मैं बिहार बोल रहा हूँ, दुखी बहुत हूँ, आज हृदय को खोल रहा हूँ-1

मैं बिहार बोल रहा हूँ, दुखी बहुत हूँ, आज हृदय को खोल रहा हूँ-1

(गौरवगाथा अध्याय)

हाँ मैं बिहार हूँ, मैं तो बिहार हूँ, मैं वही बिहार हूँ ,

कभी था जो भारत का शीश-मुकुट, मैं वही बिहार हूँ ।।

भारत का इतिहास प्रारंभ होता जहाँ से,मैं वही बिहार हूँ ,

देवभूमि और धर्मभूमि मैं, वही वन्दनीय बिहार हूँ।।

जहाँ लोकतंत्र के पुष्प खिले, मैं वही बिहार हूँ,

धर्म और दर्शन का जहाँ विकास, मैं वही बिहार हूँ ।

बौद्ध हों कि जैन हों, सबकी रश्मियाँ फूटती यहीं से है,

भारतवर्ष में ज्ञान-धर्म की धारा, छूटती यहीं से है ।।

ज्ञान-धर्म हो कि हो यहाँ की वीरता, यह पुण्यभूमि समृद्ध है,

विज्ञान हो,कला-साहित्य हो,सब क्षेत्र में, यहाँ के सपूत प्रसिद्ध हैं ।


हाँ ! मैं बिहार बोल रहा हूँ। यूँ तो मेरी आदत चुपचाप सहते जाने की है किन्तु आज परिस्थितियाँ मेरी भी सहन-शक्ति के परे हो गई हैं और मुझे बोलने के लिए बाध्य होना पड़ा है। आज मैं बोलूँगा—खरी-खरी, कोई लाग़-लपेट नहीं । किसी को बुरा लगे या भला—यह परवाह मैं नहीं करूँगा । आज मैंने कबीर की तरह लापरवाही का कवच पहन लिया है । आज मेरे वचन भले ही वेधनेवाले हों, मेरी बातें चोट करनेवाली हों, मैं तो बोलूँगा । यूँ तो आज के राजनीतिक-आर्थिक-शैक्षणिक-सामाजिक हालात ने मुझे यूँ ही निम्नतम स्तर पर रख छोड़ा है, पर जिस मेधा-क्षेत्र में मेरा डंका अब भी बजता था—कुछ शिक्षा-घोटालों की आड़ में लोगों ने मुझे उस क्षेत्र में भी बदनाम करने का बिगुल फूंक रखा है । एक सुनियोजित तरीके से मुझे बदनाम किया जा रहा है । बहुत हो गया अब ! अब नहीं सहा जाता । तो सुनो मेरा शंखनाद ।

 

