दुनिया भर में बिहार का नाम रौशन करने वाले शरद सागर से खास बातचीत

बिहार के युवा हर जगह अपनी प्रतिभा दिखा रहे हैं और बिहार का नाम देश के साथ-साथ विदेश में भी रौशन कर रहे हैं. एक बार फिर बिहार के मिट्टी में जन्मे युवा ने फोर्ब्स जैसी विश्वप्रतिष्ठित पत्रिका में अपनी जगह बनाई हैं. फोर्ब्स ने 30 साल से कम उम्र के प्रभावशाली युवाओं में बिहार के शरद सागर को शामिल किया हैं. गर्व की बात यह है कि इस लिस्ट में सागर के साथ मार्क जुकरबर्ग, मलाला यूसफजई, केविन सीस्ट्रोम जैसे लोग भी शामिल हैं. फोर्ब्स पत्रिका ने 4 जनवरी को ’30 अंडर 30′ की लिस्ट जारी की थी.

बिहार की राजधानी पटना के 24 वर्षीय शरद साल 2008 में स्थापित अंतरराष्ट्रीय सामाजिक संगठन डेक्सटेरिटी ग्लोबल के संस्थापक और सीईओ हैं. अभी वह अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय राजनीति और कूटनीति की पढ़ाई कर रहे हैं. शरद ने पटना के सेंट डॉमिनिक स्कूल से 12वीं तक पढ़ाई की और 12वीं के बाद वह 100 पर्सेंट स्कॉलरशिप पर अमेरिका में पढ़ाई कर रहे हैं. इससे पहले साल 2013 में उन्हें रॉकफेलर फाउंडेशन ने इस शताब्दी के 100 इनोवेटर्स की लिस्ट में शामिल किया था.

शरद मूल रूप से सिवान के जीरादेई के रहने वाले हैं.

 

शरद सागर की जीवन यात्रा अपने आप में प्रेरणादायक है. वे बिहार के एक छोटे शहर से आते हैं. शरद ने “आपन बिहार को बताया कि:-

 

