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Ease of Doing Business में बिहार का रैंक 26, पड़ोसी राज्य यूपी और झारखण्ड टॉप 5 में शामिल

आपको लॉकडाउन के समय बिहार के मजदूरों की बदहाली याद होगी| याद होगा कि आक्रोशित युवा कैसे ट्विटर पर रोजगार इन बिहार नाम से ट्विटर ट्रेंड करवा रहे थे| लोगों के जनाक्रोश को भांपते हुए 15 साल से हुई सरकार, अचानक चुनाव से पहले जाग जाती है और राज्य में उद्योग लगवाने की बड़ी-बड़ी बात करने लगते हैं| मगर बिहार सरकार के दावे की पोल खुद केंद्र सरकार ने खोल दी है|

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले दिनों देश के सभी राज्यों एवं केंद्र शाषित प्रदेशों की Ease of Doing Business की रैंकिंग जारी किया| इस रैंकिंग में बिहार ने 36 राज्यों में से 26 वीं रैंक हासिल की है।

वही बिहार के पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश को दूसरी और झारखण्ड को पांचवी रैंक मिले हैं| 

इस रैंकिंग को घरेलू और वैश्विक निवेशकों को आकर्षित करने, कारोबारी माहौल में सुधार लाने और राज्यों के बीच प्रतिस्पर्धा पैदा करने के लिए जारी किया जाता है| इससे पहले साल 2018 में इस तरह की रैंकिंग जारी हुई थी। इस रैंकिंग को श्रम कानून, जमीन की उपलब्धता, निर्माण की अनुमति, पर्यावरण पंजीकरण, सूचना तक पहुंच और सिंगल विंडो सिस्टम जैसे मानकों पर मापा जाता है।

इस साल आंध्र प्रदेश ने इस रैंकिंग में शीर्ष पर अपने आप को बरकरार रखा है। वहीं, दूसरे स्थान पर तेलंगाना की जगह उत्तर प्रदेश ने ले ली है। वहीं तेलंगाना एक स्थान खिसककर तीसरे स्थान पर आ गया है। इस रैंकिंग में इस बार चौथे स्थान पर मध्य प्रदेश, पांचवें पर झारखंड, छठे पर छत्तीसगढ़, सातवें पर हिमाचल प्रदेश और आठवें स्थान पर राजस्थान रहा है। उत्तर प्रदेश ने रैंकिंग में काफी अच्छा प्रदर्शन किया है। 2017-18 की रैंकिंग में यह 12वें स्थान पर था, जो अब दूसरे स्थान पर आ गया है। वहीं, हिमाचल प्रदेश भी 2017-18 की रैंकिंग में 16वें स्थान पर रहा था। वहीं, यहां बिहार 26वें और त्रिपुरा सबसे नीचे 36वें पायदान पर है|

ईज ऑफ डूइंग बिजनेस किसी राज्य में कारोबार करने के स्थिति के बारे में बताता है| बड़े निवेशक इसी रैंकिंग को देखकर राज्य में निवेश का फैसला लेते हैं| बिहार में उद्योगों की काफी कमी है| और राज्यों के अपेक्षा बिहार को नए निवेश की सबसे ज्यादा जरुरत है ताकि लोगों को अपने घर में रोजगार दिया जा सके, राज्य के वित्तीय स्थिति में सुधार लाया जा सके और भयंकर गरीबी और पलायन को रोका जा सके|

राज्य में कारोबारी माहौल बनाना सरकार की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए मगर यह रैंकिंग देखकर लगता है की नीतीश सरकार की उद्योग निति भगवान भरोसे है|

 

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Industry in Bihar: ITC और अजंता समेत चार बड़ी कंपनियां बिहार में निवेश को इच्छुक

जनता के दवाब के बाद सरकार ने बिहार में निवेश लाने का प्रयास शुरू किया है| इसका अब कुछ सकारात्मक परिणाम भी आने लगे हैं| कुछ बड़ी कंपनियों ने राज्य में निवेश करने के लिए सरकार से सम्पर्क किया है| खबर है कि आईटीसी और अजंता समेत चार कंपनियों ने राज्य में निवेश करने की इच्छा जताई है। इसमें एक एफएमसीजी कंपनी भी शामिल है।

