कोलंबिया यूनीवर्सिटी से ग्रेजुएट और यूएन पर्यावरण कार्यक्रम की एम्बेसेडर रह चुकी बिहार की बरसा से खास बातचीत

वो धारदार बोलती है, और उससे भी अधिक ताकत उसकी सोच में झलकती है। उसने अपने लिए नहीं बल्कि प्रकृति के लिए जीना सीखा है। उसे अच्छे से पता है कि प्रकृति जितनी खूबसूरत है, उससे भी अधिक भयावह हो सकती है अगर हम उसके साथ ऐसे ही बर्ताव करते रहे, जैसा कर रहे हैं तो। उसने बताया कि गरीबी के मूल में कहीं न कहीं पर्यावरण में आ रहा बदलाव भी है, जिसपर हमारी-आपकी नजर नहीं जा रही। उसने बताया कि अमेरिका के मना करने के बावजूद क्यों भारत को ‘पेरिस समझौते’ से पीछे नहीं हटना चाहिए।

इतनी समझ रखने वाली लड़की ने कई बार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी बात रखी है और अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण के क्षेत्र में बन रहे प्रोजेक्ट्स को आगे बढ़ाने का काम भी कर रही है। अपनी सराहनीय सोच के लिए कई बार देश-विदेश में सम्मानित हो चुकी यह लड़की है, बिहार से बरसा। विश्वप्रसिद्ध डेक्सटेरिटी ग्लोबल के अध्यक्ष विमलकांत प्रसाद की बेटी, बरसा, पटना में रहकर क्लाइमेट चेंज पर रिसर्च कर रही हैं।

बरसा

बरसा चार करोड़ की छात्रवृत्ति के साथ विश्व प्रसिद्ध कोलंबिया विश्विद्यालय से ग्रेजुएट हैं, भारत के प्रसिद्ध जागृति यात्रा की आयोजक हैं और अभी वर्तमान में अमेरिका स्थित प्रसिद्ध एमआईटी के Climate CoLab में काम कर रहीं हैं।

यूएन पर्यावरण कार्यक्रम की एम्बेसेडर रह चुकी बिहार की बरसा से ‘आपन बिहार’ ने बात की। बातचीत के अंश के साथ कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों को आपके सामने ला रहे हैं ताकि आप भी जाने-अनजाने में पर्यावरण को हो रही क्षति को समझें और अपने हिस्से की भागीदारी निभाएं।


प्रश्न : देखा जाता है कि पर्यावरण के प्रति लोग यहां उदासीन हैं। मगर आप बचपन से ही पर्यावरण के लिए काम कर रही हैं। आपको पर्यावरण के प्रति लगाव कैसे हुआ?

बरसा: ऐसे तो पर्यावरण से हमेशा लगाव रहा है मगर जब मैंने 12वीं बोर्ड का एग्जाम दिया तब मैंने तीन साल का गैप लिया। उसी बीच British council ने निकाला कि अगर आपके पास पर्यावरण के लिए आइडिया है तो दीजिए, हम लोग फंडिंग करेंगे और उसे अपने देश में लागू करेंगे। इंटरेस्ट तो था ही साथ ही एक अवसर मिला और मैंने एक प्रोजेक्ट तैयार किया और उस प्रोजेक्ट आईडिया को जमा किया। उसके बेस पे मुझे देश के 25 लोगों के बीच से चुना गया। वह शुरुआत था मेरा पर्यावरण संबधित काम का।

हिन्दुस्तान टाईम्स ने एक कॉन्टेस्ट कराया ‘ Brightest Young Climate Leader’s Fellowship contestent’ जिसमें मेरा फेलोशिप के लिए सेलेक्शन हुआ जिसमें हमें एक क्लाईमेट आईडिया पे काम करना था। मैंने ग्रुप आईडिया सोचा कि कैसे हम इन्टरनेट के जरिए ग्लोबल वार्मिंग को लेकर जागरूकता फैला सकते हैं। उसे बेस्ट क्लाईमेट आईडिया अवार्ड मिला। समाजिक कार्यकर्ता राहुल घोष ने मुझे सम्मानित किया।

उसके बाद यूनाइटेड नेशन इन्वारमेंटल प्रोग्राम के ECO generation की एम्बेसडर बनी। फिर यूएन Environment program के यूथ कॉन्फ्रेंस के लिए मेरा सेलेक्शन हुआ। इंडोनेशिया में इंडिया को क्लाईमेट नीगोसियेटर के तरह प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला।

प्रश्न : शुरुआत में आपने पर्यावरण को लेकर बिहार में ही काम किया है। बिहार के लोगों को पर्यावरण के प्रति सजग करने में क्या-क्या चुनौतियां आईं?

