जुर्म सिस्टम ने किया मगर बली का बकरा गणेश को बनाया गया

 

दलित उत्थान की पोल खोलती है गणेश की कहानी


गणेश ने पूरी रात कोतवाली थाना के हाजत में बिताई, क्या सोच रहा होगा गणेश, क्या गणेश जब अपनी परिक्षा की कॉपी लिख रहा होगा तो कभी ऐसा सोचा होगा कि रिजल्ट आने के बाद वह जेल में होगा ? क्या इस फर्जीवाड़े में सिर्फ अकेला गणेश दोषी है ?

 

गणेश से मेरी पूरी हमदर्दी है इसलिये नही की गणेश दलित है ,गरीब है बल्कि इसलिए कि गणेश के पास टेलेंट है।

गणेश का टेस्ट लेने वाले एक्सपर्ट टीम से कल मेरी बात हुई उन्होंने भी कहा वह ब्रिलियंट है।हर सवाल का जवाब उसकी जुबान पर था।गणेश की गिरफ्तारी का उन्हें भी दुख था लेकिन वो लाचार थे क्योंकि गणेश को गलत साबित कर उन्हें अपने सिस्टम को सही साबित करना था।

आज गणेश की कहानी हर उस बेरोजगार की कहानी है जिस पर अपने घर परिवार को चलाने की जिम्मेवारी है।गणेश हर उस बेरोजगार की कहानी है जो पढ़ाई लिखाई के बाद भी नौकरी की आस में उम्र गुजार देते है।गणेश को भी अपना परिवार चलाने के लिए नौकरी की दरकार थी।गणेश पर भी उसके दो बच्चो की जिम्मेवारी थी। उन्हें भी पढ़ाना लिखाना था। गणेश तो सिर्फ अपना उम्र कम कर सरकारी नौकरी पाना चाहता था।वह कोई फर्जी पासपोर्ट बनाकर आतंकी नही बनना चाहता था वह तो नौकरी पाना चाहता था। अगर गणेश को नौकरी मिल गई होती तो क्यो ऐसा करता।गणेश की कहानी देश मे दलितों के नाम पर की जाने वाली खोखले दावो की भी कलाई खोलती है।किस तरह सिर्फ दलित के नाम पर राजनीति की जाती है बड़ी बड़ी योजनाए बनाई जाती है दलित विकास की बड़ी बड़ी बातें की जाती है अगर सब कुछ ऐसा ही था तो एक दलित मेधावी गणेश को अब तक नौकरी क्यो नही मिली।गणेश झारखंड के रहनेवाले है।

 

1990 में कोडरमा के स्कूल से प्रथम श्रेणी में मैट्रिक किया। और 1992 में सेकेंड डिवीजन से तब बिहार झारखंड एक ही था। औ1990 से लेकर 2014 तक गणेश को जब नौकरी नही मिली तो 2015 में उसने उम्र घटाकर बिहार के समस्तीपुर से मैट्रिक की परीछा दिया और 2017 में इंटर की।अब कल बिहार के सत्ताधारी पार्टी के प्रवक्ता गणेश को दलित बताकर उसके हिमायती बन रहे थे बहुत सीधा सा सवाल है यदि गणेश को सरकार में नौकरी मिल गई होती तो वह भला यह सब क्यो करता?क्या यह कहानी सिर्फ एक गणेश है या इस जैसे कई गणेश है?

 


सभार – अमिताभ ओझा (बिहार ब्यूरो चीफ , न्यूज 24)

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