छठ पूजा: ‘नहाय खाय’ के दिन क्यों खाया जाता है चना दाल, भात और लौकी की सब्जी?

कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को छठ त्योहार मनाया जाता है| चार दिन के इस पर्व की शुरुवात आज नहाय खाय से शुरू हो गयी| इस पर्व के सभी विधि के तरह नहाय खाय भी बहुत महत्वपूर्ण है| इस दिन व्रती स्नान आदि कर नये वस्त्र धारण करते हैं और शाकाहारी भोजन लेते हैं। व्रती के भोजन करने के बाद ही घर के अन्य सदस्य भोजन करते हैं।

नहाय खाय क्या है? 

इस दिन व्रत पूर्ण रूप से शुद्ध होकर व्रत से शुरूआत करता है इसलिए छठ के पहले दिन नहाय खाय का खास महत्व होता है। इस दिन छठ करने वाले श्रद्धालु अर्थात व्रती शुद्धता पूर्वक स्नान कर सात्विक भोजन करता है। उसके बाद वह छठ सम्पन्न होने के बाद ही भोजन करता है इसलिए इसे नहाय खाय कहा जाता है। इसके अलावा इस दिन छठ में चढ़ने वाला खास प्रसाद जिसे ठेकुआ कहते हैं उसके अनाज को धोकर सुखाया भी जाता है।

नहाय खाय के दिन से घर की साफ- सफाई होती है। आज के दिन घर में छठ करने वाला व्रती सात्विक भोजन करता है। उस दिन से घर में भोजन में लहसुन-प्याज का इस्तेमाल नहीं होता है। इस दिन व्रती केवल एक बार भोजन करता है। नहाय खाय के दिन व्रती तैलीय चीजें जैसी पूरी और पराठे का सेवन नहीं करता है। साथ ही घर के अन्य सदस्य व्रत करने वाले को भोजन करने के बाद ही अन्न ग्रहण करते हैं। इसके अलावा आमतौर पर घर में बिस्तर पर नहीं सोता बल्कि वह चार दिन तक जमीन पर सोता है।

बिहार: नहाय खाय के साथ छठ महापर्व की शुरुआत, 3 नवंबर को उगते हुए सूर्य को अर्घ्य नहाय खाय के साथ छठ महापर्व की शुरुआत| Photo Cortesy: Zee News

नहाय खाय के दिन खासतौर से लौकी से सब्जी बनती है। इसे पीछे मान्यता है हिन्दू धर्म में लौकी को बहुत पवित्र माना जाता है। इसके अलावा लौकी में पर्याप्त मात्रा में जल रहता है। इसमें लगभग 96 फीसदी पानी होता है जो व्रत को आगे आने वाले दिनों में ताकत देता है। इसके अलावा लौकी खाने से बहुत से बीमारियां भी दूर हो जाती हैं।

इसके अलावा खाने में सेंधा नमक का इस्तेमाल किया जाता है। साथ ही इस दिन चने की दाल खाई जाती है। ऐसी मान्यता है कि चने की दाल बाकी दालों में सबसे अधिक शुद्ध होती है तथा वह व्रती को ताकत भी देती है। 

नदियों और तालाब के किनारे शुरू होती है पूजा
नहाय खाय के दिन व्रती तालाब या नदी के किनारे के स्नान करते हैं इसलिए नदियों के किनारों बहुत भीड़ होती है। स्नान से पहले वह पवित्र लकड़ी के दातुन से मुंह धोकर नदी में स्नान करते हैं। उसके बाद पवित्र नदी का जल लेकर घर आते हैं और उससे छठ का प्रसाद बनता है। लेकिन शहरों में तालाब तथा नदी की कमी के कारण लोग अपने घर में ही पवित्रता पूर्वक स्नान कर लेते हैं।
मिट्टी के चूल्हे पर बनता है खाना 
इसके अलावा नहाय खाय के दिन खाना आम दिनों की तरह रसोई के चूल्हे पर नहीं बल्कि हमेशा लकड़ी के चूल्हे पर बनाया जाता है। इसके अलावा इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि चूल्हे में केवल आम की लकड़ी से का इस्तेमाल किया जाता है। इस दिन खाना बनाकर पूजा की जाती है उसके बाद सूर्य भगवान को भोग लगाया जाता है। इस प्रकार पूजा के बाद व्रत सबसे पहले व्रत करने वाला व्यक्ति खाता है फिर परिवार के दूसरे सदस्य खाते हैं।
श्रोत: ज्ञा पाण्डेय | प्रभा साक्षी 

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