उद्योग मंत्री श्याम रजक ने निवेश को इच्छुक कंपनियों के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि आईटीसी, सूर्या फूड एंड एग्रो लिमिटेड और अजंता शूज (इंडिया) ने बिहार में निवेश करने की इच्छा जताई है। उन्होंने कहा कि अभी यह शुरुआती चरण में है। कंपनियों के अधिकारी आने वाले थे लेकिन कोरोना के चलते सब काम रुका हुआ है। हालात सामान्य होने पर अधिकारी चर्चा करने के लिए बिहार आएंगे। श्याम रजक ने कहा कि आईटीसी बड़े निवेश की योजना बना रही है। यह मुंगेर और पूर्णिया में लगने वाले छोटे यूनिट्स से अलग होगा।


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ज्ञात हो कि बिहार सरकार राज्य में निवेश को आकर्षित करने के लिए कई लुभावने ऑफर भी दे रही है, जिसमें 2500 एकड़ जमीन भी शामिल है। बिहार सरकार लगातार इस बात पर जोर दे रही है कि एक प्रमुख फल और अनाज उत्पादक राज्य होने के नाते यहां फूड प्रोसेसिंग यूनिट में निवेश के लिए बहुत गुजांइश है। सरकार इसके लिए इंडस्ट्रियल इन्वेस्टमेंट प्रमोशन पॉलिसी में भी बदलाव करने की योजना बना रही है।

श्याम रजक ने यह भी कहा कि सरकार ने अन्य कंपनियों से भी बिहार में निवेश करने के लिए संपर्क साधा था। हालांकि इस बारे में उन्होंने ज्यादा जानकारी नहीं दी। हालांकि सूत्र से मिल रही खबर के अनुसार एक कंपनी मुजफ्फरपुर और पटना में फूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाने को इच्छुक है। कंपनी की टेक्निकल टीम जमीन की उपलब्धता और यूनिट के लिए जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर को देखने के लिए यहां का दौरा करने वाली है।

ज्ञात हो कि उद्योग मंत्री ने बिहार में निवेश के लिए आमंत्रित करने के लिए नेस्ले इंडिया, पराग मिल्क फूड्स लिमिटेड, ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन कंज्यूमर हेल्थकेयर लिमिटेड, जुबिलेंट फूडवर्क्स लिमिटेड, केआरबीएल लिमिटेड, एलटी फूड लिमिटेड और हिंदुस्तान फूड लिमिटेड सहित 25 घरों को लिखा था।


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Industry in Bihar: 36 सालों से अपनी खोई रौनक वापस पाने की बाट जोह रहा रोहतास का डालमियानगर

करीब 40 साल तक बिहार के उद्योग जगत का चिराग रहा डालमिया नगर समूह पिछले 36 सालों से अपनी खोई हुई रौनक वापस पाने की बाट जोह रहा है। 2008 में यहाँ एक औद्योगिक परिसर का शिलान्यास भी किया गया लेकिन बात उससे आगे नहीं बढ़ सकी। शक्कर, कागज, वनस्पति तेल, सीमेंट, रसायन और एस्बेसटस उद्योग के लिए विख्यात डालमियानगर समूह ने 40 साल तक इस क्षेत्र में रौनक बनाए रखी थी। लेकिन वर्ष 1984 में डालमियानगर समूह के नाम से मशहूर 240 एकड़ क्षेत्र में फैले रोहतास उद्योग पुंज समूह का चिराग जब बुझा तो बिहार के उद्योग जगत में अंधेरा छा गया।

रोहतास की उम्मीदों को एक नई रोशनी तब मिली जब पूर्व मध्य रेल के महाप्रबंधक ललित चंद्र त्रिवेदी अपने वार्षिक दौरे के क्रम में डिहरी पहुंचे। और बताया कि यहां रेल वैगन कारखाने की निर्माण की प्रक्रिया को तेज किया जाएगा।

