केबीसी के हॉट सीट पर बैठ आनंद कुमार ने अमिताभ के दिल के साथ जीता 25 लाख रूपये

महानायक अमिताभ बच्चन एक बार फिर अपने पसंदीदा शो केबीसी से छोटे परदे पर वापसी कर चुके हैं| वापसी के साथ ही इस शो ने टॉप 5 में अपनी जगह बना ली है| लेकिन अब महानायक के इस महा फेमस शो में एंट्री हुई एक ऐसे शख्स की, जिसे खुद अमिताभ बच्चन एक सुपरमैन मानते है| जी हां, यहां बात हो रही है है सुपर-30 के संस्थापक आनंद कुमार की| जिन्होंने केबीसी में आकर बिग बी का भी दिल जीत लिया| शुक्रवार को आनंद कुमार का ये शो टेलीकास्ट हुआ| बतौर सेलिब्रिटी पहुंचे आनंद ने हॉट सीट पर बैठकर ना केवल अमिताभ बच्चन के साथ दिल को छू लेने वाली बातें की बल्कि 25 लाख रुपए की राशि भी जीती| इस खेल में आनंद के दो स्टूडेंट्स अनिरुद्ध सिन्हा और अनूप कुमार ने उनकी मदद की|

यही नहीं सुपर 30 के संस्थापक आनंद कुमार के मीठापुर स्थित घर का माहौल भी शुक्रवार की रात कुछ अलग था। सोनी चैनल पर प्रसारित शो कौन बनेगा करोड़पति में सुपर 30 के संस्थापक आनंद कुमार अमिताभ बच्चन के सामने हॉटसीट पर बैठे थे। शो को देखने के लिए उनके घर के पास बकायदा प्रोजेक्टर लगवाया गया था। आनंद कुमार के साथ मोहल्ले के लोग, छात्र व उनके घर के लोग शो देखने के लिए बैठे हुए थे।

अमिताभ ने आनंद कुमार से पूछा….

अमिताभ बच्चन ने आनंद से पूछा कि सुपर 30 की स्थापना की प्रेरणा कैसे मिली और कैसे उन्होंने वंचित वर्गों के छात्रों के लिए मंच तैयार किया। आनंद से पूछा गया कि गांधीजी का जुड़ाव किस नदी से था? टाटा का पहला बिजनेस कौन था?

कभी साइकिल पर घूम-घूम कर पापड़ बेचते थे आनंद

कभी साइकिल पर घूम-घूम कर पापड़ बेचने वाले सुपर 30 के फाउंडर आनंद कुमार पर फिल्म बन रही है। उनकी बायोपिक बनाई जा रही है। फेमस मैथमेटेशियन आनंद से फिल्म के लिए निर्देशक विकास बहल और प्रोड्यूसर प्रीति सिन्हा ने संपर्क किया है। जुलाई में उनकी एक मीटिंग होनी है। इस फिल्म का नाम भी सुपर 30 रखा गया है।

मिडिल क्लास फैमिली के हैं आनंद

आनंद कुमार की फैमिली मिडिल क्लास से बिलॉन्ग करती है। उनके पिता पोस्टल विभाग में क्लर्क थे। बच्चों को अंग्रेजी स्कूल में पढ़ाने का खर्च निकालना उनके लिए मुश्किल था। इसलिए बच्चों को हिंदी माध्यम के सरकारी स्कूल में ही पढ़ाया। मैथ आनंद का फेवरेट सब्जेक्ट हुआ करता था। वे बड़े होकर इंजीनियर या साइंटिस्ट बनना चाहते थे।

12वीं के बाद आनंद ने पटना यूनिवर्सिटी में एडमिशन लिया जहां उन्होंने गणित के कुछ फॉर्मूले इजाद किए। इसके बाद कैम्ब्रिज से आनंद को बुलावा आ गया। यहां एक समस्या ये आई कि कैम्ब्रिज जाने और रहने के लिए लगभग 50 हजार रुपयों की जरूरत थी। लेकिन, इतने पैसे आनंद के पास नहीं थे।

पैसे की व्यवस्था हुई, लेकिन किस्मत को कुछ और मंजूर था

बताया जाता है कि जब कैम्ब्रिज जाने के लिए आनंद ने पिता से रुपयों की बात की तो उन्होंने अपने ऑफिस में बात कर रुपयों का इंतजाम कर लिया। 1 अक्टूबर 1994 को आनंद को कैम्ब्रिज जाना था लेकिन इससे पहले 23 अगस्त 1994 को पिता का निधन हो गया।

घर में आनंद के पिता अकेले कमाने वाले थे। चाचा अपाहिज थे। लिहाजा घर की सारी जिम्मेदारी आनंद के कंधों पर आ गई। इसके बाद आनंद अपने फेवरेट सब्जेक्ट मैथ पढ़ाकर गुजारा करने लगे।

लेकिन, जितना वे कमा रहे थे उससे घर का खर्च पूरा नहीं हो पा रहा था इसलिए आनंद की मां ने घर में पापड़ बनाने शुरू किया और आनंद रोज शाम को चार घंटे मां के बनाए पापड़ों को साइकिल में घूम-घूम कर बेचते। ट्यूशन और पापड़ से हुई कमाई से घर चलता था।

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