चीन के विकास का विरोधाभासी है बिहार की शराबबंदी का ढोल

चीन के विकास का विरोधाभासी है बिहार की शराबबंदी का ढोल

(शशिकान्त सुशांतश):राबबंदी की सफलता और उसके परिणाम को लेकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का यह तर्क कि अगर पूरे देश में शराबबंदी लागू कर दी जाए तो देश विकास में चीन से आगे निकल जाएगा? इस तथ्य को ऐतिहासिक संदर्भ् के तराजू पर तौलना होगा क्योंकि नीतीश कुमार जिस चीन से भारत की तुलना कर रहे हैं वह तानाशाही शासन वाला देश है और भारत लोकतांत्रिक और लोकतंत्र में भी तुष्टिकरण की चरमपंथ वाली कुंठित राजनीति का देश। क्या भारत में यह संभव है कि दो से ज्यादा बच्चे पैदा करने वालों को दंडित करने, जेल भेजने का नियम कानून बनाया जा सके? चीन ने यह दो दशक पहले करके दिखा दिया था।

जिस चीन में माओ त्से तुंग के शासनकाल में सांस्कृतिक क्रांति के नाम पर पता नहीं कितने ही लोगों को अपनी बलि देनी पड़ी थी इसका आकलन आज तक नहीं हो सका, यहां तक कि संसार की सबसे बड़ी विज्ञान एजेंसी नासा भी अंदाजा नहीं लगा पाई कि चीन की सांस्कृतिक क्रांति में कितने लोगों ने अपने प्राणों की आहूति देकर चीन को विशाल देश बनने में सहयोग दिया, क्या वे वही लोग थे जो चीन में तानाशाही नहीं बल्कि लोकतंत्र चाहते थे? इसका भी मौलिक तथ्य सामने नहीं आ पाया? खैर।

माओ के राज तक चीन भयंकर रूप से अफीम का सेवन करने वाला देश था। वहां के लोगों के पास भोजन के लिए अनाज नहीं होते थे इसलिए वे अफीम खाकर दिन रात सोए रहते थे। इस महाबीमारी को खत्म करने के लिए अभियान तो माओ ने ही चलाया लेकिन उन्हें इसमें पूरी तरह सफलता नहीं मिल सकी क्योंकि उस समय तक चीन में अनाज की भयंकर कमी थी और भुखमरी का अपना अलग इतिहास है। चीन को वास्तविक विकास और अफीम से मुक्ति ली पेंग के शासनकाल में मिली जब उन्होंने 1978 में चीन की अर्थव्यवस्था को विदेशी पूंजी के लिए खोल दिया और निजी धन रखने, व्यवसाय करने और सरकारी जमीन जायदाद में निजी स्वामित्व की सीमा बढ़ा दी। यही वह टर्निंग प्वायंट था जहां से चीन के लोग खेतों और कारखानों में काम करने में मगन होते गए। चीन सरकार और वहां के लोगों में एक तरह का मौखिक समझौता हो गया कि हम तुम्हें काम देंगे तुम विरोध और प्रदर्शन नहीं करोगे। तब से लेकर आज तक यह मौखिक समझौता चल रहा है। दोनों ओर से ईमादनदारी है। लेकिन हमारे देश में यह संभव हो सका है? नीतीश कुमार इसका जवाब दे सकेंगे?

चीन की तानाशाही ने विदेशी पूंजी निवेश के लिए वह सब तरह के कार्य किया जिसे किसी भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में लागू करने में 50 वर्ष तक लग जाते हैं? लोगों के विरोध से शुरू होकर विदेशी फंड से पल रहे एनजीओ की अडंगेबाजी फिर कोर्टबाजी का चक्कर चलते चलते सारे विकास 100 साल पीछे चला जाता है। चीन में यही नहीं हुआ जो भारत में होता है और चीन 20 साल के अंदर शत प्रतिशत रोजगार का लक्ष्य हासिल कर लिया इसका श्रेय ली पेंग को जाता है। हमारे देश की हालत यह है कि उदारीकरण के 25 साल बाद भी हम अभी तक अपने युवाओं को रोजगार के 60 प्रतिशत अवसर तक उपलब्ध करा पाने में अक्षम हैं। क्यों? राजनीति।

जी हां, भारत में कोई प्रधानमंत्री ईमानदारी से काम करना भी चाहे तो यहां के राज्यों की राजनीति और व्यवस्था पीएम के संकल्पों पर पानी फेरने का काम करती नजर आती है। नौकरशाही और लालफीताशाही बहाने होते हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया जैसे कार्यक्रम लाए लेकिन राजनीतिक कारणों से कई राज्यों ने जानबूझकर पैसा खर्च नहीं किया क्योंकि इससे मोदी सफल हो जाएंगे? ऐसे में देश के किसी संवेदनशील और विचारवान आदमी के सामने जब यह सवाल रखा जाए कि देश को आगे बढ़ाने में अगर किसी ने कदम बढ़ाया तो उसे खींचने में कौन शामिल था तो इसका जवाब खुद मिल जाता है, राजनीतिक द्वेष?

नीतीश कुमार इस तथ्य को अच्छी तरह जानते होंगे जब वह रेलमंत्री थे तो उनके प्रोजेक्ट को बिहार में लटकाने के लिए वहां की राबड़ी सरकार किस तरह की हथकंडे अपनाती थी? राजगीर का आयुध कारखाना 15 साल बाद क्यों बनना शुरू हुआ क्योंकि जमीन ही नहीं मिल सकी? जमीन भी तब मिली जब वह कारखाना बंगाल जाने वाला था? क्या यह सच है? यदि यह सच है तो नीतीश जी, केवल शराब बंद होने से भारत चीन से आगे नहीं निकल जाएगा, इसके लिए यहां की गंदी, भ्रष्ट, आपसी टांग खिंचाई, विकास विरोधी, जाति धर्म आधारित और द्वेषपूर्ण राजनीति जिम्मेदार है यह जब तक खत्म नहीं हो जाती भारत में विकास की गंगा बहाना आसान नहीं है।

भारत में ही गुजरात, कर्नाटक्, महाराष्ट्र, गोवा, पंजाब ऐसे राज्य हैं जहां जाति से परे, द्वेषपूर्ण राजनीति नहीं हुई तो विकास की गंगा बही लेकिन बिहार और यूपी में विकास क्यों नहीं हुए? इसे शराब बंदी से अलग करके देख लीजिए? जब तक युवाओं को शत प्रतिशत रोजगार के अवसर उपलब्ध नहीं करा देते तब तक आप विकास की बात कहां से कर सकेंगे?

जिसे शराब पीना है देश के किसी कोने में जाकर पी लेगा। इसे चीन के अफीम वाली लत से नहीं जोड़ा जा सकता, या अपने ही देश में ड्रग्स समस्या से नहीं जोड़ सकते क्योंकि दोनों में अंतर है और सबसे बड़ा तथ्य चीन ने रोजगार देकर वहां के लोगों को अफीम से छुटकारा दिला दिया आप भी सबको रोजगार दीजिए कोई अपराधी नहीं दिखेगा।

अपनी गिरेबां देखने की आदत किसे होती है? क्या बिहार में शराबी बिना शराब के रह रहे हैं? नहीं। क्योंकि जिसके पास पैसा है उसके यहां होम डिलीवरी की सुविधा उपलब्ध हो गई है। क्या इसे आप रोक पाएंगे? चीन का उदाहरण देने से पहले अपने राज्य की दुर्दशा को देख लीजिए बेरोजगारी और पलायन का ग्राफ का आंकलन कर लीजिए सब कुछ पता चल जाएगा? पंजाब शराब पीने से नहीं ड्रग्स सेवन का शिकार होने से जर्जर होने लगा। कर्नाटक, तमिलनाडु और महाराष्ट्र के लोग क्या शराब नहीं पीते हैं? वहां विकास कैसे हो गया? आपके थ्योरी का विरोधाभास तो देश में ही उपलब्ध है चीन का उदाहरण क्यों दे रहे हैँ, भारत के दक्षिणी राज्यों को देख लीजिए। हरियाणा और हिमाचल क्यों विकसित हो गये?

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