माह-ए-मुहब्बत 10: हाजीपुर से पटना तक ऐसे पहुँची टीनएजर की प्रेम कहानी-Part 2

​’माह-ए-मुहब्बत’ में हिमांशु द्वारा भेजी गई कहानी का आज दूसरा भाग प्रस्तुत किया जा रहा है। अब तक आप पढ़ चुके हैं कि शुभम एक पार्क में बैठा पुरानी बातें याद कर रहा है। उसे और उसके दोस्तों को जानकारी हो चुकी है कि शुभम कृति को प्यार करने लगा है। अब पढ़ते हैं आगे की कहानी-


शुभम अब दिन-रात बस एक ही नाम जपता- कृति! रातों को सपने भी अब उसको कृति के ही आते। उसकी सारी कॉपियों के पिछले पन्ने पर बस कृति-कृति लिखा मिलता।

रोमांटिक गानों की अचानक से बाढ़ आ गयी थी शुभम के फ़ोन में। कुमार विश्वास की “कोई दीवाना कहता है” से लेकर मिर्ज़ा ग़ालिब की “उनके देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक, वो समझते हैं बीमार का हाल अच्छा है” जैसी कविताएँ और शायरियाँ भी शुभम की ज़िन्दगी का हिस्सा बन गयी थी।

धीरे-धीरे 8th क्लास ख़त्म हुआ। 9th शुरू हुआ। शुभम एक ही resolution लेकर 9th में आया था कि इस साल उसे कृति को अपने दिल की बात बता देनी है। कई बार कोशिश भी की पर कृति के सामने जा कर उसकी ज़ुबाँ ही नहीं खुलती थी। देखते-देखते दिसम्बर आ गया था और 9th भी खत्म होने को था। स्कूल में पूरे दिन कृति को देखने के अलावा उसके पास और कोई काम नहीं था। पढ़ाई-लिखाई भी धीरे-धीरे चौपट हो रही थी और इश्क़ के इम्तेहान में भी सफ़लता दूर लग रही थी। जब-जब उसकी नज़रें कृति से मिलती, उसे कुछ होश ना रहता और अगर जो कभी कृति बालों की लटों को कान के पीछे खोसती दिख जाए तो फ़िर समझो उस दिन शुभम के लिए क़यामत का दिन होता।

अब स्थिति करो या मरो वाली हो चली शुभम के लिए। एक साल से सारे ज़माने के सामने वो अपने प्यार का इज़हार करता फ़िरता पर जब कृति सामने आती तो उसकी घिग्घी बंध जाती।

