छठ महापर्व: छठ पर अपने पतियों का इंतजार करती हैं सैनिकों की पत्नियां

बिहार की अस्मिता, बिहार की पहचान, ‘छठ महापर्व’, जिसमें शामिल होकर हर बिहारी स्वयं को धन्य पाता है, इसमें पुरसम्भव सहयोग देता है। इस महापर्व में परदेस में बसे हर बिहारी के आगमन की आस उसके परिजनों को होती है। एक सैनिक के परिजन भी आस लगाए बैठे होते हैं कि उनका बेटा, उनका भाई, उनका पति, उनका पिता किसी अन्य पर्व में शामिल हों न हों, किंतु इस खुशहाली, समृद्धि एवं प्रकृति के सानिध्य के प्रतीक पर्व में अवश्य शामिल हों।

सभी परदेसी अपने देश वापस आते हैं, लेकिन वह सीमा प्रहरी, वह गृह प्रहरी अपने देश, अपने परिवार के पास नहीं आ पाता। उसका परिवार व्रत के हर विधि-विधान में उसे अपने गीतों के माध्यम से सम्मिलित करता है। खरना के प्रसाद के रूप में उस प्रहरी को अपने आशीष, अपनी शुभकामनाओं, अपनी दुआओं से अभिसिंचित करता है। भगवान भास्कर से उसके दीर्घ एवं सुखी जीवन की पल-पल कामना करता है उसका दूरस्थ परिवार! दउरा, कलसुप, नारियल, केला, अनानास, नाशपाति, शरीफा, सेब, अमरूद, अरता, डाड़ा आदि के क्रय में वह सैनिक परिजनों की कल्पना से भाग लेता है।

छठी मईया के अर्घ्य में वह व्रती के मानस से शामिल हो अपना साथ निभाता है। भगवान मार्तण्ड को अपना अर्घ्य देश की सुरक्षा करके देता है।

सैनिक और उसके परिजन दोनों इस महापर्व, जो बिहारियों के साल में कम-से-कम एक बार घर आने का बहाना है, में एक-दूसरे को याद करते हैं, एक-दूसरे की सुरक्षा की मंगलकामना आदितनाथ से करने के साथ अपने-अपने व्रत का समापन करते हैं।

जय छठी मईया! मईया रउरा से निहोरा बा कि देश के सुरक्षा में तैनात हर सुरक्षाकर्मी के सुरक्षा रउरा करीं!

-प्रीति पुतुल

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