#Justice4Nancy: छुटकी नैंसी बहना हम सब तेरे अपराधी हैं

छुटकी बहना : हम सब तेरे अपराधी

भारत की इक बेटी थी, बिहार की वह बिटिया थी ।
किन्तु दिल वह मिथिला की, वह नन्हीं सी चिड़ियाँ थी ।।
नैंसी नाम तो उसका था, इक शिक्षक की मुनिया थी ।
उसकी मासूम सी आँखों को, अभी देखनी सारी दुनिया थी ।।
कुछ हिजड़ों की आँखों को, उसकी मुस्कान खटकती थी ।
गायब हुई, क्षत-विक्षत हुई, रह-रहकर जो हँसती थी ।।
हम सब हाथ धरे हैं बैठे, मानो लकवा मार गया ।
सहते जाने की है आदत, जो है हमको मार गया ।।
बहना हमसे स्वर्ग से पूछे, भईया न्याय दिलाओगे ।
मेरे साथ तो हो ही गया, बाकियों को क्या बचाओगे?
बेटी हमसे रोकर पूछे, पापा-चाचा कहाँ हो तुम ?
मुझको खींच ले जाते कुत्ते, आकर मुझे बचा लो तुम ।।
दरिंदों से तो हमें बचाओ, ये तो हमको नोंच रहे ।
मांस हमारा चबा रहे हैं, खून हमारा चूस रहे ।।
क्या जवाब दें हम बहना को, क्या बोलें उस बेटी को ?
कह दूं कि बहना हम कायर, बचा न सके उस छोटी को ?
जिन्होंने यह दुष्कृत्य किया, वह तो पापी हिजड़े हैं ।
किन्तु न्याय न मिला उसे तो, मन से हम भी लंगड़े हैं !!
—अविनाश कुमार सिंह

 

ट्रेनिंग में व्यस्त था । आज मिथिलांचल के सांस्कृतिक हृदय ‘मधुबनी’ की मासूम गुड़िया ‘नैंसी झा’ के अपहरण, अनाचार और अंत की बुरी ख़बर पढ़ी I दिल में आँसू और आँखों में रक्त उभर आया । मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, 25 मई, 2017 को एक 12 वर्ष की सातवीं कक्षा की छात्रा का अपहरण हो जाता है, उसके साथ दुराचार होता है, उस पर तेज़ाब डाला जाता है, फिर गला काटकर उसकी हत्या कर दी जाती है और 27 मई की शाम नदी किनारे से उसकी क्षत-विक्षत लाश बरामद होती है I सुशासन में दुशासनों के दुष्कृत्य । गौरतलब है कि इस दौरान बिहार का राजनीतिक गलियारा नीतीश-मोदी भोज से सम्बंधित आरोप-प्रत्यारोप में व्यस्त रहा । खैर आज बात राजनीति या जंगलराज वापसी की नहीं होगी, क्योंकि ऐसी घटनाओं में देश की राजधानी दिल्ली भी पीछे नहीं है । आज बात हम समाज और सम्बंधित मानसिकता की करेंगे । दिनकर याद आते हैं—

 

हे मिथिला-पुत्री ! दायी है कौन विपद का ?
हम दोषी किसको कहें तुम्हारे वध का ?
यह गहन प्रश्न; कैसे रहस्य समझायें?
दस-बीस वधिक हों तो हम नाम गिनायें ।
पर, कदम-कदम पर यहाँ खड़ा पातक है,
हर तरफ लगाये घात बड़ा घातक है ।

 

समाज पारस्परिक मधुर संबंधों की व्यवस्था है । ज्ञान, विश्वास और प्रेम के अभाव में सामाजिक सम्बन्ध कोरे हैं । पारस्परिक सहयोग और सुरक्षा इस समाज की मूल भित्ति है और आज वह भित्ति ही कमजोर है । जब तक सामाजिक प्रेम की भित्ति दुर्बल रहेगी, सभी बच्चियों में अपनी बहन-बेटी देखने की उदात्त भावना की बुनियाद कमजोर रहेगी, तब तक निर्भया और नैंसी जैसी घटनाएँ शायद होती रहेंगी और समाज को आईना दिखाती रहेंगी—वह आईना जिस पर धूल की परत इतनी मोटी हो चुकी है कि अब कुछ नहीं दिखता । बस हम कई बार कुछ कैंडल मार्च निकाल कर या धरना-प्रदर्शन कर उस धूल पर एक-दो उँगलियों से लकीर बनाते हैं –आईना पूरा तो साफ़ तभी होगा जब समाज का हर व्यक्ति अपने मन पर पड़ी धूल साफ़ करेगा ।

 

सब अंग दूषित हो चुके हैं अब समाज-शरीर के,
संसार में कहला रहे हैं हम फ़कीर लकीर के !
दुःशीलता दासी हमारी, मूर्खता महिषी सदा,
है स्वार्थ सिंहासन हमारा, मोह मंत्री सर्वदा ।
—मैथिलीशरण गुप्त

 

