Pff: भगीरथ बन बिहारी फिल्म उद्योग में जान फूंक गए गंगा कुमार

फ़िल्में, फ़िल्मी सितारे, अवार्ड्स और प्रेस! अमूमन फ़िल्म फेस्टिवल्स में यही तो होते हैं| इनसब के साथ जब जज्बात, संभावनाएँ और यादें जुड़ जाती हैं तो बन जाता है ‘पटना फ़िल्म फेस्टिवल’| शायद इन्हीं तमाम चीजों का संगम न हो सका था तभी तो 2007 से शुरू हुए पटना फ़िल्म फेस्टिवल की इतनी व्यापक चर्चा न ही मीडिया में हुई, न फ़िल्मी गलियारे में और न जनता के बीच| ये पहली मर्तबा था जब बिहार ने किसी फ़िल्म फेस्टिवल को इतने करीब से देखा और इसकी सफलता का साक्षी बना| बिहार के तमाम ‘सोशल मीडिया साइट्स’ पर छाया रहा यह और यहाँ छाए रहे बिहार के ‘सोशल मीडिया साइट्स’|


‘हमारा बिहार, जय बिहार’ की थीम के साथ शुरू हुए इस महोत्सव की सफलता का आकलन हम इसी बात से कर सकते हैं कि कोई मकाऊ में अपने फ़िल्म की स्क्रीनिंग छोड़ कर पटना की फ्लाइट पकड़ लेता है तो कोई मराठी बोलते-बोलते अपनी आने वाली भोजपुरी फिल्म के प्रमोशन के लिए इस बिहार आना स्वीकार करता है| कोई इमोशनल होकर मन की बात कह जाता है तो कोई गर्व महसूस करता है यहाँ की बदली तस्वीर देखकर| पद्मविभूषण से सम्मानित नृत्यांगना डॉ. सोनल मानसिंह 20 साल बाद अपनी प्रस्तुति के साथ पटना आईं|
बिहार के लिए तो ये नई बात थी ही, यहाँ आये तमाम सितारों ने कुबूला कि यहाँ आना उनके लिए भी सुखद और नया अनुभव था| जमीं से जुड़े सितारों ने अपने पुराने दिनों को याद किया, और यादें ताज़ा करने के लिए पटना से दूर भी निकल पड़े|
इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए आईएएस और बिहार राज्य फ़िल्म विकास एवं वित्त निगम के एमडी गंगा कुमार के प्रयासों की जितनी सराहना की जाये, कम है| उनके प्रयासों के कारण ही यह ‘फ़िल्म फेस्टिवल’ इतना बड़ा बना और सबकी नज़र में आया|

गंगा कुमार

उम्मीद है बिहार की बदलती तस्वीर में सिनेमा का एक नया रंग भरेगा और इसकी खूबसूरती बढ़ाएगा| सरकार आगे भी ऐसे ‘सांस्कृतिक आयोजनों’ के जरिये लोगों को अपनी जमीं से जुड़ने का मौका देती रहेगी|
और क्या-क्या हुआ इस बीच और क्या-क्या कहा इन सितारों ने अपने बिहार के लिए, क्षेत्रिय भाषा में बनने वाली फिल्मों के लिए, इसकी तमाम जानकारी आपतक ‘अपना बिहार’ के माध्यम से अंकित कुमार वर्मा और अनुपम पटेल लाते रहे हैं|

आज प्रस्तुत है पटना में हुए सात दिवसीय ‘पटना फ़िल्म फेस्टिवल’ में सितारों के उद्गार की कुछ झलकियाँ-

