लॉकडाउन के छए महीना में शहर वाला इलीट रंग झड़ गया है आ गांव का ठेठ रंग चढ़ रहा है

कोई दिल्ली में सिभिल सर्बिस के तइयारी में थे, कोनो चेन्नई से बीटेक कर रहे थे, कोनो बम्बई में जॉब कर रहे थे - कोरोना सबको ग्लोबल से लोकल कर दिया है.

फोटो साभार: मिथिलावादी पुरुषोत्तम (फेसबुक) village life in Bihar, village life during lockdown, migrants stories

  नहला पर दहला 🃏

– मालूम है रे, बेरूत जानता है? लेबनान कंट्री के रजधानी है. ऊहां एतना भयानक बिस्फोट हुआ है कि पूछ मत. वीडियो देखेगा न ता करेजा कांप जाएगा.

– तुमको कोच्ची मालूम है.! सब पोलटिक्स है. राम मंदिर के नींव पड़ा है ना. ऊहे से बम-ऊम फूट रहा है. गुलमा फेंक. गुलमा फेंक. गुलमा फेंक ना रे. भक्क साला, एतना कमज़ोर खेलता है.. हट्ट दू हाथ हमरा खेले दे.

लॉकडाउन का छठवाँ महीना होबे वाला है. दिल्ली, बम्बई, चेन्नई, कलकत्ता रहे वाला तमाम भैया सब छह महीने से घरे डिपार्चर हो गया है. कोई दिल्ली में सिभिल सर्बिस के तइयारी में थे, कोनो चेन्नई से बीटेक कर रहे थे, कोनो बम्बई में जॉब कर रहे थे. कोरोना सबको ग्लोबल से लोकल कर दिया है. चेन्नई वाले भैया पहिला महीना में बिना लोअर-टीशर्ट-शूज के बाहरे नहीं निकलते थे. दूसरा महीना से बुमचुम्स के हाफ पैंट पर आ गए. अब जब देखते हैं ता कोठारी का उजरा गंजी आ चील छाप गमछा लपेटले रहते हैं.

सिभिल सर्बिस वाला भैया शुरू में दू महीना खूब भौकाल दिए. घरे से निकलबो कम करते थे. दिन भर बैठ के मुगल वंश के बादशाह सब रटते रहते थे. अभी देख रहे हैं उनको चिड़ी, गुलमा आ बाशा से फुरसते नहीं होता है.

शुरू में बम्बई वाला भैया राजनिवास चबाते हुए बोले थे “अरे कम्पनी में मालिक के बाद बूझो जे हमही मनीजर हैं. हम ना रहेंगे ता कम्पनी का भट्ठा बैठ जाएगा. हमको ज्यादा दिन थोड़बे रहने देगा मालिक इहाँ. अगले महीने देखना टिकट भेज देगा.” खैर बम्बई का स्थिति अभी खराब है ता जाना वाजिबो नहीं है. जेतना देर इनसे बतियाए ओतना देर में ई बगल वाले सफेद दीवार को नीचे से कत्थई कर दिए. हमको लगा कि इहाँ आधा घण्टा आरो रुक गए ता ई पीक मार-मारके ताजमहल को लालकिला बना देंगे.

हां ता भैया लोग अब गांव के स्थायी नागरिक हो गए हैं. छए महीना में शहर वाला इलीट रंग झड़ गया है आ गांव का ठेठ रंग चढ़ रहा है. दुपहरिया में खा-पीकर सब पीपल-पाकड़ के नीचे वाले गोलंबर पर जमा हो जाएंगे. जेतना बकरी सब सूतल रहेगा उसको लतिया के भगाएंगे. आ बैठ के जमा देंगे ताश. दे नहला त ले नहला. ऊहां चार आदमी खेल रहा है, चारों का एक-एक सलाहकार बगल में बैठा है, तीन ठो दर्शक है, एगो कमेंटेटर है आ दू ठो ग्राउंड-स्टाफ भी. ग्राउंड-स्टाफ सबका काम बीच-बीच में एथलीट सबको पानी पिलाना, विमल, राजनिवास, पान पराग उपलब्ध कराना होता है. दुनिया भर का तमाम राजनीतिक विमर्श, देश का आर्थिक स्थिति, नयी शिक्षा नीति का दूरगामी प्रभाव, पुष्पम पिरिया जी का पोलटिकल करियर से लेकर फलाना के बेटी का केकरा से चक्कर चल रहा है पर आप सम्पूर्ण रिपोर्टिंग सुन लीजिएगा. एकदम अपडेट.

चेन्नई से बीटेक वाले मंटू भैया बोल रहे थे “अरे बिहार में लिकर तो मिलता ही नहीं है. यहां एन्जॉय ही नहीं होता. हमलोग ता चेन्नई में हमेशा ब्लैक लेबल पीते हैं. हमेशा. बहुत क्राइसिस रहा ता रेड लेबल पी लिए. उससे नीचे आज तक अपना लेबल कभी गिरा ही नहीं. इनका डीलिंग-पैंतरा चल ही रहा था कि उधर से महेन चा आ गए – का रे मन्टुआ, इहाँ बैठा है.! चलो ना, ऊ दिन बोल रहा था ताड़ी पियाबे के लिए.. जा रहे हैं आज पीने. चलेगा ता चलो.. तीस रुपिया रख लेना घुघनी के लिए. ताड़ी का पैसा हम रख लिए हैं.

– Aman Aakash ©

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