं, बल्कि इसमें भाग लेने की भी घोषणा की है.

क्या यह अनायास है? ऐसा लगता नहीं है. नोटबंदी को लेकर हिन्दी पट्टी के कद्दावर नेता नीतीश कुमार से बिना शर्त मिले समर्थन का यह प्रतिदान हो सकता है. यह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के बीच विकसित हो रही नई राजनीतिक केमिस्ट्री की झलक हो सकती है. इस नई केमिस्ट्री का अंदाज बिहार की जमीन से लेकर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के कर्नाटक की सार्वजनिक सभा के भाषण और उससे पहले भी मिलता रहा है.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 25 दिसम्बर 2015 को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के जन्मदिन पर अचानक इस्लामाबाद पहुंचने का मामला हो या पाक की जमीन पर भारतीय सेना के सर्जिकल स्ट्राइक का, नीतीश कुमार उनके साथ रहे. नोटबंदी के सवाल पर तो अन्य विपक्षी दल ही नहीं, महागठबंधन के अपने सहयोगियों से अलग होकर उन्होंने उनका समर्थन किया और अब भी उनके साथ हैं.

प्रधानमंत्री ने पटना में शराबबंदी का पुरजोर समर्थन कर और नीतीश कुमार का सार्वजनिक तौर पर अभिनंदन कर इसकी कीमत चुका दी. अब शराबबंदी को लेकर जद(यू) के अभियान में भाजपा के शामिल होने से बहुत कुछ साफ हो रहा है. यह राजनीतिक सच्चाई है कि भाजपा ने बिहार में शराबबंदी का विधानमंडल में खुल कर समर्थन किया था.

यह भी सही है कि शराबबंदी से संबंधित पहला विधेयक मार्च 2016 के अंतिम हफ्ते में, जब विधानमंडल में पारित कराया जा रहा था, तब सत्ता पक्ष की इच्छा के अनुरूप विधानमंडल के दोनों सदनों के सदस्यों को शराब नहीं पीने और इससे लोगों को दूर रखने के लिए प्रेरित करने की शपथ दिलाई गई थी. यह शपथ भाजपा के सदस्यों ने भी ली थी.

हालांकि यह भी सच है कि शराबबंदी के नए कानून के कई प्रावधानों को काले कानून की संज्ञा देकर भाजपा ने अगस्त में सदन का बहिष्कार किया था साथ ही विधेयक के खिलाफ राज्यपाल से गुहार लगाई थी. इस मसले पर प्रदेश भाजपा अब भी कड़े तेवर में है, लेकिन प्रकाश पर्व के अवसर पर प्रधानमंत्री ने जिस भाव-भंगिमा के साथ शराबबंदी के लिए नीतीश का अभिनंदन किया और उनके साथ होने की घोषणा की, भाजपा के लिए अब शराबबंदी कानून के समर्थन के अलावा कोई चारा नहीं बचा था।

नरेन्द्र मोदी की इस यात्रा में प्रदेश भाजपा के लिए यह संकेत था कि यहां दल के भीतर नए युग की शुरुआत हो चुकी है. यह मात्र शब्दों में बयां नहीं किया गया, बल्कि आचरण में भी दिखा. पूरे प्रकरण को विस्तार से समझिए ।

प्रकाश पर्व के  लिए पांच जनवरी को गांधी मैदान के दरबार हॉल में आयोजित मुख्य समारोह के मंच पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल, बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद, केंद्रीय उपभोक्ता मामलों के मंत्री रामविलास पासवान, संचार मंत्री रविशंकर प्रसाद और तख्त हरमिंदर साहिब प्रबंध कमिटी के अध्यक्ष थे. मंच पर बिहार सरकार के किसी मंत्री और बिहार भाजपा के किसी नेता के लिए कोई जगह नहीं बनाई गई थी.

हालांकि प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) व बिहार सरकार की सहमति से किसी और की भी व्यवस्था की जा सकती थी, पर ऐसा नहीं किया गया. यह तो मंच की व्यवस्था थी. समारोह के बाद प्रधानमंत्री के भोजन का इंतजाम किया गया था. इसमें कोई दो दर्जन लोगों के लिए कुर्सियां लगी थीं और सभी पर आमंत्रितों के नाम थे.

