मुजफ्फरपुर कांड: बिहार ने खो दिया अपना विकास पुरुष

कहाँ से शुरू करूँ कुछ समझ नहीं आ रहा है. हम सड़ांधों के बीच जी रहे हैं. ऊपर से ले कर नीचे तक सब मिलें हुए हैं. सबके सब कर्रप्ट हैं. किसको कोसें और किस पर भरोसा करें?

नीतीश कुमार कहते हैं, “मैं हैरत में हूँ इस शर्मनाक घटना पर जो मुज़फ़्फ़रपुर में घटा है. हमारा समाज कैसे-कैसे ‘Perverts’ से भरा पड़ा है. बिहार के लोग शर्मिंदा हैं.”

चलिए नीतीश कुमार की बात मान लेते हैं मगर लॉजिक से देखें तो मानने लायक उनकी ये दलील नहीं लगती कि उनके नाक के नीचे हो रहे इस घटना की जानकरी उनको नहीं रही होगी. आखिर सरकार की ‘जुडिशल टीम’ हर महीने शेलटर होम का दौरा करने आती थी.

सरकार की तरफ से ही “State Women’s Commission” की महिलाएं इन लड़कियों का हाल जानने आती थी. उन्होंने भी कोई शक-सुब्हा नहीं ज़ाहिर किया.

इतना ही नहीं जिला के तरफ से महिला डॉक्टर नियमित रूप से इन लड़कियों का हेल्थ-चेक अप करती थी उन्हें भी किसी के शरीर पर कोई ज़ख्म या अंदरूनी हिस्सों में कोई चोट नहीं दिखाई दी.

अब जब ब्रजेश बाबू गिरफ़्तार हो चुके हैं तो उनकी बिटिया रानी यानि कि निकिता कहती हैं, “यह बालिका गृह हमने सिर्फ किराये पर दिया था. हम सिर्फ देखभाल करते हैं मालिक इसका कोई और है. हमारे पापा निर्दोष हैं.”

ये और बात है कि आज तक जिसके नाम पर वो एनजीओ चलाया जा रहा था उसे न किसी ने देखा और न कोई उस शख़्स से रूबरू हुआ है.

अब भी नीतीश जी यही कहेंगे कि वो हैरत में हैं. उन्हें इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है.

जहाँ ब्रजेश बाबू का अख़बार ‘प्रातः कमल’ की सिर्फ 300 कॉपी ही पब्लिश होती थी वहां सरकारी आंकड़ों में 60682 कॉपी पब्लिश होती दिखाई जाती थी. बिहार सरकार की तरफ से सरकारी विज्ञापनों के लिए प्रातः कमल को 400000 लाख सालाना मिलता था. वहीं एनजीओ वाले प्रोजेक्ट्स से ब्रजेश ठाकुर की सालाना आमदनी लगभग 2.5 करोड़ से 3 करोड़ के बीच में आंकी गयी है.

तो क्या हम इतने मुर्ख हैं कि नीतीश जी आपकी कही बात मान लें?

बिहार में रहा हुआ कौन नहीं जानता है कि कैसे टेंडर हासिल करने के लिए लड़कियों की सप्लाई बाबुओं के ऑफिस और होटल में ब्रजेश बाबू करते करते थे.

उस बहती गंगा में आरजेडी से लेकर जेडीयू और बीजेपी सबके लोग शामिल थे. अब अपना दामन बचाने के लिए अलग जा कर बैठें हैं मगर मुँह अब भी नहीं खुल रहा ब्रजेश ठाकुर के खिलाफ. कारण भी साफ़ है. इस पाप में वो भी बराबर के हक़दार जो ठहरें.

नीतीश जी और उनके समर्थक अब गिनवा रहे हैं कि नितीश जी महिलाओं के सबसे बड़े आका है. उन्होंने शराब बंदी करवाई जिससे ‘घरेलु हिंसा’ कम हुआ. उन्होंने ही 50% सीट महिलाओं के लिए पंचायत चुनाव में आरक्षित करवाया. लड़कियां पढ़ें इसलिए ‘मुख़्यमंत्री बालिका साईकिल योजना’ और मुफ्त में यूनिफार्म दिलवाना शुरू करवाया. जिससे सच में लड़कियों में शिक्षा को ले कर एक नया जोश देखने को मिला.

मगर इन सभी तथ्यों का हवाला देने भर से ब्रजेश ठाकुर के मामले में वो पाक-साफ़ नहीं साबित हो जायेंगे. उनका भी दामन दाग़दार हो चला है. एक बार फिर से बिहार ने अपना ‘विकास पुरुष’ खो दिया है. नेतृत्व अब फिर से चुनौती बन कर सामने आ खड़ी हुई है. बिहार के लोग न जानें किसे चुनेंगे अपना अगला मुख्यमंत्री. कौन बनेगा तारणहार बिहार का?

ऊपर से ये कलंक, न जाने कैसे धो पायेगा बिहार अपने माथे से!

 

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