इंटरव्यू: इस बिहारी डीएम के नाम है कई कीर्तिमान, सीतामढ़ी को बनाया राज्य का पहला ओडीएफ जिला

एक कुशल नेतृत्व किसी भी क्षेत्र में बदलाव और विकास की एक असीमित गाथा लिख सकता है| गुजरात कैडर के 2008 बैच के आईएएस डॉ. रणजीत कुमार सिंह जब से सीतामढ़ी के डीएम बने हैं, बिहार के इस पिछड़े जिले में ऐसा ही कुछ हो रहा है| जब से वे सीतामढ़ी के डीएम बने है, मानों जिले का रंग, रूप और पहचान ही बदल गयी है|

हाल-फिलहाल के अख़बारों की सुर्खियाँ सीतामढ़ी की कामयाबी का डंका पिट रही है, तो वहीं दूसरी तरफ सीतामढ़ी के नाम बन रहे नित-नए कीर्तिमान देश के अन्य जिलों के लिए नजीर पेश कर रही है|

डॉ. रणजीत कुमार सिंह बिहार के बिहार के वैशाली जिले के रहने वालें हैं| 2008 बैच के आईएएस अधिकारी रणजीत कुमार सिंह मूल रूप से गुजरात कैडर के अधिकारी हैं और अभी डेपुटेशन पर अभी बिहार में कार्यत हैं| गुजरात में रहते हुए इन्होने नर्मदा जिले को गुजरात का पहला खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) जिला करवा, लिम्का बुक में अपना नाम दर्ज करवा चुकें हैं| इस कारण इन्हें गुजरात रत्ना से भी सम्मानित किया जा चुका है| अब वही रिकॉर्ड सीतामढ़ी में दोहराते हुए, वे सीतामढ़ी को भी बिहार का पहला ओडीपी जिला घोषित किया है|

इसी सब के सिलसिले में गत 17 जुलाई को ‘अपना बिहार’ के प्रधान संपादक अविनाश कुमार सीतामढ़ी जाकर, जिले में हो रहे विकास कार्यों को देखा और इसके शुत्रधार वहां के डीएम डॉ. रणजीत कुमार सिंह से इसपर विस्तृत बातचीत की| पढ़िए, सीतामढ़ी के इस होनहार डीएम का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू…


 

प्रश्न: आप जहाँ भी जाते हैं रिकॉर्ड की झरी लगा देते है| गुजरात में रहते हुए आपने अपना नाम लिम्का बुक ऑफ़ रिकार्ड्स में अपना दर्ज करवाया था| अब सीतामढ़ी डीएम के रूप में भी कई रिकार्ड्स बना चुके हैं| इसपे आप क्या कहेंगे?

जवाब: देखिये, काम करना मेरा पैशन है और मैं इस जॉब में काम करने के लिए ही आया हूँ| जो भी काम करता हूँ, वह पूरी तत्परता एवं लगन के साथ करता हूँ..क्योंकि जब मैंने UPSC पास किया तो मैंने प्रण लिया कि यह अवसर जो भगवान ने दिया है, तो मैं आलस को त्याग कर और दिन-रात एक कर जो लोगों के लिए बेहतर होगा, वह मैं करूँगा| लोगों और राज्य सरकार की उम्मीदें हमसे ज्यादा हैं| इसलिए हर पल मेरा प्रयास होता है कि मैं उनके उम्मीदों पर खड़ा उतरूँ|

इसी कड़ी में, चुकी मैं गुजरात में था, वहां मैं काम कर रहा था और कई अवार्ड्स वहां मिले| मगर अवार्ड्स से ज्यादा मुझे जॉब से संतुष्टि ज्यादा रहा|

फिर मैंने सोचा कि जो अनुभव मैंने प्राप्त किये हैं और जो काम किया है, क्यों नहीं अपने राज्य में जाकर उसे धरातल पर उतारा जाए|

इसी कड़ी में बिहार में मैं अपना डेपुटेसन करवाया और भाग्यवस डीएम के रूप में सीतामढ़ी में मेरी पोस्टिंग हुई|

यहाँ पोस्टिंग होने के बाद अपने अनुभवों के मदद से मैंने कई नये-नये काम किए| प्रशासन में जो जरता जो बनी हुई थी उसे तोड़ने का प्रयास किया| मैंने यहाँ डीएम के साथ मेनेजर के रूप में काम करने की कोशिश की|   गरीबों के लिए काम करने की कोशिश की और आगे भी कोशिश करता रहूँगा|

 

प्रश्न: हाल ही में सीतामढ़ी का समाहारालय राज्य का पहला ISO सर्टिफाइड कार्यालय बना है और जल्द ही सीतामढ़ी बिहार का पहला ओडीएफ जिला बनने जा रहा है| यह कैसे संभव हो पाया?