इसी बीच एक दिन शुभम ने ठान लिया कि आज तो जो भी हो उसे कह ही देनी है कृति से अपने दिल की बात। पूरी तरह कमर कस के उस दिन स्कूल पहुँचा था शुभम। जाते ही असेंबली से पहले उसने कृति की दोनों सहेलियों से अकेले में बात की और उनको अपने दिल की हालत समझायी। दोनों सहेलियाँ हँसते-हँसते शुभम की मदद करने के लिए मान गईं क्योंकि वो भी इस दिन का ना जाने कब से इंतेज़ार कर रही थी। प्लान बना कि दोनों में से कोई एक लंच से पहले कृति को क्लास से बाहर पानी पीने वाले नल के पास लाएगा और वहीं शुभम कृति से अपने दिल की बात कह देगा। धीरे-धीरे समय हुआ और शुभम तय समय से पहले ही नल के पास पहुँच कर इंतेज़ार करने लगा। काफ़ी देर तक इंतेज़ार किया पर कृति नहीं आयी। बाद में उसकी सहेली ने अकेले आ कर उसको बताया कि कृति ने बाहर आने से इंकार कर दिया है। जो कहना है उसी को कह दे, वो कृति तक उसकी बात पहुँचा देगी। शुभम को उसकी बात पर भरोसा नहीं हुआ और वो बिना कुछ कहे वहाँ से वापस क्लास में चला आया। आज उसने बहुत कोशिश की पर एक बार भी उसकी नज़रें कृति से नहीं मिली। शुभम की हिम्मत एक बार फ़िर ज़वाब देने लगी थी। धीरे-धीरे जैसे छुट्टी का समय होने लगा शुभम हताश होने लगा। तभी कृति उठ कर क्लास से बाहर निकली। पीछे से शुभम भी निकला और रास्ते में उसने स्कूल में लगे फूलों में से एक ग़ुलाब तोड़ लिया। सीढ़ी के पास उसे कृति भी मिल गयी। उसने कृति को रुकने को कहा पर कृति अनसुना कर आगे बढ़ती रही। शुभम को कृति से ये उम्मीद न थी। उसके हिसाब से कृति भी उससे प्यार करती थी और बस शुभम के प्रोपोज़ करने भर की देर थी। पर यहाँ तो कृति सुन ही नहीं रही थी। शुभम को जब कुछ समझ में नहीं आया तो उसने कृति का हाथ पकड़ लिया। कृति गुस्से से लाल हो कर जब पीछे मुड़ी तो शुभम ने उसे ग़ुलाब का फूल पकड़ा दिया। कृति ने गुस्से में गुलाब फ़ेक दिया और प्रिंसिपल से शिकायत कर देने की धमकी के साथ हाथ छुड़ा कर चली गयी। कृति की सहेलियों ने भी शुभम को समझाने की कोशिश की कि आज जो शुभम ने किया वो ठीक नहीं था और कृति उससे बहुत गुस्सा हो गयी है। शुभम को ना तो प्रिंसिपल से पिटने का डर था ना ही उसे कृति के गुस्से की चिंता थी। उसे तो बस कृति के आज के व्यवहार से चोट पहुँची थी। उदास हो कर शुभम क्लास में आ गया और उसने मन ही मन अब कभी कृति की ओर ना देखने की कसम खा ली। अगले दिन से सब बदल गया था। दोनों एक दूसरे को इग्नोर करने लगे। दिल-ही-दिल में शुभम की मोहब्बत बढ़ती जा रही थी पर शुभम अब उसे सामने नहीं आने देना चाहता था। अब शुभम चुप-चुप ही रहता और पूरी कोशिश करता कि कृति की ओर ना देखे और अगर देखे भी तो कृति से नजरें बचा कर।

इसी तरह दिसम्बर और जनवरी बीत गए। शुभम को अब अपने किये पर शर्मिंदगी महसूस होने लगी थी। वो चाह कर भी कृति को देखे बिना नहीं रह पाता था पर फिर भी उसने अपने आप को क़ाबू में रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।

प्यार का महीना फरवरी आया और शुभम को कृति से सॉरी बोलने का मौका आखिरकार मिल ही गया। कृति की सहेली ने शुभम को अपनी स्लैमबुक दी थी भरने के लिए। शुभम भरने को मान भी गया था पर शुभम के दिमाग में कुछ और ही पक रहा था। घर आते ही शुभम ने पहले कृति के नाम दो चिठ्ठियां लिखीं। एक में शुभम ने अपने किये बर्ताव के लिये बड़े प्यार से माफ़ी मांगी और एक में उसने अपने प्यार का इज़हार एक कविता लिख कर किया और दोनों ही चिठ्ठियों को उसने स्लैमबुक में डाल कर कृति की सहेली को दे दिया। जब कृति के सामने उसने स्लैम बुक खोली तो उसमें अलग ही कहानी थी। कृति ने दोनों ही चिठ्ठियाँ रख ली और शुभम को कोई ज़वाब नहीं दिया। उस दिन भी शुभम हताश ही घर लौटा। पर अब शुभम एक बार फ़िर आशावादी हो चुका था क्योंकि इस बार चिठ्ठियाँ फेंकी नहीं गयी थीं। अगले दिन नई उम्मीदें लेकर शुभम स्कूल पहुँचा तो पहुँचते ही कृति ने आ कर उसे एक किताब थमा दी। शुभम ने ख़ुशी के मारे जब क़िताब खोल कर देखा तो उसमें उसी की दोनों चिठ्ठियाँ थी जिन्हें बस पढ़ के कृति वापस कर गयी थी। शुभम की उम्मीदें एक बार फिर जाती रहीं। पर अब शुभम हिम्मत हारने वालों में से नहीं था। उसने फ़िर एक चिट्ठी लिखी और उसी क़िताब में कृति के पास पहुँचा आया। कृति ने पढ़ा और फिर कोई ज़वाब नहीं दिया। देखते-देखते वैलेंटाइन वीक आ गया और अब शुभम की चिठ्ठियों का सिलसिला तेज़ हो गया। कृति भी उसकी हर चिठ्ठी बिना ज़वाब दिए पढ़ती रही। रोज़ डे आया तो शुभम ने फ़िर ग़ुलाब भेजा चिठ्ठी के साथ और उसका ग़ुलाब फ़िर फेंक दिया गया। पूरी क्लास शुभम के सामने उसके ग़ुलाब पर पैर रख के गुज़री थी और शुभम देख कर मन ही मन रोने के सिवा कुछ नहीं कर पाया था। वैलेंटाइन्स आया, शुभम ने एक बड़ा प्यारा सा ग्रीटिंग कार्ड दिया कृति को। कृति ने ज़वाब दिये बिना रख लिया। शुभम अब सारी उम्मीदें छोड़ चुका था। और अब परीक्षाएं भी शुरू होनी थी कुछ दिनों में, इसीलिये उसे थोड़ा ध्यान वहाँ भी लगाना था।

