EXCLUSIVE : बदलते बिहार के नायक और नये बिहार के लाल ‘नीलोत्पल मृणाल’

इधर बिहार अपने सबसे बड़े आयोजन की तैयारियों में मशगुल था, देश-विदेश से तमाम नामचीन हस्तियों का आना-जाना लगा हुआ था, स्वागत में लिप्त था पूरा बिहार और उधर एक मशहुर वेबसाइट ने हंगामा बरपा दिया। बात फिर वही ‘बिहार’ और ‘बिहारी’ स्मिता पर सवाल दागती एक तस्वीर जो कुछ लोगों की तुक्ष मानसिकता की पुष्टि करती है।

बात कुछ महीने पहले की है जब एक ओर पटनासाहिब में सिक्खों के दसवें गुरू गुरू गोविंद सिंह का 350वां प्रकाशोत्सव मनाया जा रहा था, दूसरी ओर बोधगया में बौद्ध धर्म कालचक्र का उत्सव चल रहा था,

उसी बीच ‘दी लल्लनटॉप’ जैसी लोकप्रिय वेबसाइट ने बिहार की स्मिता को दाव पर लगाती हुई तस्वीर डाली। वो शायद नहीं जानते थे कि बिहारी या देश के हर कोने में मौजुद देश की एकता के रखवाले इस कृत्य को बर्दाश्त नहीं करने वाले।

दिल्ली में यूपीएससी की तैयारी कर रहे एवं युवा साहित्य अकादमी पुरस्कार से अलंकृत युवा ने अपनी सच्ची देशभक्ति दिखाई, उनका मामला कोर्ट में घसीटा और हार स्वीकारते हुए उन्हें वो तस्वीर हटाने को विवश कर दिया।

‘ग्लोबल गुमटी’ के बैनर तले लायी गयी इनकी वीडियो बिहारियों के बीच खासी लोकप्रिय रही। ‘बिहार दिवस’ को भी एक खास गीत के साथ बिहारियों का आह्वान किया था इन्होंने। गाहे-बगाहे बिहार की स्मिता को लेकर इनकी कविताएँ आती रही हैं, सराही जाती रही हैं। बदलते बिहार के प्रेरणास्रोत, नये बिहार के नायक मृणाल नीलोत्पल न सिर्फ एक साहित्यकार बल्कि अपनी हाज़िरजवाबी के लिए भी जाने जाते हैं।

आपन बिहार‘ की खास बातचीत हुई उसी खाटी ‘बिहारी’ और लेखक-कवि यानी साहित्यकार मृणाल नीलोत्पल से जिनकी पहली ही पुस्तक डार्क हॉर्स न सिर्फ बेस्ट सेलर रही बल्कि साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी नवाजी गई।

 

 

वो कौन सी चीजें हैं जिसके लिए आप गर्व से कहते हैं, “हाँ मैं बिहारी हूँ”?

मृणाल- इसका एक कारण तो नहीं हो सकता| लिखित फॉर्म में तो अतीत ही बताता है जिसके कारण मैं कहता हूँ कि “हाँ! मैं बिहारी हूँ”| इतना तो है कि हर व्यक्ति के अंदर ‘आत्मसम्मान’ को बनाये रखने के लिए कई प्रेरणाएँ मिलती रहती हैं|

वो आपके देश की घटनाओं से भी मिलती रहती हैं, वो अतीत की घटनाओं से भी मिलती हैं| सम्पूर्ण भारत के इतिहास की शुरूआत मगध राजवंश से होती है, जो बिहार में ही है| अगर आध्यात्मिक तौर पर भी देखें तो भारत में जितने भी धार्मिक आन्दोलन हुए उसमें से दो सबसे बड़े आन्दोलन के प्रणेता गौतम बुद्ध और महावीर थे, जो बिहार से ही हैं| इसे आप संयोग कहिये या मिट्टी का भाग्य कहिये| ये सब चीजें हैं जो कहती हैं कि हमें गर्व करना चाहिए और इसे आगे बढ़ाना चाहिए ताकि ये बना रहे, दिखता रहे|

 

वर्तमान परिपेक्ष में आप बिहार को कैसे देखते हैं ?

