स्पीकर विजय कुमार सिन्हा, बिहार, Bihar Vidhan Sabha Speaker, Vijay Kumar Sinha

विधानसभा अध्यक्ष विजय सिन्हा के ‘व्याकुलता’ से क्यों परेसान हैं बिहार सरकार के मंत्री?

बिहार विधानसभा में कल जो कुछ भी हुआ वो होना तय था, क्योंकि सरकार विधानसभा अध्यक्ष के कार्यशैली से नाराज है। वजह अध्यक्ष ने सत्र के दौरान सारे मंत्री से आग्रह किया था कि विधायक जो सवाल सदन के पटल पर रखते हैं उनका जवाब विभाग से समय मिल जाना चाहिए ।

विवाद की वजह यही है, मैं 2009 से बिहार विधानसभा की कार्यवाही को कवर करते आ रहा हूं बिहार सरकार को कोई भी मंत्री विधायक के सवालों को लेकर कभी गंभीर नहीं दिखे और मंत्री के इस रवैये पर अध्यक्ष ने भी कभी नाराजगी व्यक्त नहीं किया ।
इस बार स्थिति थोड़ी बदली बदली है विपक्ष सदन में हंगामा करने के बजाय सवालों के सहारे सरकार को घेरने की रणनीति पर काम कर रही है ,वही सदन ठीक से चले इसके लिए विधानसभा अध्यक्ष विधायकों के सवालों का शत प्रतिशत जवाब आये इसके लिए मंत्री पर इन दिनों वो तल्ख टिप्पणी करने से भी परहेज नहीं कर रहे हैं ।

मंत्री सम्राट चौधरी के गुस्सा होने की वजह यही है उनके विभाग से जुड़ा 16 सवाल विधायकों ने किया था लेकिन विभाग मात्र 11 सवालों का ही जबाव दिया था, अध्यक्ष विभाग के इसी रवैये को लेकर मंत्री को हिदायत दिया था कि विभाग के अधिकारियों को कहे शतप्रतिशत सवालों का जबाव दे इसी बात को लेकर मंत्री गुस्से में आ गये।

हालांकि मंत्री के इस व्यवहार को भी जातिगत रंग देने की पूरी कोशिश हुई साथ ही विधानसभा अध्यक्ष के कार्यशैली को लेकर भी सवाल खड़े किये जाने लगे कि मंत्री से सदन में इस तरह से व्यवहार नहीं करनी चाहिए ।

विधायक के सवालों को लेकर इस सत्र के दौरान बिहार सरकार के सबसे सीनियर मंत्री विजेंद्र यादव, उप मुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद को भी विभाग की ओर से विधायक के सवाल का जवाब नहीं आने पर अध्यक्ष ने मंत्री को फटकार लगा दिये थे । इतना ही नहीं कई बार अध्यक्ष के आदेश की वजह से सरकार को सदन में परेशानी हो रही थी । इसको लेकर सरकार परेशान थी|

अध्यक्ष के इस रवैये को लेकर जानकार कह रहे थे कि बीजेपी विजय कुमार सिन्हा को विधानसभा का अध्यक्ष इसलिए बनाया है कि ताकि नीतीश कुमार को परेशानी हो सके । लेकिन मामला उल्टा पड़ गया बीजेपी कोटे से मंत्री ही अध्यक्ष पर भड़क गये खैर दो घंटे के हाईवोल्टेज ड्रामा के बाद मंत्री और सरकार को अध्यक्ष से माफी मांगनी पड़ी।

लेकिन बड़ा सवाल यह है कि अध्यक्ष की जिम्मेवारी क्या है सरकार के अयोग्य अधिकारी को बचाना या फिर विधायक के सवालों के साथ खड़ा रहना है?

क्योंकि विधायक अपने क्षेत्र से जुड़ी समस्याओं को लेकर कहां आवाज उठाएगा क्यों कि उनके पास विधानसभा ही एकमात्र फोरम है जहां वो सवालों के सहारे अधिकारियों पर काम करने को लेकर दबाव बना सकते हैं लेकिन सरकार इससे बचना चाहती है और यही टकराव की वजह है।

हालांकि विधानसभा अध्यक्ष के इस स्टैंड से अधिकांश विधायक खुश हैं जो सवालों के सहारे अपने क्षेत्र का विकास चाहते हैं, और यही वजह है कि मैं पहली बार देख रहा हूं कि मुख्य सचिवालय से लेकर प्रखंड स्तर तक और पुलिस मुख्यालय से लेकर थाना स्तर तक देर रात तक विधानसभा के सवालों का जवाब तैयार करने में अधिकारी लगा हुआ है।

इतना ही नहीं मंत्री भी देर शाम तक अपने दफ्तर में बैठ कर सवालों के बारे में जानकारी लेते रहते हैं साथ ही जवाब में मंत्री जी फंसे नहीं इसके लिए अधिकारियों को सख्त निर्देश दिया गया है कि सवालों का स्पष्ट जवाब दे ।

साथ ही जिस अधिकारी के जवाब में स्पष्टता नहीं रहेगी वो अधिकारी नपेंगे ये खौफ वर्षो बाद अधिकारियों में देखा जा रहा है औऱ यही वजह है कि सारा विभाग ऊपर से नीचे तक एलर्ट मुद्रा में है कि कही कार्रवाई ना हो जाये ।

ये स्थिति तो लोकतंत्र के सेहत के लिए अच्छा ही है ना भले ही अध्यक्ष का आवाज मधुर हो या ना हो क्यों कि सदन के सवालों के सहारे ही विपंक्ष सरकार पर पांच वर्षो तक लगाम लगा कर रखता है ।उसका हथियार सवाल ही हा ना स्थिति तो यह हो गयी है कि सरकार से ज्यादा तल्ख सवाल सत्ता पक्ष के विधायक करने लगे हैं ।

एक भतार के दू लुगाई- बिहार में चुनाव में भाजपा “भतार” है और जदयू- लोजपा उसकी लुगाई

बिहार के चुनाव में एनडीए गठबंधन को अगर एक लाइन में समझना हो तो इस से बेहतर लाइन नहीं हो सकती है – एक भतार के दू लुगाई।

आप कह रहे होंगे ई क्या बक रहे हो बे? यहां बात राजनीति की हो रही है और तुम परिवारिक मैटर डिस्कस कर रहे हो? तो भईया बिहार में इस बार चुनाव में इस नए राजनीतिक सिद्धांत का जन्म हुआ है।

भाजपा का लोजपा और जदयू दोनों से गठबंधन है। दोनों पार्टी बिहार के चुनावी मैदान में है और वो भी एक दूसरे के खिलाफ। चुनाव में इनकी लड़ाई ठीक वैसे ही होगी जैसे दो सौतन की होती है।

भाजपा एक को दिल्ली वाले घर में रखी है तो दूसरे को पटना में। फिलहाल बिहार चुनाव और मौके के नज़ाकत को देखते हुए भाजपा का झुकाव जदयू के तरफ है मगर लोजपा को तलाक का पेपर भेजा नहीं है। उधर लोजपा भी ‘ भतार’ को खुश करने और उसके करीब आने की पूरी कोशिश कर रही है।

अरे भईया समाज में भयंकर पितृसत्ता कायम है – यहां शादी बचाने कि जिम्मेदारी लुगाई की ही होती है। लोजपा हो या जदयू – चुनाव में अच्छा प्रदर्शन की तो उसका क्रेडिट भाजपा को जाएगा और अगर हार गई तो इन दोनों की ही किस्मत फूटी थी।

सबके सामने भाजपा जदयू का हाथ पकड़कर अपने प्रेम का इज़हार (प्रेस वार्ता) बार – बार कर रहा है और जदयू को खुश करने के लिए फेसबुक पर लोजपा को साथ वाला सेल्फी (चुनाव प्रचार में मोदी जी का फोटो) डालने से मना भी किया है और अगर लोजपा अपने जिद पर अड़ी रही तो कानूनी करवाई करने का भी धमकी दिया है।

हालांकि जदयू को भाजपा के बेवफ़ाई का हमेशा डर बना हुआ है। लोजपा के साथ केंद्र में सगाई और राज्य में लड़ाई वाली बात उसे पच नहीं रहा और अन्दर ही अन्दर खाए जा रही है।

देखना दिलचस्प होगा कि लोजपा खुद को चुनाव में साबित कर के फिर से भाजपा के करीब आ पाएगी? या फिर से नीतीश कुमार अपने अदाओं से भाजपा को अपने बस में कर लेगी।

इस बार का चुनाव मजेदार है न??