तुमने मुझे बदनाम किया है । जीना मेरा हराम किया है । पर हे प्रखर-प्रचंड विद्वानों (?), तुम भूल रहे हो कि बिहार क्या चीज है ? तुम भूल रहे हो कि बिहार जितनी बार गिरता है, उतनी बार उससे भी अधिक क्षमता से उठ खड़ा होता है । कदाचित मुझे याद दिलाना ही पड़ेगा । याद करो मैं अतीत का वही गौरवशाली बिहार हूँ, जो प्राचीनकाल से ही भारत की राजनीति का केंद्र रहा–जो धर्म,ज्ञान, साहित्य, कला आदि विविध क्षेत्रों में सबका सिरमौर रहा । तुम भूल रहे हो कि उत्तर पाषाण युग में भी मैं सांस्कृतिक रूप से विकसित अवस्था में था । ऋग्वेद पढ़ा है कभी ? पढ़ते तो पता चलता कि आर्यों के आगमन के पूर्व ही बिहार में सभ्यता-संस्कृति का विकास हो चुका था । मेरे वायुमंडल में वाल्मीकि का काव्य गूँजता रहा है । मैंने न जाने कितने महापुरुषों के निर्माण के चरण देखे-फिर वे अवतारी हों या सामान्य मानव—सबके महामानव बनने की उड़ान का मैं प्रत्यक्षदर्शी हूँ । मैं ऋषि विश्वामित्र एवं ऋषि अगस्त्य की तपोभूमि रहा तो राम के श्रीराम बनने की कर्मभूमि भी । रामायण के राम ने यहीं (बक्सर) में दुष्ट राक्षसी ताड़का का वध किया था । ब्रह्मलोक से जब देवी सरस्वती भूलोक पर उतरी थीं, तो उनका मन मेरे ही सोनतट का सौंदर्य देखकर अभिभूत हो गया था और उन्होंने यहीं विश्राम करने का निश्चय किया । वैदिक विदुषियों में गार्गी की मैं जन्मभूमि रहा तो लोपामुद्रा, मैत्रेयी, कात्यायनी आदि की कर्म-भूमि । शुक्ल यजुर्वेद सहित शतपथ ब्राह्मण, बृहदारण्यक व याज्ञवल्क्य स्मृति के रचयिता याज्ञवल्क्य मिथिला नरेश जनक की सभा के भूषण थे । 1000 सुइयों की नोक पर नृत्य करने वाली पाटलिपुत्र की विख्यात नर्तकी घोषा का नृत्यकला में अभूतपूर्व योगदान है । यहाँ तो वैशाली की राजनर्तकी आम्रपाली भी सन्यासिनी बन जाती है । मौर्यकालीन प्रसिद्ध व्याकरणाचार्य और अष्टाध्यायी के रचयिता ‘पाणिनि’ मनेर (पटना) के निवासी थे । मेरे पुत्र बाणभट्ट ने हर्षचरित, कादम्बरी और सूर्यसप्तक जैसी कालजयी कृतियाँ दी । मेरे पुत्रों धीमन एवं वीतपाल ने मूर्तिकला और चित्रकला को नया आयाम दिया । मंडन मिश्र याद हैं या उनकी भारती तो याद होगी—वही भारती जिसने आदि शंकराचार्य को भी शास्त्रार्थ में निरुत्तर कर दिया था । मधुबनी के वाचस्पति मिश्र को भूल गये जिसने शंकर भाष्य की टीका के साथ-साथ अनेकों टीकाएँ लिखीं ।  मिथिला के अमर कवि मैथिल-कोकिल विद्यापति हिन्दी, मैथिली और बंग भाषा–तीनों में समान रूप से समादृत हैं।
प्राचीन भारत के सोलह महाजनपदों एवं दस गणराज्यों में से चार–अंग (मुंगेर+भागलपुर), मगध, लिच्छवी (वैशाली) और विदेह (मिथिला) मेरे ही तो हिस्से थे । महाभारत के अंगराज दानवीर कर्ण और रामायण के मिथिला नरेश जनक को भूल गए । इतिहास के पन्ने पलटो तो पाओगे कि कैसे मेरे मगध का इतिहास एक प्रकार से पूरे भारत का इतिहास बन गया । वैदिक धर्म के विस्तार के साथ-साथ मैं जैन धर्म की जन्मस्थली बना तो बौद्ध धर्म की कर्मस्थली, सिख धर्म के पुरोधा गुरु गोविन्द सिंह भी मेरी ही संतान थे, मेरे प्रिय सूफी संत मखदूम सरफुद्दीन मनेरी के प्रयासों से इस्लाम धर्म का प्रसार हुआ । जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों में से 16 को मेरी ही भूमि पर जन्मग्रहण या मोक्षग्रहण का सौभाग्य मिला । यहाँ की सैन्य-शक्ति के भय से विश्वविजेता सिकन्दर को व्यास नदी के तट से ही वापस लौट जाना पड़ा । इतिहास-प्रसिद्ध वास्तुकार महागोविंद मेरा ही पुत्र था जो चम्पा (अंग की राजधानी) का वास्तुकार था । मेरा ही पुत्र चन्द्रगुप्त मौर्य भारत का मुक्तिदाता था और भारत में प्रथम ऐतिहासिक वृहत साम्राज्य का प्रतिष्ठाता था । तुम भूल गए कि मेरे ही पुत्र सम्राट अशोक प्रियदर्शी ने पहली बार एक कल्याणकारी राज्य का आदर्श प्रस्तुत किया । समुद्रगुप्त, चन्द्रगुप्त द्वितीय ‘विक्रमादित्य’, स्कंदगुप्त प्रभृति महान शासकों को तुम कैसे भूल गए जिन्होनें सिर्फ मेरे ही नहीं पूरे भारतवर्ष के गौरव को शिखर तक पहुंचाया । मध्यकाल में मेरे लाल शेरशाह ने अपने जीवन-पर्यंत मुगलों को सर उठाने का अवसर नहीं दिया । मेरे पुत्र वीर कुंवर सिंह ने 1857 के ग़दर में अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे । यहाँ तो पुस्तक विक्रेता (पीर अली) में भी इतनी हिम्मत थी कि अंग्रेजों का बहादुरी से सामना किया । मेरे पुत्र देशभूषण मौलाना मजहरुल हक़ को कौन भूल सकता है ? मेरे पुत्र डा० सच्चिदानंद सिन्हा संविधान सभा के प्रथम अध्यक्ष रहे । मैंने देश को डा० राजेन्द्र प्रसाद के रूप में पहला राष्ट्रपति दिया । मैंने देश को अमर सिंह, योगेन्द्र शुक्ल, बैकुंठ शुक्ल, चंद्रमा सिंह, चुनचुन पाण्डेय, जगत नारायण लाल, रामप्यारी देवी, रामचंद्र शर्मा, नरसिंह नारायण, श्रीकृष्ण सिंह, जयप्रकाश नारायण, ब्रज किशोर प्रसाद, रामनंदन मिश्र, रामदयालु सिंह, श्यामबिहारी लाल, तिलका मांझी, जुब्बा साहनी, जगलाल चौधरी, दरोगा प्रसाद राय जैसे स्वाधीनता सेनानी और क्रांतिकारी दिए । मेरी ही भूमि पर राष्ट्रपिता के सत्याग्रह का श्रीगणेश हुआ जिसकी सफलता ने मोहनदास को महात्मा बनाया ।

