बिहार की एक आवाज जिसके बिना छठ गीतों का बजना बेमानी है, जिसे सुन परदेसी घर आने लगते हैं

दिवाली जाते ही बिहार का महापर्व सबका ध्यान अपनी तरफ खींचना शुरू कर देता है| महिलाओं और पुरुषों, दोनों की तैयारियों और जिम्मेदारियों की लिस्ट लगभग बराबर होती है|

यही नहीं, जिसके यहाँ छठ पूजा हो रहा हो और जिसके यहाँ पूजा न हो रहा हो, उन दोनों की तैयारियाँ और जिम्मेदारियाँ भी लगभग बराबर चलती हैं| बिहार में छठ मतलब एक उत्सव, एक उत्साह का माहौल| छठी माँ की महिमा है ही अपरम्पार! इस समय बिहार की हर गली में वातावरण इतना शुद्ध और पवित्र होता है कि श्रद्धा खुद-ब-खुद जागृत हो जाती है|


दशहरा बीतते ही छठ के गीत बजने शुरू हो जाते हैं| जिनके यहाँ व्रत होना हो, उनके यहाँ महिलायें छठी माँ के लोकगीत गाने शुरू कर देती हैं| ये तैयारियाँ जब जोर-शोर से चल रहीं हों, और कान में छठ गीत के नाम से नये-नये आये गानों के धुन जाने लगते हैं तब सबसे ज्यादा याद आती है एक आवाज|

एक आवाज जो यूँ तो लोक परम्परा के हर रंग के लिए बनी है, मगर छठ गीत अब उनकी घोषित पहचान बन चुकी है| एक आवाज जिसके बिना छठ गीतों का बजना बेमानी है| एक आवाज जिसे सुनकर परदेसी घर वापिस आने लगते हैं| एक आवाज जो छठपर्व के सजे-धजे माहौल में मन्त्र का काम करती है|

इन इशारों से अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं होगा कि यहाँ बात हो रही है लोकगीत गायिका शारदा सिन्हा जी की उसी आवाज की, जिसकी मधुरता में घुलने के लिए उनके गीतों की पहली पंक्ति ही काफी है| हाँ, ये भी सच है कि इनके गीतों का पूरा एल्बम सुनने से आप अपने आप को रोक ही नहीं पाते, खासकर इस छठ महापर्व के दौरान।

सन् 1986 का वो साल था जब शारदा जी का पहला छठ गीतों का एल्बम आया था| तब से आज 3 दशक, जी हाँ, ये लगातार 30वाँ साल है, जब आप इन्हीं गानों को अपने आस-पास बजता पायेंगे| सच तो यह है कि हम सभी को आदत सी हो चुकी है, इस आवाज की| 1 अक्टूबर 1952 को जन्मीं शारदा जी समस्तीपुर, बिहार की मूल नागरिक हैं| पद्मश्री सम्मान से नवाजी जा चुकीं शारदा जी मैथिलि, भोजपुरी और मगही को बड़े ही आत्मीयता से आवाज देती हैं| ये समस्तीपुर महिला महाविद्यालय में संगीत की शिक्षिका हैं| हजारों बच्चियों को न सिर्फ इन्होंने संगीत की शिक्षा दी है वरन् नई पीढ़ी को भी अपने गीतों के जरिये परम्पराओं-संस्कृतियों से जोड़ती आई हैं| इनके लगभग सभी गाने मशहूर हुए हैं, मगर छठ पर्व के गीत पिछले 3 दशक से छठ महापर्व के श्रद्धा वाले माहौल के पूरक बनते आये हैं|

 

ऐसा नहीं कि शारदा ताई के पुराने एल्बम में ही संस्कृति की झलक मिलती हैं, इन्होंने इस साल छठ के शुभ अवसर पर व्रतिओं को एक खास तोहफा दिया है| घर आने की बुलाहट के साथ इनके दो गीत इस साल छठ महापर्व पर रिलीज़ हो रहे हैं| इन्हें सुनकर कानों में मधुरस घुलेगा ही, साथ ही आँखें भी अपना अपनापन तलाशते हुए गाँव-घर लौट आएँगी| सही मायने में यही हैं बिहार के आवाज की शान!

 

नये गायकों के बीच दशकों पुरानी आवाज को पुरानी संस्कृतियों को जागृत करते हुए नये अवतार में आप भी यहाँ सुन सकते हैं-

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