बरसा : हमने सोचा कि अगर बदलाव लाना है तो सबसे पहले छोटे बच्चों को समझाया जाए। तो मैं अपना प्रोजेक्ट बिहार के स्कूल के बच्चों के साथ की। मुख्यतः स्कूली छात्रों में क्लाईमेट चेंज के बारे में जागरूकता फैलाई। सबसे बड़ा चैलेंज था और अभी भी है, लोगों की मेंटेलिटी को बदलना।

प्रश्न : पटना देश के सबसे दूषित राजधानी में से एक है। आने वाले समय में हमें इसके कारण किन-किन परेशानियों का सामना करना पडे़गा और इससे निपटने के लिए आपलोग क्या कदम उठा सकते हैैं?

बरसा :  सबसे बड़ा चैलेंज और प्रोब्लम जो हम लोग फेस करेंगे या कर रहें हैं, वह है कार्बन इमीशन। हमलोगों को लगता है कि इसके लिए सिर्फ विकसित देश ही जिम्मेदार हैं, जबकि सच्चाई यह है कि विकासशील देश भी इसके लिए बराबर के जिम्मेदार हैं। मगर विकाशील देशों को ज्यादा ब्लेम नहीं करना चाहिए क्योंकि हमलोगों को समय चाहिए ताकि हम विकसित हो सकें। उसके लिए हम लोगों को कार्बन क्रेडिट होना चाहिए ताकि हम उतना कार्बन इमीट करेंगे कि हम विकसित बन सके ।

तो सब से बड़ा चैलेंज हम फेस करेंगे वह है कार्बन इमीशन। उसके कारण बहुत सारे प्रोब्लम होगें जैसे कृषि की पैदावार घटना, उससे तापमान बढ़ेगा। एक डीग्री तापमान बढ़ने से 10% कृषि पैदावार कम होती जायेगी। भारत एक कृषि प्रधान देश है। 60% लोगों की जिंदगी कृषि पर निर्भर है। इसलिए यह सबसे बड़ा चैलेंज है हमलोगों के लिए।

इसके अलाव है प्रदूषण। मैंने हाल ही में पढ़ा कि पटना देश की सबसे प्रदूषित राजधानियों में से एक है।अगर इसे हटाना है तो छोटे छोटे लेवल पर काम करना होगा। जैसे अपना कार्बन फुटप्रिंट कम करना होगा। मतलब हम व्यक्तिगत तौर पर जो एक्टिविटी करते हैं, जिससे कार्बन उत्सर्जन हो रहा है, उसे कम करना होगा। ज्यादा फ्लाईट न लें और मीट का उपयोग कम करें। इस तरह हम उसका प्रभाव कम कर सकतें हैं।

प्रश्न : यानी जैसा समझा जाता है कि प्रदूषण के कारण सिर्फ शहर के लोगों को खतरा है वैसा नहीं है, बल्कि गांव के लोगों के लिए भी खतरा है?

बरसा : हाँ, और उनकी गलती भी नहीं है। वे आने-जाने के लिए फ्लाईट का भी उपयोग नहीं करते, वे कार्बन का उत्सर्जन भी उतना नहीं करते फिर भी उनको फेस करना होता है।

प्रश्न : और क्या स्टेप है जो सरकार तत्काल ले सकती है?

बरसा :  सबसे बड़ा स्टेप है कि जो पेरिस समझौता हुआ था उस समझौता में रहना और इंडिया है उस समझौते में। वैसे अमेरिका उस समझौते से पीछे हट गया है और वह बोल रहा है कि इंडिया को उस समझौते से नुकसान है लेकिन इंडिया है उस समझौते में और यह सबसे बड़ा स्टेप है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मोदी सरकार बहुत अच्छा काम कर रही है।

उसके अलावा दूसरा स्टेप हमलोग ले सकते हैं जैसे छोटे-छोटे काम हम करते हैं उसको लेकर कुछ सचेत रहना होगा। हमलोग कुछ कर रहे हैं और उसका नकारात्मक प्रभाव किसान पर पड़ रहा है। इसलिए हम लोगों को यह ध्यान रखना होगा कि ऐसे भी लोग हैं देश-दुनिया में जो पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुँचा रहे हैं मगर उन्हें भी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।

