एक प्रवासी बिहारी युवा का ख़त मुख्यमंत्री जी के नाम

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आदरणीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी

 

आशा है की आप स्वस्थ और सुचारु होंगे। आप दुधो नहाएँ फुले-फलें और चक्रवर्ती बनें पर इस पत्र के माध्यम से एक प्रवासी युवा जिसको 6 साल पहले बिहार छोरना पड़ा था उसने अपने मन का कुछ प्रश्न अपने प्रदेश के सबसे बड़े नेता से करना चाहता है।

जब आप 2005 मे मुख्यमंत्री बने थे तो मैं बच्चा था पर आपके जीतने के खुशी मे सबके साथ मैं भी नाचा, मुझे इसका मतलब पता नही था मैं सिर्फ ग्यारह साल का था पर मैंने देखा की मेरे आस-पास के सब लोग बहुत खुश थे।

सबको एक आस थी अब बदलेगा, गरीब-बीमारु-भ्रष्ट राज्य का तमगा हमसे हटेगा। शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषी, सड़क, बिजली, भ्रष्टाचार और अपराध जैसे चीजों मे आप बदलाव लाएँगे इसलिए आपको सुशासन बाबू का नाम दिया गया। ये सब देख के एक बच्चा आशान्वित था और अपने भविष्य को लेकर सुरक्षित महसूस कर रहा था।

 

वक्त आगे बढ़ता गया, मैं बड़ा होता गया। अब-तक न मैंने शहर देखा था और न दूसरा राज्य। खबरों मे पढ़ता था की

बिहार अब विकास कर रहा है, आपने शिक्षकों की भर्तीयाँ कारवाई, साइकिल बांटी, सड़कें बनवाई,बिजली पहुंचवाई, अपराधियों और भ्रस्ट अफसरों पर नकेल कसी ।

ये सब मैं सुनता था और एक बच्चे के तौर पर सुकून और संतोष का अनुभव करता था। मुझे अपने गाँव और आस-पास मे कुछ बदलाव देखने को नही मिलता था पर मैं सोचता था की अभी वक्त लगेगा यहाँ तक पहुँचने में। मुझे बताया जाता था की पिछले सरकारों ने बिहार को बहुत पीछे कर दिया था इसलिए विकास को पटरी पर आने मे वक्त लगेगा, ये बात मैं भी मानता था।

 

फिर आया 2010, जनता ने आपको फिर चुना। आपने पूराने बंद पड़े मिलों और कारखानों को फिर से खुलवाने की बात की, शैक्षणिक हालात सुधारने की बात की, पलायन रोकने की बात की,  तो जनता ने आप पर फिर भरोषा किया। सबके साथ मैंने भी किया । अब तो पाँच साल हो गए हैं, अब शायद पटरी पर ट्रेन आ गयी है और अब गति पकड़ेगी।

एक साल बाद मुझे पढ़ाई के लिए दूसरे राज्य मे जाना पड़ा क्योंकि मुझे आगे इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए बिहार मे कोई समुचित संस्थान नहीं मिला। मैंने फिर भी सोचा की वक्त के साथ शायद हालात बदल जाएगी और पढ़ने के बाद नौकरी के लिए मुझे वापस आने का मौका मिलेगा। अब मैं बाहर था और इसलिए बिहार के जमीनी हकीकत से दूर था, जब मैंने दूसरा राज्य और शहर देखा तो फिर मुझे पता चला कि हम कितने पीछे हैं। हमारे राज्य के मजदूर ट्रेनों के जेनरल डब्बे मे भर-भर कर दिहारी मजदूरी के लिए आ रहे थे, यहाँ शहरों में फुटपाथ पर ठेला, रेडी लगा रहे थे। समय-समय पर उन्हें स्थानीय लोगों से गाली-मार सहनी पड़ती थी, बिहारी शब्द एक गाली के तौर पर प्रयुक्त होता था हमारे लिए। हमने ये सब देखा और सहा इस उम्मीद में की आगे सब बदलेगा, शायद वहाँ बिहार मे विकास हो रहा है क्योंकि खबरों में आप अब भी विकास पुरुष के तौर पर दिखाए जा रहे थे।

यहाँ बाहरी लोग बिहार को लालू से रीलेट करते थे और हंसी उड़ाते थे तो हमने उनको आप का नाम बताना शुरू किया ताकि बिहार को एक दूसरा उदाहरण मिले।

 