यहां प्रधानमंत्री के साथ दिल्ली से आए मंत्रियों के अलावा बिहार और पंजाब के मुख्यमंत्रियों, लालू प्रसाद के साथ साथ उनके दोनों पुत्रों तेजस्वी प्रसाद यादव और तेजप्रताप यादव, पंजाब के उप मुख्यमंत्री सुखवीर सिंह बादल और केंद्रीय मानव संसाधन राज्यमंत्री उपेन्द्र कुशवाहा के नाम लिखे थे. हालांकि कुशवाहा इस भोज में मौजूद नहीं हुए इसलिए कुर्सी खाली ही रह गई.

यहां पर भी प्रदेश भाजपा के किसी नेता के लिए कोई जगह नहीं थी, विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता डॉ. प्रेम कुमार के लिए, न विधान परिषद में प्रतिपक्ष के नेता सुशील कुमार मोदी के लिए. पर, इससे भी महत्वूर्ण यह रहा कि बिहार में भाजपा के सबसे कद्दावर नेता के तौर पर ख्यात सुशील कुमार मोदी के साथ-साथ डॉ. प्रेम कुमार के लिए, न विधान परिषद में प्रतिपक्ष के नेता सुशील कुमार मोदी के लिए. पर, इससे भी महत्वूर्ण यह रहा कि बिहार में भाजपा के सबसे कद्दावर नेता के तौर पर प्रख्यात सुशील कुमार मोदी के साथ-साथ डॉ. प्रेम कुमार और नंदकिशोर यादव सहित इन लोगों के किसी करीबी नेता को एयरपोर्ट पर स्वागत या विदाई का पास तक नहीं दिया गया.

 

ऐसा पास प्रांतीय भाजपा के पदाधिकारी (अध्यक्ष कहना बेहतर होगा) की सहमति से ही जारी होना था. तो क्या सुशील कुमार मोदी या दल के बड़े और पुराने नेताओं को यह मौका नहीं देने का केंद्रीय नेतृत्व का कोई निर्देश था?

 

इसका उत्तर प्रदेश अध्यक्ष नित्यानंद राय या केंद्रीय कमिटी के लोग ही दे सकते हैं. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यक्रम में पार्टी के सूबे के जमे-जमाए और शिखर नेताओं के साथ यह सलूक यदि कोई संकेत देता है तो यह कि नए नेतृत्व को इनकी छाया से पूरी तरह मुक्त करने की प्रक्रिया अपने अंतिम चरण में पहुंच रही है. देखना है, यह प्रक्रिया कितने दिनों में पूरी हो जाती है.

 

यह नई परिघटना नहीं है और इसका संकेत भी नया नहीं है. विधानसभा चुनावों के बाद से केंद्रीय नेतृत्व अपने आचरण से यह जताता रहा है. विधानसभा चुनावों के तत्काल बाद विधायक दल के नेता के चयन में सुशील कुमार मोदी की रणनीति को झटका लगा था. उस समय सुशील मोदी-मंगल पांडेय की जोड़ी ने नंदकिशोर यादव को इस पद पर बैठाने की तैयारी कर ली थी. उन दिनों विधानसभा चुनावों में पार्टी की करारी शिकस्त के बावजूद मोदी-मंगल-नंदकिशोर के गुट ने पटना से दिल्ली तक अपनी रणनीति की सफलता के लिए हरसंभव जुगाड़ कर लिया था.

 

हालांकि डॉ. प्रेम कुमार अपनी उम्मीदवारी पर अड़े थे, पर उन्हें भी कोई आश्वासन नहीं था. केंद्रीय नेतृत्व ने अंतिम समय में प्रेम कुमार के दावे को स्वीकार कर स्थापित नेतृत्व को झटका दे दिया. फिर, राज्यसभा चुनाव के वक्त इन नेताओं के मत के विपरीत गोपाल नारायण सिंह को उम्मीदवारी दे दी. कहते हैं, सुशील मोदी ने बिहार से दिल्ली जाने की पूरी तैयारी की थी. केंद्रीय नेतृत्व ने सबसे बड़ा झटका प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष को लेकर सुशील मोदी व उनके समर्थकों को दिया.

 

पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव पिछली फरवरी में ही होना था, पर पंचायत चुनाव व अन्य कई कारणों से यह टलता रहा. हालत यह हो गई थी कि मंगल पांडेय को ही इस पद पर बने रहने की बात अनौपचारिक तौर पर कही जाने लगी, कामकाज भी इसी मिज़ाज से हो रहा था. जब कभी अध्यक्ष के चयन की बात चलती भी थी, तो ऊंची जाति- मुख्यतः भूमिहार मैथिल ब्राह्मण- को इस पर नवाजे जाने की बात चला करती थी.

