​बिहार के मिथिला क्षेत्र में था दुनिया का पहला ऑफलाइन मेट्रोमोनियल प्लेटफॉर्म (सौराठ सभा)

आज अक्सर शादियों के लिए लोग ऑनलाइन मेट्रोमोनियल साइट्स को विजीट करते हैं पर बिहार के मिथिला में आज से 700 साल पहले भी इस पर्पस के लिए एक प्लेटफॉर्म था। मधुबनी जिले को ज़्यादातर बाहरी लोग मधुबनी पेंटिंग (मिथिला पेंटिंग), पान-माछ  या मखान के कारण जानते हैं पर इस जिले के इतिहास में एक और कौतूहल दबा हुआ है। यहाँ के एक गाँव सौराठ में 22 बीघा जमीन पर एक मेला लगता था 7 या 11 दिन के लिए, जिसमें क्षेत्र के वर और वधु पक्ष आते थे और योग्य वधु-वर का चयन पंजीकारों की मदद से करते थे। 

1310 ई. में इस सभा की स्थापना राजा हरिसिंह ने करवाई थी, जिसका आयोजन सौराठ के अतिरिक्त सीतामढ़ी के ससौला, झंझारपुर के परतापुर, दरभंगा के सझुआर, सहरसा के महिषी और पूर्णिया के सिंहासन सहित अन्य स्थानों पर भी किया जाता था, और इसका मुख्य कार्यालय सौराठ हुआ करता था। 1971 ई. में इस मेले में करीब डेढ़ लाख लोग आए थे और दस हजार शादियाँ यहाँ तय हुईं थीं, पर धीरे-धीरे ये संख्या घटती गई। 
यहाँ तय हुई शादियों में एक विशेष बात थी कि यहाँ दहेज की मांग नहीं की जाती थी। पर अब ये जगह लगभग सुनसान पड़ा है। मेला तो अब भी लगता है पर लोग अब इसमें रुचि नहीं लेते। पलायन, सरकार की उपेक्षा और संसाधनों के अभाव ने इस एतिहासिक स्थल और धरोहर को कचड़ों के ढ़ेर और सूखे गाछी के रूप में बदल दिया है। अब धीरे-धीरे लोग फिर से अपने इस गौरवशाली ऐतिहासिक धरोहर की गरिमा लौटाने का प्रयास कर रहे हैं। इस क्षेत्र में काम करने वाले सभी संगठन के लोग बधाई के पात्र हैं। पर इसमें आम लोगों की जागरूकता और सहभागिता ज्यादा जरूरी है। आशा है कि सरकार भी दहेजमुक्ति की तरफ एक कदम और बढ़ाते हुए इसपर ध्यान दे और आने वाले वक्त में इस गौरवपूर्ण ऐतिहासिक धरोहर में फिर से नई जान आए।

साभार – आदित्य झा

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