मृणाल- पूरे देश को विकसित करने में बिहार का भी हिस्सा है| स्वर्णिम अतीत से प्रेरणा लेकर वर्तमान कैसा गढ़ रहे हैं, ये महत्वपूर्ण है| किसी भी समाज को बेहतर करने के लिए शिक्षा, सुरक्षा जैसी बुनियादी कसौटियां हैं जिन पर आप विकास को परख सकते हैं|बिहार में प्रतिभा है मगर बिहार ने अपनी शाख को खोया है- शिक्षा, स्वास्थ्य एवं कानून व्यवस्था में| इससे कोई बिहारी इंकार नहीं कर सकता| लेकिन ये बिहारियों का अपना आत्मबल था कि बिहार ने भले ही अपनी शाख खोयी मगर बिहारियों ने नहीं खोया| बिहारी टॉप हैं, बिहार कहीं पिछड़ रहा है| बिहारियों की प्रतिभा का गौरव बिहार को नहीं मिला क्योंकि बिहार के अन्दर वो वातावरण नहीं था| इसका निर्माण पिछले ५-१० सालों में होने लगा है| उद्योग तथा शिक्षा के लिए संभावनाएं बढ़ी हैं| ये जो रूबी राय का मामला आया, ये हमारे सड़े हुए सिस्टम का मामला है| पिछले १५ सालों से ऐसा हो रहा था और अब पोल खुल गयी| जब हमारे घाव का पता लगे तो उसका इलाज़ होता है| इसे हम बहुत बुरे तौर पर नहीं देखें; कुछ चीजें पता भी लगनी चाहियें, इसका इलाज भी ज़रूरी है| सोशल मीडिया के जरिया जागरूकता भी फैली है| पहले आम आदमी बिहार के बारे में बात नहीं करता था| आज आप और हम बात कर रहे हैं| इसका तो असर पड़ेगा ही बिहार की सेहत पर| अब वातावरण बनना चाहिए, अभी बना नहीं है पूरी तरह से| बिहारियों की प्रतिभा बिहार में ही कैसे फलीभूत हो जाय इसके लिए सरकार को प्रयास करना होगा|

 

बिहार / झारखण्ड के होने की वजह से क्या आपको कभी भेदभाव झेलना पड़ा?

मृणाल- हाँ वो तो हर बिहारी को झेलना ही पड़ता है| वजह भी है| यहाँ की जो हाई क्लास सोसाइटी थी, उन्होंने बिहार छोड़ने के बाद बिहार को भुला दिया| वो ब्लैक होल में समा गये| बिहार छूटा तो उनको लगा कि पिंड छूटा| इंजीनियर बिहार के बारे में बात ही नहीं करता था, और जो बात करता था वो मजदूर वर्ग था, वो अपनी भाषा में बात करता था और नजर में चढ़ जाता था कि वो बिहारी है|

हमारा प्रस्तुतिकरण इंजीनियर से न होकर मजदूर वर्ग से हो गया| अगर कोई आईएएस, आईएएस होने के बाद भी भोजपुरी में बात करता तो हमारी छवि ऐसी नहीं बनती| जैसे लिट्टी को एलिट क्लास के लोग भी खाते हैं इसलिए यह भी एलिट भोजन बन गया| जो बिहारी सफल हुए उन्होंने बिहार की विरासत को क्यों नहीं बचाया! दो मजदूर आपस में भोजपुरी, मैथली, मगही में बात करता है मगर दो आईएएस इंग्लिश, हिंदी में बात करता है| जो सफल सक्षम लोग थे उन्होंने बिहार को क्यों प्रस्तुतु नहीं किया|

जो गाना हमने गया वो गाना रिक्सावाला गाता तो क्या ध्यान जाता लोगो का? कभी नहीं जाता| सफल बिहारियों की जिम्मेदारी है कि हम अपने कल्चर को कैसे प्रस्तुत करते हैं|

काटजू जी जैसे जहीन लोगों की बिहार व बिहारियों के प्रति सोच क्या दर्शाती है?

