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Bihar Election 2020: प्रशांत किशोर करने जा रहे हैं ‘बात बिहार की’

प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) ने मंगलवार को पटना में अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर कुछ संकेत दिये। जदयू से 29 जनवरी को निकाले जाने के बाद चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर पहली बार मंगलवार को पटना पहुंचे। उन्होंने मीडिया से बात करते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर खुलकर निशाना साधा।

उन्होंने कहा- नीतीश से वैचारिक मतभेद हैं। हालांकि, प्रशांत ने यह भी कहा कि बिहार को सशक्त नेता की जरूरत है, पिछलग्गू की नहीं।

उन्होंने बताया कि वे 20 फरवरी से ‘बात बिहार की (Bat Bihar Ki)‘ कार्यक्रम शुरू करेंगे। वे इसके जरिए ऐसे युवा लोगों को जोड़ेंगे, जो बिहार को आगे ले जाएं। जिस दिन एक करोड़ बिहारी युवा कनेक्ट हो गए उस दिन बताएंगे कि राजनीतिक पार्टी लॉंच की जाए या नहीं।

राष्ट्रीय फलक पर नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के अभ्युदय के साथ चुनावी रणनीतिकार के रूप में प्रशांत किशोर के नाम से सियासत की दुनिया 2014 में रूबरू हुई थी। ‘अबकी बार मोदी सरकार’ और ‘बिहार में बहार है, नीतीशे कुमार है’ जैसे नारे गढ़ने वाले प्रशांत किशोर पिछले छह साल में राष्ट्रीय राजनीति में अपनी सशक्त पहचान बना चुके हैं। पीके नाम से प्रसिद्ध प्रशांत किशोर की मदद से अब तक कई राजनीतिक दल सत्ता की सीढ़ी चढ़ चुके हैं। इसके साथ पीके ने बिहार में जनता दल यूनाइटेड को अपनी सेवाएं दीं। नीतीश कुमार, लालू प्रसाद और कांग्रेस को मिलाकर सरकार की राह बनाई। बदले में जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाए गए। फिर जदयू में खटपट बढ़ी तो पीके ने नीतीश से अपनी राह अलग कर ली।

बकौल पीके उन्होंने देखा कि बिहार में बदलाव तो हो रहा है, लेकिन इसके आगे क्या होना चाहिए, यह कोई नहीं जानता है। ऐसे ही कई विषयों पर सोचने के बाद उन्होंने तय किया कि अब सारथी बनने से काम नहीं चलेगा। जितने भी वर्ष लगें बिहार को बदलने के लिए वो तैयार हैं।

बिहार के बक्सर जिले से हैं प्रशांत

साल 1977 में प्रशांत किशोर का जन्म बिहार के बक्सर जिले में हुआ था। उनकी मां उत्तर प्रदेश के बलिया जिले की हैं वहीं पिता बिहार सरकार में डॉक्टर हैं। उनकी पत्नी का नाम जाह्नवी दास है। जो असम के गुवाहाटी की एक डॉक्टर हैं।

प्रशांत किशोर ने कहा कि बिहार में वह अब किसी के चुनाव प्रचार अभियान के संचालक नहीं बनेंगे बल्कि खुद एक ऐसा राजनीतिक प्रतिष्ठान तैयार करेंगे, जो बिहार के युवाओं और आम लोगों की आकांक्षाओं और अपेक्षाओं के अनुरूप हो।

उन्होंने कहा कि बिहार छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगा। चुनाव लड़ाना-जिताना मैं रोज करता हूं। बात बिहार की कार्यक्रम शुरू करूंगा। इसके तहत 8 हजार से ज्यादा गांवों से लोगों को चुना जाएगा, जो अगले 10 साल में बिहार को अग्रणी 10 राज्यों में शुमार करना चाहते हों। बिहार को वो चलाएगा, जिसके पास सपना हो। इसमें शामिल होना चाहें, तो उनका स्वागत है। प्रशांत किशोर ने ये भी कहा कि नीतीश कुमार से उनके वैचारिक मतभेद हैं|

उन्होंने कहा, “जो गांधी की विचारधारा का समर्थन करते हैं वो गोडसे के समर्थकों के साथ खड़े नहीं हो सकते| बिहार आने का अपना एजेंडा बताते हुए प्रशांत किशोर ने कहा, “मुझे ऐसे लड़को को तैयार करना है जो इस बात में यक़ीन रखते हैं कि बिहार दस साल में देश के अग्रणी राज्यों में कैसे खड़ा हो| इस विचारधारा से जो सहमत हैं, जो अपने जीवन के दो चार साल इस उद्देश्य में लगाना चाहते हों, मैं ऐसे युवाओं को जोड़ने आया हूं| मेरा मक़सद बिहार में निचले स्तर पर राजनीतिक चीज़ों को सुदृढ़ करना है. बिहार सिर्फ प्रदेश ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय राजनैतिक बदलाव की प्रयोगशाला रही है। इसी कड़ी में नई कोशिश की तैयारी परवान चढ़ चुकी है।

नीतीश कैबिनेट का होगा विस्तार! ये बनेंगे नए मंत्री ..

