गोवा की राज्यपाल और बिहार की बेटी डाॅ मृदुला सिन्हा से खास बातचीत

सरल व्यक्तित्व, उच्च विचार एवं अपने लेखनी के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध वर्तमान में गोवा राज्य की राज्यपाल डॉ मृदुला सिन्हा बिहार के ही पावन भूमि मिथिला के मुजफ्फरपुर की रहने वाली हैं। उनकी पहचान एक प्रखर महिला नेता के साथ हिन्दी साहित्य की प्रसिद्ध लेखिका के तौर पर तो है ही साथ ही मिथिला लोक संस्कृति के ध्वजवाहक के तौर पर भी होता है और साथ ही बिहार के प्रति उनका प्रेम जगजाहिर है।

हाल ही में बिहार दौरे पे आई गोवा की राज्यपाल डॉ. मृदुला सिन्हा ने ‘आपन बिहार’ से बातचीत की और बिहार से संबंधित विषयों पर अपना विचार दिया।

पढ़िए उनका एक्सक्लूसिव इंटरव्यू…

Mridula sinha

प्रश्न:  प्रायः लोग सफलता मिलने के बाद अपने गाँव और समाज को भूल जाते हैं, मगर आप राज्यपाल जैसे प्रतिष्ठित पद पर जाने के बाद भी अपने गाँव, समाज और राज्य के सेवा के लिए हमेशा तत्पर रहती हैं। लोग आपको बिहार की पहचान और मिथिला की ब्रांड एम्बेसडर भी कहते है. इसपर आपकी प्रतिक्रिया

 

मृदुला सिन्हा: यह मेरी धारणा है कि अधिकांश लोग, बिहारी भी, जो अपने राज्य से बाहर जाते हैं या बड़े पद पर पहुँच जाते हैं, वे गाँव-देहात को नहीं भूलते। ये मृदुला सिन्हा की ख़ासियत नहीं है। ज्यादातर लोग याद किया करते हैं| कुछ लोग किसी परिस्थिति वश नहीं याद कर पाते हैं। सबको गाँव और समाज खींचता है इसलिए उसमें से एक मैं भी हूँ और मुझे ऐसा लगता है कि लोक संस्कृति ने मुझे बहुत जकड़ रखा है, बाँध रखा है| मुझे उसमें ख़ासियत महसूस होती है|

जितने लोकगीत हैं, लोक कथाएँ हैं, वे बहुत सारे संदेश देते हैं। वे लोकगीत मनोरंजन के लिए नहीं हैं, वे बहुत कुछ सिखाते हैं और लोक गीतों में वेद के मंत्रों का अनुवाद, जो ख़ासियत है, वही भारतीयता है, भारतीय संस्कृति है| बिहार की संस्कृति कोई अलग नहीं है। तो उन चीजों को दूसरी जगह बताना, दूसरी संस्कृतियों से तुलना करना और वहाँ भी जा के बता पाना मुझे उसमें खुशी होती है। तो मैं न लोकगीतों को भूला पाई हूँ और न ही लोक संस्कार को।

कल्चर है, पर्व-त्योहार है, सबका विशेष महत्व है और वो इस तरह से मेरे अंदर समा गया है कि मैं चाहूँगी तो भी नहीं निकाल पाऊँगी ।

प्रश्न: आप बिहार से सम्बन्ध रखती हैं। लेखिका भी हैं। लिखने वाले अक्सर छोटी-छोटी चीजें ऑब्जर्व करते हैं। आपको बिहार में किस तरह के बदलाव नज़र आते हैं?

मृदुला सिन्हा: बहुत बदलाव है। ऊपरी या अंदरूनी दोनों तौर पर बहुत बदलाव है| पहले की सोच और आज की सोच में बहुत अंतर है,  हर चीज में।

पहले बिहार के लोग खोजी प्रवृत्ति के थे और खोजी में से कहाँ जॉब मिलेगा, नौकरी मिलेगी सूंघते चलते थे और सब जगह भागे जा रहें थे नौकरी के लिए।

आजकल इंटरनेट के कारण नवयुवकों में जानकारी बहुत बढ़ी है। मेरी एक कहानी में गाँव में एक महिला है जो खेतों में मूंग तोड़ने जाती है| मूंग तोड़ के टोकरी में रखते जाती है और नीचे उसका मोबाइल बजता है। बेटा दिल्ली से फोन किया है। बेटा माँ को सबसे पहले मोबाइल खरीद के दिया है, साड़ी नहीं लाया ताकि हम तुमको फोन करते रहेंगे।

प्रश्न: बिहार में 10-15 साल पहले तक महिलाएँ जल्दी घर से निकलती नहीं थी। लड़कियों को पढ़ने के लिए स्कूल नहीं जाने दिया जाता था मगर अब गाँवों में भी लड़कियाँ सुबह-सुबह  साइकिल की घंटी बजाती हुई स्कूल को जाती हैं और महिलाएँ तो आज मुखिया बन पंचायत चला रहीं हैं। 

क्या इन 10 सालों में महिलाओं के प्रति हमारे समाज की सोच बदली है?

