बिहार से शुरू हुआ था होली का महापर्व, धरहरा गांव में जली थी होलिका

होली का त्यौहार सभी के जीवन में खुशियों के रंग भर देता है । कहि नए रिश्तों की शुरुआत कराता है तो कभी उखड़े रिश्तों मे गुजियों कि मिठास भर जाता है। अबिर गुलाल, गुजिया,ठंडाई और बहुत सारा प्यार मिलाकर इस त्योहार को बड़े धुमधाम से मनाया जाता है । होलीका दहन मन मे एक सच्ची विश्वास कि डोर बांध जाता हैं, कि चाहे कैसै भी हो हालात अगर हो हम सच्चे तो हमारे सभी काम होगें अच्छे।

होली का महापर्व बिहार से शुरू हुआ था। यहां के पूर्णिया जिले के धरहरा गांव में होलिका जली थीं। अनुश्रुतियो पर विश्वास करे तो धरहरा गांव में पहली बार होली मनाई गई थी। इसके साक्ष्य भी मिले हैं।

वहा होलिका दहन के दिन करीब ५० हज़ार श्रद्धालु राख और मिट्टी से होली खेलते हैं। पूर्णिया के बनमनखी का सिकलीगढ़ धरहरा गांव होलिका दहन की परंपरा के आरंभ का गवाह है । मान्यता के अनुसार यही होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठी थी। यही से होलिका दहन कि शुरुआत हुई थी।

होली के सवेरे भगवान को अबिर चढ़ा कर सभी इस शुभ दिन कि शुरुआत करते है। बहुत सारे लोगों को टमाटर की होली बड़ी रास आती है बहुत मुश्किल से वह सस्ते टमाटरों का इंतजाम करते है । उन्हें आर्गेनिक होली बहुत पसंद हैं| होली खेलने के बाद गरमागरम कटहल कि सब्ज़ी खाने का अलग हि आनन्द है। होली पुरे देश को एकता के रंग में रंग देती है।

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