माह-ए-मुहब्बत3: जातिवाद और दहेज़ प्रथा जैसी कुरीतियों से यूँ जीत गया यह युगल!

हमारे समाज में प्रेम या प्रेम विवाह करना एक गुनाह के तौर पर देखा जाता है। तमाम सामाजिक-पारिवारिक बंधनों और रीति रिवाजों के डर से ज्यादातर युगल अपने प्रेम को मुक़म्मल अंत नहीं दे पाते, वहीं इन बन्धनों को तोड़ कुछ युगल अपने प्यार का इक़रार और इज़हार कर देते हैं। फिर प्रेम साबित करने के लिए उन्हें क्या-क्या करना होता है, यही है आज की इस कहानी में।


यह कहानी है अरुण कुमार टिकट परीक्षक ,पुर्व मध्य रेलवे सोनपुर मंडल और सोनी कुमारी महिला आरक्षक , केंद्रीय औद्यागिक सुरक्षा बल की।

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बात उन दिनों की है जब मैं पटेल छात्रवास ,पटना में रहकर पढ़ाई करता था। अक्सर अपने दोस्तों से मिलने मैनपुरा जाता था। पहली नजर में वहाँ सोनी कुमारी को दिल दे बैठा। सब कुछ ठीक चल रहा था। एक दिन सोनी अचानक बोली “मेरी शादी तय हो गयी है, जल्दी मुझसे शादी कर लो नहीं तो…”।
मेरे लिए यह कठिन परीक्षा की घड़ी थी क्योंकि एक तरफ मेरा प्यार था और दूसरी तरफ वायु सेना का ऑफर लैटर।
मैंने प्यार को चुना क्योंकि मुझे जॉब तो बाद में भी मिल जाता लेकिन प्यार नहीं। शादी करना इतना आसान भी नहीं था क्योंकि दोनों की जाति अलग थी- मैं कुर्मी जाति तो सोनी भूमिहार। परिवार वाले तैयार नहीं थे फिर भी हमदोनों ने शीतला माता की मंदिर में शादी की।
लेकिन शादी के अगले दिन ही हमें अलग कर दिया गया। सारे सपने एक पल में ही टूट गए। लेकिन हमदोनों ने हार नहीं मानी। 8 माह बाद हम मिले। उस समय दुनिया की कोई ताकत नहीं थी जो हमें अलग कर पाती। बहुत सारी सामाजिक और आर्थिक कठिनाइयाँ आईं लेकिन सब से हमदोनों मिलकर लड़े क्योंकि हमें प्यार की ताकत को दुनिया को दिखाना था।
हमें नफरत है जातिवाद और दहेज़ प्रथा जैसी बुराइयों से। समय के साथ आज सबकुछ ठीक हो गया। आज हमदोनों केंद सरकार की सेवा में हैं। दो खूबसूरत बच्चे अस्मित और अरमान जो संत डॉमिनिक सविओस हाई स्कूल दीघा के छात्र हैं।
हमेशा प्यार की जीत होती है।

नोट- यह सच्ची कहानी हमारे पास आपही के बीच से अरुण कुमार जी ने भेजी है जिन्होंने खुद अपने प्रेम के लिए लंबी लड़ाई लड़ी और उसे सफल बनाया। आप भी अपनी या आसपास की कहानी हमें भेज सकते हैं, पढ़ेगा पूरा बिहार। हमारा पता है- [email protected]

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