 

तुम शिक्षा-व्यवस्था पर सवाल उठाते हो, यहाँ की मेधा पर सवाल उठाते हो, यहाँ की डिग्री पर सवाल उठाते हो । पर तुम भूल जाते हो कि शिक्षा और ज्ञान के क्षेत्र में मेरा गौरवशाली इतिहास और परम्परा है । यहीं के कुंडग्राम (वैशाली) में महावीर जन्मे और जैन धर्म की पताका फहराई । बुद्ध को भी ज्ञान प्राप्ति के लिए मेरी ही शरण में आना पड़ा । मैं वह ज्ञानभूमि हूँ जहाँ भारत में पहली बार शिक्षा गुरुकुल से निकल कर विश्वस्तरीय विश्वविद्यालय व्यवस्था से रूबरू हुई । नालंदा, ओदंतपुरी, विक्रमशिला आदि महाविहारों/विश्वविद्यालयों ने पूरे विश्व में बिहार के ज्ञान-गुरु होने को प्रमाणित किया । मेरे पटना स्थित सैफ़ खां के मदरसे की ख्याति ईरान तक फैली थी । यहीं पाणिनि ने अपनी कालजयी रचना ‘अष्टाध्यायी’ रची । यहीं कौटिल्य ने ‘अर्थशास्त्र’ लिखा जो राजनीति और प्रशासन से जुड़ी अनमोल कृति है । सुप्रसिद्ध चिकित्सक चरक का मेरे साथ अटूट सम्बन्ध रहा । मैथिल कोकिल विद्यापति से सम्पूर्ण भारतवर्ष अवगत है । मेरे ही पुत्र आर्यभट्ट (खगौल, पटना) ने विश्व को दशमलव का ज्ञान दिया, बीजगणित की आधारशिला रखी, विश्व को चंद्रग्रहण और सूर्यग्रहण की वास्तविकता बताई, कॉपरनिकस से हजार वर्ष पूर्व ही सिद्ध कर दिया कि पृथ्वी गोल है और अपनी धुरी पर घूमती है ।

 