जवाब: इससे पहले मैं जिस राज्य में काम किया था, वहाँ का अनुभव था| ISO के लिए जो जरुरी मापदंड होता है उसे पूरा करने के लिए मैंने पहले दिन से ही कोशिश किया था| जो कार्यालय है, वह अच्छी तरह से व्यवस्थित और पूरी तरह से अत्याधुनिक हो जाए, फिर हम नीचे का कार्यालय को हम ठीक करेंगे| इसी करी में मुझे याद आया की जब मेरा कार्यालय जब पूरी तरह से अत्याधुनिक हो गया| बायोमेट्रिक अटेंडेंस, सीसीटीवी कैमरा से पूरी तरह लैस होने के बाद कार्यालय पेपरलेस भी हो गया, फिर मैंने देखा की अनुसाशन अच्छा है और इंफ्रास्ट्रक्चर को मैंने विकशित किया| तब हमने ISO के लिए अप्लाई किया| टीम ने निरक्षण कर पाया कि सीतामढ़ी कार्यालय को ISO सर्टिफिकेट दिया जा सकता है| इस तरह बिहार के किसी जिला का पहला समाहारालय है जिसे यह सर्टिफिकेट मिला है| इसके लिए सीतामढ़ी के सभी लोगों को धन्यवाद जिनके सहयोग से यह हो पाया|

 

प्रश्न: ..और जो सीतामढ़ी जिला बिहार का पहला खुले में शौच मुक्त जिला बनने जा रहा है, वह कैसे संभव हो पाया?

जवाब: एक्चुअली, ओडीएफ डिस्ट्रिक्ट का ख्याल पहले से ही मेरे दिमाग में था क्योंकि वहाँ के लोगों और जनप्रतिनिधि के सहयोग से  गुजरात का पहला ओडीएफ जिला, नर्मदा को मैंने ही बनाया था| और सीतामढ़ी में पोस्टिंग होने के बाद से ही मेरे मन में था की मैं सीतामढ़ी को पहला ओडीएफ जिला घोषित करूंगा| इसके लिए दिन-रात हमने प्रयास किया| जिले से लाकर अंचल स्तर के सभी अधिकारीयों, जनप्रतिनिधियों, मंत्रियों के साथ सभी लोगों ने इसमें बढ़-चढ़ के हिस्सा लिया|

हमने एक रणनीति बनाया की सौचालय बनाने का जो काम है वह एक साथ स्टार्ट होना चाहिए| इसी कड़ी में हमलोग 1 लाख 10 हजार गड्ढे सिर्फ एक दिन में खुदवाए थे, सभी जनप्रतिनिधियों के साथ जिसकी शरुवात मैंने खुद किया था| जब इतने गड्ढे खुद गयें तो मैंने प्रयास किया की क्यों नहीं 100 घंटें में सौचालय को पूर्ण किया जाए| हालाँकि 1 लाख 10  हजार सौचलय तो हम नहीं बनवा पाएं मगर 100 घंटे में 70 हजार सौचालय का निर्माण करवा के हम लोगों ने एक कीर्तिमान स्थापित करवा दिया| इसमे सभी लोगों का सहयोग रहा, मेरा केवल नेतृत्व रहा है|

 

इसके बाद भी हम लोग प्रयास करते रहे| लोगों को पेमेंट नही मिल रहा था| इसके लिए हमलोगों ने एक दिन में 113 करोड़ रुपया जारी किया| ऐसा अभी तक पुरे भारत में नहीं हुआ था|

उसके बाद ओडीएफ के लिए लोगों में जूनून सा आ गया| पैसे पेमेंट होने लगें, लोगों को पैसे मिलने लगे| इस महीने के आने वाले 21 तारीख को हम फिर से एक मेगा पेमेंट करने जा रहे हैं| इसी तरह में प्रधानमंत्री आवास के लिए भी करने जा रहे हैं| ओडीएफ के करीब हैं, जल्द ही हम उसकी घोसना करेंगें|

 

प्रश्न: विकास को जन आन्दोलन और जन भागेदारी के मदद से आप लगातार बड़े लक्ष्य प्राप्त कर रहे हैं| आगे 27 जुलाई को आप पेड़ लगाने का अभियान चलाने वाले हैं| इन सब चीजों के लिए लोगों को आप कैसे जागरूक करने में सफल हो पा रहे हैं?

