उलटे पांव चल रही है बिहार सरकार, कोरोना टेस्ट की संख्या बढ़ाने की जगह घटा क्यों रही है?

सैंपल टेस्ट करने के मामले में बिहार सबसे पिछड़े राज्यों में से एक है

PTI Photo Total Numbers of Corona tests in Bihar, Corona Testing labs in Bihar,

29 अप्रैल को केंद्र सरकार द्वारा देहारी मजदूरों को अपने राज्य भेजने के फैसले के बाद देश के सबसे बड़ा मजदूर निर्यातक राज्य बिहार में हजारों मजदूर रोज आ रहे हैं| देश के विभिन्न राज्य से रोज लगभग 20 श्रमिक स्पेशल ट्रेन बिहार के लिए खुल रहे थे| पिछले गुरुवार को ही सिर्फ राज्य में 45 हज़ार मजदूर बिहार लौट आया| 29 अप्रैल से अबतक 70 हज़ार से भी ज्यादा लोग बिहार लौटकर आ चुकें हैं|

प्रदेश में दूसरे राज्यों से हजारों लोग रोज़ आ रहे हैं| जिसके कारण कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने का खतरा भी बढ़ गया है| कायदे से बिहार को राज्य में कोरोना के टेस्ट में कई गुना वृद्धि करनी चाहिए मगर बिहार सरकार उलटे पांव चल रही है| टेस्ट बढ़ाने के जगह बिहार कोरोना के टेस्ट को पहले से कम ही कर रही है|

स्क्रॉल में छपी एक रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है कि इस सप्ताह राज्य में कराय जा रहे कोरोना के टेस्टों की संख्या में भारी गिरावट आई है| 4 मई से अगले 4 दिन तक मात्र 2,316 सैंपल टेस्ट किये गयें| इसका अगर औसत निकले तो 579 सैंपलों की जाँच एक दिन में हुई|

मगर इसके पिछले चार दिन यानि 30 अप्रैल से 3 मई तक किये सैंपलों की जाँच का संख्या देखें तो वह 6,043 है| यानी राज्य ने 60% टेस्ट कम किये हैं|

वैसे भी सैंपल टेस्ट करने के मामले में बिहार सबसे पिछड़े राज्यों में से एक है| यहाँ सिर्फ औसतन 300 लोगों का सैंपल ही हर दिन टेस्ट हो रहा है|

राज्य ने क्यों कम कर दिया टेस्ट करना?

अगर स्क्रॉल द्वारा बनाये इस टेस्ट ग्राफ को देखें तो राज्य में 23 अप्रैल से 4 मई तक एक रोज 100 से ज्यादा सैंपल टेस्ट किये हैं सिर्फ 25 अप्रैल को छोड़कर| मगर 4 तारीख के बाद टेस्ट की संख्या में कमी कर दी गयी| याद रहें की इसी दौरान राज्य में मजदूरों का आगमन भी हो रहा है|


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राज्य के स्वास्थ्य अधिकारी इस पर जवाब देते हैं कि टेस्ट की संख्या में कमी अस्थायी है| सरकार बिहार लौट रहे आप्रवासियों का जाँच करने के लिए कुछ दिन में नयी निति लेकर आएगी| अधिकारियों के अनुसार यह इसलिए हुआ है क्योंकि मई के पहले कुछ दिनों में ज्यादा पॉजिटिव केस का पता नहीं लग पाया है| वहीं बिहार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग के प्रमुख संजय कुमार ने कहा, “यह अगले कुछ दिनों में फिर से बढ़ जाएगा।”

बिहार के अधिकारियों ने कहा कि डोर-टू-डोर स्क्रीनिंग करने के बावजूद लक्षणों वाले नहीं मिले। कुमार ने कहा, “हमने 3 करोड़ लोगों का सर्वेक्षण किया है, लेकिन वे अभी तक लक्षण वाले लोगों को नहीं खोज पाए हैं।” राज्य में मिले कुल मामले में 85% से अधिक मामले में कोई लक्षण नहीं दिखाई दे रहे थे। मगर आईसीएमआर की परीक्षण रणनीति काफी हद तक लक्षणों पर आधारित है| उन्होंने कहा, “बिहार में लक्षणों के साथ बहुत से लोग नहीं हैं, इसलिए हम बस पर्याप्त नमूने खोजने में सक्षम नहीं थे।” इसीलिए कम टेस्ट हो रहे हैं और अन्य राज्यों से भाड़ी संख्या में आए प्रवासी मजदूरों का रैंडम टेस्ट करने का निर्णय कुमार लिया गया है।


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