– अविनाश कुमार (लेखक aapnabihar.com के संपादक हैं)

Industry in Bihar: कोरोना काल में बदहाल हुए डुमरांव के सिंधोरा कारीगर

बीते कुछ दिनों से #industryinbihar चर्चा का विषय बना हुआ है। मजदूरों की घर वापसी के कारण बिहार सरकार के सामने उनके रोजगार का मुद्दा बहुत बड़ा चिंता का विषय दिख रहा है। इधर बहुत से लोग इस बात का भी सुझाव दे रहे हैं कि बिहार में बंद पड़े हुए कल- कारखानों को पुनः खुलवाया जाए ताकि राज्य के श्रमिकों को रोजगार मिल सके। ट्विटर पर #industryinbihar ट्रेंड होते ही हमें पता चलता है कि सरकार के अनदेखी के कारण बिहार के कई फैक्टरियां बंद हो गई है नतीजन कई मजदूर बेरोजगारी का शिकार हो गए हैं।

सिंधोरा से जुडी बचपन की यादें

जब बात इंडस्ट्री इन बिहार की चलती है तो हमें छोटे- बड़े सारे कारखानों का स्मरण करना होगा जो कि बन्द हो चुके हैं या बंद होने की कगार पर है। इसी सिलसिले में मुझे अपने छोटे से नगर डुमरांव के सिंधोरा उद्योग का स्मरण हो आया।

बचपन में हम जब काली मां के दर्शन करने नीमटोला जाते थे तब हम कुछ घरों में सिंधोरा बनाने के काम करने वाले को देखते थे।  हमारी उत्सुक निगाहें लाल- पीले सिंधोरो पर रुक जाती थी। हमारा काली मां के दर्शन से ज्यादा ध्यान सिंधोरा कारीगर पर  होता था। बाबा ( दादा जी) से जिद कर हम घंटो उन कारीगरों के यहां बैठ जाया करते थे। जब भी बाबा डुमरांव के बारे में बताते थे तो डुमरांव के राजा कमल सिंघ के साथ साथ डुमरांव को मशहूर शहनाई वादक बिस्मिल्लाह खां की जन्मभूमि भी बताते थे। बाबा यह कभी भी बताना नहीं भूलते थे कि डुमरांव को सिंधोरा का शहर भी कहा जाता है। जब यह बात मै अपने दोस्तों को बताती थी कि डुमरांव को सिंधोरा का शहर कहा जाता हैं तो वह जीके (G.K) के इस तथ्य को जानने में बिल्कुल भी उत्सुक दिखाई नहीं देते थे उल्टे मुझसे ही पूछते थे कि कौन सी सामान्य ज्ञान के किताब में लिखा है? मैंने तो कहीं नहीं पढ़ा।

डुमरांव बिहार के बक्सर जिले का एक छोटा सा नगर है। डुमरांव के सिंधोरा उद्योग की बात किसी बहुत बड़े जीके के किताब का हिस्सा तो नहीं है, नाही यूपीएससी में पूछा जाने वाला महत्वपूर्ण सवाल। लेकिन उद्योग जगत के लिए हर छोटे- बड़े उद्योग महत्वपूर्ण होने चाहिए।

कोरोना दौर में बिहार के डुमरांव शहर में सिंधोरा कारीगरों की मालि हालत ठीक नहीं है। आपको बता दें कि बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और  पश्चिम बंगाल को मिलाकर सिंधोरो का हस्त निर्मित केंद्र सिर्फ बिहार का नगर डुमरांव है। यहां के हस्त निर्मित सिंधोरा बंगाल, उत्तरप्रदेश, झारखंड भी जाते हैं। सिंधोरा कारीगर मुख्यरूप से खरवार समुदाय से हैं।


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मुगलसराय में मशीन आ जाने के वजह से हस्त निर्मित सिंधोरो के व्यसाय में कमी आ गई और इस परंपरागत व्यवसाय में उचित लाभ ना मिलने के वज़ह से कई परिवार इस पेशे को छोड़ कर अन्य पेशो में लग गए।

आज भी इस पुश्तैनी पेशे से डुमरांव के कई परिवार जुड़े हुए हैं। लेकिन लाकडाउन होने के वजह से सिंधोरा कारोबार ठप पड़ गया है। इस महामारी के दौर में शादी- ब्याह टल जाने के कारण  सिंधोरा के मांग में भारी गिरावट आई है या तो कहिए न के बराबर है। कारोबार ठप होने के कारण कारीगरों के बीच भूखमरी की स्थिति पैदा हो गई है।

Sindhora art by Tanisha

कलाकार: तनीषा

सिंधोरा कारीगरों ने सरकार से नाराजगी जताते हुए कहा है कि बिहार सरकार इस लघु उद्योग पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं देती हैं, और जब से कोरोना की मार पड़ी है उनकी सुध तक नहीं ली गई हैं।

सुहाग की निशानी बनाने वाले कारीगर आज सरकार के इस रवैए से दुःखी है। सिंधोरा मे गहरे रंग भरने वाले कारीगरों कि जिंदगी बेरंग सी प्रतीत होती हैं। वह बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र लिखने का भी सोच रहे हैं ताकि उनकी स्थिति का जायजा लिया जाए और उचित मदद पहुंचाया जाए।

सिंधोरा उद्योग की तरह बिहार के कई लघु उद्योग अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। सरकार की बेशुधगी के वजह से कई कारीगर बेहद गरीबी के शिकार हो गए हैं। आपको बता दें कि ऐसे कई लघु उद्योग है जैसे बांस से बनी हुई वस्तुएं,  पत्थर से निर्मित सिलवट- लोढ़ा जिनके कारीगर समाज के पिछड़े समुदाय से हैं। लेकिन इनके शिल्प कला को नाही पहचान मिली है नाही आर्थिक सहायता नतीजन हजारों कारीगर पुश्तैनी पेशे को छोड़ शहरों को प्रवास कर रहे हैं।

नीतीश कुमार से अनुरोध है कि बिहार का एकमात्र सिंधोरा केंद्र पर ध्यान दिया जाए और इस शिल्प कला को बचाया जाए। इनके कारीगरों को आर्थिक सहायता प्रदान करवाई जाए।

सिंधोरा उद्योग जैसे अन्य कई लघु उद्योग है जो अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं और इनके कारीगर आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं, इन छोटे उद्योगों को सरकारी प्रोत्साहन एवं सहायता की आवश्यकता है। मुझे उम्मीद है कि सरकार इन समस्याओं पर जरूर ध्यान देगी और इन लघु उद्योगों को मरने नहीं देगी।

 जानिए सिंधोरा का महत्व

हिन्दू समाज में सिंदूर का बहुत महत्व है। स्त्री के माथे पर सिंदूर के माध्यम से स्त्री के वैवाहिक स्थिति आसानी से पता लगाया जा सकता है। विवाह के समय पुरुष स्त्री के मांग में सिन्दूर भर कर उसे अपनी पत्नी बना लेता है। विवाह के समय सिन्दूर वर पक्ष के तरफ से वधू को दिया जाता है। बिहार, पूर्वी उत्तप्रदेश, झारखंड जैसे राज्यो में सिन्दूर सिंधोरा में रखकर वधू को दिया जाता है। सिंधोरा को सिन्दूर रखने का पात्र भी कह सकते हैं। बिहार एवम् अन्य राज्य में स्त्रियां विवाह से लेकर मरने समय तक सिंधोरा को संभाल कर रखती हैं जिसे वह सुहाग का प्रतीक मानती है।

सिंधोरा आम की लकड़ी से बनाया जाता है। इसकी सज्जा हेतु प्राकृतिक रंग व जड़ी कढ़ाई का इस्तेमाल किया जाता है। इसके मुख्य कारीगर सोनी देवी, उषा देवी, देवांती देवी एवम् अशोक खरवार, सतीश खरवार, अनिल खरवार इत्यादि है।

ऋतु –  बिहार के डुमरांव नगर से है।

इतिहास विभाग, शोधार्थी, दिल्ली विश्वविद्यालय


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Aapna Bihar Corona Update

Lockdown 4: जानिए आज से लॉकडाउन चार में बिहार में क्या-क्या छूट मिलेगी?

17 मई को लॉकडाउन तीन समाप्त होने के बाद गृह मंत्रालय ने आज से लॉकडाउन चार की घोषणा कर दी। लॉकडाउन 4 31 मई तक लगाई गई है। इसबार गृह मंत्रालय ने लॉकडाउन में छूट सम्बन्धी फैसले लेने का अधिकार राज्य सरकारोंको दे दी है। खास बात यह है कि इसबार रेड जोन, ग्रीन जोन और ऑरेंज जोन के अलावा कंटेनमेंट जोन और बफर जोन को भी शामिल किया गया है।

अगर बिहार की बात करे तो इस लॉकडाउन में भी बिहार में लोगों को कोई छूट नहीं मिलेगी। बिहार के सभी 38 जिलों में कोरोना संक्रमण फैल चुका है और राज्य में एक भी ग्रीन जोन नहीं है।

राज्य सरकार ने 5 जिलों को रेड जोन में रखा है और बाकी 33 जिलों को ऑरेंज जोन में रखा गया है।

बिहार के रेड जोन वाले जिलें – 

पटना, मुंगेर, रोहतास, बक्सर और गया।

बिहार के ऑरेंज जोन वाले जिलें –

नालंदा, कैमूर, सिवान, गोपलगंज, भोजपुर, बेगूसराय, औरंगाबाद, मधुबनी, पूर्वी चंपारण, भागलपुर, अरवल, सारण, नवादा, लखीसराय, बांका, वैशाली, दरभंगा, जहानाबाद, मधेपुरा, पूर्णिया, शेखपुरा, अररिया, जमुई, कटिहार, खगड़िया, किशनगंज, मुजफ्फरपुर, पश्चिम चंपारण, सहरसा, समस्तीपुर शिवहर, सीतामढ़ी और सुपौल।

पहले जैसी ही रहेगी पाबंदी

बिहार में कोरोना के बढ़ते संक्रमण के कारण राज्य सरकार ने लॉकडाउन में कोई ढील नहीं देने का फैसला किया है।

