मत भूलिए, 121 करोड़ में एक हिन्दुस्तान मैं हूँ, 121 करोड़ में एक हिन्दुस्तान आप भी हैं

आज़ादी की सत्तरवीं सालगिरह की बहुत बधाई!

सत्तर साल का हो चुका नए भारत का सपना! सपने को साकार करने के लिए ये सत्तर साल कितने काफी या नाकाफी हैं, इसके बारे में चर्चा थोड़ी अजीब लगती है। अजीब तो ये भी लगता है कि आज भी हम वही सत्तर साल पुराना सपना ही देखते हैं; सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा। इसकी दो प्रमुख वजह हो सकती है; या तो सत्तर साल पहले देखा गया वो ख़्वाब कुछ ज्यादा ही दूरदर्शी था, या फिर उन सपनों के साकार होने में मिली नाकामयाबी से हम नए ख़्वाब देखने की हिम्मत ही खो चुके हैं। ये दोनों की स्थितियाँ हमारी बेबसी उजागर करने को काफी हैं।

सड़कों के विस्तार के मामले में भले हम विश्व में तीसरे पायदान पर हों, पर आज भी सड़कों पर जलजमाव या ट्रैफिक जाम की समस्या कायम है। आज भी देश के अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी से एक ही दिन में 30 बच्चों की साँसें रुक जाती हैं। आज देश ‘शिक्षा का अधिकार’ प्राप्त कर चुका है, पर शिक्षा व्यवस्था बच्चों को कदाचार से अब भी नहीं रोक पाती, अब भी देश के 11.46% प्राथमिक विद्यालय एक शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं, अब भी 17 लाख से अधिक बच्चे स्कूल के दरवाजे से अंदर जाने के बस सपने ही देख पाते हैं।

तमाम खबरों को देख रूह सिर्फ सिहरती ही है। पत्रकारिता के नाम पर ‘चोटिकटवा’ के किस्से हैं तो नेतागिरी के नाम पर घोटाले। शांति के नाम पर सरहदें काँप रही हैं तो हवस से नारी सशक्तिकरण जैसा हर शब्द कराह रहा है।

लेकिन आज ये अखबारों वाली बातें नहीं करनी, आज सोशल मीडिया की लड़ाइयों में शामिल नहीं होना।

आज सिर्फ जश्न! ये जश्न इसलिए नहीं कि हम वाकई आगे बढ़ चुके हैं, इसलिए भी नहीं कि हम इतने आगे बढ़ चुके हैं कि समाज सेवा करने से पहले हम ये जाँच लेते हैं इसकी खबर कहाँ-कहाँ तक इस्तेमाल की जा सकेगी; इसलिए भी नहीं कि हम सोशल मीडिया पर औरतों की सुरक्षा और उनकी आज़ादी को लेकर वीडियोज शेयर करने में नहीं झिझक रहे।

ये जश्न इसलिए कि यही हमारे जीने की उम्मीद है। ये जश्न ही हमें एहसास कराने को काफी है कि हम आजाद हैं। ये जश्न इसलिए भी कि इस सालाना दिन को देश का एक-एक शख्स मनाना चाहता है। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हर कोई इस दिन ‘देश’ नाम की चिड़िया को याद करता है, चाहे वो रिक्शाचालक हो या फिर बड़े से बड़ा उद्यमी, चाहे वो कलाकार हो या खिलाड़ी, बच्चा हो या सत्तर साल का बुजुर्ग।

इस जश्न को राजनीति के नाम पर फीका न होने दीजिए। इस तिरंगे को रंगों में बाँटकर तहस-नहस मत कीजिये। इस दिन को नए उमंग के साथ मनाइये, जैसे बच्चे मनाते हैं। इसे सोशल मीडिया पर देश की बदहाल स्थिति दिखाकर ध्वस्त मत कीजिये। इस एक दिन को भरपूर जीने की कोशिश कीजिये। स्वर्णिम इतिहास को याद न करना हो तो न सही, अगली पीढ़ी के हिस्से नए ख़्वाब सौंपने में लगाइए ये दिन। महान विभूतियों से प्रेरणा लेकर युवाओं में देशप्रेम का जज़्बा कायम करने में अपनी हिस्सेदारी निभाइये। ये बातें बड़ी-बड़ी नहीं हैं, बल्कि ये हमारे लिए अपनी मातृभूमि पर विश्वास कायम करने का एक माध्यम है। ये तिरंगे की शान में अपनी भागेदारी दिखाने का जरिया है। अपने सैनिकों पर, अपने किसानों पर, अपने देश पर ईमानदार भरोसा दिखाकर हम निश्चित ही एक सकारात्मक माहौल बना सकेंगे। मत भूलिए, 1/121 करोड़ हिन्दुस्तान मैं हूँ, 1/121 करोड़ हिन्दुस्तान आप भी हैं।

नेहा नूपुर: पलकों के आसमान में नए रंग भरने की चाहत के साथ शब्दों के ताने-बाने गुनती हूँ, बुनती हूँ। In short, कवि हूँ मैं @जीवन के नूपुर और ब्लॉगर भी।