जवाब: एक्चुअली, जब लोगों को जोड़ा जाता है तो उनको लगता है कि यह काम हमारे लिए हो रहा है| जब लोगों की भागीदारी होती हैं तो उनको लगता है यह मेरा काम है और जब केवल प्रशासन काम करती है तो उनको लगता है कि यह सिर्फ सरकार का काम है| इसलिए जब प्रशासन और लोग मिल जाते हैं तो जनभागीदारी होती है, और इस से हम कोई भी स्कीम सफल बना सकते हैं| इसीलिए हम लोगों ने जनआन्दोलन किया, साईकल रैली किया, उससे पहले स्वच्छता कप क्रिकेट, कब्बडी और कुश्ती का आयोजन करवाया, विदद्यालयों में रैली निकलवाया, विद्यालय पर्व उत्सव मनवाया| एक घंटे में 18 हजार बच्चों का एडमिशन होना भी एक क्रितिमान है सीतामढ़ी के लिए| कई क्रितिमान बने उस सभी में यह रहा कि सभी में लोगों की भागेदारी रही| हमने जुलुस भी निकालें जिसमे बच्चें से लेकर बुढ़ें तक ने भाग लिया| अच्छी बात यह रही कि उसमें जनप्रतिनिधि जैसे विधायक और एमपी ने भी भाग लिया और सहयोग किया|

प्रश्न: मैंने अख़बारों में पढ़ा कि 27 जुलाई को आप वृक्ष रोपण को लेकर भी मुहिम चलाने की तैयारी कर रहे हैं?

जवाब: हाँ, हम लोग सीतामढ़ी वासियों से अपील कर रहें हैं कि एक-एक कम से कम पेड़ लगायेंगें| और अगर एक-एक पौधा लगा पायें तो हम लोग लगभग 40 लाख पौधे हम लोग लगा पायेंगें|  अगर यदा हो पाया तो दुनिया में पहली बार होगा कि एक दिन में 40 लाख पौधा लगाया जायेगा| इसके पीछे कारण सिर्फ रिकॉर्ड बनाना नहीं है, इसके पीछे कारण है कि पर्यावरण को हमे बचाना है| इसके लिए नारा ही यही है कि पौधा लगाओ, जीवन बचाओ!

इस अभियान में लोग पौधे खुद अपने बगान से लायेंगें, उसे लगायेंगे और उसकी सेवा करेंगे|

प्रश्न: सीतामढ़ी डीएम के रूप में आगे आपके प्राथिमिकताओं में क्या-क्या प्रमुख है?

जवाब: देखिये, मेरी प्रथिमिकताओं में हैं कि सभी लोगों को आवास उपलब्ध करवाना, इसके लिए प्रधानमंत्री आवास योजना को बिद्युत गति से आगे बढ़ाना| बृद्धा पेंशन में सभी को कवरेज देना, राशन कार्ड को ठीक करना, करप्शन को पूरी तरह से जीरो टॉलरेंस के लेवल पर लाना, लोगों का विश्वास प्रशासन के साथ हो और जितने भी विकास के काम हो जैसे की रोड बनवाना, मनरेगा या जीविका जैसे सभी कामों में मेरी प्राथिमिकता है कि सीतामढ़ी को नंबर एक पर ले जाना|

 

प्रश्न: आपके बारे में पढ़ा कि आप जब UPSC की तैयारी कर रहे थे तो 6 साल तक घर नहीं गये, जब तक कि आप UPSC क्वालीफाई न कर गये| वैशाली जिले के एक साधारण युवा से सीतामढ़ी के डीएम तक की अपनी यात्रा के बारे में कुछ बताये…