  • सभी कॉलेज और स्कूल बंद रहेंगे
  • ऑनलाइन पढ़ाई को प्रोत्साहित किया जायेगा
  • बसों के संचालन पर भी रोक लगी रहेगी
  • कृषि कार्य सभी जोन में किया जा सकता है
  • मॉल , सिनेमा हॉल, रेस्टुरेंट, जिम आदि बंद ही रहेगी
  • कंटेनमेंट जोन में किसी गतिविधि की इजाजत नहीं रहेगी।
  • सभी को मास्क लगाकर ही घर से निकलना होगा
  • शाम 7 बजे से सुबह सात बजे तक किसी को भी घर से निकलने की अनुमति नहीं। विशेष परिस्थिति के लिए पास लेना होगा।
  • किसी भी तरह के राजनीतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक , आदि के आयोजन प्रतिबंधित है।
  • सभी धर्म के धार्मिक स्थान जैसे मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा , आदि सब बंद रहेगी ।

ऑरेंज जोन में जारी रहेगी कुछ छूट

ऑरेंज जोन में रेड जोन से कुछ अतिरिक्त छूट दी गयी है। ऑरेंज जोन में उद्योगों Lको चालू किया जा सकता है। ई-कॉमर्स कंपनियां अपना सामान डिलीवर कर सकती है। इस जोन में दो पहिया और चार पहिया वाहन चलाने की छूट दी गयी है। अब कार और मोटरसाइकिलपर लोगों के बैठने के सख्त दिशानिर्देश वापस ले लिए गए हैं, यानी कार से अब दो से अधिक लोग सफर कर सकते हैं। इस जोन में बसों के परिचालन का भी अनुमति दिया गया है| राज्योंके सहमती से अंतरराज्यीय बसें भी चलाई जा सकती है।

बाकी 33 फीसदी स्टाफ के साथ निजी कार्यालय खुलेंगे, मोबाइल, इलेक्टिकल, प्लम्बर, कारपेंटर इत्यादि की दुकानें खुलेगी। कुरियर व पोस्टल सेवाएं जारी रहेगी।

चौकीदार से उठक-बैठक कराने वाले कृषि अधिकारी जांच में दोषी साबित, हुए निलंबित

बिहार के अररिया जिला में एक चौकीदार से सड़क पर उठक-बैठक कराने वाले जिला कृषि पदाधिकारी मनोज कुमार अररिया डीएम-एसपी के जांच में दोषी पाये गायें हैं| जांच के बाद डीएओ के खिलाफ केस भी दर्ज किया गया था, जिसमें राष्ट्रीय आपदा अधिनियम के उल्लंघन का आरोप लगाया गया है। मगर कुछ दिन पहले इस अधिकारी के प्रमोशन दिए जाने के बाद सरकार की बहुत किरकिरी हुई थी|

जनता का विरोध का सामना कर रहे बिहार सरकार को आख़िरकार इस रसूखदार अधिकारी  पर करवाई करना ही पड़ा| इस संबंध में कृषि विभाग ने मंगलवार को आरोपी कृषि अधिकारी मनोज कुमार के निलंबन की अधिसूचना जारी की है।

कृषि विभाग के उप सचिव राधाकांत ने मंगलवार को आदेश जारी करते हुए कहा कि अधिकारी का करतूत स्वेच्छाचारिता, आपदा अधिनियम के विरुद्ध आचरण और सरकारी सेवक आचार नियमावली 1976 के नियम 3 का उल्लंघन का मामला है। अधिकारी जांच रिपोर्ट में दोषी पाए गए हैं। और उन पर इस मामले में प्राथमिकी भी दर्ज की जा चुकी है।

ज्ञात हो कि कुछ दिनों पहले अपना बिहार समेत अन्य सोशल मिडिया प्लेटफार्म से अररिया का एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें जिला कृषि पदाधिकारी मनोज कुमार को पुलिस विभाग में चौकीदार गणेश तत्मा को सजा के तौर पर उठक-बैठक करवाते देखा गया था| जिसके बाद हर तरफ उसकी निदा हुई थी| खुद नीतीश कुमार द्वारा इसके संज्ञान लेने की खबर आई थी|  बिहार पुलिस के डीजीपी गुप्तेश्वर पाण्डेय ने तत्काल तौर पर एक एएसआई गोविंद सिंह को सस्पेंड कर दिया था|

Source: Dainik Bhaskar

लाख मैरिज हॉल बनवा लीजिए, बरियाती ठहरने का जो मजा सरकारी स्कूल में है ऊ कहीं नहीं

घर के पीछे सरकारी मिडल स्कूल है. हमारा भी बालकाण्ड इसी स्कूल में बीता है. आज स्कूल में बाराती आया है कहीं से. आइए आपको ले चलते हैं बाराती का दर्शन करवाने.

बिहार का एगो खास बात है आप चाहे लाख होटल, मैरिज हॉल बनवा लीजिए, बरियाती ठहरने का जो मजा सरकारी स्कूल में है ऊ कहीं नहीं.

पोआर बिछा के दरी के ऊपर टेंट हाउस वाला उजरा गुलाबजामुन जैसा तकिया फेंका-फेंकी में अलग लेवल का आनन्द आता है. खिड़की से सन्न-सन्न पछिया बह रहा है आ खिड़की का एगो पल्ला गायब है. दीवार से पीठ लगाकर बैठिए त दीवार का आधा चूना झड़ जाता है. बाहर लड़के का फूफा लड़की के चच्चा से अलगे लड़ रहा है “बताइए ईहाँ दीशा-पैखाना का कोई बेवस्थे नहीं है.. हमारा लड़का कहाँ जाएगा.

लाइट का भी कोनो ठीक जोगाड़ नहीं देख रहे हैं. ई घुप्प अन्हार में हम आज अर्थिंग पर मूत आते. बताइए हमारा तो जीवने अन्हार हो जाता. अरे पैसा का कमी था तो बताते हमही आकर सब बेवस्था कर जाते.”

स्कूल के गेट पर रिमझिम बैंड पार्टी का रंगरूट सब फिरंगी आर्मी जैसा ड्रेस पहिने ढोल-ताशा बजाए बेहाल पड़ा है. पिंपनी वाला अपना फेफड़ा का पूरा दम झोंक दे रहा है. आ स्टार गायक हाथ में आधा घण्टा से माइक लेकर खाली “रेडी वन टू थ्री, वन टू थ्री” कर रहा है. गाना शुरू किया “अरे द्वारपालों कन्हैया से कह दो दर पे सुदामा गरीब आ गया है.” उधर से लड़के का बाप गला फाड़ा “साला ताड़ी पी लिया है रस्ता में, अचार चटाओ इसको. अलबला गया है. कल पैसा काटेंगे तब बुझाएगा ससुरा के..” गायक होश में आ गया. अब पंद्रह मिनट से “झिमी झिमी झिमी आजा आजा आजा” पर इसका कैसेट अटक गया है.

उधर लड़का का दोस्त सब ललका ब्लेजर पर गोल्डस्टार का जूता पहीन के विधायक के तरह भौकाल में टहल रहा है. ई दोस्त सब के नज़र में जहां ऊ बरियाती आया है ऊ दुनिया का सबसे बेकार गांव है. जहां सुपर मार्केट नहीं है. रेस्टोरेंट नहीं है. एटीएम नहीं है. लैम्बोर्गिनी का शोरूमो नहीं है. क्लासिक का सिगरेट नहीं मिला है तो गोल्ड फ्लेक पीना पड़ रहा है. घरवैया सब इनका सब हीरोपनी समझ रहा है. लेकिन आडवाणी लेवल का बर्दाश्त किया हुआ है. एक रात का तो बात है विदा करो इनको.

अब बारात दरवाजे की तरफ बढ़ रहा है. बाराती सब में माइकल जैक्सन का भूत आ चुका है. गांव में चाची-काकी-दाई सब गाड़ी में झांक-झांक के लड़का को देख रही हैं. पूरा हंसी-मजाक चल रहा है..

– ऐ चाची, लड़का का उमर थोड़ा ज्यादा नहीं बुझा रहा है..!

– रे बजरखसुआ, ऊ लड़का का बाप है. लड़का पीछे बैठा है. तुम बूढ़वा से काहे मजाक करता है.!

– ऐ चाची ई मिथिला है. ईहाँ मजाक से तो साक्षात प्रभु श्री रामचंद्र नहीं बच पाए. ई बिचारा तो रमलोचना है.. का बाबा आप काहे काजर लगा लिए हैं, बियाह त बेटवा का है ना.!