वहशी दरिंदों से भरे इस समाज में एक मासूम बच्ची तक सुरक्षित नहीं है । हालत
तो यह हो गई है कि अब लोग अपनी एक-दो साल की बच्ची को किसी दूसरे व्यक्ति की गोद में देने से हिचकने लगे हैं । उनकी चिंता भी वाजिब है । हम कहते हैं—यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता (जहाँ नारियों को सम्मान दिया जाता है वहाँ देवता निवास करते हैं) किन्तु हमारे समाज में महिला-उत्पीड़न आम बात हो चुकी है I समाज के कुछ मानसिक रूप से विकलांग भेड़िये अपनी क्षुद्र दुष्कृत्यों से पूरे समाज को बदनाम कर देते हैं । अवश्य ही हमें मजबूत पुलिस-तंत्र, चुस्त कानून-व्यवस्था, त्वरित न्याय-व्यवस्था की आवश्यकता है किन्तु क्या ऐसे दुष्कृत्य कानून-मात्र से रूक जाएंगे ? यदि नैंसी मामले में न्याय मिल भी गया तो क्या हमारी बहन-बेटियाँ सुरक्षित हो जाएंगी ? शायद नहीं ! इसके लिए व्यापक जन-चेतना और सुदृढ़ मानवीय नैतिकता की आवश्यकता है—एक व्यापक व्यवहारगत परिवर्तन ।

बेटी को हम लक्ष्मी कहते, बेटी हो हम दुर्गा कहते ।
उस लक्ष्मी की, उस दुर्गा की, किन्तु हम सम्मान न करते ।।
मानसिकता अब बदलनी होगी, सम्मान हमें तो करना होगा ।
सबको जागृत करना होगा, हमको बहुत बदलना होगा ।।

 

बहरहाल यह जो बदलता बिहार है, कथित सुशासन वाला बिहार है—वहाँ ऐसी घिनौनी घटनाएँ दिल दहलाती हैं और इस बात का डर भी पैदा करती हैं कि सचमुच वह जंगलराज लौट तो नहीं रहा I बिहार में बढ़ते बलात्कार की घटनाओं पर राष्ट्रीय महिला आयोग ने पूर्व में ही सिर्फ अपनी चिंता जताई थी । ऐसे मामलों में तीव्रतम और कठोर कार्यवाही न होना भी एक के बाद एक घटनाओं को अंजाम देने के लिए अपराधियों के हौसले को बुलंद कर रहा है । नैंसी झा की घटना ने अमानवीयता की सारी हदों को पार कर लिया है । भले ही अपराध कुछ व्यक्तियों का हो, किन्तु उसके लिए पूरा समाज, हम सब, हमारी व्यवस्था दोषी है । अतः इस समस्या को जड़ से हटाने के लिए हमें समाज के भीतर से ही चतुर्दिक और सामूहिक प्रयास करने होंगे । और अंत में एक कवि-हृदय व्यक्ति होने के नाते कुछ बातें कविता में—

 

नैंसी बहना नहीं रही अब, यादों में ही बची है वो
माता-पिता सदमे में उसके, सपनों में ही बची है वो
खिलौनों एवं गुड़ियों में, अब तो मात्र बची है वो
स्कूलबैग और बचे कपड़ों में, अब तो मात्र बची है वो
कॉपियों की लिखावट में ही, अब तो मात्र बची है वो
किताबों में खींचे चित्रों में, अब बस मात्र बची है वो
सखी-सहेली की खेलों में, यादों में अब बची है वो
टी.वी.रिमोट के वे झगड़े, क्या बतलाऊं कहाँ है वो
बहना रानी, बिटिया रानी, हम तो तेरे हैं अपराधी
हम सब बस यह सोच रहे हैं, कैसे खत्म ये होगी व्याधि
होठ तुम्हारे सिले हुए हैं, मेरी आँखों में आँसू हैं
शायद तू चुपचाप देखती, विवशता के क्या ये आँसू है
अब तो है बस यही प्रार्थना, ऐसी घटना कभी न हो
मन पवित्र हो जाए सबका, ऐसा दुष्कृत्य कभी न हो
किन्तु ऐसा हो पाएगा ?
सब कुछ अच्छा हो जाएगा?
मुझको यह संदेह सताए,
रह रह कर यह मुझे डराए
क्या करूं अब इस विपदा में
कहीं से मैं चन्द्रगुप्त बुलाऊं,
फिर से, सुभाष, लक्ष्मीबाई को
कहीं से मैं अशफ़ाक बुलाऊं
कहीं से मैं उसमान बुलाऊं
बमवाले वीर जवान बुलाऊं
भगतसिंह बलवान बुलाऊं
राणा प्रताप या गोविन्दसिंह
या फिर से वीर शिवाजी बुलाऊं
किन्तु क्या ये वीर कहेंगे,
ऐसे कैसे मेरे वंशज
शर्म से वे इस बार मरेंगे
तो फिर अब क्या रस्ता बचता
ऐसा हो जो सबको जंचता
मन अपना तो शुद्ध करें हम
दोष-विकार को दूर करें हम
तभी तो संभव हो पायेगा
प्रेम भाव फिर जग पायेगा
तब नैंसी बहना मुस्काएगी
हम सबके गले लग जाएगी
बहना बिटिया पुष्पित होगी
सुगंध बिखेरती पल्लवित होगी
समाज तभी आदर्श बनेगा
हर वर्ष तभी सब हर्ष बनेगा
बिटिया रानी मुस्काएगी
लक्ष्मी देवी खुद आएगी
खुले हुए वातायन होंगे
नर-नर में नारायण होंगे

 

(आगे भी लिखना चाहता था परन्तु आँखों से निकलने वाले अश्रुओं की बाढ़ ने आँखों को देखने से और हाथों को लिखने से रोक दिया है—रात बीतने पर है, पर रह-रह कर अश्रुधारा बह निकलती है । इसलिए फिलहाल इतना ही । –अविनाश कुमार सिंह)


 

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