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Bhojpuri Poem: मत रोकी जाय दिही, बुलावता हमार अपना गाँव हो

हमनी के का होई, कोई नईखे बा जानत, जिनगी बेहाल होता, केहू नईखे बा मानत।

“मत रोकी जाय दिही, बुलावता हमार अपना गाँव हो”

केतना बरिस से लोगन के, हमनी सब भरली जा पेटवा।
हमनी के आज बारी आइल त, खाली रह गइल पेटवा।। 2

केतना बरिस से हमनी के, शहरन खाती बनवली जा छतवा।
हमनी के आज बारी आइल, उ ना देहलन जा छतवा।। 2

हमनी के का होई, कोई नईखे बा जानत,
जिनगी बेहाल होता, केहू नईखे बा मानत।।

केकरो गावे रोवत बाढि बूढ़ी माइ, केकरो घरे बचन अउर धनिया।
हमनी के बेहाल छोड़ देहलन, देशन के आपन-आपन बनियां।

सुने में आइल रहे हमनी खातीं, मिलेवाला बा कोई मददवा।
का भईल ना भईल, भूख प्यास त भेटागइल ना, भेटाइल न कोई मददवा ।।

लगता की करे वाला, कर देहलस ओकरो में घपली।
सबही के राग आपन बाटें, आपन- आपन ढपली।

सुने में आइल बाटें की, रेल चलावे के मिलल बा परमिशन।
इहे सुन के हमनी के आगईली जा स्टेशन।।
ऐइजा केहू नइखे बतावत, कहियाँ अउ कइसे जाये के मिली टिकट अउर परमिशन।
इहे सुन कर बार-बार, आवत बानी जा स्टेशन।
इहे सुन कर कतना दिन से, होखे लागल हमनी के टेंशन।

केतना निकल गइलन जा, हमनी के संगी अपना परिवार साथे पैदल,
लॉकडाउन टूटी इहें आस में हमनी के, रह गइलीजा ना निकलनी जा पैदल।।
सुने में आइल बा, पैदलों जाये वालन के पड़ता डंडा-लाठी।
प्रशासनों नइखे बतावत की अईजा जिंदगी हमनी सब कइसे काटी।।

पचास दिन बीत गइल हमनी के, न मिलत छत न मिलत रहे राशन।
जब गावे जाए के बेरा भईल आइल, विकास के दुहाई देके रोके लागल प्रशासन।

पईचा अउ उधार से, कबतक जिनगी कटाई हो।
ई पूछे से बाबु लोगन, भी हो जा लन जा शांत हो।।
हमनी के बुझाता की उनकरो पास नइखे कौनो जबाब हो।
मत रोकी जाये दिहीं बाबूलोग, बुलवाता हमनी के गांव हो।।
जाये द जा मालिक हो, बुलावता हमनी के गांव हो।।

Written By:- Jokhan Sharma ©
Research Scholar, Department of Anthropology
Central University of Odisha, Koraput
& Associated With MAATY ORGANISATION, DEHRADUN

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