कभी अपने बिहार के पास भी थी महाराजा एक्सप्रेस की तरह तिरहुत की शाही ट्रेन

सुनने में अजीब लगे लेकिन यह सच है। आज जिस बिहार में लोग मेट्रो और बुलेट ट्रेन के लिए तरस रहे हैं उसी बिहार में कभी महराजा एक्सप्रेस ट्रेने भी चला करती थी।

इसकी खासियत यह थी की इसमे फाइव स्टार होटल वाली सुविधाएं उपलब्ध थी। देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से लेकर, पूर्व राष्ट्रपति राधाकृष्णनन सहित कई आला अधिकारी इसकी यात्रा कर चुके थे। जानकार लोगों की माने तो नेहरू ने इस रेल यात्रा के दौरान कहा था कि इस डिब्बे में बैठकर यात्रा अद्भुत रही।

भारत के जमीन पर रेलवे के आने के महज 20 साल बाद ही तिरहुत की जमीन पर रेल की आवाजाही शुरु हो गयी थी। 17 अप्रैल, 1874 को समस्‍तीपुर से तिरहुत रेलवे की पहली ट्रेन दरभंगा पहुंची थी। वैसे तिरहुत रेलवे का सफर सोनपुर से शुरु हुआ था, लेकिन तिरहुत की राजधानी दरभंगा तक का सफर 1874 में ही पूरा कर लिया गया।

भारत के रेल इतिहास में तिरहुत रेलवे दो कारणों से उल्‍लेखित किया गया है। पहला 1874 से 1934 के बीच भारत में सबसे ज्‍यादा रेल पटरी तिरहुत रेलवे ने ही बिछाई। दूसरा यात्री सुविधा को लेकर तिरहुत रेलवे ने कई प्रयोग किये, जिनमें सामान्‍य श्रेणी के डिब्‍बों में शौचालय की व्‍यवस्‍था भारत में सबसे पहले तिरहुत रेलवे ने ही यात्री को मुहैया करायी। तिरहुत रेलवे का विकास का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि 1934 के भूकंप में क्षतिग्रस्‍त पटरी आज तक यूं ही पडी हुई है और पूर्णिया प्रमंडल का दरभंगा प्रमंडल से जो रेल संपर्क 1880 के आसपास ही जुड गया था, वो 1934 से आज तक नहीं जुड पाया है।

जहां तक इसके इतिहास और इसके बनाये आधारभूत संरचना को बचाने या संरक्षित करने का सवाल है तो यह काम अब तक सही तरीके से नहीं हो पाया है।उल्‍लेखनीय है कि तिरहुत सरकार की राजधानी दरभंगा में पहले रेलवे के तीन स्‍टेशन बने थे, हराही (दरभंगा जं) , नरगौना टर्मिनल और अंग्रेजों के लिए लहेरियासराय।

बडी रेल लाइन का पैलेस आन व्‍हील बरौनी में रहता था, तो छोटी रेल लाइन का पैलेस आन व्‍हील नरगौना परिसर स्थित इसी स्‍टेशन पर आकर रुकता था। छत्र निवास पैलेस जो बाद में नरगौना पैलेस हुआ, देश का इकलौता महल था जिसके परिसर में रेलवे स्‍टेशन था। इस धरोहर को जनता के लिए बचा कर रखना चाहिए था। एक ओर जहां पैलेस आन व्‍हील गायब कर दिया गया, वहीं इस स्‍टेशन को भी नष्‍ट करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। हाल के दिनों में विश्‍वविद्यालय प्रशासन ने प्‍लेटफार्म पर संरक्षण का बोर्ड जरुर लगाया है, लेकिन जिस दरबाजे से होकर ट्रेन परिसर में आती थी उसे 2017 के फरवरी में तोड डाला गया है और वहां नयी दीवार बनायी जा रही है।

अगर यह धरोहरों बचा कर रखा जाता तो आज अन्‍य पैलेस आन व्‍हील की तरह तिरहुत का भी अपना शाही ट्रेन होता। वहीं मिथिला विश्‍वविद्यालय विश्‍व का इकलौता विश्‍वविद्यालय होता जिसके परिसर में रेलवे टर्मिनल होता। बनारस और जेएनयू में जब बस टर्मिनल देखने को मिला जो यह स्‍टेशन याद आ गया। बरौनी में रखे गये पैलेस आन व्‍हील की करू तो 1975 में उसे आग के हवाले कर दिया गया। कहा जाता है कि उसे जलाने से पहले उसके कीमती सामनों को लूटा गया।

खैर तिरहुत रेलवे का इतिहास हम बताते रहेंगे…अभी आप इतना ही समझ लें तो काफी है कि तिरहुत में बिछी 70 फीसदी पटरी तिरहुत रेलवे के दौरान ही बिछायी गयी थी। आजाद भारत में महज 30 फीसदी का विस्‍तार हुआ है।

Ritu Raj Singh: I am a student.But I like to write articles on current political situation.Other local or National news.