क्या कहते हैं सांसद-विधायक

ललित चंद्र त्रिवेदी जी ने जानकारी दी कि डालमियानगर उद्योग समूह को रेलवे ने अधिग्रहण किया है और अभी पुराने उद्योग के स्क्रेप तथा मलबे को हटाने का काम चल रहा है, जो लगभग खत्म होने पर है। उन्होंने बताया कि सहयोगी संस्था ‘राइट्स’ को यह निर्देश दिया गया है कि वह टेंडर लाने की प्रक्रिया में तेजी लाएं और जल्द से जल्द रेल फैक्ट्री निर्माण काम को शुरू करें। उन्होंने कहा कि इसमें तेजी इसलिए भी लाने की कोशिश जारी है क्योंकि यह स्थानीय लोगों के रोजी-रोटी से जुड़ा हुआ मामला है।

काराकाट के सांसद महाबली सिंह का कहना है कि उनकी सरकार कृतसंकल्प है कि इस कारखाने की जल्द से जल्द शुरुआत की जाए। वहीं डिहरी के भाजपा विधायक सत्यनारायण यादव ने कहा है कि बिहार तथा केंद्र सरकार दोनों के संयुक्त प्रयास से इस पूरे इलाके को एक बड़ी सौगात मिलेगी। उन्होंने आशा व्यक्त की है कि जल्द ही रेल वैगन कारखाना निर्माण की प्रक्रिया में तेजी आएगी।


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डालमियानगर उद्योग के शुरू होने से प्रवासियों को फायदा

देशभर से प्रवासी मजदुर घर लौट रहे है। ऐसे में प्रवासी श्रमिकों के सामने एक बहुत बड़े विकल्प के रूप में यह उद्योग समूह नजर आ रहा है। अगर सरकार ने समय रहते इस उद्योग समूह को जागृत कर दिया तो इस इलाके के हजारों श्रमिकों के हाथों को काम मिल सकता है। आज से 36 साल पहले विभिन्न राजनीतिक कारणों से डालमियानगर का उद्योग समूह बंद कर दिया गया था। जिसके बाद हजारों श्रमिक बेरोजगार हो गए थे। स्थिति यह हुई कि इस इलाके से भारी संख्या में लोग पलायन कर गए।

लेकिन अब पूरे देश में जब लोक डाउन लागू हुआ है तथा श्रमिक दूसरे प्रांतों से बिहार लौट रहे हैं, ऐसे में रोहतास के लोगों को उम्मीद है कि यहां बंद पड़ा डालमियानगर का उद्योग समूह शायद शुरू हो जाए और लोगों को यहां से बाहर काम की तलाश में न जाना पड़े।

नेताजी की स्मृति डालमियानगर को सहेज रही है मोदी सरकार

नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए मार्च 1938 में डालमियानगर के रोहतास उद्योग समूह परिसर का उद्घाटन किया था। नेताजी सुभाषचद्र बोस की स्मृति को संजोए आज भी डालमियानगर सीमेंट कारखाना का ढांचा खड़ा है। रोहतास उद्योग समूह 1984 में बंद हो परिसमापन में चला गया। लेकिन साल 2014 में मोदी सरकार के लौटने के बाद नेताजी की इस याद को सहेजने का काम शुरु हो गया है।

इस उद्योग परिसर को रेलवे ने क्रय कर लिया हैं। जहां अब रेल बैगन मरम्मत, रेल बैगन निर्माण व कॉप्लर के कारखाना लगाने की प्रक्रिया चल रही है। सितंबर 2018 में यहां लगे सभी कारखाने का लोहा काटकर हटा दिया गया था। यहां के हजारों टन कबाड़ की बिक्री कर दी गई थी। लेकिन अब भी परिसर में कई टन कबाड़ फैला हुआ है। जिसे हटाने का कार्य अब भी चल रहा है। हालांकि ये अपने अंतिम चरण में है। देखा जाये तोह जल्दी ही डालमियानगर में रेलवे की फैक्ट्री शुरु हो जाएगी। जिसके बाद पूरे इलाके का आर्थिक तौर पर कायाकल्प हो जाएगा।


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Industry in Bihar: कोरोना काल में बदहाल हुए डुमरांव के सिंधोरा कारीगर

