31मार्च से नहाय-खाय से शुरू होगी लोक आस्था का महापर्व चैती छठ

बिहार-चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाये जाने वाला चैती छठ इस बार 31मार्च से 3अप्रैल तक चलेगा।शुरू से ही लोक आस्था का महापर्व छठ को विशेष महत्व दिया जाता है।बिहार में सूर्य पूजा की परंपरा शुरू से ही रही है। मान्यता के अनुसार सप्ताह का हर दिन किसी देवता को समर्पित है। इसके तहत रविवार के दिन भगवान भास्कर (सूर्य देव) की पूजा की जाती है। छठ महापर्व के दौरान हिंदू धर्मावलंबी भगवान भास्कर (सूर्य देव) को जल अर्पित कर आराधना करते हैं। ऋग्वैदिक काल से सूर्योपासना होती आ रही है।
सूर्योपासना का यह चार दिवसीय महापर्व नहाए-खाए से शुरू होता है। अगले दिन व्रती दिनभर उपवास में रहकर गोधुली वेला में खरना करते हैं। उसके अगले दिन अस्ताचलगामी सूर्य और फिर अगली सुबह उगते सूरज को अर्घ्य प्रदान करने के साथ यह महापर्व संपन्न होता है।

 

चैती छठ 2017
31 मार्च को नहाय-खाय,
1 अप्रैल को खरना,
2 अप्रैल को पहला अर्घ्य
3 अप्रैल की सुबह दूसरा अर्घ्य

 
उत्सव का स्वरूप
छठ पूजा चार दिवसीय उत्सव है। इसकी शुरुआत चैत्र शुक्ल पक्ष चतुर्थी को तथा समाप्ति चैत्र शुक्ल पक्ष सप्तमी को होती है। इस दौरान व्रतधारी
लगातार 36 घंटे का व्रत रखते हैं। इस दौरान वे पानी भी ग्रहण नहीं करते।

नहाय खाय
पहला दिन चैती शुक्ल चतुर्थी ‘नहाय-खाय’ के रूप में मनाया
जाता है। सबसे पहले घर की सफाई कर उसे पवित्र बना लिया जाता है। इसके पश्चात छठव्रती स्नान कर पवित्र तरीके से बने शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण कर व्रत की शुरुआत
करते हैं। घर के सभी सदस्य व्रती के भोजनोपरांत ही भोजन ग्रहण करते हैं। भोजन के रूप में कद्दू-दाल और चावल ग्रहण किया जाता है। यह दाल चने की होती है।

खरना
दूसरे दिन चैती शुक्ल पंचमी को व्रतधारी दिन भर का उपवास रखने के बाद शाम को भोजन करते हैं। इसे ‘खरना’ कहा जाता है। खरना का प्रसाद लेने के लिए आस-पास के सभी लोगों को निमंत्रित किया जाता है। प्रसाद के रूप में गन्ने के रस में बने हुए चावल की खीर के साथ दूध, चावल का पिट्ठा और घी चुपड़ी रोटी बनाई जाती है। इसमें नमक या
चीनी का उपयोग नहीं किया जाता है। इस दौरान पूरे घर की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है।

संध्या अर्घ्य
तीसरे दिन चैती शुक्ल षष्ठी को दिन में छठ प्रसाद बनाया जाता है। प्रसाद के रूप में ठेकुआ, जिसे कुछ क्षेत्रों में टिकरी भी कहते हैं, के अलावा
चावल के लड्डू, जिसे लड़ुआ भी कहा जाता है, बनाते हैं। इसके अलावा चढ़ावा के रूप
में लाया गया साँचा और फल भी छठ प्रसाद के रूप में शामिल होता है।
शाम को पूरी तैयारी और व्यवस्था कर बाँस की टोकरी में अर्घ्य का सूप सजाया जाता है,और व्रति के साथ परिवार तथा पड़ोस के सारे लोग अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने
घाट की ओर चल पड़ते हैं। सभी छठव्रती एक नीयत तालाब या नदी किनारे इकट्ठा होकर सामूहिक रूप से अर्घ्य दान संपन्न करते हैं। सूर्य को जल और दूध का अर्घ्य दिया
जाता है तथा छठी मैया की प्रसाद भरे सूप से पूजा की जाती है। इस दौरान कुछ घंटे के लिए मेले का दृश्य बन जाता है।

उदयगामी अर्घ्य का
चौथे दिन चैती शुक्ल सप्तमी की सुबह उदियमान सूर्य को अघ्र्य
दिया जाता है। ब्रती वहीं पुनः इक्ट्ठा होते हैं जहाँ उन्होंने शाम को अर्घ्य दिया था। पुनः पिछले शाम की प्रक्रिया की पुनरावृत्ति होती है। अंत में व्रति कच्चे दूध शरबत पीकर तथा थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत पूर्ण करते हैं।

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