हिंदी गद्य के जनक भारतेंदु हरिश्चंद्र का बिहार से घनिष्ठ सम्बन्ध रहा और उनकी समस्त कृतियाँ बिहार के ही ‘खड़गविलास प्रेस’ से प्रकाशित हुई । मेरे ही पुत्र देवकीनंदन खत्री (मुजफ्फरपुर) ने देश को चन्द्रकान्ता, कटोरा भर खून, चन्द्रकान्ता संतति जैसी तिलस्मी-ऐय्यारी उपन्यासों का नायाब तोहफ़ा दिया, जिन पर कई हिट धारावाहिक बने । पंडित रामावतार शर्मा, पंडित चंद्रशेखर शास्त्री, डा० काशीप्रसाद जायसवाल, आचार्य रामलोचन शरण पूरे भारत में लोकप्रिय रहे । हिंदी, उर्दू और अन्य भाषा-साहित्य के विकास में मेरे सपूतों का अभूतपूर्व योगदान है । मेरे पुत्र डा० अजीमुद्दीन अहमद ने उर्दू कविता में सॉनेट शैली का पहला प्रयोग किया । उर्दू गजलों को जन-जन तक पहुंचाने वाला शाद अजीमाबादी मेरा ही तो पुत्र था । मैं वह भाव-भूमि हूँ जहाँ मेरे पुत्र दिनकर राष्ट्र के लिए हुंकार भरते हैं, रेणु जनमानस का चेहरा आंचलिकता के आईने में दिखाते हैं, नागार्जुन व्यवस्था-परिवर्तन के लिए साहित्यिक शंखनाद करते हैं तो जयप्रकाश ‘सम्पूर्ण क्रान्ति’ का उद्घोष करते हैं । राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह, आचार्य शिवपूजन सहाय, आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री, अवध नारायण, रामवृक्ष बेनीपुरी, रामधारी सिंह दिनकर, आरसी प्रसाद सिंह, पंडित रामदयाल पाण्डेय, पंडित जगन्नाथ प्रसाद मिश्र, कलक्टर सिंह केसरी, गोपाल सिंह नेपाली, आचार्य नलिन विलोचन शर्मा, डा० कुमार विमल, डा० वचनदेव कुमार, निशांतकेतु, आलोक धन्वा, डा० सिद्धनाथ कुमार, डा० खगेन्द्र ठाकुर, डा० रामवचन राय, केदारनाथ मिश्र ‘प्रभात’, नंदकिशोर नवल, नागार्जुन (वैद्यनाथ मिश्र/यात्री), फणीश्वरनाथ रेणु, गौरीशंकर राजहंस, उषा किरण खान, राजमोहन झा, कलीम आजिज, रामेश्वर सिंह ‘कश्यप’, गणेशदत्त तिवारी, महेश ठाकुर, सुरेश दूबे प्रभृति अनंत नामों को, उनकी प्रतिभा को और उनके योगदानों को क्या आप नकार सकते हैं ?

 

सर्वजन की सुविधा के लिए पहाड़ तक को छेनी-हथौड़े से काटकर रास्ता बनाने वाला वह पर्वत-पुरुष दशरथ मांझी मेरा ही तो प्रिय पुत्र था । मैंने देश को नंदलाल बोस जैसा महान चित्रकार दिया । मैंने देश को प्रकाश झा, इम्तियाज अली जैसे फिल्म-निर्देशक और शत्रुघ्न सिन्हा, मनोज वाजपेयी, विनय पाठक जैसे अभिनेता दिए । मैंने देश को भोजपुरी के जनकवि भिखारी ठाकुर जैसा नाटककार और अभिनेता दिया जिसका रंगमंच की दृष्टि से किसी भी अन्य भाषा में कोई सानी नहीं है । उस्ताद बिस्मिल्ला खां जैसा अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त महान शहनाई वादक दिया । मैंने देश को दामोदर प्रसाद अम्बष्ठ जैसा शिल्पकार दिया जिसे मूर्तिकला और चित्रकला दोनों में ही दक्षता प्राप्त थी । मैंने देश को हरि उप्पल जैसा नटराज दिया जिसे कथकली और मणिपुरी नृत्यों में महारत हासिल थी । यहाँ की स्थानीय गायकी (मुजफ्फरपुर के चतुर्भुज स्थान की गायकी) भी श्रेष्ठ गायकी परम्परा में शामिल होने की क्षमता रखती है । संगीत की महान ध्रुपद परम्परा के संरक्षण के लिए मैंने पंडित रामचतुर मलिक और पंडित सियाराम तिवारी जैसी विभूतियाँ दी । मधुबनी चित्रकला में सिद्धहस्त मेरी पुत्री शशिकला देवी के चित्रों की प्रदर्शनी विदेशों में लगती है । तुम्हें पता है कि जापान में हमारे मिथिला पेंटिंग का संग्रहालय बनाया गया है जो अब तक भारत में भी नहीं है । मैं वो मेधाभूमि हूँ जहाँ से विद्यार्थी देश के सर्वोत्तम शिक्षण संस्थाओं—आई०आई०टी०, एम्स आदि के साथ संघ लोक सेवा आयोग की अखिल भारतीय परीक्षाओं में अग्रणी रहे हैं ।