  • -> रविन्द्र भवन में हुए ‘ओपन हाउस डिबेट’ में अभिनेता ‘कुणाल सिंह’ कहते हैं- “भोजपुरी एक मजबूत भाषा है, जो दुत्कार के बाद भी जिंदा है| हिंदी सिनेमा में एक दौर ऐसा था कि उन्होंने भोजपुरी को बाजार बनाकर उपयोग किया, लेकिन हम पिछड़ गए| भोजपुरी सिनेमा की दूसरी बड़ी समस्या थिएटर भी है, जो निम्न स्तर के होते हैं| इसलिए एक बड़ा वर्ग भोजपुरी फिल्मों के लिए थिएटर नहीं जाता है| बिहारी होने पर गर्व कीजिए आपकी भाषा (भोजपुरी) बहुत मजबूत है| हिंदुस्तान में हिंदी के बाद सबसे ज्यादा बोली भाषा है| अपने संस्कृति और रीति-रिवाज से प्यार कीजिए इसे जिंदा रखिये और अश्लीलता को बिलकुल नकारिये|”
  • -> ‘अंजनी कुमार’ युवाओं पर उम्मीद जताते हुए कहते हैं- “भोजपुरी फिल्मों के विकास के लिए आज साहित्य, थिएटर और सिनेमा पर विशेष ध्यान देना होगा| युवा फिल्म मेकर शॉर्ट और डॉक्युमेंट्री फिल्म बनाकर यूट्यूब के जरिए भी भोजपुरी सिनेमा को आगे ले जा सकते हैं|”
  • -> भोजपुरी सिनेमा के सुपरस्टार कहे जाने वाले अभिनेता ‘रवि किशन’ प्रेस वार्ता के दौरान भावुक हो गये| उन्होंने गंगा कुमार को भोजपुरी सिनेमा का भागीरथ बताया| भोजपुरी सिनेमा की खामियाँ बताते हुए वो कहते हैं- “भोजपुरी कलाकारों और डायरेक्टरों में एकता की कमी है। ज्यादातर कलाकार अशिक्षित हैं जिस कारण भोजपुरी का स्तर गिरा है। इसके लिए मैं सबमें अपने स्तर से एकता लाने की कोशिश करूँगा। भोजपुरी में कहानी नहीं होने से उसका ग्रोथ रुक गया है। फिल्मों में बस नाच गाना और व्लगैरिटी दिखा कर पैसे बटोरे जा रहें है। भोजपुरी में बिरसा मुंडा, कुवंर सिंह पर फिल्में बनेंगी। मैं भोजपुरी को नेशनल अवार्ड दिलाना चाहता हूं। भोजपुरी इंडस्ट्री में जुनून, जज्बा तो हैं, मगर सपोर्ट और संसाधन नहीं है। हमारी फ़िल्म को मल्टीप्लेक्स में सहित अच्छा सिनेमा नहीं मिलते। दूसरी भाषाओं में भोजपुरी से ज्यादा फूहड़ फिल्में बनती हैं लेकिन कोसा भोजपुरी को ही जाता है। जबकि दूसरी भाषा की फिल्मों को कला के नजरिए से देखा जाता है। भोजपुरी में अच्छी फिल्म भी बन रही हैं फिर भी मैं भोजपुरी उद्योग में फैली गंदगी को दूर करने के लिए मोर्चा खोलूंगा।“ उन्होंने निवेदन भी किया कि भोजपुरी में बन रही एल्बम को भोजपुरी एंडस्ट्री ना जोड़ें।
  • -> फिल्म निर्माता ‘मोनिका सिन्हा’ ने कहा- “अश्लील फिल्मों को बिलकुल नकारिये, दर्शकों को इसके खिलाफ स्ट्रांग होना होगा| जबतक आप स्ट्रांग नही होंगे हम कुछ नही कर सकते| ऐसे फिल्मों से समाज पर काफी बुरा प्रभाव पड़ रहा है| इससे हमारा समाज सौ कदम पीछे जा रहा है| सरकार को भी इसपर ध्यान देना होगा| सरकार शराबबंदी को तरह अश्लील फिल्मों पर रोक लगाये|”