 

कुछ नाम सामने भी थे, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व खुल कर कुछ बोल नहीं रहा था और बिहार के प्रभारी भूपेन्द्र यादव की बिहार से प्रेषित नामों पर आपत्ति होती रही. वे यादव मतदाताओं को रिझाने के ख्याल से युवा यादव को अध्यक्ष बनाने के पक्षधर थे.

 

कहते हैं, नित्यानंद उनकी ही पसंद हैं. अर्थात केंद्रीय नेतृत्व ने बिहारी नेताओं की नहीं, प्रभारी पर ज्यादा भरोसा किया, जो उसका ही प्रतिनिधि होता है. मोदी-युग के अंत की यह ठोस अभिव्यक्ति थी और अब यह ताज़ा उदाहरण उससे भी बड़ा संकेत है. हालांकि कह सकते हैं कि राजनीति में जिस तरह कोई स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता, उसी तरह कोई स्थिति स्थायी नहीं होती. जब तक सांस, तब तक आस.

 

भाजपा के नेतृत्व और इस वजह से राजनीति में बदलाव पार्टी के लिए कैसा रहेगा, यह कहना कठिन है. अभी यह भी नहीं कहा जा सकता है कि इससे भाजपा के नए समर्थक सामाजिक समूहों के मानस पर क्या असर पड़ेगा. यह एक तथ्य है कि कोई दो-ढाई दशक पहले तक भाजपा (जनसंघ के समय से ही) को जिस सामाजिक समूह का समर्थन था, आज वह पीछे है. कांग्रेस के निरंतर क्षरण के कारण सूबे की कांग्रेस समर्थक अगड़ी जातियों में भाजपा निरन्तर मजबूत होती गई.

 

हालांकि यह विकल्पहीनता का ही परिणाम रहा है, पर बिहार का अगड़ा मतदाता कमोबेश भाजपा के साथ है. पिछले विधानसभा चुनाव के पहले तक तो यह आक्रामक रूप से मतदान केंद्र पर भाजपा के साथ था. हालांकि भाजपा के प्रदेश नेतृत्व पर भी लालू प्रसाद और नीतीश कुमार की तरह पिछड़ावादी होने का आरोप लगता रहा और अपने आचरण से वह इसे दिखाता भी रहा.

 

फिर भी, सूबे के अगड़े सामाजिक समूहों की यह सहज शरणस्थली रही. इसका एक कारण इसका उत्कट लालू विरोध रहा. इसकी समावेशी रणनीति भी कम महत्वपूर्ण कारण नहीं रही. कैलाशपति मिश्र, ताराकान्त झा, लालमुनि चौबे जैसों ने संगठन में सामाजिक समूहों के लिए समावेशी रणनीति अपनाई थी, वह उसी तरह बरकरार नहीं रही. पर सुशील कुमार मोदी ने उसे थोड़े बदलाव के साथ अपनाया. मोदी के नेतृत्व में प्रदेश भाजपा में कुछ बड़े पद, जिनमें पार्टी अध्यक्ष का पद भी शामिल है, अगड़ों के लिए ही रहते रहे.

 

हालांकि, संगठन (और जब सरकार में रही तो वहां भी) महत्वपूर्ण व निर्णायक पदों को अगड़ों से मुक्त रखने की हरसूरत चेष्टा रहती थी. न बनने पर ही कोई ऐसा पद अगड़ों को मिलता था. ऐसी रणनीति के कारण बिहार के अगड़ों को बांध रखने में सुशील कुमार मोदी को कुछ हद तक सफलता मिलती रही. इस बार यह पहला मौका है कि अगड़े सामाजिक समूहों को भाजपा ने कोई पद नहीं दिया है. पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष और विधान परिषद में विपक्ष का नेता पद पिछड़े समुदाय को है, तो विधानसभा में प्रतिपक्ष का नेता पद अति पिछड़ा समुदाय को.

 

अवधेश नारायण सिंह विधान परिषद में सभापति हैं. पर वह पद भाजपा की नहीं, एनडीए की देन है. सो, बिहार भाजपा का रूपान्तरण हो रहा है. यह रूपान्तरण पार्टी को क्या देता या क्या लेता है, यह तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन फिलहाल सभी छोटे-बड़े नेता दिल थाम कर आनेवाले दौर की प्रतीक्षा कर रहे हैं.

