बाढ़ दर्शन: हमारा गांव नेपाल के सीमा से सटल है, बाढ़ से हमलोगों का पुराना याराना है

हमारा गांव नेपाल के सीमा से सटल है. बाढ़ से हमलोगों का पुराना याराना है. लगातार बारिश आ नेपाल के पानी छोड़ला से गाँव में पानी घुसना शुरू हो गया है. बाढ़ का पानी महंगा शराब के तरह धीरे-धीरे चढ़ता है. भोर में देखने गए तो पुल के उसपार थोड़ा-बहुत पानी चल रहा था. सांझ को घूमने गए तो पुल के इस पार भी पानी हरहरा रहा है. एकदम गन्दा पानी. खर-पतवार आ झाग से भरल. बह रहा है अपना गति में. उसको कोई मतलब नहीं कि लॉकडाउन है, कोरोना का आफतकाल है, आगे थाना का गाड़ी लागल है. केकरो से कोई मतलब नहीं. बहना है तो बहना है. एकदम अपना मौज में. आप रोक लीजिएगा..?

बाढ़ देखने के लिए लोग सब का आना-जाना बढ़ गया है. मोटरसायकिल पर बैठ-बैठ के सपरिवार आ रहा है सब बाढ़ देखने. किसी को अपना खेत का चिंता है तो किसी को अपना गाछी का. सब सड़क पर खड़ा होकर माथा पर हाथ रखले देख रहा है.

दू गो नया खून वाला लईका अपना पल्सर ऊ बाढ़ के बहाव में धो रहा है. देखादेखी एगो टेम्पू वाला भी बीच में टेम्पू खड़ा करके हाथे से धोने लगा. पुलिया से चार ठो लंगटा बच्चा नाक बंद करके सीधा धार में पलटी मार दे रहा है. ई सबको स्विमिंग का सही प्रैक्टिस करवाया जाए ता भारत को केतना पदक दिलवाएगा. उधर मछुआरा सब पानी में जाल पर जाल फेंक रहा है. सावन का महीना हो चाहे भादो का, आज मछरी लेकर ही घरे जाना है. उधर चाची घरे सिलौटी पर सरसों पिस रही होगी आ इधर तीन बार जाल से खाली कीचड़ में सनाएल गोल्डस्टार का फटल जूता आ पेप्सी का बोतल निकला है. पिसायल मसल्ला पर जे ई परोर चाहे कद्दू लेकर घरे पहुँचे ता सिलौटी पर इनको पीस दिया जाएगा. बेचारे इसी डर से बीस बार जाल फेंक दिया है..!

वाह रे जमाना. बाढ़ के साथ सेल्फी लिया जा रहा है. तुरन्त फेसबुक पर फीलिंग एंजोयिंग विद बाढ़ इन माय भिलेज के नाम से चेपा जाएगा. लोग कमेंट भी कर देगा नाइस बाढ़ डियर.

चलिए अब घर चला जाए. भीगी-भीगी सड़कों पे केंचुआ सब ससरने लगा है. झींगुर ब्रो सब का झन-झन डीजे शुरू हो रहा है. लौटते समय खेत के आड़ी पर महेन चा भेंटा गए. कमर में गमछा बन्हले, कंधा पर कुदाल रखले किसी को डीलिंग दे रहे है. “सब साला ई नेपाल का खचरपनी है. कल रात तक एक बूंद पानी नहीं था. आज देखिए, राता-रात पानी ठेल दिया ससुरा..”

महेन चा का गुस्सा वाजिबो था. परसों ही देखे थे केतना मेहनत से दिन भर खेत में बीचड़ा लगाए थे. आज सब डूब गया.

हम बोले चचा ई ता गड़बड़ा गया. चचा खैनी रगड़ते बोले “का गड़बड़ाएगा बबुआ, पानी ससर गया ता ठीक है आ कहीं चार दिन ठहर गया तो सारा बीचड़ा सड़ जाएगा.” हम फिर टप्प से पूछ दिए “सड़ जाएगा तब का होगा.?” चचा हंसते बोले “होगा का बचवा, होइहें वही जो राम रची राखा..” चचा खैनी मुंह में दबाए, गमछा टाइट किए आ कंधे पर कुदाल रखकर गुनगुनाते चल दिए “भँवरवा के तोहरा संघे जाई..”

– Aman Aakash

Aman Aakash: बिहार के सीतामढ़ी जिला निवासी और एम.फिल. (मीडिया स्टडीज) माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल का छात्र|