  • -> डायरेक्टर ‘आनंद गहतराज’ ने कहा- “हमारें यहां भी अच्छी फिल्में है। हमें बस उसे सही प्लेटफार्म तक पहुँचाना है।“
  • -> निर्देशक व विधायक ‘संजय यादव’ कहते हैं- “भोजपुरी में अधिकतर शब्द दो अर्थी होते हैं, लेकिन हम उसे गलत रूप से सोचते हैं। बिहार के प्रति डायरेक्टरों का झुकाव हुआ है। आने वाले दिनों में कई भोजपुरी फिल्म की शूटिंग बिहार में होगी|”
  • -> ‘नीरज घेवन’ बिहार में शूटिंग करने की स्वीकारोक्ति देते हुए कहते हैं- “हम बिहार में शूटिंग के तैयार है ये जरुरी नहीं हैं कि हम बिहार में शूटिंग के लिए पर्यटन स्थल को ही चुनें। मीडिया को बिहार की अच्छी छवि दिखानी होगी। मुम्बई में लोगों के बीच गलत छवि पेश की गई है। जबकि बिहार प्रोफेशनल राज्य है। यहाँ वैसा कुछ नहीं हैं|”
  • -> दिलवाले, शिवाए समेत कई बड़ी फिल्मों में एक्टिंग कर चुके अभिनेता ‘संजय मिश्रा’ कहते हैं- “अभिनेता संजय मिश्रा कहा कि बिहार के पास कोई अपना स्लोगन नहीं है जैसे राजस्थान का स्लोगन है पधारो म्हारे देश। यहाँ स्लोगन की सख्त जरुरत है, बिना बुलाये आपके यहाँ आकर कोई शूटिंग नहीं करेगा। फिलहाल ही एक फिल्म की शूटिंग में बिहार को दर्शाने के लिए 1 करोड़ खर्च कर बिहार का सेट बनाया गया था| क्षेत्रीय फिल्मों के विकास में सरकार बड़ी भूमिका निभा सकती है| फिल्मों के विकास के लिए कॉरपोरेट की बड़ी जरूरत है लेकिन सिर्फ ‘जय बिहार’ कहने भर से निर्माता बिहार में आकर फिल्म नहीं बनायेंगे बल्कि वैसा माहौल बनाना होगा| सही माहौल बना तो बिहार में फिल्में जरुर बनेंगी| पटना फिल्म फेस्टिवल एक शानदार पहल है|”
  • -> भोजपुरी फिल्मों में अश्लीलता पर जवाब देते हुए भोजपुरी सुपरस्टार ‘दिनेश लाल यादव’ ने कहा- “यह सही है की कुछ लोगों ने यहाँ अश्लील फिल्मे बनायी और इस बात को मै नही नकार सकता हूँ। ऐसे लोगों को पता ही नहीं था की भोजपुरी क्या है, भोजपुरी की कल्चर क्या है, यहाँ के लोगों की चाहत क्या है| ऐसे फिल्म बनाने बनाने वालों का जबर्दस्त नुकसान हुआ, वैसे बड़े-बड़े बैनर आये और चले गए| आज भोजपुरी सिनेमा में वही लोग कार्यरत हैं जो अच्छी फिल्मे बना रहे हैं, यहाँ के रहन सहन को जानते हैं| भोजपुरी फिल्मों में वही फिल्म सफल हो पाती है जो फिल्म पुरे परिवार के साथ देखा जा सकता है| भोजपुरी फिल्मों में काफी बदलाव हुआ है और आगे भी होगा| आज भोजपुरी फिल्म सिर्फ बिहार और यूपी तक सीमित नही है, देश के हर प्रांत में भोजपुरी फिल्मे चल रही है|”

