बिहार के बाबाधाम के रूप में प्रसिद्ध है यह मंदिर, सावन में लाखों लोग करते हैं जलाभिषेक

बिहार का बाबाधाम माने जानेवाले लखीसराय स्थित ऐतिहासिक व पौराणिक इन्द्रदमनेश्वर महादेव अशोकधाम मंदिर में सावन में लाखों लोग जलाभिषेक करते है, लगभग चार दशक पहले जब लखीसराय के चौकी गांव के दो बच्चों ने जमीन खोद कर खेले जाने वाले खेल सतघरवा खेलने के दौरान काला पत्थर देखा। खोदने पर जब बच्चों से वह काला पत्थर नहीं निकल पाया, तो ग्रामीणों को सूचना दी। टीले की खुदाई की गई, तो वह काला पत्थर नहीं, बल्कि एक विशालकाय शिवलिंग निकला।
इन 40 सालों में लोगों के सहयोग से विशाल शिव मंदिर एक धाम के रूप में परिणत हो चुका है। बिहार-झारखंड विभाजन में वैद्यनाथ धाम, देवघर के कट जाने के बाद इस अशोकधाम को बिहार के बाबाधाम के नाम से जाना जाने लगा। मंदिर में बैठे बाबा अशोक यादव बताते हैं कि श्रावण में लाखों की संख्या में कांवरिया पहुंचकर यहां बाबा का जलाभिषेक करते हैं। मंदिर के विकास के लिए इंद्रदमनेश्वर महादेव मंदिर ट्रस्ट की स्थापना की गई और इसी ट्रस्ट की देखरेख में जनसहयोग से करोड़ों रुपए की लागत से मंदिर निर्माण कराया गया।

श्री इंद्रदमनेश्वर महादेव मंदिर अशोक धाम ऐसा धाम है, जहां शादी-विवाह से लेकर मुंडन संस्कार तक बगैर किसी लग्न-मुहूर्त के कभी भी संपन्न होता है। सावन माह में प्रतिदिन भक्तगण सिमरिया के गंगाघाट से कांवर लेकर जल भरकर पैदल 30 किमी अशोक घाम श्री इन्द्रदमनेश्वर महादेव मंदिर में पूजा अर्चना करने पहुंच रहे हैं। प्रत्येक सोमवारी को 42 से 50 हजार भक्त जलाभिषेक करने पहुंचते हैं।
श्री इन्द्रदमनेश्वर महादेव मंदिर ट्रस्ट के द्वारा प्रतिवर्ष 50 जोड़ों का विवाह करवाता है। यहां प्रेम-विवाह और पकड़ौवा-विवाह बिना रोक-टोक के सम्पन्न होता है। मान्यता है, कि भगवान भोलेनाथ की इच्छा जब प्रकट होकर अपने भक्तों में भक्ति भावना को जगाते हुए उनकी मनोकामना पूरी करने की हुई तो उन्होंने अशोक नामक चरवाहे को प्रेरणा दी। अशोक ने गिल्ली डंडा खेलने के दौरान रजौना के ग्रामीणों के साथ मिलकर टीले की खुदाई कर डाली। खुदाई में काले रंग का शिवलिंग मिला। उसी के बाद नए सिरे से मंदिर बनाकर शिवलिंग की स्थापना की गई।
यह एक विचित्र संयोग की बात है कि जिस तरह भगवान विष्णु द्वारा स्थापित रावण अराध्य ज्योर्तिलिंग हजारों में भी एक टीले पर खेल रहे चारवाहे अशोक एवं गजानंद द्वारा उक्त शिवलिंग को सबकेलिए प्रकाश में लाया गया।
किसी के प्रकाश में आने कि तिथि पूर्व से ही प्रकृति द्वारा निर्धारित रहती है, हां कोई बहाना तो चाहिए ही। अशोक एवं गजानंद ने गुल्ली डंडा खेलने टीले पर गुच्ची खोदी थोड़ी गहराई में ही उन्हें काला चिकना पत्थर दिखाई पड़ा विस्मित हो उन्होंने सीताराम एवं अन्य के साथ खुदाई जारी रखी उसी के साथ शिवलिंग बाहर आने लगा तब तो गाँव के लोग भी भारी संख्या में पहुँच उत्साहित हो, श्रद्धा के साथ खुदाई करने तथा मिट्टी हटाने में लग गये। गहरी खुदाई के बाद जो परिणाम सामने आया वह था वृहद् आकार शिवलिंग जिसके अर्ध का व्यास 7.6 फीट का था तो स्वयं शिवलिंग का था 2 फीट। खुदाई करने वाले स्थानीय लोगों के अनुसार अर्धा के नीचे डमरू, नाग, त्रिशूल की आकृति उधृत थी। तदोपरान्त शिवलिंग गिर जाने के भय से लोगों ने पुनः मिट्टी से ढक दिया। सम्पूर्ण शिवलिंग मक्खन सम चिकनाई माँ काल के आँखों की चमक सदृश सुन्दर आभा बिखरने वाली है।

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