– अमन आकाश 

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लिट्टी-चोखा मेला: माई बिसरी बाबू बिसरी, ना बिसरी बक्सर के लिट्टी चोखा

“माई बिसरी बाबू बिसरी,ना बिसरी बक्सर के लिट्टी चोखा।”

ये मात्र एक लोकोक्ति नहीं एक परंपरा है जिसका निर्वाह त्रेता युग से अब तक बद्स्तुर जारी है। जी हां मैं बात कर रही हूं। बक्सर के विश्वप्रसिद्ध लिट्टी चोखा के मेला की। जिसके बिना बिहार की अस्मिता अधूरी है। बिहार का इतिहास हीं नहीं रामयण की गाथा का अपमान है।

विश्वामित्र के यज्ञ को सफल कराने के दौरान जिस पंचकोसी यात्रा को मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने पूरा किया, उसकी जिवंतता आज भी पंचकोसी मेले में साक्षात् हो जाती है। लोगों की आस्था विश्वास हीं नहीं एक आत्मियता सी है इस परंपरा से जो आज भी लोगों को इसे भूलने नहीं देती। तभी तो आधुनिकता और तकनीक वाले इस फास्ट जीवन में लोग गोइठे पर लिट्टी चोखा पका के अकेले हिं नहीं अपने बंधु, बांधव, हित मित्र और पड़ोसियों के साथ इसका आनंद लेते हैं।

मात्र बक्सर हीं नहीं समस्त बिहार से लोग इस परपंरा को निबाहने आते हैं। निबाहना शब्द इसके लिए तो तुच्छ लग रहा है,लोग इसे इंज्वाय करते हैं। अगर यकीन ना हो तो २१ तारिख को बक्सर आकर देखिए।

हर तरफ धुआं हीं धुआं, लोगों का हुजूम,हर जगह बैंगन और आलू के सजे दुकान और और यदि उपले की जरूरत हो तो उसके लिए भी आज के दिन यहां मसक्कत करने की जरूरत नहीं।

वैसे तो बिहार का लिट्टी चोखा वर्ल्ड फेमस है। और बात जब हम इस महीने की लिट्टी चोखा की कर रहें तो इसकी महिमा तो खैर भगवान श्रीराम से हीं जुड़ी हुई है। इस पंचकोसी यात्रा की गाथा भगवान श्रीराम से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि महर्षि विश्वामित्र ने जब यज्ञ की विघ्न बाधा को दूर करने के लिए राम को यहां बुलाया था उसी समय उन्होंने पंचकोसी की यात्रा की। और तब से अब तक यह परंपरा वैसे हीं इस भूमि पर काबिज है।

अगहन मास की पंचमी तिथि से पांच दिन तक चलने वाले इस मेले की शुरुआत होती है बक्सर महज़ कुछ किलोमीटर की दूरी अहिरौली से। अहिरौली का पौराणिक संबंध माता अहिल्या से है जिसे श्री राम द्वारा श्रापमुक्त कर पूर्ववत जीवन कृपा प्राप्त हुई। इसके बाद नदांव जिसकी पौराणिक कथा नारद मुनि से ,नुवांव के बाद तीसरा पड़ाव भभुवर और अंतिम पड़ाव फिर बक्सर था।

जहां भगवान श्रीराम ने लिट्टी चोखा बना कर ग्रहण किया था। वैसे ही लोग आज भी पंचकोसी यात्रा का प्रांरभ अहिरौली से कर अंत बक्सर से करते हैं। यह महज मेला परंपरा और धार्मिक आस्था हीं नहीं बल्कि क ई विशेषताओं के साथ बिहारी अस्मिता की अपनी अनूठी छाप छोड़ता है।

बिहारी व्यंजनों की खासियत: इस मेले विभिन्न जगहों पर इतिहास से जुड़े बिहारी व्यंजनों की खासियत होती है , जैसे बरी फुलौरी,चुडा दही, खिचड़ी, सत्तू मूली और बिहारी टेस्ट लिट्टी चोखा। महिलाओं की। खास भागीदारी: वैसे तो महिलाओं खास कर ग्रामीण परिवेश से जुड़ी महिलाओं को। घरकी चौहर दीवारी से निकलने की इजाजत नहीं। लेकिन बात जब बक्सर के लिट्टी चोखा की हो तो बिहारी महिलाओं ने कभी इसे नि भूलने वाली बात साबित कर बंधनों से खुद को मुक्त कर अकेले ही नहीं समूह में इस आजादी को सदियों से जीती रहीं हैं।

– लेखिका: नंदिनी मिश्र (लेखिका बिहार के एक सरकारी स्कूल में शिक्षिका हैं) 

Nitish Kumar, Bill Gates, Bill and Millinda Gates Foundation

जानिए माइक्रोसॉफ्ट के सह-फाउंडर बिल गेट्स ने क्यों किया बिहार सरकार की तारीफ?

बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के सह अध्यक्ष बिल गेट्स भारत दौरे पर आये हुए हैं| इसी दौरान हाल ही वो बिहार भी आये थे और उनके संस्था द्वारा किये जा रहे काम का जायजा लिया| रविवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाकात के बाद उन्होंने बिहार की जमकर तारीफ की|

उन्होंने कहा कि कहा कि पिछले 20 वर्षों में बहुत ही कम स्थानों पर बिहार की तुलना में गरीबी और बीमारी के खिलाफ अधिक प्रगति हुई है।

गेट्स ने कहा कि जेंडर डैशबोर्ड को क्रियान्वानित करने में राज्य का प्रयास सराहनीय है। बिहार में जन्म लेने वाले एक शिशु में अपने 5वें जन्मदिन तक पहुंचने की संभावना, दो दशक या उसके पहले जन्मी अपनी मां की तुलना में दो गुने से अधिक है। अब हमें यह सुनिश्चित करना है कि सभी बच्चे स्वस्थ होकर अच्छी शिक्षा प्राप्त करने में सक्षम हों। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन राज्य सरकार के साथ मिल कर काम करने के लिए प्रतिबद्ध है।

Image result for bill gates in bihar

इसके साथ ही जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभाव का मुकाबला करने और पृथ्वी पर पारिस्थितिक संतुलन को बहाल करने के लिए मुख्यमंत्री द्वारा संचालित कार्यक्रम ‘जल-जीवन-हरियाली’ के बारे में बताया गया। बैठक के दौरान ‘रूटीन इमोनाइजेशन’ पर आधारित एक स्मारिका का भी विमोचन किया गया। मुख्यमंत्री ने गेट्स को अंगवस्त्र और प्रतीक चिन्ह भेंटकर सम्मानित किया।

मुख्यमंत्री ने कहा कि हम लोक स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार, सामुदायिक स्तर पर जन-व्यवहार परिवर्तन, स्वास्थ्य, पोषण एवं कृषि जैसे क्षेत्रों में बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन की सहभागिता से बहुत खुश हैं। बिहार स्वास्थ्य, समाज कल्याण, कृषि, महिला सशक्तिकरण और ग्रामीण विकास जैसे विभागों में स्थायी प्रणालियों को और मजबूत करने के लिए गेट्स फाउंडेशन के साथ साझेदारी जारी रखने को इच्छुक हैं।

वशिष्ठ नारायण सिंह, गणितज्ञ, भारत, बिहार, कैलिफोर्निया, नासा, आइंस्टीन, शिजोफ्रेनिया, जॉन नैश

नीतीश सरकार ने किया नजरअंदाज़, लालू यादव ने करवाया था इलाज़

बात 1994 की है। लालू प्रसाद यादव उस समय बिहार के मुख्यमंत्री थे। उन्हें जानकारी मिली कि देश दुनिया में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने वाले महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह का पता लग गया है। छपरा के डोरीगंज बाजार में उनके ही गाँव के सुदामा राम और कमलेश राम को कचरे के ढ़ेर पर विक्षिप्त हालत में वशिष्ठ बाबू मिले थे।

लालू यादव की जिज्ञासा और संवेदनशीलता लालू जी को वशिष्ठ बाबू के घर तक खींचकर ले गई। लालू जी वशिष्ठ बाबू के घर गए उनसे मिलने। वो आंगन में खाट पर बैठे थे| वहीं वशिष्ठ बाबू चौकी पर पेट के बल लेटे हुए थे।

लालू प्रसाद को एक महान विभूति की ऐसी हालत देखी नहीं गई। उन्होंने घोषणा की कि चाहे बिहार को बंधक ही क्यों न रखना पड़े, इनका इलाज विदेश तक कराएंगे।

लालू प्रसाद ने 1994 में ही वशिष्ठ बाबू के बेहतर इलाज के लिए बंगलुरु के निमहंस अस्पताल में सरकारी खर्चे पर भर्ती कराया। 1997 तक उनका इलाज चला। जब स्थिति में सुधार हुई तो वे अपने गाँव बसंतपुर लौट आये।

तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव ने वशिष्ठ बाबू एवं उनके परिजनों की माली हालत सुधारने हेतु उनके भाई-भतीजे को सरकारी नौकरी दी। इतना ही नहीं जिन दो भाइयों कमलेश राम जी तथा सुदामा राम जी ने वशिष्ठ बाबू को विक्षिप्त हालत में खोजा था उन्हें भी लालू ने आपूर्ति विभाग में नौकरी दे दी। आज भी वशिष्ठ बाबू के भाई-भतीजा सहित कुल 5 लोग विभिन्न सरकारी विभागों में नौकरी कर रहे हैं।

आज खुद को सुशासन का प्रतीक कहने वाली नीतीश सरकार जब संवेदनहीनता के आरोप में घिरी है, तब बरबस ही लालू यादव की यादें ताजा हो आई।

विशकर्मा पूजा, बिहार, bihar news, bihar

बिसकरमा पूजा के दिन साइकिल के इसपोक से लेकर घंटी तक को सरेस पेपर से चमका देते थे..

