भोजपुरी भाषा को मान्यता दिलाने के लिए खुले रूप से मैदान में उतरी नीतीश सरकार

भोजपुरी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने की सियासी कसरत में सूबे के मुखिया नीतीश कुमार भी अब खुले रूप से मैदान में उतर गये हैं। इस दिशा में अहम फैसला करते हुए बिहार कैबिनेट ने भोजपुरी को मान्यता देने की प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेज दी है।

गृह मंत्रालय को भोजपुरी के समर्थन में भेजे अपने प्रस्ताव के साथ राज्य सरकार ने महाकवि तुलसीदास, कबीर से लेकर बाबा नागार्जुन की इस भाषा के प्रति अपार लगाव का हवाला भी दिया है। वहीं भोजपुरी के माटी के लाल व देश के पहले राष्ट्रपति देशरत्न डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और संपूर्ण क्रांति के नायक लोकनायक जयप्रकाश नारायण की मातृभाषा को उचित सम्मान देने की सिफारिश की गयी है।

भोजपुरी को आठवें अनुसूची में शामिल करने की बिहार कैबिनेट की सिफारिश को राज्य के मुख्य सचिव अंजनी कुमार सिंह ने शनिवार को केन्द्रीय गृह मंत्रालय को भेज दिया।

इस सिफारिश के साथ नीतीश सरकार ने भोजपुरी को मान्यता देने की मांग के औचित्य को भाषा के इतिहास, गौरव और इसकी माटी के विभूतियों का अपनी भाषा से जुड़ाव के तथ्यों से भी केन्द्र सरकार को रूबरू करवाया है। बिहार सरकार का मानना है कि बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश की बड़ी आबादी एवं झारखंड के अलावा सुरिनाम, त्रिनिदाद एंड टूबैगो, फीजी व मारीशस आदि देशों में भी भोजपुरी एक महत्वपूर्ण भाषा है। भोजपुरी के करीब साढ़े तीन करोड़ लोगों की मातृभाषा होने की दलील देने के साथ राज्य सरकार ने इसके ऐतिहासिक गौरव से भी गृह मंत्रालय को अवगत कराया है।

राज्य सरकार के इस निर्णय की पुष्टि जदयू के राष्ट्रीय महासचिव संजय झा ने किया। संजय झा ने कहा कि राज्य सरकार के इस प्रस्ताव पर केंद्र ने जल्द ध्यान नहीं दिया तो दिल्ली में जदयू भोजपुरी को लेकर बङा आंदोलन करेगा जिसमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद शिरकत करेंगे।

भोजपुरी को आठवें अनुसूची में शामिल करने की नीतीश सरकार की मांग की तात्कालिक सियासी वजह अप्रैल में दिल्ली में होने वाले नगर निगम चुनाव को माना जा रहा है। दिल्ली के नगर निगम चुनाव में जदयू मैदान में उतरने की तैयारी कर रही है। 

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