समाज कल्याण मंत्री मंजू वर्मा के इस्तीफे के बाद, बिहार के राजनितिक गलियारों में नीतीश कैबिनेट के विस्तार का चर्चा जोरो पर है| कैबिनेट में फिलहाल आठ जगह खाली है। आधे दर्जन नए मंत्रियों के जल्द शामिल किए जाने की चर्चा है। अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में सामाजिक समीकरण को साधने के लिए यह कवायद की जाएगी|

हाल के दिनों में एससी-एसटी एक्ट को लेकर दलितों ने मोदी सरकार के खिलाफ असरदार आंदोलन किया है| दो अप्रैल को दलितों का असरदार भारत बंद तो था ही, उसके साथ ही दलित नेता जीतन राम मांझी ने भी एनडीए का दामन छोड़ राजद के साथ जा चुके हैं| सूत्रों के मुताबिक, नीतीश की कोशिश दलितों में पैठ बढ़ाने और गैर यादव अन्य पिछड़ा वर्ग को ज्यादा प्रतिनिधित्व देने की है| ताकि दलितों के बीच एक अच्छा सन्देश जाए और पार्टी का आधार मजबूत हो| इसी के मद्देनजर श्याम रजक और कांग्रेस छोड़ कर जेडीयू का दामन थामने वाले अशोक चौधरी कैबिनेट के रेस में सबसे आगे नजर आ रहे हैं|

मंजू वर्मा नीतीश सरकार में एकलौती महिला मंत्री थी| उसके इस्तीफा के बाद नीतीश कैबिनेट में महिला प्रतिनिधित्व ख़त्म हो गया है| महिला को प्रतिनिधित्व देने के लिए एक महिला मंत्री बनना तय है| बीमा भारती, रंजू गीता या लेसी सिंह इसके प्रबल दावेदार हैं|

इसके साथ ही मंजू वर्मा कुशवाहा समाज से आती है| इस समाज के वोट बैंक बार अभी सभी पार्टियों का नजर है| कुशवाहा समाज का समर्थन नीतीश कुमार को मिलता रहा है| मगर अब इस वोट बैंक पर अब कई लोग दाबा कर रहे हैं| नीतीश कुमार इस समाज को साधने के लिए मंजू वर्मा के जगह किसी दुसरे कुशवाहा नेता को ही मंत्रिमंडल सामिल करेंगे| कुशवाहा जाति से कई नेता इसके दावेदार हो सकते हैं, जिनमें अभय कुशवाहा और उमेश कुशवाहा शामिल हैं|

अभय कुशवाहा को युवा जदयू की कमान दे दी गई है और वह जिस मगध प्रमंडल से आते हें वहां से कृष्णनंदन वर्मा इस समाज से पहले ही मंत्री बने हुए हैं, इसलिए उत्तर बिहार के किसी कुशवाहा नेता को यह पद मिल जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। भाजपा का कोटा लगभग पूरा हो गया है। नीतीश कैबिनेट में रालोसपा को कोई जगह नहीं मिली है। अगर एनडीए के केंद्रीय नेतृत्व का दबाव पड़ा तो रालोसपा के सुधांशु शेखर को भी मंत्री बनाया जा सकता है।

अब ‘विकसित बिहार’ के सपने को पूरा करेंगे मोदी और नीतीश! जानिए इसकी पांच वजहें

पीएम नरेंद्र मोदी जब एनडीए के प्रधानमंत्री उम्मीदवार थे, तो बिहार में एक चुनावी महारैली को संबोधित करते हुये विकसित बिहार की बात कही थी. चुनाव के बाद मोदी पीएम बन भी गये. सबका साथ एवं सबका विकास की नीति के साथ आगे बढ़ने लगे. पीएम मोदी के बिहार के विकास ड्रीम को तब धक्का लगा, जब बिहार के विधानसभा चुनाव में नीतीश एवं लालू की दोस्ती के कारण महागठबंधन की सरकार बन गयी. इस सरकार के बनने के साथ ही बिहार केंद्र सरकार की योजना से दूर हो गया. लेकिन अब बिहार के सत्ता का मानचित्र बदल गया है. नीतीश एवं लालू की दोस्ती टूटने के बाद अब बिहार में एक बार फिर भाजपा एवं जेडीयू की सरकार नीतीश के ही नेतृत्व में बनी है. पीएम मोदी ने इसके लिए नीतीश कुमार को बधाई भी दी है. लेकिन अब बिहार की जनता पीएम द्वारा किये गये वादों को याद कर रहे हैं. शुक्रवार को नीतीश ने विधानसभा में विश्वास मत भी हासिल कर लिया. इसके साथ ही अब नीतीश कुमार के पास बिहार के विकास को लेकर काम करने का शानदार मौका है. क्योंकि पीएम हमेशा से विकास की बात करते रहें हैं. अपने काम के दम पर सुशासन बाबू के नाम से भारतीय राजनीति में अपनी पहचान कायम करने वाले नीतीश कुमार के पास अब आर्थिक रुप से पिछड़े बिहार को आगे बढ़ाने का मौका मिल चुका है.