आज से दस-बारह साल पहीले बिसकरमा पूजा के भोरे-भोरे उठ के सबसे पहीले अपना साइकिल दूरा पर निकालते थे. एक घंटा तक उसके रीम को सरेस पेपर से रगड़-रगड़ कर जंग छोड़ाते थे. साइकिल के इसपोक से लेकर घंटी तक को चमका देते थे. अपने पसीने-पसीने होअल रहते थे लेकिन घर के सब लोहा-लक्कड़ को पोछ-पाछ के ललका चंदन लगा देते थे. आटा आ चीनी वाला परसादियो बाँट देते थे. हमारे लिए बिसकरमा पूजा का ईहे मतलब था.

बिसकरमा पूजा का माने कि आज मशीन सब को आराम देना है. भोरे साइकिल में ताला मार देते थे, आज कोई साइकिल नहीं छूएगा चाहे केतनो एमरजेंसी हो जाए. तहिया आदमी मशीन सब को चलाता था..

आज भोर में 8 बजे नींद खुला है. एक घंटा तक बिछौना पर मोबाइल लेकर पड़े हुए थे. पिताजी के दस रेड़ी पर नौ बजे उठे हैं, मोटरसाइकिल उठाएं हैं आ चल दिए हैं गरेज में धोआने. गरेज वाला भी किलनिक प्लस शेम्पू लगाकर पाइप के छुरछुरी से गाड़ी धो दिया है. हम दूरे से उसको डायरेक्शन दे रहे थे

“ए भईया, सफाई हाथ मत मारिए”, “तनी मोडगार्ड के नीचो में पानी का प्रेशर दीजिए”, “भक्क मरदे, रीम को तो पोछबे नहीं किए”..

पांच मिनट में गाड़ी धोआ गया, इस्टाट किए आ दू मिनट में घरे आकर फेर मोबाइल लेकर पड़ गए. इंतजारी में हैं कि लाइट आएगा ता मोटर चालू करके नहा लेंगे आ वाशिंग मशीन में कपड़ा धोआइए जाएगा..

आज मशीन आदमी को चला रहा है.. मशीन धड़ाधड़ चल रहा है, आदमी सुस्ता रहा है.. आदमी के शरीर में आ बुद्धि में जंग लग रहा है.. हम इंतज़ार में हैं कि कहिया ऊ बिसकरमा पूजा आएगा जहिया भोरे उठ कर सरेस पेपर से अपना जंग छोड़ाएंगे.. मशीन को आराम देंगे आ अप्पन हाथ-गोर आ दिमाग का इस्तेमाल करेंगे..

जय बाबा विश्वकर्मा..

– अमन आकाश

CBSE 10th Result 2019: पटना के प्रियांशु राज 99 फीसद अंकों के साथ बने बिहार टॉपर

सीबीएसई की 12वीं के रिजल्‍ट के बाद अब 10वीं का रिजल्‍ट भी आ गया है। पटना के डीएवी पब्लिक स्‍कूल (बोर्ड कालोनी) के छात्र प्रियांशु राज 99 फीसद अंकों के साथ बिहार टॉपर बना है। रिजल्‍ट को लेकर परीक्षार्थियों के बीच खुशी की लहर है। परीक्षार्थी अपना रिजल्‍ट www.results.nic.in, www.cbseresults.nic.in, www.cbse.nic.in पर देख सकते हैं।

करीब 18 लाख स्टूडेंट्स को CBSE Class 10 Result का इंतजार था। कुल 91.10 फीसदी स्टूडेंट्स पास हुए हैं। रिजल्ट पिछली बार से 4.40 % अच्छा रहा। पिछली बार 86.70 फीसदी ही पास हुए थे। तिरुवनंतपुरम रीजन ने 12वीं की तरह 10वीं में भी टॉप किया है। तिरुवनंतपुरम का रिजल्ट 99.85 फीसदी रहा। तो वही इसबार 13 स्टूडेंट्स ने किया टॉप है, सबके 499 मार्क्स हैं|

12वीं के मार्क्‍स वेरिफिकेशन के लिए ऑनलाइन आवेदन शुरू

इस बीच सीबीएसई 12वीं परीक्षा में मार्क्‍स वेरिफिकेशन के लिए ऑनलाइन आवेदन ले रहा है। इसके लिए परीक्षार्थियों से 500 रुपये प्रति विषय का शुल्क लिया जा रहा है। परीक्षार्थी उत्तर पुस्तिका की फोटोकॉपी के लिए 20 और 21 मई को ऑनलाइन आवेदन कर सकेंगे। इसके लिए परीक्षार्थियों को प्रति विषय 700 रुपये का शुल्क देना होगा। बाद में परीक्षार्थी 24 व 25 मई को दोबारा मूल्यांकन के लिए ऑनलाइन आवेदन कर सकेंगे। इसमें उन्हें 100 रुपये प्रति प्रश्न देना होगा। यदि पूर्व के मूल्यांकन में किसी प्रकार की त्रुटि व गलती पाई गई तो संबंधित परीक्षकों पर कार्रवाई की जाएगी।
सीबीएसई के सिटी को-ऑर्डिनेटर डॉ. राजीव रंजन सिन्हा ने बताया कि वेरिफिकेशन के दौरान अंक में किसी तरह का परिवर्तन होने पर परीक्षार्थियों को क्षेत्रीय कार्यालय से पत्र भेजकर सूचना दी जाएगी।

बिहार के मुंगेर जिले की बेटी बनी अमेरिका की सीनेटर

अक्सर कहा जाता है ‘एक बिहारी सब पर भारी’. कुछ ऐसा ही कर दिखाया है बिहार की बेटी मोना दास ने. बिहार मूल की मोना अपने पहले ही प्रयास में अमेरिका में वाशिंगटन राज्य के 47वें जिले की सीनेटर चुनी गई हैं.
 
इस मौके की ख़ास बात यह थी की  डेमोक्रेटिक पार्टी की सदस्य मोना ने शपथ ग्रहण समारोह के दौरान अमेरिकी सीनेट में हिंदू धर्मग्रंथ गीता के साथ अपने पद की शपथ ली. मोना डेमोक्रेटिक पार्टी कि सदस्य हैं और पहली बार चुनाव प्रत्याशी के रूप में खड़ी हुई थी.
 
 
बिहार के दरियापुर गाँव से निकली अमेरिका की सीनेट
 
 
मोना दस बिहार के मुंगेर ज़िले के हवेली खड़गपुर अनुमंडल के दरियापुर गाँव की रहने वाली हैं. उनके दादा डॉ. गिरीश्वर नारायण दास गोपालगंज जिले में सिविल सर्जन थे. उनके पिता सुबोध दास एक इंजीनियर हैं और सेंट लुईस एमओ में रहते हैं. मोना का परिवार अमेरिका चला गया जब महज़ उनकी उम्र आठ महीने की थी. मोना सिनसिनाटी यूनिवर्सिटी से मनोविज्ञान में ग्रेजुएट.
 
 
महिलाओं के लिए करेंगी काम
 
 
47 वर्षीय मोना दास ने हाथ में गीता के साथ 14 जनवरी को सीनेटर के रूप में शपथ ली, कहा उन्हें अपने वंश पर नाज़ है. उन्होंने सभी को मकर  संक्राति की बधाई दी और अपने भाषण की शुरुआत में कहा,
 
“नमस्कार और प्रणाम आप सबको … मकर संक्रांति की बधाई हो आप सबको”.
 
 
भारत मूल की मोना ने चुनाव मे ‘महिला कल्याण, सबका मान’ और ‘जय हिंद और भारत माता की जय’ का सन्देश दिया और अंततः सबका समर्थन प्राप्त कर अमरीका की सीनेट की सदस्य बनी. मोना ने अपने संदेश में  लड़कियों को शिक्षित करने की बात कही. महिला सीनेटर होने के नाते वो समाज के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियों को समझती है तथा उन्होंने लड़कियों को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करने का फैसला किया है. इस अवसर पर मोना ने राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी याद किया.
 
उन्होंने कहा, “जैसे महात्मा गांधी और वर्तमान महान और गतिशील नेता प्रधानमंत्री मोदी जी ने कहा, शिक्षा जीवन में लड़कियों के लिए सफलता की कुंजी है. एक लड़की को शिक्षित करके आपने एक पूरे परिवार और लगातार पीढ़ियों को शिक्षित किया है.”
 
 
वाइस चेयरमैन के रूप में करेंगी काम 
 
 
मोना दस ने अपने प्रतिद्वंद्वी और दो बार से निर्वाचित रिपब्लिकन पार्टी के सीनेटर जो फैन को हराया है. वह सीनेट हाउसिंग स्टैबिलिटी एंड अफोर्डेबिलिटी कमेटी की वाइस चेयरमैन के रूप में काम करेंगी. वह सीनेट परिवहन समिति, सीनेट वित्तीय संस्थानों, आर्थिक विकास और व्यापार समिति और सीनेट पर्यावरण, ऊर्जा और प्रौद्योगिकी समिति पर भी काम करेंगी.  इस सत्र में मोना का ध्यान पर्यावरण, रंग के समुदायों और महिलाओं के लिए समानता जैसे विषयों पर रहेगा.
 
मोना दास ने खुलकर अपने बिहार आने की बात का ज़िक्र किया है. उन्होंने कहा “मेरी इच्छा है कि मैं बिहार में दरियापुर में अपने पैतृक घर पर जाऊं और भारत के बाकी हिस्सों में घूमने जाऊं ताकि अपने मूल देश के बारे में अधिक से अधिक विविध संस्कृति के बारे में जान सकूं.”

