Bihar Election 2020: गुप्तेश्वर पाण्डेय के साथ JDU में वही हुआ जो प्रशांत किशोर के साथ हुआ था

जदयू ने अपने सभी 115 सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। वीआरएस लेकर जदयू (JDU) ज्वाइन किए बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय (IPS Gupteshwar Pandey) का नाम इस लिस्ट में नहीं है। माना जा रहा था कि गुप्तेश्वर पांडेय को बक्सर से टिकट मिल सकता है मगर बक्सर सीट बीजेपी (BJP) के खाते में चली गई। हालांकि चर्चा यह भी थी कि बीजेपी ही उनको बक्सर से टिकट देगी, कोशिश भी की गई और बक्सर सीट पर उम्मीदवार के घोषणा में देरी भी हुई। मगर आखिरकार बीजेपी ने एक स्थानीय नेता को बक्सर का टिकट दे दिया।

वर्षों से राजनीति का शौक रखने वाले गुप्तेश्वर पांडेय का राजनीति में एक बार और दिल टूट गया। उन्होंने इससे पहले भी 2010 में लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए वीआरएस ले लिया था मगर इस बार की तरह उस बार भी टिकट मिलते – मिलते रह गया था।

कहावत है न कि चौबे जी गए थे, छब्बेजी बनने , दुबे जी बन कर रह गए – ठीक वही हाल गुप्तेश्वर पांडेय का हुआ है। उन्होंने इसके प्रतिक्रिया में कहा, ‘अपने अनेक शुभचिंतकों के फोन से परेशान हूं। मैं उनकी चिंता और परेशानी भी समझता हूं। मेरे सेवा मुक्त होने के बाद सबको उम्मीद थी कि मैं चुनाव लड़ूंगा लेकिन मैं इस बार विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ रहा। हताश-निराश होने की कोई बात नहीं है। धीरज रखें। मेरा जीवन संघर्ष में ही बीता है। मैं जीवन भर जनता की सेवा में रहूंगा।’

पांडेय जी जो कहे मगर उनके साथ खेल हो गया। इसके कई कारण हो सकते हैं मगर एक प्रमुख कारण यह भी है कि बिहार के बड़े और लोकप्रिय नेताओं को उनका आदेश का पालन करने वाले समर्थक चाहिए जो खुद लोकप्रिय नहीं हो बल्कि “बड़े साहब” के लोकप्रियता के अहसान के साथ राजनीति में रहे।

गुप्तेश्वर पांडेय एक पूर्व आईपीएस है, राज्य में उनकी लोकप्रियता किसी भी राजनेता से कम नहीं है और उनकी महत्वकांक्षा मात्र एक विधायक या मंत्री बनने तक तो कतई नहीं है। यह बात मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी जानते हैं और बिहार बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व पर कब्ज़ा किये नेता भी।

जदयू में गुप्तेश्वर पांडेय के साथ वही हुआ, जो प्रशांत किशोर के साथ हुआ है। नीतीश कुमार को भले गुप्तेश्वर पांडेय के लोकप्रियता से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता हो मगर उनके करीबी ललन सिंह और आरसीपी सिंह जैसे नेता जो नीतीश बाद खुद को जदयू का भविष्य मानते हैं, उनको प्रशांत किशोर और गुप्तेश्वर पांडेय चिंतित करते हैं। बीजेपी के साथ सीटों के बतवारें में नीतीश की सहमती जरूर थी मगर बीजेपी के नेताओं से इसके बातचीत में ललन सिंह और आरसीपी सिंह का महत्वपूर्ण रोल था। गुप्तेश्वर पांडेय के साथ खेल यही पर हुआ है।

दूसरी तरफ उम्मीद जताई जा रही थी कि जदयू नहीं तो कहीं पांडेय जी को बीजेपी अपना ले। मगर बिहार में बीजेपी को पहले ही एक लोकप्रिय नेता की कमी महसूस हो रही है। मजबूरी में उसको नीतीश कुमार का नेतृत्व बार – बार स्वीकार करना पड़ रहा है मगर इस से सुशील मोदी जैसे नेताओं को लॉटरी लगता रहा है। बिहार बीजेपी में यह बात आम है कि बिहार बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व नए नेतृत्व के लिए जगह नहीं बनने देता है।

गुप्तेश्वर पांडेय ब्राह्मण जाती से आते हैं, पूर्व आईपीएस हैं और सोशल मिडिया से लेकर जमीन तक उनके समर्थक हैं| यह सब चीज़े बीजेपी में राजनीती करने के लिए मुफ़ीद है। बीजेपी के टिकट से अगर वे जीत जाते तो केंद्रीय नेतृत्व की नजर अनपर पड़ सकती थी।

उनकी राजनीति बीजेपी मतलब था कि गिरिराज सिंह, अश्वनी चौबे और सुशील मोदी जैसे बड़े नेताओं की चमक धूमिल होना। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि बीजेपी ने गुप्तेश्वर पांडेय को टिकट इन्हीं नेताओं के कारण नहीं दिया है। जो पार्टी रातों – रातों रात पैराशूट से कैंडिडेट उतारती हो उसको अचानक स्थानीय कार्यकर्ता के लिए प्रेम आ जाए, यह बात पचती नहीं।

– अविनाश कुमार (लेखक aapnabihar.com के संपादक हैं)

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