अंधविश्वास के खिलाफ अकेले जंग लड़ने वाले इस बिहारी को मिल चुका है राष्‍ट्रपति पुरस्‍कार

आज हम बता रहे है बिहार के एक ऐसे शख्स के बारे में जो विज्ञान के माध्यम से लोगो को  अन्धविश्वास के खिलाफ जागरूक करने का कम  करते है | मधुबनी शहर के जेपी कॉलोनी निवासी मंटू ने न सिर्फ बिहार बल्कि कई राज्यों में विज्ञान प्रशिक्षण का कैम्प लगाकर लोगो को जागरूक किया है | उन्हें इस सामाजिक कार्य के लिए राष्ट्रपति सम्मान भी मिल चुका है।

 

कैसे मिली प्रेरणा

मंटू ने बताया कि उनके पिताजी रामभूषण मंडल को ज्योतिष और तंत्र-मंत्र में गहरा विश्वास था। एक बार रामभूषण मंडल को सपना आया की लॉटरी का टिकट खरीदने पर वे धनवान बनने वाले हैं। फिर क्या था लॉटरी खेलना शुरू कर दिया। उन्हें लॉटरी खेलने की इतनी बुरी लत लगी कि गांव की जमीन तक बिक गई। इस घटना ने मंटू पर  ऐसा असर डाला कि उसने अंधविश्वास के खिलाफ लड़ाई लड़ने की ठान ली।

सक्सेस साइंस फॉर सोसाइटी का गठन किया 

2006 में मंटू ने 21 युवाओं के साथ मिलकर ‘सक्सेस साइंस फॉर सोसाइटी’ का गठन किया। इसका सोसाइटी का लक्ष्य विज्ञान के माध्यम से लोगो के अन्दर मौजूद अन्धविश्वास को दूर करना था। इसके लिए मंटू ने कथित चमत्कारों की असलियत उजागर करने के लिए जगह-जगह विज्ञान मेला व नुक्कड़ नाटक का आयोजन करना शुरू किया। इतना ही नहीं वे अपनी सोसाइटी के माध्यम से  स्वच्छता अभियान, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ व नारी स्वावलंबन का भी काम करते हैं।

मिलकर उठाते हैं खर्च

मंटू ने अपने साथियों के साथ मिलकर न सिर्फ बिहार में बल्कि झारखंड, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, ओडिशा, दिल्ली, हरियाणा और मिजोरम में भी विज्ञान जागरूकता मेला लगा चुके हैं। जीविका सलाहकार पद पर कार्यरत मंटू इस अभियान में लगने वाला सारा खर्च अपनी साथियों के साथ मिलकर खुद उठाते हैं।

गुरु ने दिखाई राह

एमकॉम तक की शिक्षा पाए मंटू ने बताया की उनकी यह राह दिखाने में उनके गुरूजी का महत्वपूर्ण हाथ है| वे वर्ष 2006 में मंगलौर के इंडियन रैशनलिस्ट एसोसिएशन के प्रेसिडेंट और मेडिकल कॉलेज के अवकाश प्राप्त प्रोफेसर डॉ. नारेंद्र नायक के संपर्क में आए। उन्होंने विज्ञान के प्रति अभिरुचि बढाने के साथ साथ हुए वैज्ञानिक चमत्कारों का भी प्रशिक्षण दिया। अब मंटू लोगों को बताते हैं कि कील को जीभ के आर-पार कर लेने वाले बाबा दरअसल अपनी जीभ में यू आकार की कील  फंसाए रखते  हैं।

मंटू ये भी लोगो को जरुर बताते है की सड़क किनारे ग्रह-नक्षत्रों को वश में करने वाली अंगूठी बेचने वाले लोग दरअसल चूने के पानी में उस पत्थर को डुबोए रहते हैं। लोगों को चकित करने के लिए अंगुली में चालाकी से फिनोथिलीन नामक केमिकल लगाए रहते हैं। इसके संपर्क में जैसे ही पत्थर आता है, खून जैसा लाल रंग निकलता है। इससे लोगों को लगता है कि वह पत्थर चमत्कारी है। इसी तरह अन्य चमत्कारों की कलई भी मंटू  विज्ञान के जरिए खोलते हैं।

लोगों की सोच बदली

मधुबनी के चकदह निवासी अमित कुमार चौधरी बताते हैं कि एक बार इन्हें वाहन खरीदना था। वे चाहते थे की गाड़ी शुभ मुहूर्त में ही ख़रीदे ताकि उन्हें ज्यादा लाभ हो। उसी बीच वे मंटू के संपर्क में आये तो उनका अन्धविश्वास कुछ कम हुआ और उनका भ्रमजाल टूटा। बगैर मुहूर्त उन्होंने वाहन खरीदा जो काफी फलदायी रहा।

इसी तरह महाराजगंज मोहल्ले के बेचन साह के बेटे को एक बार सांप ने काट लिया। लोग झााड़-फूंक के चक्कर में पड़े थे। मंटू ने परिजनों को समझाया और उन्हें नजदीक के अस्पताल में जाने की सलाह दी| परिजन बच्चे को को लेकर सदर अस्पताल गए। जब डॉक्टर ने बताया कि समय रहते बच्चे को अस्पताल लाने के कारण जान बची तो परिजन को अपनी भूल का एहसास हुआ।

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम से मिल चुके है  पुरस्कार

मंटू को इन सामाजिक कार्यो के लिए कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं|

वर्ष 2006 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के हाथों भारत स्काउट गाइड का राष्ट्रपति पुरस्कार

नेहरू युवा केंद्र मधुबनी का जिला युवा क्लब पुरस्कार

वर्ष 2012 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में राष्ट्रीय विज्ञान प्रदर्शनी के मौके पर प्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रो. यशपाल के हाथों पुरस्कार

2015 में राष्ट्रीय एकता शिविर मिजोरम में नेहरू युवा केंद्र मिजोरम के जोनल डायरेक्टर एसआर विष्णोई के हाथों पुरस्कार

2008 में सूचना और प्रसारण मंत्रालय के गीत एवं नाटक प्रभाग के निदेशक एन नवचंद्र सिंह के हाथों पुरस्कार

2008 में ही धनबाद में आयोजित सातवें राष्ट्रीय बाल अधिकार अधिवेशन में चेयरमैन डॉ. जेवी कुलकर्णी के हाथों पुरस्कार

राज्य शिक्षा शोध द्वारा आयोजित 30वें जवाहर लाल नेहरू बाल विज्ञान प्रदर्शनी में निदेशक रवींद्र राम के हाथों पुरस्कार

अहमदाबाद में अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में पुरस्कार

कन्याकुमारी में सूर्यग्रहण कैंप में वैज्ञानिक बीके त्यागी के हाथों पुरस्कार।

क्या कहते है उनके गुरु

मंटू के गुरु प्रो. नारेंद्र नायक कहते है-

अपनी सांस्कृतिक विरासत अक्षुण्ण रखने में कोई नुकसान नहीं है। नुकसान तब होता है जब लोग चमत्कारी बाबाओं के ढोंग, दकियानूसी परंपराओं के चक्कर में पड़ते हैं। मंटू जैसे युवा समाज को नई राह दिखा रहे हैं।

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