शराबबंदी से बिहार को हुआ बहुत फायदा, नहीं हुआ राजस्व नुकसान| पूरे देश में शराबबंदी की उठी मांग

पिछले साल 5 अप्रैल को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राज्य में पूर्ण शराबबंदी की घोषणा की तो इस फैसले से असहमत लोगों ने हर स्तर पर इसका जमकर विरोध किया, वहीं फैसले के पक्षधर लोगों की भी धारणा थी कि इसका लागू हो पाना कठिन है। सशक्त शराब लॉबी ने हर संभव तरीके से इस फैसले का विरोध किया, इसके क्रियान्वयन की राह में कांटे बिछाए, हर स्तर के कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इसके बावजूद राज्य में अच्छे नतीजों और संकेतों के साथ पूर्ण शराबबंदी ने एक साल पूरा कर लिया। इसके पिछले साल भर के सफर पर नजर डालें तो इसका संदेश स्पष्ट है, विषय जन आकांक्षा के अनुरूप हो तथा इसके पीछे दृढ़ एवं ईमानदार राजनीतिक इच्छाशक्ति हो तो कुछ भी असंभव नहीं।

राज्य में घर के आंगन से लेकर चौक-चौराहे तक लड़ाई-झगड़े कम हुए हैं, मुख्यमंत्री का दावा है कि शराबमुक्त हुए लोगों की सेहत और खुशहाली वापस आ गई है। नशाजन्य अपराधों में गिरावट आई है। बिहार की शराबबंदी की पूरे देश में न सिर्फ चर्चा है बल्कि कई अन्य राज्यों में बिहार के तर्ज पर शराबबंदी लागू करने की मांग उठ रही है।

 

शराबबंदी के समर्थन में बना दुनिया का सबसे बड़ा मानव श्रंखला

इस सब के अलाव जो सबसे बड़ी चिंता राज्य के भारी राजस्व नुकसान की थी । शराबबंदी से जहां सरकार को करीब पांच हजार करोड़ रुपये के नुकसान का अंदाजा लगाया जा रहा था, वह कोरा साबित हुआ। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा है कि सरकार के खजाने में पूर्व की तरह इस साल भी उतनी ही रकम जमा हुई, जैसे पिछले साल हुआ करती थी। उलटे शराब के कारण लोगाें की जेब से निकल जाने वाले सालाना दस हजार करोड़ रुपये की बचत हुई। लोगों ने इस पैसे का उपयोग दूध, मिठाई खाने में और अपना जीवन स्तर बेहतर बनाने में किया। पहली अप्रैल से प्रदेश में शराब बनना भी बंद हो गया।

रिपोर्ट के अनुसार इस एक साल की अवधि में दूध की खपत 28.4 प्रतिशत बढ़ गयी. शहद की खपत करीब चार गुनी अधिक हो गयी, मट्ठा की खपत चालीस प्रतिशत बढ़ गयी. रसगुल्ला 16.3 प्रतिशत, दही 19 प्रतिशत,पेड़ा साढ़े 15 प्रतिशत, गुलाब जामुन 15 प्रतिशत और दूध से बने उत्पादों की खपत साढ़े 17 प्रतिशत तक बढ़ गयी. यह परिणाम 2016 के अप्रैल से सितंबर तक की रिपोर्ट पर आधारित है.

किराना और फर्नीचर के सामान की बिक्री में भी इजाफा

 

शराबबंदी का असर लोगों के आम जीवन पर भी पड़ा है. शराब पीने के रूप में जो पैसे घर से बाहर जा रहे थे, उन पैसाें का उपयोग अब घरेलू सुविधाएं जुटाने में हो रहा है. किराने और फर्नीचर की दुकानों में भीड़ बढ़ी है. शराब पीकर पत्नी और बच्चों के संग मारपीट करने वाले अब महंगी साड़ियां खरीद रहे हैं. दो हजार से अधिक कीमत वाली साड़ियों की खरीद 2016-17 में 17 सौ गुनी अधिक बढ़ गयी.पांच सौ रुपये मीटर कीमत वाले कपड़े की खरीद भी बढ़ी है. इसका मतलब यह हुआ कि शराबबंदी का असर मध्यम वर्गीय परिवारों पर भी साफ दिखा है. होजियरी और रेडिमेड कपड़ों की बिक्री में 44 प्रतिशत का इजाफा हुआ है. किराना सामग्री की बिक्री में 30.7 प्रतिशत, सब्जी, बिस्किट,मेवा, इलेक्ट्रीकल सामान, कार, ट्रैक्टर और दो पहिया व तिपहिया वाहनों की खरीद में 31.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.

 

अपराध की घटनाओं में आयी कमी

 

शराबबंदी का दुर्घटना और आपराधिक घटनाओं पर भी प्रतिकूल असर पड़ा है. पूर्ण शराबबंदी लागू करने के पहले और बाद के छह महीने की तुलना में हत्या की घटना में 28.3 प्रतिशत की कमी अायी है.बलात्कार की घटना में 10.1 प्रतिशत, महिलाओं के खिलाफ अपराध में 2.3 प्रतिशत, अनुसूचित जाति और जन जाति के लोगों के खिलाफ अपराध में 14.8 प्रतिशत की कमी आयी है. सड़क दुर्घटना में 19.8 प्रतिशत, सड़क दुर्घटनाओं में लोगों के मारे जाने की घटना में भी 19.6 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गयी. इसी प्रकार डकैती, छिनतई और सांप्रदायिक तनाव आदि के मामले में भी भारी गिरावट दर्ज की गयी है.

 

शराबबंदी की मांग उठी दूसरे राज्यों में भी

 

बिहार में शराबबंदी के बाद इसकी मांग दूसरे प्रदेशों में भी उठने लगी है. सीएम को प्रतिदिन सैकड़ों पत्र आते हैं, खासकर महिला संगठनों के जिसमें उनसे शराबबंदी के पक्ष में चल रहे सामाजिक आंदोलनों की अगुवाई करने का अनुरोध होता है. अभी तक मुख्यमंत्री झारखंड, यूपी, हरियाणा, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ में शराबबंदी मुहिम को संबोधित कर चुके हैं.

 

2016-17 में बढ़ गयी खपत (अप्रैल से सितंबर)

 

सामान प्रतिशत

शहद 380%

मठ्ठा 40%

फ्लेवर्ड दूध 28.4%

सूधा दूध 20.5%

लस्सी 19.7%

सामान प्रतिशत

रसगुल्ला 16.3%

पेड़ा 15.5%

गुलाबजामुन 15.2%

मिल्क केक 9.2%

दूध के उत्पाद कुल 17.5%

िकराना सामान की भी बढ़ गयी खपत

सामान प्रतिशत

किराना 30.7%

बिस्किट 21.3%

स्टेशनरी 30.7%

इंनटरटेनमेंट टैक्स 29.2%

फर्नीचर 20.1%

सामान प्रतिशत

सेविंग मशीन 18.8%

फूट वीयर 17.2%

कार व चार पहिया 29.6%

दो व तीन पहिया 31.6%

ट्रैक्टर 29%

देश के रफ़्तार से ज्यादा तेज है बिहार की रफ़्तार

बिहार का तरक्की की रफ़्तार, देश का तरक्की के रफ़्तार से आगे।बिहार देश के सबसे तेज विकास दर वाले राज्यों में एक है।

वित्त मंत्री ने गुरुवार को विधानमंडल में आर्थिक सर्वेक्षण, 2016-17 पेश  किया। इसके अनुसार विनिर्माण, बिजली, गैस और जलापूर्ति, व्यापार,  मरम्मत, होटल-रेस्टोरेंट, परिवहन, भंडारण और संचार में विकास की रफ्तार दो अंकों में रही है। वहीं, राजस्व प्राप्ति में 17.7 हजार करोड़ की बढ़ोतरी हुई है, जबकि प्रति व्यक्ति आय 26,801 रुपये से बढ़ कर 36,964 रुपये हो गयी है। हालांकि, राष्ट्रीय औसत से अब भी यह काफी कम है। वहीं, पिछले पांच वर्षों में वाहन रजिस्ट्रेशन में वृिद्ध में प बंगाल (24.2%) के बाद बिहार (15.4%) पूरे देश में दूसरे नंबर पर है।

राष्ट्रीय स्तर पर कृषि  और उत्पादन क्षेत्र में गिरावट का असर यहां भी दोनों क्षेत्रों में देखने को मिला। इसके बावजूद राज्य की अर्थव्यवस्था मजबूत बनी हुई है। चालू वित्तीय वर्ष में बिहार की विकास दर 7.6% है, जो राष्ट्रीय विकास दर 6.8% से कहीं ज्यादा है।

