मिथिला महान: मिथिला के हर घर में प्रसिद्ध हैं खट्टर काका

खट्टर काका धर्म और इतिहास, पुराण के अस्वस्थ, लोकविरोधी प्रसंगों की दिलचस्प लेकिन कड़ी आलोचना प्रस्तुत करनेवाली, बहुमुखी प्रतिभा के धनी हरिमोहन झा की बहुप्रशंसित, उल्लेखनीय व्यंग्यकृति है-खट्टर काका! आज से लगभग पचास वर्ष पूर्व खट्टर काका मैथिली भाषा में प्रकट हुए। जन्म लेते ही वह प्रसिद्ध हो उठे। मिथिला के घर-घर में उनका नाम चर्चित हो गया। जब उनकी कुछ विनोद-वार्त्ताएँ ‘कहानी’, ‘धर्मयुग’ आदि में छपीं तो हिंदी पाठकों को भी एक नया स्वाद मिला। गुजराती पाठकों ने भी उनकी चाशनी चखी। वह इतने चर्चित और लोकप्रिय हुए कि दूर-दूर से चिट्ठियाँ आने लगीं-‘‘यह खट्टर काका कौन हैं कहाँ रहते हैं, उनकी और वार्त्ताएँ कहाँ मिलेंगी?’’ खट्टर काका मस्त जीव हैं। ठंडाई छानते हैं और आनंद-विनोद की वर्षा करते हैं। कबीरदास की तरह खट्टर काका उलटी गंगा बहा देते हैं। उनकी बातें एक-से-एक अनूठी, निराली और चौंकानेवाली होती हैं। जैसे-‘‘ब्रह्मचारी को वेद नहीं पढ़ना चाहिए। सती-सावित्री के उपाख्यान कन्याओं के हाथ नहीं देना चाहिए। पुराण बहू-बेटियों के योग्य नहीं हैं। दुर्गा की कथा स्त्रैणों की रची हुई है। गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को फुसला दिया है। दर्शनशास्त्र की रचना रस्सी देखकर हुई। असली ब्राह्मण विदेश में हैं। मूर्खता के प्रधान कारण हैं पंडितगण! दही-चिउड़-चीनी सांख्य के त्रिगुण हैं। स्वर्ग जाने से धर्म भ्रष्ट हो जाता है…!’’

खट्टर काका हँसी-हँसी में भी जो उलटा-सीधा बोल जाते हैं, उसे प्रमाणित किए बिना नहीं छोड़ते। श्रोता को अपने तर्क-जाल में उलझाकर उसे भूल-भुलैया में डाल देना उनका प्रिय कौतुक है। वह तस्वीर का रुख तो यूँ पलट देते हैं कि सारे परिप्रेक्ष्य ही बदल जाते हैं। रामायण, महाभारत, गीता, वेद, वेदांत, पुराण-सभी उलट जाते हैं। बडे़-बड़े दिग्गज चरित्र बौने-विद्रूप बन जाते हैं। सिद्धान्तवादी सनकी सिद्ध होते हैं, और जीवमुक्त मिट्टी के लोंदे। देवतागण गोबर-गणेश प्रतीत होते हैं। धर्मराज अधर्मराज, और सत्यनारायण असत्यनारायण भासित होते हैं। आदर्शों के चित्र कार्टून जैसे दृष्टिगोचर होते हैं…। वह ऐसा चश्मा लगा देते हैं कि दुनिया ही उलटी नजर आती है।

दही चूड़ा चीनी

चूरा-दही

खट्टर काका दरवाजे पर बैठ कर भांग घोंट रहे थे. मुझे आते हुए देख कर बोले, ” अरे उधर मिर्च के पौधे लगे हैं, इधर से आओ।”

मैं ने कहा, ” खट्टर काका, आज ज्यवारी (सात गांव का) भोज है। उसी का निमंत्रण देने आया हूँ ।

खट्टर काका खुश होते हुए बोले, ” वाह । वाह । भोज का निमंत्रण देने आये हो…. ? तब ओ सीधा आ जाओ। क्या होगा दो चार पौधे ही टूटेंगे न । ये कहो की भोज में होगा क्या सब ?”