मृणाल- काटजू जी के बगल में बैठा बिहारी जज अगर इस बारे में ऑब्जेक्शन उठाता तब उनके दिमाग से सारा धूरा साफ़ हो जाता| हमने अपनी छवि को खोया ही इतना अधिक है कि अब हमें खुद एटेम्पट लेना होगा, आत्मविश्वासी बनना होगा| हम 5 स्टार में चम्मच से खा सकते हैं मगर हमें इसलिए भी हाथ से खाना होगा कि एलिट क्लास की नज़र में ये बात आ जाये कि एक बिहारी ऐसे रहता है|

 

सरकारी नौकरी के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं का जो क्रेज़ है, उसके बारे में आप क्या कहेंगे?

मृणाल- किसी इंजीनियर या फैशन डिज़ाइनर के लिए अपने क्वालिफिकेशन के साथ अपने ही राज्य में जॉब लेने की सम्भावनाएं काफी कम हैं| लेकिन आप BPSC पास करके अपने राज्य में नौकरी कर सकते हैं| प्रतियोगिता परीक्षा हमें सुरक्षित जीवन और कर्तव्यबोध देती है| यही वजह है कि विद्यार्थियों का रूझान इस तरफ रहता है| अगर अन्य क्षेत्रों में भी इंफ्रास्ट्रक्चर होता तो उस तरफ भी युवाओं का आकर्षण होता| अब बिहार में फिल्म उद्द्योग आने वाला है| अब आरा और मोतिहारी का लड़का भी हिम्मत कर रहा है कलम उठाने की| जो चीजें संभावना देंगी उधर आकर्षण बढ़ेगा| पहले पढ़ाई ही एक विकल्प था|

मैं ही IAS की तैयारी करता हूँ मगर मेरा नौकरी करने का कोई इरादा नहीं है| मैंने तय किया है कि मैं लिखूँगा, सोशल एक्टिविटी करूँगा, पॉलिटिक्स में जाऊँगा| मुझे नहीं लगता कि सरकारी नौकरी नहीं लगा तो क्या करूँगा|

 

डार्क हॉर्स के बारे में कुछ बताएं|

मृणाल- डार्क हॉर्स मेरी पहली उपन्यास है| ये मुख़र्जी नगर में IAS की तैयारी करने वाले नवजवानों की जिंदगी पर आधारित है| इसमें दिखाया गया है कि हम अलग परिवेश में आते हैं तो कैसे हमारा मानसिक परिवर्तन होता है, जीवनशैली कैसे बदलती है, क्या संघर्ष है, कैसे वो संघर्ष सिर्फ हमारा नहीं हमारे घरवालों का भी है| डार्क हॉर्स का थीम है कि आप जिससे कोई उम्मीद नहीं रखते, वो भी सफल हो सकता है| मैं भाग्यशाली रहा हूँ कि इस युग में भी मुझे इस किताब के लिए हजारों पोस्ट्स आये हैं और मेरी पहली ही कृति साहित्य अकादमी भी पा चुकी है| इससे साहित्यकार के रूप में एक पहचान बनी मेरी|

 

 अगली पेशकश के बारे में कुछ बताएं।

 

मृणाल- हाँ उसपर भी काम हो रहा है| वो अलग पृष्ठभूमि पर है| वो एक ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास है| और डार्क हॉर्स के तो सात संस्करण निकल भी चुके हैं, अच्छा जा रहा है|

 

युवाओं से आप क्या अपेक्षा रखते हैं?