बीते कुछ दिनों से #industryinbihar चर्चा का विषय बना हुआ है। मजदूरों की घर वापसी के कारण बिहार सरकार के सामने उनके रोजगार का मुद्दा बहुत बड़ा चिंता का विषय दिख रहा है। इधर बहुत से लोग इस बात का भी सुझाव दे रहे हैं कि बिहार में बंद पड़े हुए कल- कारखानों को पुनः खुलवाया जाए ताकि राज्य के श्रमिकों को रोजगार मिल सके। ट्विटर पर #industryinbihar ट्रेंड होते ही हमें पता चलता है कि सरकार के अनदेखी के कारण बिहार के कई फैक्टरियां बंद हो गई है नतीजन कई मजदूर बेरोजगारी का शिकार हो गए हैं।

सिंधोरा से जुडी बचपन की यादें

जब बात इंडस्ट्री इन बिहार की चलती है तो हमें छोटे- बड़े सारे कारखानों का स्मरण करना होगा जो कि बन्द हो चुके हैं या बंद होने की कगार पर है। इसी सिलसिले में मुझे अपने छोटे से नगर डुमरांव के सिंधोरा उद्योग का स्मरण हो आया।

बचपन में हम जब काली मां के दर्शन करने नीमटोला जाते थे तब हम कुछ घरों में सिंधोरा बनाने के काम करने वाले को देखते थे।  हमारी उत्सुक निगाहें लाल- पीले सिंधोरो पर रुक जाती थी। हमारा काली मां के दर्शन से ज्यादा ध्यान सिंधोरा कारीगर पर  होता था। बाबा ( दादा जी) से जिद कर हम घंटो उन कारीगरों के यहां बैठ जाया करते थे। जब भी बाबा डुमरांव के बारे में बताते थे तो डुमरांव के राजा कमल सिंघ के साथ साथ डुमरांव को मशहूर शहनाई वादक बिस्मिल्लाह खां की जन्मभूमि भी बताते थे। बाबा यह कभी भी बताना नहीं भूलते थे कि डुमरांव को सिंधोरा का शहर भी कहा जाता है। जब यह बात मै अपने दोस्तों को बताती थी कि डुमरांव को सिंधोरा का शहर कहा जाता हैं तो वह जीके (G.K) के इस तथ्य को जानने में बिल्कुल भी उत्सुक दिखाई नहीं देते थे उल्टे मुझसे ही पूछते थे कि कौन सी सामान्य ज्ञान के किताब में लिखा है? मैंने तो कहीं नहीं पढ़ा।

डुमरांव बिहार के बक्सर जिले का एक छोटा सा नगर है। डुमरांव के सिंधोरा उद्योग की बात किसी बहुत बड़े जीके के किताब का हिस्सा तो नहीं है, नाही यूपीएससी में पूछा जाने वाला महत्वपूर्ण सवाल। लेकिन उद्योग जगत के लिए हर छोटे- बड़े उद्योग महत्वपूर्ण होने चाहिए।

कोरोना दौर में बिहार के डुमरांव शहर में सिंधोरा कारीगरों की मालि हालत ठीक नहीं है। आपको बता दें कि बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और  पश्चिम बंगाल को मिलाकर सिंधोरो का हस्त निर्मित केंद्र सिर्फ बिहार का नगर डुमरांव है। यहां के हस्त निर्मित सिंधोरा बंगाल, उत्तरप्रदेश, झारखंड भी जाते हैं। सिंधोरा कारीगर मुख्यरूप से खरवार समुदाय से हैं।


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मुगलसराय में मशीन आ जाने के वजह से हस्त निर्मित सिंधोरो के व्यसाय में कमी आ गई और इस परंपरागत व्यवसाय में उचित लाभ ना मिलने के वज़ह से कई परिवार इस पेशे को छोड़ कर अन्य पेशो में लग गए।

आज भी इस पुश्तैनी पेशे से डुमरांव के कई परिवार जुड़े हुए हैं। लेकिन लाकडाउन होने के वजह से सिंधोरा कारोबार ठप पड़ गया है। इस महामारी के दौर में शादी- ब्याह टल जाने के कारण  सिंधोरा के मांग में भारी गिरावट आई है या तो कहिए न के बराबर है। कारोबार ठप होने के कारण कारीगरों के बीच भूखमरी की स्थिति पैदा हो गई है।

Sindhora art by Tanisha

कलाकार: तनीषा

सिंधोरा कारीगरों ने सरकार से नाराजगी जताते हुए कहा है कि बिहार सरकार इस लघु उद्योग पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं देती हैं, और जब से कोरोना की मार पड़ी है उनकी सुध तक नहीं ली गई हैं।

सुहाग की निशानी बनाने वाले कारीगर आज सरकार के इस रवैए से दुःखी है। सिंधोरा मे गहरे रंग भरने वाले कारीगरों कि जिंदगी बेरंग सी प्रतीत होती हैं। वह बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र लिखने का भी सोच रहे हैं ताकि उनकी स्थिति का जायजा लिया जाए और उचित मदद पहुंचाया जाए।

सिंधोरा उद्योग की तरह बिहार के कई लघु उद्योग अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। सरकार की बेशुधगी के वजह से कई कारीगर बेहद गरीबी के शिकार हो गए हैं। आपको बता दें कि ऐसे कई लघु उद्योग है जैसे बांस से बनी हुई वस्तुएं,  पत्थर से निर्मित सिलवट- लोढ़ा जिनके कारीगर समाज के पिछड़े समुदाय से हैं। लेकिन इनके शिल्प कला को नाही पहचान मिली है नाही आर्थिक सहायता नतीजन हजारों कारीगर पुश्तैनी पेशे को छोड़ शहरों को प्रवास कर रहे हैं।

नीतीश कुमार से अनुरोध है कि बिहार का एकमात्र सिंधोरा केंद्र पर ध्यान दिया जाए और इस शिल्प कला को बचाया जाए। इनके कारीगरों को आर्थिक सहायता प्रदान करवाई जाए।

सिंधोरा उद्योग जैसे अन्य कई लघु उद्योग है जो अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं और इनके कारीगर आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं, इन छोटे उद्योगों को सरकारी प्रोत्साहन एवं सहायता की आवश्यकता है। मुझे उम्मीद है कि सरकार इन समस्याओं पर जरूर ध्यान देगी और इन लघु उद्योगों को मरने नहीं देगी।

 जानिए सिंधोरा का महत्व

हिन्दू समाज में सिंदूर का बहुत महत्व है। स्त्री के माथे पर सिंदूर के माध्यम से स्त्री के वैवाहिक स्थिति आसानी से पता लगाया जा सकता है। विवाह के समय पुरुष स्त्री के मांग में सिन्दूर भर कर उसे अपनी पत्नी बना लेता है। विवाह के समय सिन्दूर वर पक्ष के तरफ से वधू को दिया जाता है। बिहार, पूर्वी उत्तप्रदेश, झारखंड जैसे राज्यो में सिन्दूर सिंधोरा में रखकर वधू को दिया जाता है। सिंधोरा को सिन्दूर रखने का पात्र भी कह सकते हैं। बिहार एवम् अन्य राज्य में स्त्रियां विवाह से लेकर मरने समय तक सिंधोरा को संभाल कर रखती हैं जिसे वह सुहाग का प्रतीक मानती है।

सिंधोरा आम की लकड़ी से बनाया जाता है। इसकी सज्जा हेतु प्राकृतिक रंग व जड़ी कढ़ाई का इस्तेमाल किया जाता है। इसके मुख्य कारीगर सोनी देवी, उषा देवी, देवांती देवी एवम् अशोक खरवार, सतीश खरवार, अनिल खरवार इत्यादि है।

ऋतु –  बिहार के डुमरांव नगर से है।

इतिहास विभाग, शोधार्थी, दिल्ली विश्वविद्यालय


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बिहार सरकार ने नेस्ले और बाटा समेत 24 कंपनियों को राज्य में निवेश का प्रस्ताव भेजा