परीक्षा शुरू होने वाली थी। 9th की बस कुछ ही क्लासेज बाक़ी रह गई थी, उसके बाद सब 10th में जाने वाले थे। परीक्षा की तैयारी के कारण शुभम ने आखिरी के चार-पांच दिन स्कूल बंक कर देना उचित समझा और दिल को कृति से हटा के पढ़ाई पर लगाने की कोशिश करने लगा।

एक दिन ऐसे ही शाम को पढ़ते वक़्त शुभम का फ़ोन बजा। किसी का SMS था। शुभम ने चेक किया तो नंबर unknown था। मैसेज में लिखा था कि “स्कूल क्यूँ नहीं आते हो आज कल?”

शुभम ने रिप्लाई कर के पूछा कि “कौन है” तो रिप्लाई आया “कृति!”

शुभम की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था। शुभम ने एक साथ कई मैसेज एक साथ भेज दिये। पर अब कृति का कोई रिप्लाई नहीं आया। शुभम फिर भी खुश था। उस रात शुभम के ना सो पाने की वजह उसके अधूरे प्यार का दर्द नहीं, लगभग मुक़म्मल हो चुके इश्क़ की ख़ुशी थी।

कल की सुबह शायद शुभम के ज़िन्दगी में एक ख़ास तोहफ़ा ले कर आने वाली थी। कोई 11 बजे का समय हुआ होगा कि शुभम का फ़ोन एक बार फ़िर बजा। इस बार SMS नहीं, कॉल था, कृति का कॉल।

शुभम फ़ोन ले कर घर के एकांत कोने में भागा और फ़ोन उठा कर गहरी साँस लेते हुए धीरे से “हैलो” बोला। शुभम अपना उत्साह बहुत मुश्किल से छुपा पा रहा था। उधर से कृति ने भी अपनी प्यारी सी आवाज़ में हैलो बोला। शुभम के दिल की धड़कनें बिलकुल ही रुक गयी थी उस मीठी आवाज़ को सुन कर। थोड़ी देर दोनों चुप रहे थे। दोनों को ही समझ नहीं आ रहा था क्या बात करें। फ़िर जब दोनों एक-एक कर खुले तो बात पुरे दिन चली। दोनों अगर bye बोल कर फ़ोन रख भी देते तो रखते ही कोई एक फिर फ़ोन कर देता और कहता कि “अरे ये बताना तो रह ही गया।” इन सब के दौरान शुभम के मन में बस एक ही बात थी। उसे कृति को I Love You कहना था पर वो हिम्मत नहीं कर पा रहा था। किसी तरह से उसने कृति को बीच में टोकते हुए कहा,

“सुनो, तुमसे कुछ कहना था”,

“हाँ, कहो”, थोड़ी देर की चुप्पी के बाद शुभम बोला,

“I love you,” अब फिर से दोनों ओर तरफ़ चुप्पी छा गयी। शुभम ने कृति से उसका ज़वाब पूछा पर कृति ने कुछ नहीं कहा और थोड़ी देर बाद उसने फ़ोन काट दिया।

शुभम समझ गया था कि शायद वो कह नहीं पा रही थी। और इसके अलावा शुभम के मन में और कोई नकारात्मक ख्याल आते उस से पहले ही उसका फ़ोन बजा। कृति का SMS था। शुभम के खोल कर देखा। कृति ने SMS में “I Love You Too” लिखा था।

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