जवाब: एक्चुअली, मैं पटना कॉलेज में पढ़ता था| चूँकि घर पर बहुत सारी समस्यां थी, जब मैं 6ठी क्लास में पढ़ता था, तभी से मेरा लक्ष्य था कि मुझे आईएएस ही बनाना है| मैं यह तो नहीं कहूँगा कि मैं पढ़ने में बहुत तेज था, लेकिन मैं कभीं सेकेंड नहीं हुआ|  जहाँ भी पढ़ा टॉप रहा, यूनिवर्सिटी में भी टॉप करता रहा| हमेसा मेरी कोशिश रही है कि मैं बेहतर करूँ| मेरे में जूनून जैसा है कि मैं जो ठान लेता हूँ उसे पूरा करने की कोशिश करता हूँ| इसी कड़ी में पहली बार जब मैं क्वालीफाई करने जा रहा था तो मैं एग्जाम नहीं दिया, फिर दो साल एक्साम नही दिया, एक साल मेरा इंटरव्यू हुआ, फिर दुसरे साल मेरा पीटी नहीं हुआ| तबतक मेरा 5 साल निकल गया|

मैं सोच के रखा था की जबतक मैं आईएएस नहीं बनूँगा गाँव में नही जाऊंगा| और इसी के चलते समय निकलता गया और 5-6 साल तक मैं घर नहीं गया| जब आईएएस बना तो पहली बार मैं घर गया| तब लोगों ने मुझे 5-7 साल बाद देखा कि मैं बड़ा हो चुका हूँ|

प्रश्न: आप पटना में गरीब बच्चों के लिए मिशन 50 आईएस संस्थान भी चलवा रहें हैं| इसके बारे में बताये?

जवाब: एक्चुअली, मिशन 50 सिविल सर्विसेज के तैयारियों के लिए हैं, यूपीएससी और स्टेट यूपीएससी की तैयारी करवाती है| उसके एंट्रेंस एक्साम होते हैं|उसमे 50 बच्चों को सेलेक्ट किया जाता है| जिसको फ्री में क्लासेज कराए जाते हैं| मेरा उद्देश्य है कि तैयारी के लिए जिस तरह से मैं परेशान हुआ हूँ, गाइडेंस के आभाव में खुद से तैयारी की है, वह दुसरे बच्चें न हो|

प्रतिभा बहुत है बिहार में, उसे उभारने के मकसद से मैंने मिशन 50 की स्थापना किया है| यहाँ तक कि सीतामढ़ी के 14 में से 4 बीडीओ मेरे छात्र हैं|

प्रश्न: इसके एंट्रेंस एक्साम में कौन बैठ सकता है?

जवाब: जो बच्चें ग्रेजुएशन के अंतिम वर्ष के छात्र हैं या जो ग्रेजुएशन पास कर चुकें हैं वह बच्चे इसके एंट्रेंस एग्जाम में बैठ सकते हैं|

प्रश्न: बिहार के लाखों छात्र जो UPSC की तैयारी कर रहें हैं उनके लिए आपके तरफ से कोई टीप्स?

जवाब: मैं उनके लिए यही कहूँगा कि हर हाल में आपको अगर लक्ष्य प्राप्त करना है तो जुनूनी होना पड़ेगा| सारी दुनिया को छोड़ के दिन और रात आपको आईएएस के लिए जीना होगा…क्योकि यह बहुत बड़ा संघर्ष है और और बहुत बड़ा प्रतियोगिता है, उसमे आप हर चीज़ को लेकर चलेंगे तो आप आईएएस नही बन सकते हैं| असंभव नहीं है, मुश्किल जरुर है| मुश्किल को आसान बनाया जा सकता है अपने जूनून, मेहनत, और लगन के द्वारा आप इसे हासिल कर सकते हैं| हर आदमी में एक बहुत बड़ा सकती छुपी होती है|

जैसे हनुमान को जामवंत ने बताया तह की आप उड़ सकते हो, उसी तरह मैं आपको बताता हूँ कि हर युवा में वह क्षमता जैसी मेरी क्षमता है| उसे उभारने और पॉजिटिव वे में ले जाने की जरुरत है|

प्रश्न: आज कल सोशल मीडिया पर एक MEME बहुत वायरल हो रहा है कि बिहारियों का जब दिल टूटता है तो आईएएस बनता है| इसपर एक बिहारी आईएएस के नाते क्या कहना है?

जवाब: (जोड़ से हसते हुए) एक्चुअली, दिल का मामला होता है, वह कॉलेज में होता है| और यह आधा सत्य भी है कि जब दिल टूटता है तो लोग बहुत बेहतर करते हैं, नहीं तो बहुत बेकार करते हैं| अच्छा है कि बहुत बेटर करना चाहिए|

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