अब मैं वयस्क हो रहा था और चीजें मेरे समझ मे आने लगी थी। ये समझ अब मुश्किल खड़ी कर रहा था मेरे भरोसे के सामने। नए खुले दारू के ठेकों और शराब के उत्पादन से जीडीपी का ग्रोथ रेट खबरों मे था, केंद्र सरकार के हाईवे बन जाने से और पीले बल्ब वाले बिजली पहुँच जाने से विकास का ढ़ोल बजाया जा रहा था। पर अब, जब मैं गाँव जाता था तो मुझे दिखने लगा था की जिस बदलाव की खबरें हम बाहर पढ़ते हैं वो अब तक जमीन पर पहुंची ही नहीं है। लोग अब भी पलायन कर रहे थे और पहले से भी ज्यादा, शिक्षा व्यवस्था अपने निचले स्तर पर पहुँच चुका था, गांवों मे लोग खेती बंद कर रहे थे, स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव मे जब गर्भवती महिलाओं को मरते देखा तो फिर आपसे भरोसा टूटने लगा।

एक भी बंद पड़ा चीनी मिल या कोई भी कारख़ाना आप खुलवा नहीं सके, एक भी शिक्षण संस्थान या विश्वविद्यालय की हालत आप सुधार नहीं सके, एक भी खेत तक पानी आप नही पहुंचवा सके। लोग अब शिकायत नही कर रहे थे, वो थक गए थे और हार गए थे। नाउम्मीदी हावी थी। मैं अब युवा हो चुका था और ये सब देख सकता था।

 

फिर 2014 के लोकसभा चुनावों का दौर आया, राजनीति अपने चरम पर थी। उठा-पटक के इस दौर मे आपने भी क्या खूब खेल खेला!  एनडीए से नाता तोड़ा और लोकसभा चुनाव मे आपकी पार्टी के हार के बाद एक आपने एक कठपुतली मंत्री को मुख्यमंत्री के रुप में बिहार के ऊपर थोप दिया वह भी बिलकुल लालू द्वारा राबरी को मुख्यमंत्री बनाने के स्टाइल में ।

कुछ दिनों बाद जब मांझी जी ने सत्ता छोडने से मना कर दिया तो फिर से सियासत का खेल हुआ और आप पुनः मुख्यमंत्री बने। अब तक भी ठीक था पर इसके बाद का प्रकरण इतिहास में आपके उपहास का कारण जरूर बनेगा! जिस लालू जी का विरोध आपके राजनीति का केंद्र था, आपने सिर्फ अपने राजनीतिक फायदे के लिए उनसे भी गठबंधन किया। फिर से सरकार बनाई और बिहार को फिर से उसी युग मे खड़ा कर दिया ।  शराब को आपने ही गाँव-गाँव तक पहुंचाया था, शराबबंदी करके आपने अपना इमेज बनाया, समारोह करवाए, रैलियाँ की, खबरों मे आए पर काम कहीं नही हुआ। बिहार अटक चुका था फिर से और अब लोगों के पास कोई उम्मीद और ऑप्शन नहीं था। शिक्षा व्यवस्था के झोल, भ्रष्टाचारी , पलायन, गरीबी और अपराध की खबरें बाहर आ रही थी। अब बाहर रह रहे बिहारियों के पास कोई बचाव नहीं था अपना मजाक बनने से रोकने के लिए !

 

कल राजनीतिक उठा-पटक का एक नया रीकोर्ड बनाते हुए आप फिर से एनडीए से मिल चुके हैं और सत्ता फिर से आपके हाथ में है।

मैं अब जॉब कर रहा हूँ यहाँ मुंबई एक सॉफ्टवेयर एमएनसी में और रात के चार बजे आपको ये ख़त लिख रहा हूँ क्योंकि आज परेशान हूँ। आज सबके तरह मैंने भी फेसबूक पर वनलाइनर पंच लिखके मजे लिए हैं इस राजनीतिक खेल का । पर अभी मैं उस बच्चे के भरोसे को पूरी तरह टूट जाने का महसूस कर पा रहा हूँ । राजनीति से मुझे कुछ नहीं मतलब, कोई नृप हो हीं हमें का हानि पर अचानक आज ये एकसास हो गया की 12 साल तो हो गए हैं आपके आए हुए।

अब भी यदि हालात नहीं बदला है तो इसका कारण है कि आप अब तक सिर्फ राजनीति करते रहें हैं और विकास का ढ़ोल सिर्फ एक छ्लावा था। आपने लोगों के उम्मीद को ठगा है,भरोसे को तोड़ा है, उसपर अपनी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा और राजनीति का महल खड़ा किया है। लोग आपसे हिसाब नहीं ले पायेंगे शायद मगर समय जरुर लेगा क्योंकि आपकी तरह यह भी किसी का नहीं है। आप राजनीति के चतुर खिलाड़ी हैं और आपके इस गुण का मै कायल भी हूँ मगर यह याद रहे कि राजनीतिक विज्ञान का हर चैप्टर एक दिन इतिहास होता है और इतिहास नेताओं को अपनी निर्धारित कसौटी पे तौलता है।

 

बहारों फूल बरसाओ,  पुनः सरकार आया है। 

एक बिहारी

आदित्य

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