मैं बिहार में पला-बढ़ा हूँ. चौथी तक बिहार के छोटे-छोटे गाँवों में रहा. मेरे पिताजी स्टेट बैंक में काम करते है और वो जहाँ पर भी काम करते थे मैं वहां रहा करता था. 4th के बाद पटना में स्कूल गया. 12th के बाद मुझे अमेरिका में अंतरराष्ट्रीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के पहले विश्वविद्यालय के टॉप यूनिवर्सिटी में जाकर पढ़ने के लिए 3 करोड़ की स्कॉलरशिप मिली और मैं अमेरिका गया. जब यूएन के एक यूथ फ़ोर्स में था उस वक्त एक चीज देखी कि मैं जिन प्लेटफॉर्म पर अच्छा कर रहा था उसी प्लेटफॉर्म पर मेरे ढेर सारे दोस्त अच्छा नहीं कर पा रहे थे तो मेरे दिमाग में एक सवाल था कि मैं जिन चीजो में अच्छा कर रहा हूँ इसमें मेरे दोस्त जो कि उतना ही तेज है.. उतना ही मेहनती है, जिनके माता-पिता उतने ही लगे हुए है उनके शिक्षा में वो उन प्लेटफॉर्म पर क्यों नहीं जा पा रहे है. लगभग 2007-08 की बात है जब मेरी जिंदगी में एक मौका आया कुछ करने के लिए. मैं जिन प्लेटफॉर्म पर जा रहा था वो इसलिए कर रहा था क्योंकि वो मुझे जानकारी थी उसके बारे में इंटरनेट और न्यूज़पेपर पढ़ता था. मैंने 2008 में डेक्सटेरिटी ग्लोबल की शुरुआत की ताकि हम शिक्षा का लोकतांत्रिक करण कर सके. हम ढ़ेर सारी चीजो में लोकतांत्रिक करण करने की बात करते है. मुझे शिक्षा का लोकतांत्रिक करण  इसलिए जरुरी लगा क्योंकि मैंने अपनी ही जिंदगी में इसे महसूस किया था. मैं जिन छोटे-बड़े गाँवों और शहरो में रहा वहां ढेर सारे ऐसे बच्चे थे जो कठोर परिश्रम करते थे. जो खुब अच्छा करना चाहते थे मगर उन्हें जानकारी नहीं थी तो डेक्सटेरिटी इस मुद्दे को लेकर आगे आई कि हम शिक्षा का लोकतांत्रिक करण किस तरह कर सके. डेक्सटेरिटी के चार मेजर प्लेटफॉर्मस है जो कि बच्चों को हर वो जानकारी जो उनको भविष्य को बेहतर तैयार कर सके उससे कनेक्ट करती है. डेक्सटेरिटी बच्चों को लीडरशिप बेहतर करने में मदद करती है. बच्चों के हाई स्कूल पास करने के बाद डेक्सटेरिटी हर तपके से आने वाले बच्चों को एक लोकतांत्रिकृत  शिक्षा तक पहुंचती है जहाँ पर आपके पास पैसे हो या नहीं हो अगर आपके पास सपने हो तो डेक्सटेरिटी आपके साथ काम करती है और आपको प्लेटफॉर्म देती है जिससे की आप आगे जा सके. डेक्सटेरिटी में मेरी जो पर्सनल एक्सपीरियंस रही है स्पेशली बिहार में काम करते हुए स्टूडेंट के साथ वो ये रही है कि हमारे पास इतने सारे बच्चे है जो काफी तेज है, काफी प्रतिभावन है, काफी कुछ करना चाहते है, वो दिन-रात परिश्रम करते है मगर उन्हें पता नहीं होता है क्या करें? उसके लिए छोटा सा उदाहरण हमेशा देता हूँ- दुनिया की सबसे टॉप जो स्पेस साइंस की कॉम्पटीशन में लगभग 200 मीलियन बच्चे भाग ले सकते है मगर आज तक उस कॉम्पटीशन में शामिल होने वाले बच्चों की सबसे ज्यादा संख्या 951 है. ये किसी बड़ी समस्या को दर्शा रहा है और वो बड़ी समस्या से बिहार खुद ग्रसित है. हमारे पास दुनिया के सबसे तेज बच्चे है, हमारे पास ऐसे बच्चे है जो काफी अच्छा कर सकते है लेकिन उनमे जानकारी की कमी है तो डेक्सटेरिटी एक प्लेटफॉर्म है जो कि हम स्पेशली बिहार जे लिए रन कर रहे है. डेक्सटेरिटी टू कॉलेज उसके पीछे हमारा एक पर्सनल एक्सपीरियंस भी जुड़ा हुआ है वो ये है कि जब मैं US कॉलेज में पढ़ने गया था तब हमारे पाया ढेर सारे बच्चे आते थे कि हम हार्वेड में अप्लाई कर रहे है या हम टॉप 100 कॉलेज में अप्लाई कर रहे है पर हमें पता नहीं कि कैसे आगे जाना है तो  है तो हम उन्हें डेक्सटेरिटी द्वारा मदद किया करते थे. साथ ही साथ कुछ ऐसे बच्चे आते थे जिनके पास 100 डॉलर फी नहीं होती थी हम उन्हें 100 डॉलर देते थे और हमने देखा कि ऐसे बच्चे जो कि 100 डॉलर के कारण आगे नहीं बढ़ पाते थे वही बच्चे तीन-तीन स्कॉलरशिप के अमेरिका के टॉप कॉलेजो में है और वो धीरे-धीरे वापस आने का काम कर रहे है. वापस आकर देश में काम करना चाहते है. इस प्रोसेस में डेक्सटेरिटी ग्लोबल लांच किया ताकि कोई भी बच्चा बिहार के किसी भी कोने में हो अगर उसके पास टैलेंट है और कुछ अच्छा करना चाहता है तो हम उसका हर हाल में सपोर्ट कर सके. पिछले साल की बात है डेक्सटेरिटी में बेगूसराय का एक बच्चा प्रेवश परीक्षा निकाल कर आया था, मैंने उससे पूछा कि आप इस कैम्प में परीक्षा देने कैसे आये तो उस बच्चे ने बताया कि एक रात पहले आया था रेलवे प्लेटफॉर्म पर ही सो गया. उस चीज को देखकर एक बड़ी कहानी पता चलती है कि हम पूरे दिन बाते करते है रामेश्वरम् में एक देश का कलाम निकला. बिहार के गली-गली और हर कोने में ऐसे कलाम है, उनके पाया प्रतिभा है बस आप उस प्रतिभा को सामने आने दो. इसमें मैं लगा हुआ हूँ और सारे लोग लगे हुए है ताकि बिहारी प्रतिभा देश का अगला कलाम है. चाहे वो रेलवे प्लेटफॉर्म पर सोकर भविष्य को बनाने की काम कर रहे हो या वो किसी तरह हर दिन खुद मेहनत करके हर बाधा को तोड़कर के आगे आने की कोशिश कर रहे है.

देखिए शरद सागर के साथ Exclusive Interview :-

 

हमलोग सब साथ है क्योंकि बिहार आगे आता है तो पूरा विश्व आगे आता है. हम विश्व को ढेर साड़ी चीजें दे सकते है. इतिहास में राजनीति से लेकर विज्ञान तक हमने विश्व को बहुत सिखाया है. हमारे इतने सारे बच्चे तैयार है जो विश्व को और आगे ले जायेंगे और मैं इस मुहीम “मत बदनाम करो बिहार को” का बहुत बड़ा समर्थक हूँ.

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