मृणाल- अपेक्षा यही है कि अपने ढर्रे को तोड़िए| आत्मचिंतन से बाहर आइये, तब आप जिम्मेवार भी बनेंगे और समाधान भी ढूँढ पाएँगे| यूथ को क्रेज़ी होने से बचना चाहिए| रियेक्ट या रेस्पोंस करने में समय लेना सीखना होगा| किसी घटना का व्यापक परिपेक्ष सोचना होगा|

 

लेखनी कितना मुश्किल है, आज के दौर में?

मृणाल- सोशल मीडिया के दौर में हर कोई लिख सकता है, लिख रहा है| लेखक हर कोई है, मामला गुणवत्ता का है|

 

पढ़ाई, नौकरी, लेखनी और कार्यक्रम के साथ सामंजस्य बैठाना कितना मुश्किल है?

मृणाल- हाँ, मुश्किल तो है, लेकिन ये निर्भर करता है कि आप कितने समर्पित हैं और किस तरफ समर्पित हैं| काम के प्रति दीवानगी हो तो चीजें आसान हो जाती हैं|

 

 सिविल परीक्षाओं की तैयारी में आये युवाओं की कहानी आपने लिख दी, आपकी क्या कहानी है?

मृणाल- मैं भी लाखों युवाओं में शामिल हूँ| साधारण लड़का हूँ जो सफलता के लिए चिंतन कर रहा है, मेहनत कर रहा है और वही कहानी मेरी भी है कि बेहतर करने की कोशिश कर रहा हूँ|

 

आप खुद जिस परीक्षा में शामिल हो रहे हैं, आपको अपने ऊपर ही सवाल मिल जाता है, जिसका उत्तर खुद आपका ही नाम है, कैसा लगा था वो पल?

मृणाल- मैंने उसे 24 घंटे बाद फेसबुक पर डाला था, मैं पहले खुद कूल हो लेना चाहता था| उपलब्धि जिम्मेदारी बढ़ाने का मामला है| पुरस्कार मिलने के बाद लोग इसका इस्तेमाल आपके काम के ऊपर हथियार के रूप में भी करने लगते हैं| तो इस जिम्मेदारी को कैसे निभाया जाए, इसपर सोचने का काम बढ़ गया है मेरा| मुखर्जी नगर में रहते हुए ये सब देख लेना बड़ा रोचक है| यहाँ पढ़ने वाली जो किताबें हैं, उनमें अपना नाम देखता हूँ, तो अच्छा तो लगता ही है| ये मेरे लिए रोमांचकारी है और बड़ा अवसर है|

 

परिवार और माता-पिता की प्रतिकिया क्या आती है, लिखने को लेकर?

मृणाल- अब सोसाइटी थोड़ी बदली है| मेरे पुरस्कार मिलने पर पूरे गाँव में भोज हुआ था| हालाँकि कुछ लोगों को मालूम नहीं था कि ये कैसा पुरस्कार मिला है| जब उन्हें बताया गया तो वो भी उत्साहित हुए|

युट्यूब पर आप कविताओं के लिए ज्यादा जाने गये और किताब उपन्यास के रूप में आई, इतना वेरिएशन?

मृणाल- कवितायें लिखना और गाना, ये भी मेरा एक काम है| मुझे लगता है इसके माध्यम से भी कुछ दिया जा सकता है समाज को| मंच पर मुझे यही परफॉर्म करना बेहतर लगता है| इससे ज्यादा लोग कनेक्ट भी होते हैं| मेहनत थोड़ा कम होता है और ज्यादा लोगों तक बात पहुँच सकती है|

 

आप अखंडित बिहार के लाल हैं, मतलब आपका गाँव बिहार में है, और लालन-पालन झारखण्ड में हुआ है| राज्य के विभाजन के बाद आई एक पीढ़ी जरूर जानना चाहेगी कि ये पहचान में परिवर्तन कैसा अनुभव देता है जब आप अचानक एक ‘बिहारी’ से एक ‘झारखंडी’ कहलाने लगते हैं? कितना वक्त लगता है इसे स्वीकारने में?