 

  • -> ‘जब वी मेट’ और ‘हाइवे’ जैसी फिल्मों के निर्देशक ‘इम्तियाज अली’ कहते हैं- “इंसान की बुद्धि का सबसे ज्या‘द विकास बिहार में होता है। ऐतिहासिक परिदृश्यन में भी जो लोग बिहार से हुए हैं, वे काफी प्रभावित करते हैं|”
  • -> यहाँ ‘बिहार रत्न’ के सम्मान से नवाजे जाने के बाद मशहूर अभिनेता मनोज वाजपेयी ने कहा- “मनोरंजन सिर्फ नाच गाना नहीं होता, मनोरंजन अच्छी कहानी और अच्छी फिल्में भी होती हैं। दो दशकों से हम ये लड़ाई लड़ रहे हैं। पिछले दिनों किसी ने मेरी फिल्म बुधिया सिंह और अलीगढ को मनोरंजक नहीं कहा। तब मुझे लगा कि मुझे अपनी लड़ाई और लड़नी है। ये फिल्में बच्चों के विकास में बाधक नहीं हैं। इन फिल्मों को देख कर बच्चे अपने भविष्य को सवार सकते हैं। बाधा तो वो फिल्मे हैं, जो बच्चों को समाज से अलग करता है। थियेटर करने की चाहत में पढ़ायी के बहाने पटना छोड़े 30 साल हो गए। इस दौरान यहां कोई ऐसा बड़ा आयोजन होते नहीं देखा था। पटना में कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम करना मुश्किल होता था और काफी मशक्कत करनी पड़ती थी। लेकिन पटना फिल्म फेस्टिवल के इतने बड़े आयोजन को देख कर गर्व महसूस हो रहा है। फिल्म फेस्टिवल दर्शकों से, समाज से, फिल्मकारों के समाज से संवाद स्थापित करने का एक कारगर साधन है। फिल्मों को लेकर छोटे शहरों सिनेमा के प्रति नजरिया बदला है, वो काफी सराहनीय है। इसलिए मैंने बड़े शहरों की और देखना बंद कर दिया है|”

  • -> नृत्यांगना डॉ. सोनल मानसिंह कहती हैं- “बिहार सांस्कृतिक रूप से फिर से उभर कर सामने आ रहा है। बिहार से मेरे पुराने संबंध रहे हैं। मैं 20 साल बाद यहां अपनी प्रस्तुति दे रही हूं। बिहार राज्य फिल्म विकास एवं वित्त निगम के एमडी गंगा कुमार का ने एक अनूठा प्रयोग किया है, जो सराहनीय है। अमूमन फिल्म महोत्सव के समापन सत्र फिल्मों के नृत्य से संपन्न होता है, लेकिन यहां समापन मेरे नृत्य से हो रहा है। बिहार बोध सर्किट में आता है। अगर यहां एक बुद्धिस्टि फिल्म फेस्टिवल का भी आयोजन होता, तो ये राज्य और पर्यटन के लिहाज से भी हितकारी होगा|”
  • -> अभिनेत्री सारिका ने भी फिल्म फेस्टिवल की सराहना की और कहा- “ऐसे आयोजन लगातार होते रहने चाहिए|”
  • -> आपन बिहार के फेसबुक पेज पर लाइव आये अभिनेता पंकज त्रिपाठी जी कहते हैं- “बिहार की छवि बदल रही है| इस आयोजन से फिल्मकार बिहार की नई छवि लेकर जा रहे हैं| संभावना है बिहार को लेकर अच्छी फ़िल्में भी बनेंगी|”

-> आईएएस ‘गंगा कुमार’ ने परिचर्चा में शामिल होते हुए कहा- “सरकार अपनी नई फिल्म नीति के तहत फिल्म मेकर्स को हर वो बेसिक चीजें उपलब्ध कराएगी, जिनकी उनको जरूरत है|”

नेहा नूपुर: पलकों के आसमान में नए रंग भरने की चाहत के साथ शब्दों के ताने-बाने गुनती हूँ, बुनती हूँ। In short, कवि हूँ मैं @जीवन के नूपुर और ब्लॉगर भी।