सरकार से न लॉकडाउन सही से हुआ, न कोरोना कंट्रोल हुआ और न ही स्पेशल ट्रेनें ठीक से चल रही

देश के नेतृत्व करने वालों में अगर दूरदर्शिता की कमी हो तो वह देश के लिए अभिशाप से कम नहीं है| कोरोना वायरस के कारण जारी इस लॉकडाउन में यह अभिशाप उभर कर आया है| 25 मार्च को रात 8 बजे प्रधानमंत्री ने अचानक लॉकडाउन तो लगा दिया मगर लॉकडाउन को सफल बनाने के लिए न कोई रणनीति बताया और न उसके लागू होने के बाद उत्पन्न होने वाले स्थिति से निपटने का कोई उपाय बताया| उसका परिणाम यह हुआ कि लॉकडाउन लगते ही लाखों की संख्या में मजदूर सड़क पर आ गये|

सवाल है कि निति निर्माताओं को यह नहीं पता था कि लॉकडाउन लगते ही सबसे ज्यादा दिक्कत प्रवासी मजदूरों को होगी? उनके खाने और घर में रहने तक की आफ़त हो जाएगी? जवाब है पूरी तरह से रहा होगा, क्योंकि खुद प्रधानमंत्री टीवी से लेकर अपने मन की बात कार्यक्रम में मजदूरों को लेकर चिंता जाहिर की थी| मगर चिंता बस जाहिर की गयी थी, कुछ ठोस उपाय नहीं किये गये थे|

विपक्ष का दवाब बढ़ा तो लॉकडाउन 3 में श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलाने का एलान हो गया| मगर जब इस इस श्रमिक ट्रेन की स्पेशल कथा आप सुनियेगा तो दंग रह जईयेगा|

भारत में ट्रेनों का लेट होना आम बात है मगर पहले कहा जाता था कि ज्यादा ट्रेनें होने क कारण लाइन खाली नहीं होने के कारण लेट हो रहा है| अभी तो भारतीय रेलवे अपने क्षमता का मात्र कुछ प्रतिशत ही उपयोग कर रही है मगर ट्रेने कुछ घंटा लेट नहीं चल रही, बल्कि कुछ दिन लेट चल रहे हैं| हालत ये है कि 30 घंटे का सफर 4 दिन में पूरा हो रहा है|

दिल्ली से बिहार के मोतिहारी जा रही ट्रेन चार दिन में समस्तीपुर पहुंची, जबकि यात्रा महज 30 घंटे की है| मजदूरों का कहना है कि उन्हें मोतिहारी का टिकट दिया गया है और ट्रेन पिछले 4 दिनों से उन्हे घुमा- घुमा कर ले जा रही है|

गर्मी और ट्रेनों में खाने-पिने की सुविधा का आभाव से मजदूरों का भी धर्य जवाब दे देता है| देश भर में इसके कारण ट्रेनों में कई लोगों की जान जा चुकी हैं तो कितने महिलाओं का प्रशव भी ट्रेन करवाना पड़ा है|

दिल्ली से मोतिहारी के लिए चली ट्रेन चार दिनों में समस्तीपुर पहुंची, जहां ट्रेन में महिला को प्रसव पीड़ा शुरू हो गया तो उसे ट्रेन से उतारा गया. आलम ये था कि महिला ने बिना किसी मेडिकल सुविधा के एक बच्ची को प्लेटफॉर्म पर ही जन्म दिया|

वहीं सोमवार को बिहार के मुजफ्फरपुर जंक्शन पर एक बच्चे ने दम तोड़ दिया तो दो बच्चे की एक माँ की मौत हो गयी| मरने वालों में पश्चिम चंपारण के लौरिया के लंगड़ी निवासी मो. पिंटू का पुत्र मो. इरशाद व कटिहार के आजमनगर निवासी स्व.इस्लाम की पत्नी अर्बीना खातून हैं| इरशाद ने प्लेटफार्म पर पहुंचकर दम तोड़ दिया तो अर्बीना ने सफ़र के दौरान ही दम तोड़ दिया|

ट्रेनें सिर्फ देरी से नहीं चल रही, बल्कि ट्रेनों को पहुचना होता है कही और, और पहुँच जाती है कही और|

21 मई को मुंबई से गोरखपुर जाने वाली श्रमिक स्पेशल ट्रेन ओडिशा के राउरकेला पहुंच गई| वासियों को लेकर समस्तीपुर स्टेशन से चली 10 बोगियों वाली श्रमिक स्पेशल ट्रेन पंडित दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन की जगह मुजफ्फरपुर पहुंच गई। वहीं प्रवासियों को लेकर सूरत से डिब्रूगढ़ जाने वाली 01834 श्रमिक स्पेशल ट्रेन रेलकर्मियों की गलती के कारण सोमवार की अहले सुबह भटक गई। ट्रेन को बरौनी से बेगूसराय के रास्ते डिब्रूगढ़ जाना था किंतु श्रमिकों को लेकर बछवाड़ा जंक्शन पहुंच गई।

ट्रेनों का रास्ता भटकने का कई मामले आ चुके हैं| बदइन्तजामी किस स्तर पर है इसका अंदाज़ा इस बात से लगाइए कि ट्रेनों का रूट भूलने का मामला रेलवे के इतिहास में पहली बार हो रहा है|

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