हमें ये भी समझना होगा कि हमारे परिहास से कोई युवामन हमेशा के लिए बुझ न जाये

“सम्भावना हमेशा बनी रहती है”- यही पढ़ते हुए हम बड़े हुए और यही देखने की प्यास हमारी आंखों में हमेशा रही। यही प्यास हमें बेहतर के रास्ते पर ले जाती है। यही प्यास हमें नई पहलों को स्वीकारने का जज्बा और हिम्मत देती है। यही प्यास हमें किसी भी क्षेत्र के अगली पीढ़ी तक पहुंचाती है।

कुछ इसी तरह की, नए युग की पहल लेकर एक युवानेत्री बिहार आती है और कोशिशें करती है यहां के लोगों को अपने विचार सौंपने की। आठ-नौ महीने के अथक प्रयासों के बावजूद वो हार जाती है और इसके साथ ही हार जाती है एक उम्मीद कि “सम्भावना बनी रहेगी”। इससे न बिहार की राजनीति को कोई फ़र्क पड़ने वाला था, न जनमानस को और न ही कोई फ़र्क पड़ा। फिर उपहास का वो खेल शुरू हुआ, जो हमेशा से होता आया था। नए प्रयासों को टुच्चे शब्दों से तौलने का खेल!

हर विफलता के अपने कारण होते हैं और विफलता के बाद प्रतिक्रियाओं से भी सामना करना होता है। पलूरल्स पार्टी को जनमत न मिलने का सीधा अर्थ है कि आमजन तक उनकी पहुँच नहीं बन पाई। उनके प्रयास अपरिपक्व हो सकते हैं या हो सकता है उनके और जनता के बीच सम्प्रेषण के लिए उन्होंने बहुत कम समय रखा। चुनाव के समय पर आना और अति-उत्तेजना में जीत ही एकमात्र विकल्प रखना निश्चित ही उनके कमजोर कदमों में से एक रहे।

इन सभी पक्षों को एक तरफ करके, अब जब नतीजे सबके सामने हैं तो बिहार की इस पीढ़ी की जनता को गर्व होना चाहिए कि उनके सामने एक युवानेत्री ने हिम्मत की जाति विशेष को दरकिनार करके, नई परिपाटी पेश करने की। उनके सौंदर्य पर भद्दी टिप्पणियों की बजाए हमें ये सोचना होगा कि हम एक नेत्री की हार को एक युवा सोच की हार से अलग कैसे करें! उनकी क्षमताओं की आलोचना करते हुए हमें ये भी समझना होगा कि हमारे परिहास से कोई युवामन हमेशा के लिए बुझ न जाये। फिर कोई युवा नई पहलों की तरफ कदम बढ़ा सकें, ऐसा सकारात्मक माहौल हमें आज ही बनाना होगा। हमें ये सच साबित करना होगा “सम्भावना हमेशा बनी रहती है” क्योंकि हमारी ज़रूरत है कि “सम्भावनाओं को हमेशा बने रहना चाहिए”!

बाकी बिहार ज़िंदाबाद! बिहारी ज़िंदाबाद!

–  नेहा नुपुर

[यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं]

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