मृदुला सिन्हा: बहुत सोच बदली है और इन सबका कारण आरक्षण मिलना है। यह बहुत बड़ी भागीदारी हो गई। पुरुषों ने अपनी पत्नियों को आगे कर दिया, उसमें तो भाव उनका दूसरा था। पत्नियों को बढ़ावा नहीं, मकसद था कि महिला आरक्षित सीट है चलो मेरी पत्नी को मिल जायेगा मगर एक बार बन गई तो पति को अब बोलने नहीं देती।

आज से 40 साल पहले सरपंच पति एक शब्द था, अब नहीं लिखता कोई पत्रकार। अब तो पत्नी ही अपने पति की सरपंच है। पति से विचार लेना, सहयोग लेना, ये कोई बुरी बात नहीं है लेकिन बहुत बातों की जानकारी और समझ बढ़ गई है।

बेटियों को पढ़ाने में पुरुषों ने बहुत बढ़ावा दिया है। पहले साइकिल पर बैठाकर पिता बेटी को स्कूल छोड़ते थे और अब वह साइकिल पर बैठती है और पिता को पीछे कैरियर पर बैठा लेती है। सीट पर पिता बैठते थे कैरियर पर बेटी, अब सीट पर बेटी बैठती है कैरियर पर पिता| कितना बड़ा परिवर्तन आया है!

प्रश्न: तमाम प्रयासों के बावजूद साहित्य से लेकर खेल तक, बिहार की महिलाओं की भागीदारी का ग्राफ उतनी तेजी से बढ़ता हुआ नहीं दिखता। आप इसके लिए किन कारणों को जिम्मेदार मानती हैं?

मृदुला सिन्हा: निराश मत होइए, बढ़ा तो। तेजी से ग्राफ बढ़ना भी नहीं चाहिए । पैर थाम-थाम के रखना चाहिए हर जगह पर। बढ़ने दीजिये धीरे-धीरे । ग्राफ बहुत बढ़ गया है।

प्रश्न: सोशल मीडिया के जरिये आज कोई बात मिनटों में वायरल हो जा रही है, इसका सीधा असर समाज और खास कर युवाओं पर है, आपका क्या कहना है इसपर?

मृदुला सिन्हा: उसमें थोड़ी सी कमी आनी चाहिए। पहले तो मैं समाचार पत्रों के बारे में कहा करती थी कि सुबह-सुबह अखबार देख लो तो भयभीत हो जाओ| घर में सब सुख शांति है मगर सुबह उठते खबर पढ़ लीजिए या न्यूज देख लीजिए तो लगता था यह दुनिया जीने लायक नहीं है जबकि चारों ओर घर में देखो तो शांति है| क्योंकि खबर क्या बनती है,  उसको मारा, उसको पिटा, उसको उठा के ले गया, उसका अपहरण कर लिया। तो उसी तरह से जो इंटरनेट है, फेसबुक है, सोशल मीडिया है वह लोगों को भयभीत ज्यादा कर रहा है। अच्छी खबरें नहीं दे रहा है। उपलब्धियों की खबरें नहीं दे रहा है। उपलब्धियों की खबरें कम आती हैं।

तो जनमानस को ज्ञान तो देना है, भयभीत नहीं करना है। जानकारी तो देना है, न्यूज तो देना है मगर भयभीत नहीं करना है। तो थोड़ा सा इसका भी प्रभाव पड़ रहा है।

प्रश्न: आपन बिहार के द्वरा दुनिया भर में फैले बिहार के लोगों को क्या संदेश देंगी

मृदुला सिन्हा: जो बिहारी जहाँ पर हैं और जहाँ तक भी बिहारी गये हैं,  वह अपनी छवि वहाँ बनाएँ| उनको वहाँ अपने बिहार को प्रदर्शित करना चाहिए| अपने संस्कार को वहाँ दिखाना चाहिए| सारा भारत हमारा है, यह मानकर डट के रहना चाहिए| वह जहाँ हैं उसके विकास के लिए काम करना चाहिए ।

प्रश्न: आपन बिहार बिहार का सबसे बड़ा सोशल पोर्टल है जो चार वर्षों से लगातार बिहार की सकारात्मक खबरों को प्रमुखता से उठाता है और दुनिया को बिहार का सकारात्मक पक्ष भी दिखाता है और साथ ही लोगों में अपने बिहार के प्रति गर्व की भावना जगा रहा है।

आपन बिहार के लिए आपका कोई सुझाव या संदेश??? 

मृदुला सिन्हा: आपन बिहार जो काम कर रहा है। वह निश्चित उद्देश्य के लिए कर रहा है, सकारात्मक भाव, सकारात्मक सोच, सकारात्मक व्यवहार के लिए।

बहुत खुशी की बात है। इसको जारी रखना चाहिए और जहाँ-जहाँ अच्छी बातें थी जो दूसरे क्षेत्रों के लिए भी भलाई का काम कर सकती हैं, उनको, और जहाँ आज अच्छी बात हो रही हैं उन चीजों को प्रकाशित करना चाहिए और आगे ले जाना चाहिए ताकि लोग उस रूप में बिहार को समझें जैसा यह है।

 

 

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