जय श्री आम: गाछी में आम रखबारी का सीजन आ गया है

गाछी में आम रखबारी का सीजन आ गया है. जईसे ही मज्जर से टिकोला होबे लगता है, गाछी में मचान बने लगता है. रात भर जाग के रखबारी करे वाला सब ता तम्बू गाड़ लेता है. पियरका पन्नी वाला वाटरप्रूफ तम्बू. मचान जानते हैं? जनबे करते होंगे! चार ठो बांस के खूंटा पर पटरा ठोकल दुनिया का सबसे आरामदायक बिछौना. आहा क्या बात!

सबसे मीठगर आम गाछी के छाया में बनल मचान, जेकरा पर सूतल-सूतल केतना कॉमिक्स, केतना सरस-सलिल आ केतना प्यार भरी शायरी का किताब चाट गए.

अभी छम्मक-छल्लो वाला पन्ना पलटबे किए थे कि आवाज़ आया “धप्पाक”.. लगता है बम्बई आम गिरा है.. बम्बई आम का रस पहीले लेंगे, सरस सलिल का रस बाद में लिया जाएगा. जईसे ही मचान से नीच्चे ससरे देखे एगो लौंडा आम लेकर भागने के चक्कर में है..

“बहुत बुरा हो जाएगा बौआ.. हमारे गाछी का आम है.. ज्यादा काबिल बने ता रात में आकर तुम्हारे गाछी का पूरा आम झखड़ देंगे.. बाप-बाप चिचियाते रह जाओगे!”

दू बजे का परचंड दुपहरिया है. जानमारू लू चल रहा है. दूर सड़क पर न एगो आदमी देखाई दे रहा है आ ना कोनो मोटरगाड़ी. गेहूं का कटनी हो गया है. खेत-खरिहान सब भी सुन्न लग रहा है. गाँव-जबार में अइसा मौसम में आग बहुत लगता है. ई सूखल मौसम में गाछी के जड़ में मचान पर बईठकर ठंडा-ठंडा हवा में बम्बई आम चूसने में स्वर्ग का मजा मिलता है.

आम खतम होबे ही वाला था कि कोनो गाछी से कोयलिया रानी कूहकी “कू ऊ ऊ ऊ”.. आब शुरू हुआ कम्पटीशन.. हम कोयलिया रानी के “कू ऊ ऊ ऊ” में एगो “ऊ” आओर जोड़ दिए. ओकरो के हार पसंद नहीं था.. ऊहो पूरा दम लगाके जोर से कूकूआई. पांच मिनट तक ई “कू ऊ ऊ ऊ” चलता रहा. अंत में हमही हार मान लिए. लेडिज बिरादरी से कौन मुंह लगे!

एगो बात आओर.. आम रखबारी के बहाने बहुत प्रेम कहानियो चलता है. मोबाइल का जमाना ता है नहीं कि चट से फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजे आ पट से नाइस पिक डिअर वाला छेछर हरकत कर दिए..

केतना रिस्क लेना पड़ता है..! केतना सरस सलिल पढ़ाना पड़ता है आ केतना मीठका आम मन मारके बलि देना पड़ता है.. तब जाके चिठ्ठी-पतरी होता था..! आ सुनिए, लभ-एस्टोरी में ज्यादा मन मत लगाइए.. आशिकी से केकरो का भला नहीं हुआ है.. आशिकी के चक्कर में राहुल राय आ आदित्य रॉय दुन्नू बेवड़ा हो गए.. अपना गाछी में चलिए.. मौसमो खराब हो रहा है..
पच्छिम भर से आसमान भुक्क करिया दिख रहा है. बुझा रहा है अन्हर आएगा.! लौका भी लौक रहा है. ई साला अन्हर कचको आम भी झखड़ देता है.. गाछी में बालू उड़ना चालू हो गया है. सब टोकरी, पथिया, झोरा, बोरा लेकर अपना-अपना गाछी में दौड़ रहा है.. हम कहाँ रखेंगे आम?

कुच्छो उपाइए नहीं है.. लेकिन बिहारी आदमी हैं.. जोगाड़ पोलटिस ता बच्चे से जानते हैं.. गंजी उतारे, नीचे से उसका मुंह बांधे आ हमारा झोरा तैयार हो गया..

30 रूपया वाला कोठारी का गंजी अभिए हफ्ते भर पहीने लिए हैं.. हमको एक्कदम्म पता है कि इसमें आम के दूध का अइसा दाग लगेगा कि कोनो सर्फ एक्सेल नहीं छोड़ा पाएगा.. घर पर आम के जगह पहीले हमारा चटनी बनेगा लेकिन आम बीछना है ता बीछना है..! बाकी का कहानी आपके उप्पर छोड़ देते हैं.. अब आप चाहे आम का अचार बनाइए आ चाहे करबाईट से पकाकर चिउड़ा आ रोटी साथे हपक जाइए..

जय श्री आम..!– Aman Aakash

Aman Aakash: बिहार के सीतामढ़ी जिला निवासी और एम.फिल. (मीडिया स्टडीज) माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल का छात्र|