बिहार में अवसरों की कमी और उसके तलाश में लोगों के दूसरे राज्य में पलायन करने की समस्या तो दशकों थी मगर कोरोना वायरस के कारण हुए लॉकडाउन में यह समस्या मुख्यधारा में आ गयी| बिहार चुनाव से ठीक पहले राज्य का चुनावी मुद्दा बदल गया| जिस राजनीति में जाति और धर्म का बोलवाला था वहां अब अचानक से रोजगार, कारखाने और मजदूरों की बात होने लगी है| जिस ट्विटर पर लोग “पाकिस्तान जाओ” जैसे मुद्दे ट्रेंड करवाते थे, वहां अब युवा #IndustryinBihar जैसे हैशटैग ट्रेंड करवा रहे हैं और क्षेत्र में लोगों से मिलने जा रहे विधायकों से जनता “रोजगार कहाँ है?” जैसे सवाल पूछी रही है|

सरकार जनता से बनती से बनती हैं और जनता जब जागरूक हो जाये तो सरकार पर दबाव बनेगा ही| सरकार ने यह तो घोषणा किया ही है कि बिहार लौटकर आ रहे सभी श्रमिकों को रोजगार तो दिया ही जायेगा इसके साथ बिहार सरकार ने अब बड़े कंपनियों को बिहार में निवेश करने का निमंत्रण भी देना शुरू कर दिया है|

बिहार सरकार ने नेस्ले, ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन, जुबलिएंट फूड व पराग मिल्क समेत 24 कंपनियों को राज्य में निवेश करने का प्रस्ताव दिया है| उद्योग मंत्री श्याम रजक ने पत्र पर इन कंपनियों को बिहार में फैक्ट्री लगाने पर होने वाले फायदे को गिनाये हैं|


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उन्होंने पत्र में लिखा है कि राज्य का मक्का के उत्पादन में देश में दूसरा स्थान, हनी में चौथा और सब्जी में 7वां स्थान है यानी फूड प्रोसेसिंग के लिए प्रचुर रॉ मेटेरियल्स उपलब्ध है। यही नहीं, राज्य की विकास दर 11.3 फीसदी है और इस विपरीत परिस्थिति में भी 10.5 ग्रोथ रेट बनाए हुए है।

रजक ने कहा है कि आईटीसी जैसी बड़ी कंपनी राज्य के फूड प्रोसेसिंग सेक्टर में निवेश की है। वहीं फूड प्रोसेसिंग सेक्टर बिहार औद्योगिक नीति-2016 के प्राथमिक सूची में है और औद्योगिक नीति के तहत उद्यमियों के लिए ब्याज सब्सिडी, 30 दिन के अंदर डीम्ड क्लियरेंस और जीएसटी प्रतिपूर्ति जैसी सुविधाएं दी जा रही है। निवेशकों के मदद के लिए निवेश आयुक्त का पद सृजित कर उनकी पोस्टिंग की गई है।

निवेशकों को मिलेगा बड़ा बाज़ार

बिहार सरकार ने निवेशकों को बिहार में निवेश करने से होने वाले फायदे को बताते हुए यह भी कहा कि यहाँ उनको राष्ट्रीय तथा अंतराष्ट्रिय बाज़ार भी मिलेगा| बिहार में खुद में एक बड़ा बाज़ार है इसके साथ उत्तर-पूर्व के राज्य, बंगाल, यूपी, झारखंड और ओडिसा को आसानी से उत्पाद भेजे जा सकते हैं। यही नहीं, यहाँ से नेपाल और भूटान और बांग्लादेश भी कम्पनी अपना उत्पाद भेज सकते हैं|

इन 24 कंपनियों को भेजा निमंत्रण

सायजी इंडस्ट्रीज, जीआरएम ओवरसीज, जुबिलेंट फूडवर्क्स, ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन कंज्यूमर हेल्थकेयर, बाटा इंडिया, रिलेक्सो फुटवेयर, मिर्जा इंटरनेशनल, खादिम इंडिया, हाइडसाइन, प्रिंसपाइप्स, आस्ट्रल पॉली तकनीक, फाइनोलेक्स इंडस्ट्रीज, जैन इरीग्रेशन, केआरबीएल, एलटी फूड, चमनलाल सेतिया एक्सपोर्ट, नेस्ले इंडिया, हैटसंग एग्रोप्रोडक्ट, टेस्टी बाइट इटेबल, प्रताप स्नैक्स, हिंदुस्तान फूड, हेरिटेज फूड, डीएफएम फूड, पराग मिल्क फूड, आदि|


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#IndustryinBihar: सीतामढ़ी और शिवहर का एकलौता रीगा चीनी मिल को किया जा रहा बंद

एक तरफ बिहार के युवा अपने राज्य में रोजगार के अवसर बढ़ाने, बंद पड़े पुराने कारखानों को फिर से चालू करने और नए उद्योगों को राज्य में स्थापित करने की मांग कर रहे हैं। दूसरे तरफ राज्य में चल रहे कारखाना भी बंद होने के कगार पर हैं।

सीतामढ़ी जिला के शिवहर बॉर्डर पर स्थित रिगा चीनी मिल बंद होने के कगार पर है। हजारों किसानों का इस मिल पर करोड़ों का बकाया है। मिल प्रबंधन गन्ना मूल्य का करीब 115 करोड़ तथा लिमीट (केसीसी) के 70 करोड़ रुपये का भुगतान नहीं कर रहा है। इसी सत्र में करीब करीब 60 करोड़ का बकाया है।

बकाया का राशि नहीं देने के लिए साजिश के तहत मिल को धीरे – धीरे बंद करने का आरोप है।

मिल को बंद करने संबंधित खबर लॉकडाउन से पहले से आ रही है मगर अब लॉकडाउन का बहाना बनाकर एक साथ 600 लोगों को मिल ने काम से निकाल दिया गया। है

मिल प्रबधन ने अचानक गेट पर यह नोटिस चिपका कर लोगों को काम से निकालने का फरमान सुना दिया। रातों रात 600 लोग रोड पर आ गए। मिल प्रबंधन काम नहीं तो पैसा नहीं की बात कह रही है तो वहीं रीगा चीनी मिल वकर्स यूनियन के महामंत्री मनोज कुमार का कहना है – “हम लोगों ने शनिवार तक काम किया है। दो महीने काम से हटाने या फिर दूसरे किसी फैसले की जानकारी ना तो कर्मियों को दी गई और ना ही यूनियन को कोई सूचित किया गया। जब वे लोग मिल पर आए तो इस नोटिस को चीनी मिल के गेट पर पहुंचे तो नोटिस चिपका हुआ पाया।”

सीतामढ़ी और शिवहर जिला का यह इकलौता चीनी मिल है। मिल से 40 हजार किसान जुड़े हैं और आस पास के क्षेत्र की अर्थव्यवस्था इसी मिल पर निर्भर है।

2018-19 के पेराई सत्र में जहां 46 लाख क्विटल गन्ने की पेराई हुई थी वहीं इस बार 2019-20 में आधा से भी कम मात्र 20 लाख क्विटल पेराई हो पाई है। अप्रैल में बंद होने वाली पेराई इस बार समय से पहले दो माह पूर्व 27 फरवरी को ही बंद हो गया था।

मिल मालिक ने ​सरकार से मांगा था लोन

न्यूज 18 में प्रकाशित एक खबर के अनुसार रीगा चीनी मिल राज्य सरकार से मदद की गुहार लगा रहा था। चीनी मिल प्रशासन का कहना था कि यदि सरकार मिल को अगर सॉफ्ट लोन के तहत 40 करोड़ रुपए उपलब्ध करा देती है तो वे अपने किसान और कर्मियों को भुगतान कर सकते हैं। किंतु राज्य सरकार ने चीनी मिल की इस अपील पर ध्यान नही दिया।

एक तो बिहार में वैसे ही गिने चुने कारखाने बचें है जो चल रहे हैं। वर्षों से राज्य में कोई बड़ा उद्योग भी नहीं लगा है और उपर ब्ज अभी बेरोजगारी सब समय से ज्यादा है। अगर इस समय एक भी कारखाना बंद होता है तो यह राज्य के लिए त्रासदी से कम नहीं है। बिहार के युवा ट्विटर पर लगातार #IndustryinBihar कैंपेन चला रही है, ताकि सरकार पर नए उद्योग लगाने का दवाब बढ़ सकें तो दूसरे तरफ सरकार अपने वर्तमान उद्योगों को भी बंद होने से नहीं रोक पा रही है।