 

ये 5 ऐसे कारण, जो बदल सकते हैं बिहार की तस्वीर


 

1. पैकेज पहुंचने की उम्मीद- मोदी के विकास ड्रीम को कैसे मिलेगी मदद?

2014 में केंद्र में सरकार बनाने के बाद नरेंद्र मोदी और बीजेपी ने 2015 में बिहार जीतने के भरसक कोशिश की. पर नीतीश-लालू के साथ आने से ऐसा हो नहीं पाया. पर बिहार में सरकार बनाने का अंतिम लक्ष्य 2017 में ही सही, हासिल हो गया. ऐसे में मोदी ने जो बिहार से विकास का वादा किया था, अब उन्हें पूरा करने का वक्त आ गया है.

नीतीश कुमार का बीजेपी के साथ बिहार में पहला कार्यकाल शानदार रहा था. सड़क और बिजली पर उन्होंने अच्छा काम किया था. ऐसे में अगर अब मोदी सरकार बिहार का साथ देती है तो राज्य की तस्वीर बदल सकती है. मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान 125,000 करोड़ देने का वादा किया था. बता दें कि पिछले दिनों एक आरटीआई में खुलासा हुआ था कि सरकार ने अभी तक इस ऐलान से कोई भी फंड नहीं जारी किया है.

2. लुक ईस्टः पिछड़े पर ज्यादा ध्यान, बीजेपी की सबसे बड़ी पॉलिसी!

बीजेपी यूपी के बाद लुक ईस्ट पॉलिस के तहत बड़े राज्यों पर फोकस किए हुए है. बीजेपी किसी भी कीमत पर आने वाले दिनों में ईस्ट के राज्यों- बंगाल, बिहार में अपनी पकड़ मजबूत रखनी चाहती है. इसमें मदद कर सकता है, बिहार में नीतीश कुमार का शासन. मोदी अपने बयानों में कई बार इस बात का जिक्र कर चुके हैं कि देश के पश्चिमी राज्यों की तरह वे पूर्वी राज्यों को भी विकास की गाड़ी पर बैठाना चाहते हैं. ऐसे में अगर इस ओर गंभीरता से कुछ काम होता है तो नीतीश कुमार के नेतृत्व में इसका सबसे बड़ा और पहला फायदा बिहार को ही होगा.

3. दिल्ली-बिहार में समानता- 19 साल बाद बना ये संयोग

19 साल बाद ऐसा हो रहा है कि बिहार और दिल्ली में एक ही पार्टी या गठबंधन की सरकार है. ऐसे में यूपी के साथ बिहार में भी मोदी सरकार अपने विकास के वादे से बच नहीं सकती.

4. छवि का फायदाः मोदी-नीतीश दोनों विकास को देते हैं तरजीह

नीतीश भले ही राजनीतिक तौर पर कई बार चौंकाने वाले झटके दे चुके हैं पर शासन चलाने में उनकी शैली भी मोदी की तरह ही है. उनका भी ज्यादा जोर विकास पर ही रहा है. पहला कार्यकाल इसका उदाहरण रहा है. इसके चलते जंगल राज कहे जाने वाले बिहार में अपहरण, हत्या जैसे मामले कम भी हुए थे. राजनीतिक उठापटक के कारण नीतीश खुद की खई जमीन तलाशने की कोशिश करेंगे, ऐसे में विकास के अलावा उनके पास कोई दूसरा बड़ा विकल्प नहीं होगा.

5. मजबूत विपक्ष-तेजस्वी का रोल भी बढ़ेगा

चाचा नीतीश कुमार के साथ भले ही लालू के दूसरे बेटे तेजस्वी को सत्ता चलाने का तरीका आया हो या नहीं पर उनके पास मजबूत विपक्ष का रोल प्ले करने का मौका है. वे चाहें तो आरजेडी के 87 विधायकों के साथ बिहार में जेडीयू-बीजेपी की सरकार को परेशान कर सकते हैं. ऐसे में विपक्ष के दबाव में इस सरकार को प्रदर्शन करना ही होगा. बिहार में एक मजबूत विपक्ष लंबे समय से नहीं है. नीतीश ने कहा था कि लालू उन्हें काम नहीं करने दे रहे हैं, ऐसे में उनके पास अब ये बहाना भी नहीं होगा.