बिहार में इसबार जनता ने अपने जात वाले नेताओं को क्यों हरा दिया?

बिहार के 40 में से 39 सीटें एनडीए ने जीती है। जमीनी स्तर पर देखें तो यह जीत आश्चर्यजनक कतई नहीं है मगर हाँ, राजनितिक पंडित जो पुराने परंपरा और पुराने आंकड़ों के नजर से देख रहे थे, उनके लिए यह वाकई आश्चर्य करने लायक रिजल्ट है।

वर्षों से बनाया गया जातीय समीकरण यू ही नहीं टूट गया। इसके पिछे वर्षों से उनको गुमराह करने की राजनीति और मोदी-नीतीश के रूप में एक भरोसेमंद और लाभकारी विकल्प था।

विपक्ष मोदी सरकार पर उसके हिंदुत्व के विचारधारा को लेकर हमला कर रही थी। इसके साथ मोदी सरकार के बड़े कदम जैसे, नोटबंदी और जीएसटी पर हमला कर रही थी। विपक्ष की ये सब बाते तो सही थी मगर वे लोग मोदी सरकार के अनेक कल्यानकारी योजनाओं को बहुत हलके में ले लिया।

मोदी सरकार ने उज्जवला योजना के तहत काफी संख्या में गरीब परिवारों को गैस सिलेंडर दिया, आजादी से लेकर अबतक जितने शौचालय नहीं बने थे, उससे कही अधिक मोदी सरकार ने पाँच साल में बनाया, पीएम आवास योजना के तहत गरीब लोगों को यूपीए के तुलना में काफी अधिक पक्का मकान के लिए पैसा दिया। कभी बिहार में बिजली सपना जैसा था मगर इस बार चुनाव में बिजली मुद्दा ही नहीं था। बिहार के गाँव तक सड़को का जाल बिछा दिया गया है।

ये सब काम सिर्फ कागजों पर आंकड़े बनाने के लिए नहीं हुए, बल्कि जमीन पर जाईये तो यह दिखता भी है। कॉलेज से जब-जब मैं गाँव गया, पाँच साल में उसका प्रभाव देखा हूँ। इन सब योजना का फायदा सबसे ज्यादा गरीब लोगों को हुआ है। सबसे ज्यादा गरीब दलित और पिछड़े जाती के लोग हैं, जाहिर है सबसे ज्यादा फायदा उन्हीं को मिला है।

यहाँ एक बात गौर किजियेगा, गैस सिलेंडर, शौचालय, पक्का मकान और बिजली समृद्धी के तौर पर देखा जाता है। बिहार में ये चार चिजें समृद्ध लोगों के पास ही था। अगर जातीय नजर से देखें तो वर्षों से ये सब चिजें खानदानी अमीर और उच्च जाती के लोग के पास ही थे।

नरेंद्र मोदी ने यह सब पाँच सालों में गरीब पिछड़ों तक भी पहुंचा दिया। समाजिक न्याय सिर्फ आरक्षण की माँग करने से नहीं मिलेगा, यह नेताओं को अब सोचना होगा। दशकों से अपने जात वाला नेता, जिसको लोग जात पर वोट देते आय थे। उसने जो नहीं दिया, वह मोदी ने पाँच साल में दिया है। जाहिर है लोगों ने इस बार जात के जगह विकास पर वोट दिया है। किसान न्यूनतम आय योजना और स्वास्थ बिमा योजना इस कड़ी का अगला पड़ाव है। इसका प्रभाव देखना बाकी है। इस सब के साथ नीतीश कुमार और उनके काम का भी फायदा एनडीए को मिला है। यह अच्छी खबर है कि बिहार जातीवाद से आगे बढ़ रहा है।

– अविनाश कुमार

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