सदन में आर्थिक सर्वेक्षण पेश करने के बाद  विधानसभा एनेक्सी में आयोजित प्रेस वार्ता में वित्त मंत्री ने इसके बारे में मीडिया को जानकारी दी। इस दौरान 2005-06 से 2015-16 तक राज्य की विकास दर के दो अंकों रहने के मद्देनजर जब विकास दर में गिरावट को लेकर सवाल किया गया, तो सिद्दीकी ने विकास दर में कमी की बात को सिरे से खारिज कर दिया। कहा कि  तुलनात्मक रूप से यह कमी इसलिए दिख रही है कि राष्ट्रीय और राज्यों दोनों की आय  गणना के लिए आधार वर्ष बदल दिया गया है। अब 2011-12 को आधार वर्ष के तौर पर उपयोग करने हुए केंद्रीय सांख्यिकी संगठन ने जीएसडीपी के अनुमानों की नयी सीरीज जारी की है। वर्ष 2015-16 में भी राज्य की विकास दर सात प्रतिशत के आसपास ही रही थी। राज्य के जीएसडीपी के अनुपात में ऋण या कर्ज की अदायगी में बिहार देश  के टॉप-5 राज्य में है। राज्य का ऋण और जीएसडीपी रेशियो 23% है।
14वें  वित्त आयोग की अनुशंसा के अनुसार यह 25% से कम रहना  चाहिए। वर्ष  2015-16 में बकाया ऋण 88,829 करोड़ था, जिससे ऋण और जीएसडीपी के बीच का अनुपात 21.5% तक रहा। राजस्व प्राप्त के साथ ब्याज भुगतान का अनुपात 2011-12 में 9.3% था, जो 2015-16 में घट कर 8.5% रह गया। यह भी 14वें वित्त आयोग की अनुशंसा 10% से कम ही रहा। बिहार की  मुद्रास्फीति दर 2.52% है, जबकि राष्ट्रीय दर 4.31% है।
प्रति व्यक्ति अनुपात में हुई बढ़ोतरी
 वर्ष  2015-16 में राज्य का सकल घरेलू उत्पाद 3.27 लाख करोड़ था, जो 2016-17 में  बढ़ कर 4.14 लाख करोड़ हो गया। राज्य में प्रति व्यक्ति आय वर्ष 2015-16  में  26,801 रुपये और वर्ष 2014-15 में 25,400 रुपये थी, जो वर्तमान में बढ़ कर 36,964 है. अभी राज्य में प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत का लगभग 35%  है, जबकि  करीब 10 साल पहले यह 33% हुआ करता था. हालांकि, राष्ट्रीय प्रति व्यक्ति आय 77 हजार 435 रुपये की तुलना में बिहार की में यह आधी से कम है। पड़ोसी राज्य झारखंड में भी प्रति व्यक्ति आय बिहार से ज्यादा 54,140  रुपये है।
प्राथमिकी क्षेत्र का योगदान जीएसडीपी में घटा
कृषि में विकास दर घटने से राज्य  के सकल घरेलू उत्पाद में प्राथमिक क्षेत्र की हिस्सेदारी में पिछले वर्षों की तुलना में गिरावट आयी है। वर्ष 2015-16 में प्राथमिक की हिस्सेदारी जीएसडीपी में 19.6% से घट कर  18.1%  रह गयी। वहीं,  सेकेंडरी  सेक्टर (द्वितीयक) की हिस्सेदारी 17.1% बढ़ कर 18.1% हो गयी है।
टरसियरी (तृतीयक) सेक्टर की हिस्सेदारी तकरीबन  बराबर रही। तृतीयक क्षेत्र की हिस्सेदारी 2014-15 मेें 59.8% की तुलना में 2015-16 में 59.9% रही. वर्ष 2011-12 से 2015-16 की तुलना की जाये, तो  प्राथमिक क्षेत्र  में 7% की गिरावट और तृतीयक क्षेत्र में 6% की उछाल आयी  है। राज्य में  निर्माण के क्षेत्र में तरक्की नहीं हुई, लेकिन सर्विस  सेक्टर में ग्रोथ  होने से यह बढ़ोतरी दर्ज की गयी है।
पटना, मुंगेर और बेगूसराय सबसे समृद्ध
प्रति  व्यक्ति आय के मामले में जिलावार काफी विभिन्नता या असमानता पायी गयी है। पटना, मुंगेर और बेगूसराय सबसे समृद्ध जिले हैं, जबकि मधेपुरा, सुपौल और  शिवहर के लोग सबसे गरीब हैं। अगर पटना को छोड़ दिया जाये, तो मुंगेर में  प्रति व्यक्ति सबसे ज्यादा है। मुंगेर में प्रति व्यक्ति आय शिवहर से तीन  गुना ज्यादा है। वहीं, शिवहर जिले में प्रति व्यक्ति आय राज्य में सबसे कम  है।
वित्तीय सेहत कुछ इस तरह हुई है मजबूत
  • राजस्व अधिशेष 2011-12 के 4,820 करोड़ से बढ़ कर 2015-16 में 12,507  करोड़  हुआ। यह अब तक का सर्वोच्च स्तर है. इससे पूंजीगत व्यय या विभिन्न  योजनाओं  में 5,800 करोड़ अतिरिक्त खर्च करने की क्षमता मिली।
  • राजस्व  प्राप्ति में 17,706 करोड़ रुपये की वृद्धि हुई, जिसमें 16,659 करोड़ (94  प्रतिशत) की वृद्धि अकेले कर राजस्व बढ़ने से हुई है।
  • केंद्रीय अनुदान  में पिछली बार की तुलना में मात्र 420 करोड़ की ही  बढ़ोतरी हुई, जबकि  राज्य के आंतरिक टैक्स कलेक्शन में 628 करोड़ की बढ़ोतरी  हुई है।
  • इसी तरह राजस्व व्यय में भी  वित्तीय वर्ष 2014-15  की तुलना में 2015-16 के दौरान  में 11 हजार 46 करोड़  की वृद्धि हुई है। इस खर्च में सामाजिक सेवाओं में 4230 करोड़ (38%),  आर्थिक सेवाओं में  5,251 करोड़ (48% ) और सामान्य सेवाओं में 4564 करोड़  (14%) की हिस्सेदारी  है।
  • सामाजिक विकास में खर्च 2011-12 के 19 हजार  536 करोड़ से बढ़  कर 38 हजार 684 करोड़ हो गया। इससे जन कल्याणकारी योजनाओं  में राज्य सरकार  की तरफ से विशेष ध्यान देने की बात सामने आती है।
  • वित्तीय वर्ष 2011-12 से 2015-16 तक पांच वर्षों में राज्य  के अपने राजस्व  में 19% की वृद्धि दर्ज की गयी। यह 12 हजार 612 करोड़ से  बढ़ कर 25 हजार  449 करोड़ हो गया।
राज्यपाल रामनाथ कोविंद ने बजट सत्र के पहले दिन गुरुवार को बिहार विधानमंडल के दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि राज्य में सामाजिक सौहार्द व सद्भाव कायम है।
राज्य सरकार न्याय के साथ विकास के नजरिये से सभी लोगों, क्षेत्रों और वर्गों काे साथ लेकर चलने के लिए कृत संकल्पित है। सरकार की प्राथमिकता में पेयजल, शौचालय और बिजली की उपलब्धता के साथ सड़क, गली-नाली और पुलों का निर्माण है। युवाओं और महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने लिए उच्च, व्यावसायिक और तकनीकी शिक्षा की व्यवस्था की जा रही है। विकसित बिहार के लिए सात निश्चयों की रूपरेखा तैयार की गयी है।

संगीत के क्षेत्र में बिहारी युगल जोड़ी धीरज एवं नीलू मचा रही हैं धुम!

( खगडिया से मुकेश कुमार मिश्र )

“तुझको मुबारक तेरी खुशियाँ फूले फले तेरा देश हम तो चले परदेश”

उक्त गाने की पंक्तियों छोटे से गाँव में जन्म लिये संगीत कलाकार धीरज कांत पर सटीक बैठती हैं। गांव के माहौल में भी धीरज कांत एवं उनकी पत्नी नीलू ने संगीत के क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचान बना ली है। राजधानी दिल्ली में युगल  जोडी काफी लोकप्रिय हो गए हैं।

धीरज कांत का जन्म भागलपुर जिले के नारायण पुर प्रखंड के गनोल गांव में हुआ  था। 16 वर्ष की उम्र में माँ एवं पिताजी चल बसे।इन्हें बचपन से संगीत का शौक था।  खगडिया जिले के परवत्ता प्रखंड के अगुवानी डुमरिया बुजुर्ग में अपने रिश्तेदार अमर नाथ चौधरी के यहाँ रहकर संगीत के धनी  पंडित रामावतार सिंह से  छह साल तक शास्त्रीय संगीत की शिक्षा प्राप्त किया। एवं बिहार के मशहूर चर्चित संगीत कलाकार श्री फणीभूषण  चौधरी से सुगम संगीत की शिक्षा प्राप्त कर उनके द्वारा लिखित गजल , भजन गाकर संगीत के क्षेत्र में काफी लोकप्रिय हो गए। वहीं ईलाके के मशहूर संगीतकलाकार राजीव सिंह प्ररेणा दायक बने । जिन्होंने धीरज कांत के सपने को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई। तीनों व्यक्तियों के माध्यम से इनके जीवन में एक नया मोड़ आया। आज इसी का नतीजा है कि लोग इनके संगीत के दीवाने हो गए हैं।

 