सभार: चौथी दुनिया 

 

भाजपा ने नित्यानंद राय को ही क्यों बिहार प्रदेश अध्यक्ष बनाया ?

उजियारपुर से सांसद नित्यानंद राय का नये बिहार भाजपा अध्यक्ष चुने जाने के बाद आज पटना भाजपा ऑफिस में ताजपोशी किया गया।भाजपा कार्यालय में कार्यकर्ताओ ने नित्यानंद राय का किया जोरदार स्वागत। मौके पर सुशील मोदी, नंदकिशोर , मंगल पांडेय सहित राज्य के तमाम नेता मौजूद थे।

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उजियारपुर के भाजपा सांसद नित्यानंद राय को बिहार भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष का आलाकमान दिया गया है। बिहार में इन दिनों चल रहे राजनीतिक उठापटक के बीच यह दिलचस्प बदलाव है।

हालांकि नित्यानंद राय बहुत जानी-मानी हस्ती नहीं हैं। वे पहले हाजीपुर विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं। साल 2000 से 2010 के बीच लगातार चार बार विधायक चुने गये। 2014 में उन्हें उजियारपुर लोकसभा का टिकट मिला।जहाँ उन्होनें राजद के दिग्गज नेता वर्तमान के सहकारिता मंत्री अलोक कुमार मेहता को हराकर विजयी रहे।
सबसे रोचक बात ये है कि नित्यानंद राय यादव जाति से हैं। इसके पीछे पार्टी की रणनीति यह मानी जा रही है कि विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के पद से नंदकिशोर यादव के
हटाए जाने के बाद यादवों को फिर से रिझाने की कोशिश है। बीजेपी को लगता है कि यादव के समर्थन के बिना बिहार में पार्टी सरकार बनाने में असफल हो सकती। उनके इस चयन से भाजपा के बिहार में आगामी स्टैंड का अनुमान लगाया जा सकता है।
नित्यानंद ने राजनीति की शुरुआत छात्र जीवन से ही एबीवीपी के साथ की थी। 2000 में भाजपा के टिकट पर हाजीपुर से विधायक चुने गए और लगातार चार बार अपनी सीट पर कायम रहे। लोकसभा चुनाव में उन्हें उजियारपुर से सांसद प्रत्याशी बनाया गया और वे भारी मतों से जीत कर संसद पहुंचे हैं। वे संसद में कृषि मामलों की स्टैंडिंग कमिटी के सदस्य भी हैं।
नित्यानंद की छवि दागदार नहीं है। हालांकि एक बार उन पर सरकारी सेवक को धमकाने के आरोप में मुकदमा हुआ है, मगर चार्ज फ्रेम नहीं हो पाया। उन्होंने 2014 के चुनाव के वक्त अपनी कुल संपत्ति 5.33 करोड़ रुपये घोषित
की हुई थी। नए प्रदेश भाजपा अध्यक्ष नित्यानंद राय पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी के समर्थक माने जाते हैं। उनकी ताजपोशी के साथ यह तस्वीर भी साफ हो गई कि बिहार भाजपा पर सुशील मोदी का वर्चस्व कायम है।

राजनीति: शराबबंदी को लेकर देशभर में घूम रहें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर मोदी का जोरदार हमला

पटना: पूरे देश में शराबबंदी के प्रचार में घूम रहे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने जोरदार हमला किया है। 

 

पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा है कि पूरा बिहार अराजकता की चपेट में है और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शराबबंदी के देशव्यापी अभियान में जुटे हुए हैं। सूबे के सवा तीन लाख पंचायत शिक्षकों के साथ ही 10 विश्वविद्यालयों के हजारों शिक्षक व शिक्षकेत्तर कर्मी पिछले चार महीने से वेतन का इंतजार रहे है।

 

मोदी ने कहा कि लाखों पंचायत शिक्षकों को होली के बाद से वेतन नहीं मिल पाया है। विश्वविद्यालयों से लेकर प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षक भी पिछले चार महीने से वेतन से वंचित हैं। यदि सरकार शिक्षकों को हर महीने वेतन देने में सक्षम नहीं है तो उसे घोषणा कर देनी चाहिए कि वह एक पर्व के बाद दूसरे पर्व पर ही वेतन देगी। वैसे प्रदेश के लाखों शिक्षकों को ईद के मौके पर भी वेतन मिलने की कोई उम्मीद नहीं है। टॉपर घोटाला शिक्षा क्षेत्र में व्याप्त अराजकता की महज एक बानगी है।

