गांधारी: ममता और समर्पण की देवी,  लेकिन क्या आज के परिवेश मे हमे ऐसी देवी की आवश्यकता है?

इन दिनो लौकडाउन में दूरदर्शन पे और बहुचर्चित निजी चैनल स्टार प्लस पे महाभारत को फ़िर से दिखाया जा रहा है,  वैसे दोनो चैनल मे महाभारत के पात्र समान है लेकिन कहानी को दर्शाने के तरीके थोड़े अलग है! इस बात पर कोई दो राय नही होनी चाहिए कि देश के दो प्रमुख महाकाव्य – रामायण और महाभारत का ज्ञान सभी को होना चाहिए और इन दोनो महाकाव्यों के बारे मे जानकारी लेने का यह सुनहरा मौका है!

महाभारत के विभिन्न पात्रो के उदाहरण हम आम जीवन में भी देते रहते है, जिसमें युधिष्ठिर को धर्म का प्रतीक माना जाता है वहीं  कर्ण को महादानि कि उपमा दी जाती है तो भीस्म को त्याग की मुर्ति मानते है. इन सारे पात्रों मे से गांधारी को समर्पण की देवी और एक अनोखी पतिव्रता स्त्री के रूप मे देखा जाता है. गांधारी, गांधार राज्य के राजा सुबल और रानी सुधर्मा की बेटी थी.  जब गांधारी को पता चला कि उसका विवाह एक नेत्रहीन व्यक्ति से तय हुआ है तो वह इससे खुश नही थी फ़िर भी उसने ये विवाह स्वीकार किया और सदा के लिए अपने आंखों पर पट्टी बांध ली.

महाकाव्य यह बताते है कि गांधारी पति के समर्पण मे अपने आंखों को त्याग देती है, लेकिन कई दन्त कथाएं और इरावती कार्वे कि किताब (युगान्त: द एन्ड आफ़ ऐन एपौक)  से पता चलता है कि असल में  गांधारी के द्वारा अपनी आँखो पर पट्टी बांधना भीस्म के प्रति विद्रोह स्थापित करने का प्रतीक था.

यह घटना एक स्त्री के प्रति अन्याय का उदाहरण है जहां गांधारी विवाह के लिए मना नही कर सकती थी क्योंकि उसके पिता का राज्य इतना सामर्थ्यवान नहीं था की पराक्रमी भीस्म का मुकाबला कर सके और इसकी कीमत गांधारी को चुकानी पडती है. उसका चुनाव धृतराष्ट्र के लिए इसलिए किया गया था ताकि वो धृतराष्ट्र का आंख बन सके लेकिन भीस्म और हस्तीनापुर के राजपरिवार ने ये जानने कि कोशिश नहीं किया कि गांधारी क्या चाहती है. उसके समर्पण को सभी ने धिक्कारा यहाँ तक कि उसके पति ने भी.

बाद मे धृतराष्ट्र ने गांधारी को इसलिए अपनाया ताकि वह उसे उत्राधिकारी दे सके जब गांधारी के प्रसव मे दो वर्ष से अधिक समय लगा तो गुस्से और सज़ा देने कि भावना से धृतराष्ट्र ने गांधारी कि सेविका के साथ शारीरिक सबन्ध बनाये ताकि उसे पुत्र मिल सके फ़िर भी गांधारी ने अपने पति से कोई तर्क् नहीं किया, धृतराष्ट्र हमेशा गांधारी को इस बात का उलाहना देते हैं कि वह बहुत भाग्यशाली है कि वह उसके लिये कोई सौतन नही ले कर आये,  लेकिन गांधारी की करीबी सेविका से सम्बन्ध बनाना सौतन के किसी कष्ट से कम था क्या?

क्या गांधारी को एकल पत्नी का सुख मिला? अपने पति के नजर में गांधारी का एक ही काम था पुत्रों को जन्म देना जिससे उसके महत्वाकांक्षी पति कि मनोकामना पूरी हो सके.

गांधारी ने अपने पुत्रों, पति और भाई को हमेशा गलत करने से रोका, जब दुर्योधन युद्ध से पहले अपनी माता से आशिर्वाद लेने आता है तब भी गांधारी निष्पक्ष हो कर यही कहती है कि सत्य कि जीत हो, लेकिन जब उसके सारे पुत्र बारी-बारी से मारे जाते है तब उसकी ममता सत्य को पिछे छोड़ देती और अपने भाई को अधर्म करने के लिए नहीं रोकती है.

अगर हम गांधारी के संपूर्ण जीवन को लेते है तो उसका पूरा जीवन पुरुषों को ही समर्पित था, अपने पिता का साम्रज्य बचाने के लिए बिना मर्जी के शादी करना, अपने भाई और पति के प्रति खुल के विरोध ना कर पाना और पुत्रो के मोह मे सही- गलत का फ़ैसला ना कर पाना. गांधारी के जीवन का एक भी पल उसके लिए समर्पित नहीं था.

गांधारी के जीवन काल को देखकर ऐसा लगता है कि उचित समय पर गांधारी अपने अधिकार के लिये आवाज़ उठाई होती तो शायद उसका जीवन कुछ और होता, गांधारी केवल पुत्रि, पत्नी, माँ और बहन बन कर ना जी होती तो जरुर ही आज इतिहास कुछ और होता.

आज के परिवेश मे स्त्रियों को गांधारी बनने कि जरुरत नहीं है,  उन्हें अपने पति चुनने कि स्वतन्त्रता होनी चाहिए और यदि उनके पति कुछ गलत करे तो उन्हे विरोध करना चाहिए, स्त्रियों का जन्म केवल पुत्र प्रदान करने के लिए नहीं होना चाहिए, हरेक स्त्री के जीवन के अपने लक्ष्य होने चाहिए और उन लक्ष्यो को पूरा करने का अधिकार भी मिलना चाहिए. एक स्त्री का परिचय उनके कर्मों के आधार पर आधारित हो ना कि उनके जीवन में पुरुषों के आधार पर। उसमें  ममत्व, पतिव्रता व त्याग इतना अधिक नहीं  होना चाहिए कि जिसमें स्त्री का अस्तित्व डुब जाए, इसलिए गांधारी आज की स्त्रियों कि आदर्श नही हो सकती.

 

– ऋतु (लेखिका दिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग में शोधार्थी हैं)

ऋतु: