माह-ए-मुहब्बत 5: प्रेम के महीने में इससे बेहतरीन तोहफा और क्या हो सकता था

“अरे! वैलेंटाइन डे आने वाला है ना ?” हिमानी ने फोन के इस तरफ़ से चहकते हुए कहा ।

“हम्म्म्म्म आने तो वाला है ।” सुचित भी उदास सा हो कर बोला ।

“ऐसे सड़ू बन कर जवाब क्यों दे रहे हो?” 

“खुशी की कोई वजह भी तो नहीं ना ।” सब प्रेमी इस दिन मिलते हैं, साथ वक्त बिताते हैं और हम ऐसे दूर-दूर । ना जाने कब वो दिन आएगा जब हम हमेशा साथ रहेंगे ।” अच्छा तो हिमानी को भी बिल्कुल नहीं लग रहा था मगर कुछ कर भी तो नहीं सकती थी, सिवाए सुचित को समझाने के ।

“अच्छा सुनो ना! मेरा मन है इस वैलेंटाईन तुम्हें कुछ गिफ्ट करने का । बताओ ना, तुम्हें क्या चाहिए ?” बात बदलते हुए हिमानी ने कहा।

“मुझे तो तुम चाहिए, खुद को गिफ्ट कर सको तो कहो ।” हर बार की तरह अपनी रटी रटाई इच्छा सुचित ने ज़ाहिर कर दी ।

“मैं तो तुम्हारी पहले से ही हूँ, नहीं हूँ तो कहो ।” हिमानी ने हँसते हुए कहा ।

“तुम्हें तो हर बात में मज़ाक ही सूझता है । मैं बेचैन हूँ और तुम बस हँसो ।” सुचित भड़कते हुए बोला।

“अच्छा साॅरी ना, अब नहीं हसूँगी ।”

“नहीं ना, तुम नहीं हंसोगी तो मुझे सुकून कहाँ से मिलेगा ।” दोनों हँस पड़े।

तीन दिन बाद…

“सुनो! मैंने तुम्हारे ऑफिस वाले एड्रेस पर कुछ गिफ्टस भेजे हैं । नंबर भी तुम्हारा ही दिया है । ऐसा ना हो कि वो फोन करे तो तुम उसे मना कर दो ।”

“अरे जाना क्या ज़रूरत थी इसकी ? अब बच्चे थोड़े ना हैं बाबू, जो ये गिफ्ट-गिफ्ट-गिफ्ट खेलें ।”

“हाँ बहुत बड़े हो गए हैं ना, हम बड़े क्या बूढ़े भी हो गए हैं । ज़्यादा ज्ञान मत दो जो कहा वो कर लेना चुपचाप ।”

“अच्छा ठीक है मगर भेजा क्या है ?”

“जनाब! आपका है, आपके पास ही आना है, देख लेना, पूछने की ज़रूरत क्या है ! बता दिया तो सरप्राईज़ कैसे होगा ।

“बहुत ज़िद्दी हो जाती हो कई बार ।”

“तुम मजबूर कर देते हो ज़िद्दी होने पर, इसमें मैं क्या कर सकती हूँ ?”

” कुछ मत करो । बस प्यार करती रहो ।”

“एक वही तो आता है ।” असल में सुचित को हिमानी से कोई गिफ्ट लेना पसंद नहीं था । मगर हिमानी तो ठहरी इश्क में डूबी हुई ज़िद्दी लड़की उसने जो कह दिया वो कर के रहेगी ।

चार दिन बाद…

सुचित को हिमानी का भेजा हुआ पार्सल मिल गया । सुचित जानता था पक्का कुछ इश्किया टाईप ही भेजा होगा । इतना बड़ा पार्सल है, भला इसमें और क्या होगा । मन ही मन सुचित सोच रहा था “ना जाने क्या ज़रूरत थी फालतू खर्च करने की ।” यही सब सोचते हुए सुचित ने पार्सल खोला और खोलते ही पहले उसके अंदर के सारे गिफ्टस को देखने लगा एक टक और तब तक देखता रहा जब तक आँसूओं के बोझ से सब धूँधला नहीं दिखने लगा । बाॅक्स में थे नमकीन के पैकेट्स, जूस के चार डिब्बे, खाँसी का सिरप, सर्दी ज़ुकाम की दवाइयाँ, एक कोल्ड क्रीम, एक च्यवनप्राश का डिब्बा, बिस्कुट के पैकेट्स, चॉकलेट्स, विक्स बाम, एक काॅफी मग और एक चिट्ठी । सुचित ने चिट्ठी उठाई और गिली आँखों को पोंछते हुए चिट्ठी पढ़ने लगा ।

मेरे आलसी प्रेमी,

“तुम चिट्ठी पढ़ रहे हो तो मैं शुक्रगुज़ार हूँ भगवान की, ये सोच कर कि ये सारा सामान तुम तक पहुँच चुका है । मैंने कभी ये इतना सब कहीं एक बार में भेजा ही नहीं, इसलिए घबरा रही थी सोच कर पता नहीं पहुँचेगा या नहीं । ये सारे गिफ्ट्स देख कर शायद आपको मेरी सोच थोड़ी बचकानी लगे । मगर ये सब जो भेजा है इन चीजों को मैं तबसे नोटिस करती आई हूँ जबसे तुम घर से दूर रहने आए हो । नमकीन और बिस्कुट तुम्हें बहुत पसंद है, मगर तुम काम का बहाना कर के कभी लेने नहीं जाते । सर्दी के मौसम में तुम्हें जुकाम और खाँसी जल्दी पकड़ लेती है और तुम “एक दो दिन में ठीक हो जाएगा” का बहाना बना कर मेडिसिन नहीं लेते । सारा दिन काम करते हो, खाने के नाम पर नखरे करते हो, शरीर में ताक़त कहाँ से आएगी। रोज़ दूध पिओगे नहीं इसीलिए चवनप्राश और जूस भेजा है, चॉकलेट मैंने अपनी तरफ से भेजा है और कोल्ड क्रीम इसलिए भेजी है कि मैं चाहती हूँ जब हम मिलें और मैं तुम्हारे चेहरे पर उँगलियाँ घुमाऊँ तो मुझे रूखा-रूखा न लगे । मानती हूँ ये सब ख़तम हो जाने वाली चीजें हैं और गिफ्ट कब पास रहता है हमेशा, मगर नासमझ हूँ, अभी मुझे यही सब ज़रूरी लगा तुम्हारे लिए । उम्मीद है तुम्हे पसंद आएगा और ना भी आए तो चुपचाप रख लेना भाषण मत देने लगना ।”

सिर्फ तुम्हारी हिमानी।

सुचित समझ नहीं पा रहा था कि वो इतना रो क्यों रहा है । उसे तो खुश होना चाहिए मगर उसके तो आँसू ही नहीं रुक रहे हैं । असल में उसे उस बॉक्स में सामान नहीं बल्कि ढेर सारा प्यार और हिमानी की उसके प्रति हर बात में छोटी छोटी चिंताएँ दिख रही थीं। जिन्हें वो कई महीनों से देखती आरही है और आज जब मौका लगा तो उसने अपना फ़र्ज़ पूरा कर दिया । आज सुचित को हिमानी की वो बात याद आगई जो हिमानी अक्सर हँसते हुए कहा करती थी “जानते हो, हर प्रेमिका में एक माँ का अंश भी होता है, जो अपने प्रेमी की देखभाल अपने बच्चे की तरह करने के लिए उकसाता रहता है” आज हिमानी के ये बोल कितने सच्चे लग रहे हैं ।

लोग फिर भी इस प्रेम को नहीं समझते। लेकिन इसमें गलती लोगों की भी उतनी नहीं है क्योंकि आज के दौर में प्रेम की इतनी किस्में हो गई हैं कि समझ ही नहीं आता शुद्ध, साफ, पाक प्रेम कौन सा है और चाईना माल जैसा चलता-फिरता वक्तगुज़ारी वाला प्रेम कौन-सा है । मिलावट इतनी बढ़ गई है कि बुरे के साथ सच्चे प्रेम को भी लोग हीन ही मानने लगे हैं । इन सब में मारे वो प्रेमी जोड़े जाते हैं जिन्होंने मर्यादा का ख़्याल रखा, जिन्होंने घर समाज की इज्ज़त को ध्यान में रखा, जो चाहते तो प्रेम के नाम पर भाग कर कहीं घर बसा सकते थे मगर जिन्होंने बाप की पगड़ी माँ के विश्वास को बचा कर रखा । मगर फिर भी सबने उन्हें उसी बुरी नज़र से देखा जिससे वो मिलावटी वाले प्रेम को देखते हैं । मगर लाखों में से कोई एक तो होगा जो कभी न कभी समझेगा । हम भी उसी एक की तलाश में हैं अनेक प्रेमी जोड़ों की तरह ।
नोट- यह कहानी बिहार के एक युवा कलमकार धीरज झा, जिनकी पुस्तक ‘सीट नंबर 48 हाल ही में लॉन्च हुई है और जो कंटेंट राइटिंग करते हैं, की है। आप अपनी भी सच्ची प्रेम कहानी हमें भेज सकते हैं, पढ़ेगा पूरा बिहार। हमारा पता है- [email protected]

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