 

टॉपर घोटाले के साइड इफैक्ट के बाद इंटर और मैट्रिक के 85 हजार छात्रों की पौने दो लाख कॉपियों की स्क्रूटनी बीएसईबी के लिए चुनौती बनी हुई है,वहीं मगध विश्वविद्यालय स्नातक तृतीय वर्ष के छात्र परीक्षा परिणाम में गड़बड़ियों को लेकर वीसी के घेराव के लिए विवश हो रहे हैं तो दूसरी ओर बीपीएससी मुख्य परीक्षा की तिथि बढ़ाने को लेकर सैकड़ों छात्र आत्मदाह की चेतावनी दे रहे हैं। पिछले दो महीने से पटना आर्ट कालेज के छात्र आंदोलनरत हैं मगर नीतीश कुमार इन सबसे बेखबर हैं।

 

मैट्रिक और इंटर के 85 हजार छात्रों ने अपनी 1.72 लाख कॉपियों की जांच के लिए बोर्ड को आवेदन दिया। बार-बार तिथि तय करने के बावजूद जेईई पास करीब साढ़े आठ हजार छात्रों की ही आधी-अधूरी स्क्रूटनी हो पाई है। इससे हजारों छात्रों का भविष्य अधर में है। सरकार के अंतिम समय में नौंवी की परीक्षा लेने से हाथ खड़ा करने से लाखों छात्रों की 10वीं की पढ़ाई तीन महीने तक बर्बाद हो चुकी है।

केंद्र और राज्य सरकार मिल कर रही बिहार का विकास

पटना: लोग कहते है राजनीति बहुत बुरी चीज है! मगर यही राजनीति आरोप-प्रत्यारोप से उपय उठ जाए और राजनीति अगर विकास पर होने लगे तो वही राजनीति देश या राज्य के लिए वरदान सावित होती है। 

 

बिहार में नीतीश की नेतृत्व वाली महागठबंधन की सरकार है तो केंद्र में नरेंद्र मोदी की नेतृत्व वाली भाजपा सरकार।  दोनो की विचारधारा अलग है, दो सिक्कें के दो पहलू है मगर बिहार के विकाश के मुद्दे पर दोनों सहमत और एकमत है।

 

हाल में एक उदाहरण आया है।  वर्षों से पटना और हाजीपुर के बीच बने गंगा नदी पर बने गाँधी सेतु का हालत केन्द्र और राज्य सरकार के लिए राजनीति राजनीति का एक अहम मुद्दा बनता जा रहा था , दोषारोपण का पुराना खेल चालू था …कोई गम्भीर पहल किसी भी ओर से होती नहीं दिख रही थी।  दशकों से इस सेतू के जीर्णोद्धार की बातें हो रही थीं , कुछ काम भी निरन्तर ही हो रहा था लेकिन सेतू की स्थिति बद से बदहाली की ओर ही बढ़ रही थी।

 

वक्त बीतता गया और सेतू किसी भी दिन ध्वस्त हो जाने की स्थिति में आ गया , इसी दरम्यान बिहार में एक और नयी सरकार आई और बिहार के युवा उप-मुख्यमंत्री श्री तेजस्वी यादव के जिम्मे सम्बंधित विभाग आया …युवा – जोश व् जज्बे के साथ राजनीति को दरकिनार करते हुए गम्भीरता से उप-मुख्यमंत्री ने सेतू के मुद्दे पर केंद्र की सरकार पर अपने पत्राचारों के माध्यम से दबाब बनाया , तदुपरांत केंद्रीय मंत्री श्री नितिन गडकरी जी के साथ अपनी मुलाकातों के माध्यम से समन्वय स्थापित किया और साथ ही राजनीतिक मतभेद होने के वाबजूद केंद्रीय मंत्री ने भी इस मुद्दे पर गंभीरता दिखाई और आज परिणाम सबके सामने है।

 

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केंद्रीय कैबिनेट ने बुधवार को पटना और हाजीपुर को जोड़ने वाली महात्मा गांधी सेतु के जर्जर हालत के पुनरोद्धार के लिए 1742 करोड़ रुपए मंजूर किए हैं. बैठक के बाद वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कहा कि साढ़े तीन साल में सेतु के पुनरोद्धार को कम्पलीट करने का लक्ष्य रखा गया है और इसपर कुल 1742 करोड़ रुपए की लागत आएगी.