मैं ने कहा, ” दही, चूडा, चीनी।”

खट्टर काका, ” बस, बस, बस । सृष्टि में सब से उत्कृष्ट पदार्थ तो यही है । गोरस में सबसे मांगलिक वस्तु दही, अन्न में सबका चूडामणि चूडा, और मधुर में सबका मूल चीनी । इन्ही तीनों का संयोग तो त्रिवेणी संगम है । मुझे तो त्रिलोक का आनंद इन्ही में मालुम पड़ता है ।चूडा भूलोक । दही भुवर्लोक । चीनी स्वर्लोक । ”

मैं ने देखा की खट्टर काका अभी तरंग में हैं । सब कुछ अद्भुत ही कहेंगे। सो, थोड़ा काम रहते भी बैठ गया उनकी सरस बातें सुनने को ।

खट्टर काका ने कहा, “मुझे तो लगता है की चूडा दही चीनी से ही संख्या दर्शन की उत्पत्ति हुई होगी।

मैं ने चकित होते हुए पूछा, ” चूडा दही चीनी में संख्या दर्शन कहाँ से आ गया ?”

खट्टर काका ने कहा, ” अभी तुम्हे कोई हड़बड़ी तो नही है ? अगर नही तो बैठो । मेरा विश्वास है की कपिल मुनि ने चूडा दही चीनी के अनुभव पर ही तीनो गुणों की व्याख्या की होगी। दही सत्व गुन । चूडा तमोगुण । चीनी रजोगुण ।

मैं ने कहा, ” खट्टर काका आपकी तो हर बात ही अलग होती है । ऐसा तो मैं ने पहले कहीं नही सुना।”

खट्टर काका बोले, “मेरी कौन सी ऐसी बात है, जो तुम कहीं और सुने हो ?”

मैं ने कहा, “खट्टर काका । आपने दही चूडा चीनी, से त्रिगुण का अर्थ कैसे लगाया ?”

खट्टर काका, ” असली सत्व दही में ही होता है, इसीलिए इसका नाम सत्व । चीनी धूल होता है इसीलिए यह रज । और चूडा रुक्ष्तम होता है इसीलिए तम।”

मैं ने कहा, “आर्श्चय । इस ओर तो मेरा ध्यान हे नही गया था । ”

खट्टर काका ने व्याख्या करते हुए कहा, “देखो, तम का अर्थ होता है अन्धकार । इसीलिए, सूखा चूडा पत्ते पर परते ही आंखों के आगे अँधेरा छा जाता है । जैसे ही

सफ़ेद दही उस पर पड़ता है, आंखों में चमक आ जाती है। इसीलिए सत्वगुण को प्रकाशक कहा गया है। ‘सत्वं लघु प्रकाशक्मिश्तम’ । इसीलिए दही लघुपाकी और सबका प्रिय होता है ।

चूडा कब्जकर होता है । इसीलिए तम को अवरोधक कहा गया है । और बिना रजोगुण के क्रिया का प्रवर्तन सम्भव ही नही, इसीलिए चीनी के बिना खाली चूडा दही गले के नीचे नही उतरता है । अब समझे । ”

मैं ने कहा, “धन्य हैं खट्टर काका । आप जो न सिद्ध कर दें ।”

खट्टर काका बोले, “सुनो, सांख्य मत में प्रथम विकार होता है महत या बुद्धि । दही चूडा चीनी खाने के बाद यह पेट मैं फैलता है । यही महत की अवस्था है । इस अवस्था में गप्प खूब सूझता है । इसीलिए महत कहो या बुद्धि, बात एक ही है । लेकिन इसके लिए सत्वगुण का आधिक्य होना चाहिए, यानी कि दही ज्यादा होना चाहिए ।”

मैं- “अहा । संख्य दर्शन का ऐसा तत्व और कौन कह सकता है । ”

खट्टर काका, “अगर इसी तरह निमंत्रण देते रहो तो मैं सारे दर्शन का तत्व समझा दूँ।

*मैथिली पुस्तक ’खट्टर कका’क तरंग’ से साभार….

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