मृणाल- गैर आदिवासियों में साठ प्रतिशत ऐसे लोग हैं जो शुद्धतम बिहारी हैं, जिन्हें छठ-दिवाली में घर जाना है, बिहार जाना है| मेरा घर मुंगेर जिले में संग्रामपुर गाँव में है जहाँ मेरी दादी और चाचा रहते हैं| हम बिरसा मुंडा, तिलक मांझी वैगेरह को तब से देखते आये हैं जब बिहार-झारखण्ड एक थे|

हम एक बिहारी के तौर पर मंडल की थाप सुनते आये हैं| तो हमलोग के लिए ये बहुत ज्यादा फर्क नहीं डालता| ये और भी अच्छा है कि जो राजनैतिक या भौगोलिक विभाजन है, उसका हम मानसिक विभाजन न करें| मानसिक रूप से अभी भी बिहार-झारखण्ड एक दुसरे को महसूस करते हैं।

 

इन्टरनेट से जुड़ी इस पीढ़ी को क्या सन्देश देंगे?

मृणाल- इन्टरनेट के माध्यम से आप अपनी प्रतिक्रिया तुरंत दे सकते हैं, बिना एक क्षण गंवाए| ऐसे में अपनी प्रतिक्रिया को पहले जाँच लें, परख लें, बुलंद कर लें, क्योंकि निकल गयी बात से आपके व्यक्तित्व का मूल्यांकन होता है। इंटरनेट की पीढ़ी थोड़ा धैर्य धरे!

 

UPSC की तैयारी कर रहे छात्रों के लिए कोई  संदेश?

मृणाल- UPSC की तैयारी करने वाले लोग अपना विकल्प जरूर तैयार रखें। इसका तैयारी करने रस्सी पर चलने जैसा है, जिसे अगर आप पर कर जाते हैं तो तालियाँ बजेंगी और बीच मे गिर जाते हैं तो दिक्कत वाली बात है, नीचे जाल भी नहीं लगा हुआ है। तो इसकी तैयारी करने वालों को कैरियर का एक विकल्प जरूर रखना चाहिए।

 

तमाम ऐसे बिहारी जो बिहार की बदलती तस्वीर प्रस्तुत कर रहे हैं, उनके लिए क्या कहना चाहेंगे?

मृणाल- 

लोगों के मन में ये जो भ्रांति है कि बिहार अपना भविष्य गढ़ रहा है कि नहीं, जहाँ हर बात पोलिटिकल बयाँ से तय होती है, वहाँ ‘अपना बिहार‘ जैसी टीम उदाहरण बनकर आयी है कि वहाँ का युवा अपनी संस्कृति, अपने परिवेश, अपनी जड़ों के बारे में सोचता है। अपनी जड़ों में खाद-पानी डालने वालों के हम आभारी हैं और हम आभारी हैं आपके इस काम के, ऐसे ही लोग बिहार की छवि बदलेंगे और सोशल मीडिया की मुख्यधारा पर बिहार की संस्कृति की तस्वीरें लेकर आएँगे। इसलिए आपकी टीम को बहुत बधाई!

आपकी टीम है तो हमें भी साहस मिलता है कि हम जो कहेंगे उसे कोई किशनगंज, अररिया, मुंगेर तक पहुँचा सकता है और यहाँ के मध्यम से मॉरीशस, फिज़ी, सूरीनाम या देश के अंदर भी जहाँ बिहारी हैं वहाँ भी हमारी बात पहुँचाने के लिए कार्यशील है। बहुत-बहुत बधाई आपकी टीम को। हमलोग से भी जो हो सकेगा बिहार के लिए करते रहेंगे।

नेहा नूपुर: पलकों के आसमान में नए रंग भरने की चाहत के साथ शब्दों के ताने-बाने गुनती हूँ, बुनती हूँ। In short, कवि हूँ मैं @जीवन के नूपुर और ब्लॉगर भी।