 

इस से पहले का भी कई उदाहरण जो बताने के लिए काफी है कि राज्य और केंद्र सरकार मिल कर बिहार के विकाश में लगी है।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी यह कह चुके है कि बिहार के विकाश से कोई समझौता नहीं होगा, और हम केंद्र के साथ मिल कर बिहार के विकाश के लिए काम करेंगे तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने पिछले बिहार दौरे पर बिहार सरकार के सहयोगातमक रवैये की तारिफ कर चुके है।  केंद्रीय मंत्री पियूस गोयल और सुरेश प्रभू ने भी सहयोगात्म रवैये का स्वागत किया है।

 

राजनीतिक मतभेद हो सकते है, राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप और विरोध होता रहता है।  मगर देश और राज्यहित से समझौता नहीं होनी चाहिए।

 

बिहार के विकाश में लगे दोनों सरकार बधाई के पात्र है।

देशवासियों ने किया योग तो बिहार में महागठबंधन ने किया ‘हठयोग’

पटना: कल  (21 जून) देश भर में अंतराष्ट्रीय योग दिवस के मौके पर लोगों ने योग कर योग दिवस को मनाया।  बिहार स्थित योग नगरी मुंगेर में योग दिवस की धूम रही। देश और विदेश के लोग योग करने मुंगेर पहुंचे थे तो देश के कोने-कोनेमें योग शिवर का आयोजन किया गया था। 

 

जहाँ चारो तरफ लोगयोग कर रहें थे बिहार में महागठबंधन के नेता हठयोग कर रहे थे। आम और खास सभी अहले सुबह योग करते दिखे। गांव से लेकर शहर तक लोगों ने योग का लाभा उठाया पर बिहार में योग पर भी सियासत जमकर सियासत हुई। महा गठबंधन के नेताओं ने एक तरीके से अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस की उपेक्षा की।

 

इस मौके को बिहार सरकार ने सियासी चश्मे से देखा। सरकारी स्तर पर योग से जुड़े न तो कार्यक्रम का आयोजन किया गया न ही किसी मंत्री या अधिकारी ने दिलचस्पी दिखाई। राजधानी पटना के गांधी मैदान और कंकड़बाग स्थित शिवाजी पार्क मे भी पतंजलि द्वारा योग कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद और गिरिराज सिंह के साथ सैकड़ों की तादाद में लोगों ने योगाचार्य के मार्गदर्शन योगाभ्यास किया।

 

इस ‘हठयोग’ पर बीजेपी ने महागठबंधन पर कड़ा प्रहार किया है। बीजेपी प्रवक्ता संजय टाइगर ने कहा है कि बिहार सरकार का रूख संघीय ढांचा के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि पीएम नरेन्द्र मोदी के प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्रसंघ की ओर से योग दिवस को मंजूरी मिली है। महागठबंधन के नेता सत्ता के नशे में चूर हैं और वे योग का महत्व को समझना नहीं चाहते।

 

तो इसपर महागठबंधन के तरफ से जेडीयू प्रवक्ता नीरज कुमार ने कहा कि भाजपा के लोग योग का राजनैतिक लाभ लेना चाहते हैं। नीरज ने कहा कि भाजपा के लोग सत्ता भोग के लिये योग कर रहे हैं। जेडीयू नेता ने कहा कि भाजपा के लोगों को योग की इतनी चिन्ता है तो मुंगेर स्थित योग विश्वविद्यालय का विकास क्यों नहीं हुआ।

 

तो ही आरजेडी प्रवक्ता प्रगति मेहता ने बीजेपी पर योग के ब्रांडिंग का आरोप लगाया है। आरजेडी नेता ने कहा कि योग निहायत निजी चीज है इसे हर आदमी को करना चाहिये और लोग करते भी हैं। उन्होंने ने कहा कि योग का राजनैतिकरण नहीं होना चाहिये।

 

गौरतलब है कि पिछले वर्ष मोदी सरकार के प्रयास से 21 जून को अंतराष्ट्रीय योग दिवस मनाने का प्रस्ताव यूएन में सर्वसंमति से पास किया गया।  पूरी दुनिया ने योग दिवस का स्वागत किया और सरकार ने भी इसे प्रोतसाहित किया मगर देश के अंदर ही राजनीतिक वजहों से लोग इसका विरोध कर रहें है।