प्रश्न : पेरिस समझौता हाल ही में बहुत न्यूज में रहा है। बेसिक लेवल पर लोगों को परिस समझौते के बारे में और इसका इंडिया को क्या लाभ होगा, बताएं।

बरसा :  पेरिस समझौता का प्रमुख मकसद है ग्लोबल क्लाईमेट चेंज को 2 डीग्री Celsius से ऊपर न जाने दिया जाए। सारे देश आकर यह समझौता किये हैं कि 2°C से ज्यादा ग्लोबल क्लाईमेट चेंज नहीं होना चाहिए। इसके लिए हर देश को एक certain कार्बन लिमिट दिया गया है यानी इस लिमिट से ज्यादा आप कार्बन उत्सर्जन नहीं कर सकते, भले वह इंडस्ट्रियल एक्टिविटी हो या कुछ और। 

अगर भारत उस लिमिट को फॉलो कर सकता है, तो क्लाईमेट चेंज के कारण जो गरीबी बढ़ रही है, उसे रोका जा सकता है। जैसे पहले मैंने बताया कि कैसे इसके कारण कृषि पैदावार घट रही है। उसके अलावा अगर 2061 तक क्लाईमेट चेंज को नहीं रोका गया तो मुंबई शहर आधा से ज्यादा पानी में डूब जायेगा।

प्रश्न : यानी दो चीजें जिसको हटाने के लिए देश वर्षों से मंथन कर रहा है और बहस कर रहा है, गरीबी और किसानों की समस्या, वह भी पर्यावरण से जुड़ा है जिसके बारे में कोई बात ही नहीं कर रहा?

बरसा : हाँ, इसलिए यह मानव-अधिकार का विषय है।

प्रश्न : इंडिया में पर्यावरण के लिए आप काम कर रही हैं, साथ ही आप एमआईटी में भी कुछ रिसर्च को लेकर काम कर रही हैं। उसके बारे में लोगों को बताएँ।

बरसा : एमआईटी क्लाईमेट को-लैब एक ऐसी संस्था है जिसे एमआईटी के छात्र और प्रोफेसर मिलकर चलाते हैं। वो दुनिया भर से क्लाईमेट आईडिया को जमा करने के लिए कहते हैं। पूरी दुनिया से एंट्री आती हैं और उनसब में से कुछ को चुना जाता है और हर सेक्सन में से टॉप 5 इंट्री को अवार्ड दी जाती है। मेरा जो काम है, उस प्रोजेक्ट को पढ़ना होता है और कैसे-क्यों उसे शामिल किया जाए उसपर सुझाव देना होता है।

प्रश्न : जिन्हें पर्यावरण से लगाव है और उसके लिए आगे काम करना चाहते हैं, उनके लिए आप क्या सुझाव देंगी?

बरसा : सबसे पहला काम वे करें कि अखबार अच्छे से पढ़ें। भले पर्यावरण से संबंधित खबरें कम आतीं हैं, मगर जो भी आती हैं, महत्वपूर्ण आती हैं। अपने आप को इंफोरम रखें क्लाईमेट चेंज के बारे में और ज्यादा से ज्यादा पढ़ें इसके बारें में।

प्रश्न : जो लोग अपने पर्यावरण के प्रति चिंतित हैं और पर्यावरण के लिए काम करना चाहते हैं ।उनके लिए आपका कोई मैसेज?

बरसा : पर्यावरण एक ऐसा क्षेत्र है जो हर व्यक्ति को प्रभावित करता है। इसलिए हर व्यक्ति का इसके प्रति रूचि होना चाहिए। जिन्हें इस क्षेत्र में रूचि है उन्हें अपनी छोटी-छोटी आदतों पर ध्यान देना चाहिए जो पर्यावरण को प्रभावित कर रही हैं। इसप्रकार वे अपने कार्बन फुटप्रिंट कम कर सकते हैं। साथ ही अपने आप को पर्यावरण के प्रति जागरूक रखें। दूसरों को भी जागरूक करें। अगर आप इस क्षेत्र में काम करना चाहते हैं तो खुद के प्रोजेक्ट्स शुरू करें और लोगों को जागरूक करें ताकि वे भी आपके पहल में आपके साथ हाथ बढ़ाएं।

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