वहीं संगीत के क्षेत्र में गोगरी अनुमंडल के शेर चकला पंचायत की पूर्व मुखिया अनिता देवी की पुत्री नीलू भी संगीत की क्षेत्र में आगे बढ़ रही थी । संगीत की करिश्मा हीं कहें इन दोनों संगीत प्रेमी प्रेम के बंधन में बंध गए।  ओर दोनों ने   शादी कर ली। युगल जोड़ी प्रयाग संगीत महा  विद्यालय इलाहाबाद से संगीत एवं तबला दावन से स्नातक किया है। भजन, सुगम संगीत के क्षेत्र में एक अलग पहचान बनाकर धूम मचा रही है। दौनों युगल जोड़ी आकाशवाणी भागलपुर से जुड़े हुए हैं तथा बीच बीच में सेवा प्रदान कर रही हैं।धीरज कांत बताते हैं कि संगीत एक साधना है संगीत के क्षेत्र में” जो करेगा रियाज वहीं करेगा  संगीत पर  राज” एवं आगे बढ़ने के लिए ईमानदारी की आवश्यकता है।

 

धीरज कांत 27 वर्ष की आयु में ही देश के सभी प्रान्तों में अपने गायन से लोगों का दिल जीत लिया है। दोनों युगल जोड़ी को संगीतकार  रवीन्द्र जैन से भी सम्मानित किया गया था। देश के प्रथम महिला आइपीएस किरन वेदी के हाथों संगीत पुरस्कार प्राप्त कर चुकी हैं।2007 मे आयोजित बिहार झारखंड लोक संगीत एवं सुगम संगीत प्रतियोगिता में धीरज कांत प्रथम एवं द्वितीय स्थान नीलू को प्राप्त हुआ था। इनके अलावा दोनों युगल जोड़ी को उनके गायन के लिए दर्जनों पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।धीरज कांत बताते हैं कि अगुवानी डुमरिया बुजुर्ग की धरती पर जीवन मिला है। इसी धरती ने मेरे सपनों को उड़ान दी है। मैं  संगीत गायन के पूर्व अपने गुरु जन एवं अपने परिजन बाबा  स्व० शिव धारी सिंह एवं पिताजी स्व० अजीत मिश्र को स्मरण करता हूँ। उसके बाद गायन का कार्य प्रारंभ होती हैं। तबला वादन में मेरे साथ मुकेश जी का सराहनीय योगदान बरकरार है । 2011 में संगीत शिक्षक की नौकरी केन्द्रीय विद्यालय किशनगंज में मिली थी। 28 दिनों की सेवा देने के बाद त्याग पत्र दे दिया। उन्होंने बताया कि गांव कस्बे के गरीब बच्चे जो संगीत सीखना चाहते हैं उनके लिए दिल्ली  में संगीत कला केन्द्र चला रहा हूँ।मेरी चाहत है कि गांव कस्बे के बच्चे भी संगीत के क्षेत्र में परचम लहराये। मालूम हो कि धीरज कांत के बाबा स्व शिवधारी सिंह भागलपुर जिले के बिहपुर विधान सभा क्षेत्र से दो बार विधायक रह चुके थे। संगीत के धनी अगुवानी डुमरिया बुजुर्ग निवासी पंडित रामावतार सिंह से  दर्जनों कलाकारों ने शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली। आज उन्हीं में एक  धीरज कांत जो  संगीत के क्षेत्र में अपने गुरु के आशीर्वाद से  बिहार का नाम रोशन कर रहे है। बिहार में  अकसर धीरज कांत का  कार्यक्रम हुआ करता है। खासकरके अंग  एवं कोसी क्षेत्र के संगीत प्रेमियों को उनसे काफी लगाव है।

इससे पहले भी हुआ था शराबबंदी मगर बिहार में नीतीश की शराबबंदी है सबसे ज्यादा असरदार

बिहार में शराबबंदी 2016 का सबसे चर्चित फैसला है। ऐसा नहीं है कि पहली बार किसी सरकार ने शराबबंदी का फैसला लिया है। इससे पहले भी दो बार शराबबंदी दो नाकाम कोशिश हो चुकी । मगर नीतीश कुमार की शराबबंदी तमाम शुरुआती आशंकाओं और पुराने अनुभवों को नकारते हुए एक नया मिसाल कायम कर रहीं है। ऐसा सिर्फ़ इसलिए संभव नहीं हो पाया कि इस फैसले के पिछे सरकार ईमानदारी से प्रयास कर रहीं है बल्कि इसलिए संभव हो रहा क्योंकि पहली दो कोशिशों को राजनीतिक दलों और आम लोगों का आज जैसा व्यापक समर्थन नहीं था।

 

पहले भी लागू हो चुकी है शराबबंदी

इस बीच के दशकों में शराब की बुराइयों के भयंकर कुपरिणाम खुल कर सामने आए. 1938 में डॉ. श्रीकृष्ण सिंह की सरकार ने और 1978 में कर्पूरी ठाकुर सरकार ने आंशिक शराबबंदी लागू की थी. 1978 में केंद्र की मोरारजी देसाई सरकार ने पूरे देश में चरणबद्ध तरीके से शराबंदी लागू की थी. उसी अभियान को सफल बनाने की कोशिश बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की सरकार कर रही थी.

 

मोरारजी देसाई

मोरारजी देसाई

1978 के अभियान के पीछे गांधीवादी मोरारजी थे तो 1938 के फैसले के पीछे राज्य के तत्कालीन आबकारी मंत्री जगलाल चौधरी. लेकिन कांग्रेस के अंदर शराबबंदी के सवाल पर एकमत नहीं था. लेकिन चौधरी नशाबंदी के खिलाफ अपने कड़े रुख पर कायम रहे.

 

कांग्रेस ने जब चौधरी को 1952 में मंत्री नहीं बनाया तो तब बिहार में आम चर्चा थी कि शराबबंदी के खिलाफ अपने कठोर निर्णय के कारण चौधरी को मंत्री पद गंवाना पड़ा. याद रहे कि जिस सरकार में दलित नेता जगलाल चौधरी कैबिनेट मंत्री थे, उसी सरकार में जगजीवन राम मात्र संसदीय सचिव थे.

 

यानी उस समय वे बाबू जगजीवन राम से तब बड़े नेता थे, पर उनकी जिद के कारण कांग्रेस का केंद्रीय हाईकमान भी नाराज हो गया.

 

1946 की अंतरिम सरकार में भी चौधरी मंत्री बनाए गए, पर उनका विभाग बदल दिया गया था.1952 में तो कांग्रेस हाईकमान ने उन्हें मंत्री तक नहीं बनने दिया. गांधी जी ने तब कहा था कि यह देख कर पीड़ा होती है कि जो कांग्रेसी आजादी की लड़ाई में शराब की दुकानों पर धरना दे रहे थे, वे कांग्रेसी भी अब बदल गए.

 

कलकत्ता में मेडिकल की पढ़ाई बीच में ही छोड़ कर जगलाल चौधरी असहयोग आंदोलन में कूद पड़े थे. नशाबंदी लागू करके चौधरी जी गांधीजी के विचारों का ही पालन कर रहे थे. गांधीजी आबकारी राजस्व को पाप की आमदनी मानते थे.

 

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जब गांधीजी से यह कहा गया कि इसी आमदनी से सरकारी स्कूलों का खर्च चलता है तो गांधी ने कहा कि ‘यदि इस आमदनी के बंद होने से सभी पाठशालाओं को भी बंद कर देना पड़े तो उसे भी मैं सहन कर लूंगा. पर पैसे के लिए कुछ लोगों को पागल बनाने की इस प्रकार की नीति एकदम गलत है.’

 

जगलाल चौधरी गांधी की यह उक्ति दुहराते रहते थे.

याद रहे कि 1946 में गठित अंतरिम सरकार में भी चौधरी नशाबंदी लागू करने की जिद करते रहे. याद रहे कि चौधरी पासी परिवार से आते थे. नशाबंदी से सबसे अधिक आर्थिक नुकसान उसी जातीय समूह को हो रहा था. इसके बावजूद उन्होंने नशाबंदी पर अपना विचार कभी नहीं बदला. उन्हें आज की तरह जनसमर्थन व पार्टी का सहयोग मिला होता तो शायद वे लागू करने में सफल होते.

 

वहीं जब मोराजी देसाई ने शराबबंदी लागू की तो पहले साल में एक चौथाई दुकानें बंद करने का फैसला किया. फसले के बाद मोरारजी देसाई पटना आए तो उनकी प्रेस कांफ्रेंस में मैं भी था.

एक संवाददाता ने सवाल पूछा,‘पूर्ण शराबबंदी कब तक लागू करेंगे ? प्रधानमंत्री ने कहा कि मैं तो आज ही लागू कर दूं,पर तुम लोग ही शराबबंदी का विरोध कर रहे हो.’ इस पर लंबा ठहाका लगा.

 

दरअसल मीडिया का एक बड़ा हिस्सा तब शराबबंदी के विरोध को हवा दे रहा था. खैर मोरारजी सरकार पांच साल पूरा नहीं कर सकी. बाद की सरकारों ने भी नशाबंदी की कोशिश तक नहीं की. नई सरकारों ने शराबबंदी की जरूरत नहीं समझी.

बिहार क्रांति की भूमि है यहां से प्रायः राजनितिक क्रांति की शुरुआती होती रहीं है और देश को दिशा देती रही है। मगर इस बार बिहार से समाजिक क्रांति की शुरुआत हुई है। उम्मीद है कि शराबबंदी के जरिए नशामुक्ति का जो सबसे बड़ा क्रांति बिहार से शुरु हुआ है वह पूरे देश में फैलेगा ।