 

सम्पूर्ण भारतवर्ष के लोग यहाँ (गया) आकर पिंडदान करते हैं और फल्गु नदी में स्नान कर पूर्वजों के मोक्ष की प्रार्थना करते हैं । मनेर (पटना) में संत याह्या शरफुद्दीन मनेरी की मजार पर सालाना उर्स पर पूरे देश के हिन्दू-मुसलमान इकट्ठे होकर अपनी श्रद्धा प्रदर्शित करते हैं और साम्प्रदायिक सद्भाव की मिशाल पेश करते हैं । सोनपुर के विश्वप्रसिद्ध हरिहर मेला (जो भारत का सबसे बड़ा पशुमेला है ) में लाखों श्रद्धालु आते हैं । राजगीर (राजगृह) हिन्दू, बौद्ध एवं जैन तीनों धर्मों का पूज्य तीर्थस्थल है । कितना कहूँ ? भगवान् श्रीहरि के आशीर्वाद से मेरी भी कथा ‘हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता’ की अनंत है । मैं तो तुम्हें याद दिला रहा था कि तुम जिस बिहार की बात करते हो उसके बारे में तुम्हें ठीक से पता है भी या नहीं । या ऐसे ही दूर खड़े होकर दूसरों के घरों में तुम्हें पत्थर फेंकने की आदत है !

 

उन्नति तथा अवनति प्रकृति का नियम एक अखंड है,
चढ़ता प्रथम जो व्योम में गिरता वही मार्तण्ड है ।
अतएव अवनति ही हमारी कह रही उन्नति-कला,
उत्थान ही जिसका नहीं उसका पतन भी क्या भला ?—मैथिलीशरण गुप्त

 

यह यथार्थ है कि आज मैं विकास में पिछड़ गया हूँ । राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी, प्रशासनिक विफलता, भ्रष्टाचार, नक्सलवाद, जातिवाद प्रभृति अनेक राजनीतिक, प्रशासनिक एवं सामजिक कारणों से मेरी भूमि पर ठीक से मूलभूत अवसंरचना का विकास नहीं हो पाया, उद्योग-धंधों का विकास नहीं हुआ, सरकारी विद्यालयों में शिक्षा पिछड़ गयी और लोग पलायन को विवश हुए । किन्तु इसका तात्पर्य यह भी नहीं हुई है कि मेरा पतन हो गया है । मुझे भरोसा है कि मेरे पुत्र फिर से उठ खड़े होंगे, मेरा तिनका-तिनका फिर से जोड़ेंगे, मुझे सजाएंगे-संवारेंगे और मैं फिर से पूरे विश्व के समक्ष सीना तान कर खड़ा हो जाऊँगा ।

 

उठो मेरी संतानों अब भी, देर बहुत तो हुई है अब,
गौरवशाली बिहार बनाने में, मिलकर तुम लग जाओ सब ।
उँगलियाँ जो उठा रहे हैं, जवाब उन्हें दे डालो तुम,
विकास पथ पर आगे बढ़कर, मुख उनका बंद कर डालो तुम ।।
(यह लेख ‘मैं बिहार बोल रहा हूँ’ श्रृंखला का प्रथम भाग है । जल्द ही इसका दूसरा भाग भी आपके सम्मुख होगा । अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया से अवश्य अवगत कराएं । आपका अपना—अविनाश कुमार सिंह, राजपत्रित पदाधिकारी, गृह मंत्रालय, भारत सरकार )

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